कल्चर बदल रहा है, सोच भी बदल रही है. आप सबके साथ हों न हों सबके साथ दिखना जरुरी है. जब समर्थक तन कर खड़े हों तो उनके समर्थन में और जब विरोधी हाथ में पत्थर लिए हुमक रहें हों तो इसमे कुछ कहने की जरुरत नहीं. इन दिनों शराब के विरोध का दौर है. विरोध के लिए अपनी देह के साथ प्रदर्शन करना पड़ता है. फोटू-ओटू छप जाती है, बड़ा मजा भी आता है. शाम को बढ़िया पार्टी-वार्टी भी होती है. कई बार विरोध प्रदर्शन में लोकल नेताहोन भी आ कर बैठ जाते हैं. लोकल नेता लोकल ट्रेन की तरह होता है, हर छोटे स्टेशन पर रुक लेता है. अभी विरोध प्रदर्शन में बैठा है, शाम को किसी बार में बैठा मिलेगा. किसी में इतना लचीलापन नहीं हो तो वह पक्का तो क्या कच्चा जनसेवक भी नहीं बन सकता है. आजकल नेता को सब पता होता है, नेता को ही क्यों सबको सब पता होता है. इसलिए हा-हू के बाद सब यही कहते हैं कि ‘देख लेना होना-जाना कुछ नहीं है’. विरोध की एक परम्परा होती है, लोकतंत्र में इसका बड़ा महत्त्व होता है. इसलिए समय समय पर विरोध में सबको सहयोग करना चाहिए.
मॉड मैडमें प्रायः अपने मेकप को लेकर सुपर गंभीर होती हैं, लेकिन शराब विरोध को लेकर भी वे कुछ गंभीर टाईप हो लेती हैं. उनका मानना है कि वे शराब की ‘दुकान का’ विरोध कर रही हैं. दुकान यहाँ से हट जाये और कहीं और शिफ्ट हो जाये, बस. लेकिन इतनी दूर भी ना हो कि ‘किसी को’ आये दिन दिक्कतों का सामना करना पड़े. यू-नो, पेट्रोल आजकल कितना महंगा होता जा रहा है और गाड़ियाँ भी एवरेज कम निकाल रही हैं. ट्रेफिक भी इतना है कि टाइम बहुत बर्बाद होता है. शहर तक को स्मार्ट बनाया जा रहा है तो शहरी भोंदू कैसे रह सकते हैं !? उनको भी माडर्न लाइफ होना कि नहीं होना ?
सरकारें भी लोकतंत्र के साथ परिपक्प हो चली हैं. छोटा-मोटा विरोध प्रदर्शन चलता रहे तो उसे भी लगता है कि तवज्जोह मिल रही है. आखिर लोगों को भी कुछ मांगना चाहिए, हर पांच साल में सरकार ही मांगती रहे यह अच्छा भी नहीं लगता. शराब का पहला विरोध हुआ था तो बोतलों पर लिखवा दिया था कि ‘शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’. अब आप जानो आपका काम जाने. यह चेतावनी अंग्रेजी में भी लिखवाई गई. सरकार जानती है कि अंग्रेजी जानने वाले सिर्फ अंग्रेजी से ही नहीं ‘अंग्रेजी’ से भी प्रेम करते हैं. हिंदी वालों का मामला अलग है, ‘चेतावनी’ शब्द उनके शब्दकोष में है ही नहीं. जैसे नेपोलियन के शब्दकोष में भी कुछ शब्द नहीं थे. जब ‘चेतावनी’ शब्द है ही नहीं तो क्या बीडी-सिगरेट, तम्बाकू और क्या शराब !! सब ज्ञानी हैं, जानते हैं शरीर नाशवान है, और चेतावनी देने वाले पट्ठों का शरीर भी बचेगा नहीं. भगवान कह गए हैं कि जो भी है बस आत्मा है. शस्त्र इसे काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती तो शराब क्या कर लेगी भाय !? ऐसा कोई समय नहीं रहा जब राजा-प्रजा और मधुशालाएँ नहीं रहीं. तो हे अर्जुन रामचंदानी, मनुष्य बार बार जन्म लेता है और बार बार मरता है. इसलिए जीवन में ‘बार’ के महत्त्व को समझ. आया है सो जायेगा, राजा रंक फकीर. हे प्रिय, दर्शन को समझ और प्रदर्शन में जा, विरोध कर लेकिन विरोधी मत बन. सरकार पीने वालों से सहयोग कर रही है, तू सरकार से कर.
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