रविवार, 28 जनवरी 2018

कामरेड कहाँ जाते हैं मरने के बाद ?


किसी जमाने में बुजुर्गों का बड़ा महत्त्व हुआ करता था. जीवन की जटिलताओं से दो चार होने में उनके अनुभव काम आया करते थे. मसलन बच्चा पैदा हुआ है तो घुट्टी चटाना है या शहद यह कौन बताएगा ? किन्नर नेग मांगने के लिए दरवाजा और ताली पीट रहे हैं उनसे कौन निबटेगा ? ब्याह शादी के जैसे प्रसंगों पर कैसे बात बैठाई जाये कि लड़की वालों से ‘दहेज़ नहीं - दहेज़ नहीं’  कहते हुए दुनिया भर का सामान भी जप लिया जाये, वगैरह. लेकिन अब जमाना बदल गया है, बुजुर्ग केवल आशीर्वाद देने के लिए हैं, वो भी देओ तो ठीक नहीं तो रखो एफडी बना कर अपने पास.
  अब दुनिया बदल गयी है. बच्चों के  पास उपयोगी ज्ञान है. वे जिज्ञासु भी बहुत हैं, सवाल पर सवाल पूछते हैं. अभी हमारे वाले राहुल ने  पूछा कि दादू ये बताओ कि सब लोग मरने के बाद स्वर्ग या नरक में जाते हैं तो कामरेडों का क्या होता है ? मरने के बाद वे कहाँ जाते हैं ?!
अपना राहुल बड़ा तेज है, सवाल से ज्यादा पेंचीदा मामला ये है कि गलत जवाब देना उसके साथ लूडो खेलते गोटी पिटवाने जैसा है. सोचने का अभिनय करते हुए मैंने बताया कि जो भी मरता है स्वर्ग या नरक ही जाता है, कामरेड भी वहीं  जाता है. लेकिन उसका तर्क था कि कामरेड  नास्तिक होता है. जो ईश्वर को नहीं मानता हो, पूजा-पाठ  में जिसका विश्वास नहीं हो, जिसके लिए स्वर्ग या नरक का कोई अर्थ नहीं हो, वो वहां कैसे जा सकता है !?
“बेटा ऐसा है कि कामरेड भले ही ईश्वर को नहीं मानता हो लेकिन ईश्वर तो कामरेड को मानता है. हर सुबह जब धूप खिलती है तो कामरेडों की पत्नियाँ भी कपड़े सुखाने छत पर आती हैं या नहीं. जब बारिश होती है तो कामरेड को भी घर से छाता ले कर निकलना होता है या नहीं.” मैंने समझाने का प्रयास किया लेकिन उसने टका सा जवाब दिया, - “दादू फिलासफी झाड़ कर बचो मत, जब कामरेड स्वर्ग-नरक  सिस्टम को ही नहीं मानते हैं तो उन्हें वहाँ ले जाने का सवाल ही नहीं है.”  बच्चन सामने होते तो कहता कि क्विट करता हूँ, जवाब नहीं पता. लेकिन राहुल ! समझो घर का नया मुखिया है सो दूसरा रास्ता लिया, “बहुत से लोग होते हैं जो सरकार को नहीं मानते हैं बल्कि कई तो सरकार के विरोधी भी होते हैं. लेकिन वे भी कानून के दायरे में होते हैं. सीबीआई या आईटी वालों के छापे भी अक्सर उन्हीं के यहाँ पड़ते हैं. इसी तरह दूसरे पहुंचें या नहीं पहुंचें कामरेड जरूर वहाँ पहुँचते हैं.” राहुल ने फ़ौरन सवाल दागा, - “ स्वर्ण-नरक दोनों जगह पहुँचते है ?” 
“स्वर्ग तो शायद नहीं लेकिन नरक जरुर पहुँचते होंगे. भगवान भी इंसानों की तरह होते हैं. वो कथा सुनी है ना सतनारायण की, झूठ बोलने पर उन्होंने धन से भरी नौका को फूल -पत्ती  से भर दिया था. जिसके पास सत्ता होती है वो लाइव टीवी और विदेशी मेहमानों के सामने अच्छे  अच्छों को पीछे की पंक्ति में बैठा देता है. ऐसे माहौल में कामरेडों की क्या चलेगी. भगवान की  मर्जी , वो उनको स्वर्ग-नरक  कहीं भी बैठा दे.” लेकिन जैसी कि आपको भी आशंका है राहुल सहमत नहीं हुआ. उसका कहना है कि जो मजलूमों के साथ होते हैं, उनको संगठित करके संघर्ष करते हैं ईश्वर उन्हें नरक में डाल कर खतरा तो उठाएंगे नहीं. और स्वर्ग में भी जगह देंगे नहीं. फिर सवाल ये कि वे जाते कहाँ है ? हमने एक और ट्राय मारा- “वे फिर से पैदा होते होंगे. जैसे इन दिनों कहते हैं ना ‘बार बार, छप्पन इंची सरकार’.”
अपना राहुल तो भईया राहुल है, माने क्या ? बोला - “फिर तो देश और दुनिया में कामरेडों की संख्या बढना चाहिए थी ! लेकिन देख रहे हो ना, गिनती के रह गए हैं, टायगरों की तरह. मिडिया वाले भी उन्हें लुप्त होती प्रजाति की तरह दिखाते है. सवाल वही है, ‘कामरेड मरने के बाद जाते कहाँ हैं’.

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