हॉबी
बहुत अलग टाइप की चीज होती है । जिसको होती है उसी को होती है, सबको नहीं होती है । जलेभुने लोग इसे खुजली भी कहते हैं । हालाँकि खुजली का मामला भिन्न है, उसका इलाज भी हो जाता है । भाबी जी ने चाय पकौड़ा मुलाक़ात में बताया कि उनकी
बहुत सारी हॉबी हैं । पहली तो यही कि उनको पीएचडी करने का बड़ा शौक है । हँसते
मुस्कराते दो बार कर चुकीं हैं । तीसरी बार भी करना चाहती हैं । लेकिन इस बार मन
नहीं हो रहा है ।
आप
सोच रहे होंगे कि पीएचडी बड़ा मेहनत का काम है । लोग एक करने में टूट जाते हैं,
भाबी जी ने दो दो निबटा दी हैं, उच्चशिक्षा कोई मज़ाक नहीं है
। अब शायद हिम्मत जवाब दे रही होगी । सुना है ज्ञान व्यान का मामला है । कुछ लोग
कहते हैं कि ज्ञान हो तो पीएचडी होती है और कुछ का मानना है कि पीएचडी हो तो ज्ञान
होता है । पक्का क्या है यह अभी तक पता नहीं चल पाया है । एक पीएचडी इसी बात पर
होना चाहिए । कोई कह रहा था किसी किसी को पीएचडी के बाद ज्ञान का सींग उग आता है ।
लोग सींग देख कर डरते हैं चाहे वो किसी का भी क्यों न हो । शायद पीएचडी का फायदा
भी यही है । इधर दो दो सींग हैं । जिसका मतलब है कि बस हो गया । शिवजी का नंदी हो
या कामधेनु गाय, सबके दो ही होते हैं । भगवान का ऐसा है कि
जो करते हैं अच्छा ही करते हैं वरना नहीं करते हैं । अगर किसी के सिर पर तीन चार
या ज्यादा सींग सुहाते तो जरा देर नहीं करते । हाथी, गधे और
शेर को एक श्रेणी में रखा है तो कुछ सोचा ही होगा । दो पीएचडी की बधाई देते हुए भाबी
जी से पूछा कि ‘तीसरी क्यों नहीं आखिर !?’
“हॉबी
तो है लेकिन ... अब मन नहीं हो रहा है ...”
“हॉबी
का क्या होगा !! .... कर लीजिए ना दिक्कत
क्या है ?“
“करने
में कोई दिक्कत नहीं है ... लेकिन अब लगता है फायदा नहीं है कुछ । “
“सब
ऐसा सोचेंगे तो कैसे काम चलेगा ! ... मुर्गी को अंडा देने से क्या फायदा है, यह सोच कर वो अगर अंडा देना बंद कर दे तो !”
“देखिए
जब पहली करी तो नाम के आगे ‘ डॉ.’ लगा । जब दूसरी करी तो डॉ.डॉ. लगाना चाहिए । पर लोग लगाने नहीं दे रहे
हैं । जब दो पीएचडी में एक डॉ. तो तीन में भी एक ही डॉ. लगाने को मिलेगा । फिर
फायदा क्या !?“
“कायदे से तो ‘डॉ.डॉ.डॉ.’ लगाना ही चाहिए । बल्कि ‘डॉ.डॉ.डॉ.’ इतना बड़ा और प्रतिष्ठापूर्ण होगा कि इसके
बाद नाम लिखने की जरूरत ही खत्म हो जाएगी ।
आखिर कौन है इस जहाँ में जिसने तीन तीन पीएचडियाँ कर रखी है !... ‘डॉ.डॉ.डॉ.’ बोलते ही गूगल बता देगा कि आप हैं ।”
“अरे
नहीं, नाम तो लिखना ही पड़ेगा । आखिर मेरी सारी हॉबीस नाम के लिए ही तो हैं ।“
“और
क्या हॉबी हैं आपकी ।“
“साहित्यकार
हूँ, चित्रकार हूँ, गाती हूँ,
होम्योपैथिक डाक्टर हूँ ... और हाँ ... आपकी हॉबी क्या है ?“
“मेरी
हॉबी !! .... वॉक करना .... पाँच किलोमीटर पैदल चलता हूँ । अच्छा याद दिला दिया
.... अभी मैं निकलता हूँ ‘डॉ.डॉ.डॉ.’ भाबी जी । फिर कभी आऊँगा फुर्सत में ।
“लेकिन अभी ये तीसरा ‘डॉ.’ क्यों !? पीएचडी तो करने
दो पहले ।”
“तीसरा
‘डॉ.’ होम्योपैथी का है ..... नमस्ते । “
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जैसे 'श्री 108 श्री' लिखा जाता है उसी तरह 'डॉ 4 डॉ' 5 डॉ लिखकर मान बढ़ाया जा सकता है भाबी जी का। करने दीजिए पूरी हॉबी। बहुत बढ़िया रचना सर।
जवाब देंहटाएंवाह। भाबी जी अंदर नहीं विश्व विद्यालय में हैं!!
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