सोमवार, 7 दिसंबर 2020

भाई का जंगल बीमा



वे बीमा एजेंट नहीं हैं लेकिन जीवन रक्षा की गारंटी बने कुर्सी पर बैठे हैं । बिलकुल शांत ... फिलहाल । जैसे गांधी जी के वन एंड ओन्ली फॉलोवर हों । अपने बीमा व्यवसाय के शुरुवाती दिनों में वे चाकू रखते थे ताकि लोगों को समझाया जा सके कि जीवन रक्षा के मायने क्या होते हैं । जब काम बढ़ा तो देसी कट्टा और बाद में पिस्तौल वगैरह बिजनेस टूल बने । अब एरिया के नामी बीमा प्रदाता हैं । खुद की कंपनी है और कई मुलाजिम रखे हुए हैं जिन्हें एजेंट बताया जाता है । नई जगह जाते हैं और बैठ भर जाते हैं बाकी काम के लिए एजेंट यानी टाइगर-टामी दाएँ-बाएँ होते हैं । आज इनके साथ हीरा-हटेला, सलीम-करेला और मोहन-मिर्ची लगे हुए हैं । ऊपर से सब शाकाहारी आइटम हैं लेकिन अंदर से रेडमीट खोर हैं । मौका मिल जाए तो फाड़ खाने में कुत्तों को मात कर दें ।

पता चला कि एक नई पार्टी ने दुकान खोली है एरिया में, तो बकायदा आए हैं ओपनिंग के लिए । एक बार पॉलिसी ठीक से सेट जाए तो प्रीमियम आता रहता है । जिन्हें जीवन की ऊँच-नीच अच्छा-बुरा पता होता है वे जल्दी समझ जाते हैं । दिक्कत अनुभवहीनों के मामलों में होती है । जब तक ऊँच-नीच अच्छा-बुरा अनुभव नहीं कराओ मानते नहीं हैं । बीमे की फील्ड में आजकल मेहनत बहुत करना पड़ती है ।

“दुकान मालिक कौन है ?” मोहन-मिर्ची ने बात शुरू की ।

“मैं ही हूँ, क्या चाहिए आपको ?”

“जान ... जान चाहिए ... देगा क्या ?”

दुकानदार कुछ कुछ समझ गया, हाथ जोड़ कर बोला- “एक जान है भाई साब ... किस किस को दूँ ! धंधा है नहीं ऊपर से पुलिस, नगर पालिका, बैंक-बाज़ार, स्कूल-अस्पताल, लोगों का नगद-उधार और नसीब में बड़बोली सरकार ! मास्क है तो धक रहा है, नहीं होता तो मुंह छुपाने में मुश्किल हो जाती । इस छोटी सी जान के दीवाने हजारों है । रोज लगता है आज गई । ” मुसीबत ताड़ कर उसने अपनी गजल गा दी ।

“ओए ! उमराओ जान ... भाई बैठे हैं सामने । परमिसन ले के जान नहीं लेते हैं । एक मिनिट नहीं लगेगा और तेरी इच्छा पूरी हो जाएगी ।“

“भाई मतलब !! ... अच्छा क्राइम वाले हो !”

“ काय का क्राइम ! एं ? क्राइम व्राइम कुछ नहीं, जो होता है वो समाजसेवा होती है । भाई को आगे जाके इलेक्सन लड़ना है । इसलिए इधर किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं होता है, एक सिस्टम है पब्लिक के फायदे के वास्ते । सिस्टम समझता है ना ? जैसे पुलिस सिस्टम है जनता की सेवा के लिए है, और जमके सेवा कर देती है, नेता-सरकार सब तुमारी सेवा में हैं वैसे ही हम भी सेवा में हैं । इसमें दिक्कत क्या है ? सब लोग पापी पेट के लिए पाप पुण्य देखे बगैर लगे हैं सेवा में ।  सेवा ही हमारा धरम है, लोकतन्त्र जिंदाबाद है ... है कि नहीं  । कोई नया काम तो कर नहीं रहे हैं जो देश में पहली बार हो रहा है । तुमने कभी अस्पताल से पूछा कि भगवान इत्ता सारा बिल किस बात का !? किसी स्कूल वाले से कहा कि मोटी मोटी फीस लेने के बाद भी कपड़ा-किताब जूता-मोजा में दीमक जैसे लगे क्यों चाट रहे हो !! मॉल में जाते हो तो तीन मोसम्बी का जूस दो सौ में पी मरते हो और कोई आवाज नहीं निकलती है ! ये सब सेवा कर रहे हैं ! और हम जरा सा हप्ता लेके जिंदगी देते हैं तो ततैया काट जाती है कान पे ! अभी हम टांग तोड़ दें तो अस्पताल वालों को मुँह माँगा पैसा दोगे या नहीं ? जब टांग नहीं तोड़ रहे हैं तो तुम्हारा दो लाख बचा रहे हैं या नहीं । इससे ज्यादा तो अस्पताल वालों से कमीशन ले सकते हैं भाई । लेकिन नहीं ले रहे तो कायको ? जनता की सेवा के लिए । मौत का डर दिखा के बीमे वाले भी प्रीमियम ले लेते हैं या नहीं ? इधर हजार पाँच सौ भारी पड़ रहे हैं तेरे को ? अभी जबड़े पे दो ठूँसे मार दें तो मंकी लगेगा ... मंकी समझता है ना ? बंदर ... बंदर केते हें इंडिया वाले । फिर क्या करेगा ... थाने जाएगा रिपोर्ट लिखवाने ?  तो इतना जान ले कि जैसे लोकतन्त्र के चार खंबे होते हैं वैसे ही ठोकतंत्र के भी चार खंबे होते हैं । एक खंबे कि शिकायत दूसरे खंबे से करेगा तो बच पाएगा क्या ?

“तो मेरे लिए क्या आदेश है ... भाई जी ?” दुकानदार ने चुप बैठे भाई की ओर निवेदन फैका । 

“अबे डाइरेक्ट नहीं ... भाई से सीधे बात करने की हिम्मत करता है !! ...इत्ता बड़ा हो गया तू ! इधर हटेला भाई से बात कर । “

“जी हटेला भाई ... मेरे लिए क्या आदेश है ?”

“ फस्ट बार पचास हजार ... बाद में पाँच सौ हफ्ते का । ... और एक लड़के को नौकरी पे रखने का । उसकी तन्खा पाँच हजार महिना ।“

“इतना !! ... कर्ज में हूँ भाई ... धंधा नहीं है ... नहीं दे सकता ।“

“फिर तो जान जाएगी ... सोचले । “

“पंद्रह दिन की मोहलत दोगे क्या भाई ?”

“क्या करेगा पन्द्रा दिन में ?”

“बीमा करवा लूँ फिर मार देना ... घर वालों की थोड़ी मदद हो जाएगी ।“

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