मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

फोटोफ्रेम में फंसा आदमी

 



इन दिनों अपनी फोटो पर मेरा ध्यान बार-बार जाता है । आजकल हर हाथ में कैमरे वाला फोन है तो फोटो ऐसे खींचे जा रहे हैं मानो संसार में इसी कर्म के लिए भेजा है ईश्वर ने । या फिर सरकार को सालाना रिटर्न के साथ हर बार नए फोटो दिखाना पड़ेंगे । कभी मन होता है कि सेल्फी दर सेल्फी लेते रहें,  शायद कोई पसंद का फोटो मिल जाए ।

 रोज अखबार फोटो में शेष रह गए लोगों की सूचना देता है । कुछ के यहां जाना भी पड़ता है । देखते हैं फोटो बढ़िया है । सारे दाग धब्बे फोटो से गायब हैं ।  आजकल तकनीकी का जमाना है आदमी से बेहतर उसकी फोटो होती है । मेरे माथे पर चेचक और चोट के दो निशान हैं । जब भी फोटो खिंचवाई फोटोग्राफर ने दोनों निशान गायब कर दिए और इसे अपनी कला कहा । इससे थोड़ा बहुत पहचान का संकट बना, पर अच्छा लगा । गालों पर मुहांसों के छोड़े हुए निशान किसको अच्छे लगते हैं ! स्टूडियो वाले इस बात को बहुत अच्छे से जानते हैं । एक बार तो फोटो इतना साफ सुथरा बना दिया कि जरूरी लगने लगा कि नीचे अपना नाम भी लिख दूं । कॉलेज के दिनों में ऐसी एक घटना हुई जो भूलती नहीं है । परिचय पत्र के लिए फोटो चाहिए था । फोटो चिपकाकर प्रिंसिपाल के पास हस्ताक्षर के लिए उपस्थित हुए तो उनका सवाल था कि यह कौन है !?  मतलब फोटो किसकी है , बताया कि मेरी है सर । वे बोले जैसी शक्ल है वैसी फोटो लाओ । इसमें तुम्हें कौन पहचानेगा । मजबूरन बिना टचिंग की फोटो लेकर जाना पड़ा जो पसंद नहीं थी । अच्छी तरह याद है कि मैंने परिचय पत्र हर बार इसी तरह आगे बढ़ाया जैसे फटा नोट चलाने की कोशिश करता है कोई ।

 बहुत समय बाद जब पिता बीमार रहने लगे मैंने फोटो को लेकर उनकी चिंता को महसूस किया । उनके जमाने में फोटो कम उतरते थे । जो थे उनमें ज्यादातर दीवार पर टंगे हुए थे । उनके ही थे लेकिन अब लगता था किसी और के फोटो हैं । समय के साथ शक्ल इतनी बदल जाती है आदमी खुद अपने आप से परायापन महसूस करने लगता है । उन्हें एक नई फोटो चाहिए थी जिसके विस्तार में जाए बिना उनकी पहचान साफ हो । आखिर एक फोटो ऐसी खींची गई जिससे उनकी मनोकामना पूर्ति हो गई । उस फोटो की कई प्रतियां बनी । एक बड़ी सी, जिसे फ्रेम करवाकर ठीक से सामने दीवार पर लगवा दी । अब आगंतुक की प्रतिक्रिया उनकी नई जरूरत बन गई । तब मुझे यह सब ठीक नहीं लगा था ।


मुझे अपनी एक अच्छी फोटो की जरूरत हर सुबह महसूस होती है । पता नहीं क्यों लगता है कि फोटो अच्छा होगा तो लोगों में अच्छी भावनाएं आएंगी । हो सकता है लोग कहेंआदमी अच्छा था । हालांकि कबीर ने कहा है की ऐसी करनी कर चलो कि हम हंसे जग रोए । अब करनी तो सबकी एक जैसी है । और जैसी भी हो गई उस फाइल को दोबारा खोल नहीं सकता है ।  ज्यादातर मामलों में कर्म छुपाने की चीज होते जा रहे हैं । वह तो अच्छा है कि जा चुके आदमी के बारे में कोई बुरा बोलने की परम्परा नहीं है । सच तो यह है की किसी का बुरा देखो तो वह अपना ज्यादा लगता है । वैसे फुर्सत किसको है अब ! पहले भी नही थी, कहते हैं आज मरे कल दूसरा दिन । अच्छी फोटो सामने है तो फूल चढ़ा दो । बस हो गया असेसमेंट । ऊपर वाले का काम ऊपरवाला जाने । आदमी कर्म ऊपर ले जाता है और बढ़िया सा फोटो नीचे छोड़ जाता है । उस फोटोग्राफर की याद आई जिसने मुझे अपनी कला से आई एस जौहर बना दिया था । पता चला कि वह माला और फ्रेम के बीच फंसे मुस्कुरा रहे हैं । बेटे से पूछा -- आखरी तक ऐसे ही दिखते थे क्या ? 

लड़का बोला -- दिखने से क्या होता है !!  नील-पासबुक थे । 

उसकी बात समझ कर कहा कि सिकंदर गया तब उसके भी हाथ खाली थे । उसने गौर से देखा जिसे लगभग घूरना भी कहा जा सकता है, बोला -- हाथ खाली थे लेकिन पासबुक यानी खजाने में तो था । पीछे जो रह जाते हैं उनका काम सिर्फ फोटो से चलता है क्या !? महल-बाड़ा ना हो तो शेरवानी में पुरखे फिल्मी पोस्टर से ज्यादा कुछ नजर नहीं आते हैं ।

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