बस्ती में एक
सीधासाधा आदमी था जो हमेशा खुश रहता था इसलिए लोग उसे पागल कहते थे । कुछ की राय थी
कि वह मूर्ख है वरना आज की डेट में दस प्रतिशत समझदारी वाला आदमी भी खुश नहीं रहता
है । जिनके पास जरा भी समझ या ज्ञान है वे बकायदा दुखी हैं । आप कह सकते हैं कि जरा
सा ज्ञानी होना भी दुखी होने के लिए काफी है । जो नहीं जानता वही खुश है, जो जनता है वो दुखी है । कबीर कह गए हैं – “सुखिया सब संसार, खावै और सोवै ; दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै” । अच्छा राजा वही होता है जो चाहे जो करे पर जनता को कुछ भी
जानने न दे । जिस दिन लोग जानने लगेंगे वे दुखी होने लगेंगे । जो नहीं जानते हैं और
नहीं जानते हैं कि वो नहीं जानते बस वही सुखी हैं, खुश हैं ।
जो जानने की कोशिश में लगे रहते हैं वे दरअसल दुखी होने का आत्मघाती प्रयास कर रहे
होते हैं । एक विद्वान बोले हैं कि लोकतन्त्र दुखी करने, दुखी
होने और दुखी बनाए रखने की व्यवस्था है । व्यावहारिक जीवन में भी कहा गया है कि ‘बंधी मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की’ । राइट टू इन्फर्मेशन यानी सूचना का अधिकार क्या है ! यही ना कि मुट्ठी खोलिए
। आप पूछिए, जानिए और दुखी होइए । अगर मीडिया में कुछ जुगाड़ है
तो इसे छ्पवा दीजिये, आपका दुख अकेले का दुख नहीं रहेगा । जनहित
याचिका लगा दीजिए, देश भी दुखी हो जाएगा । आपको लगेगा कि आप नागरिक
अधिकारों का लाभ उठा रहे हैं लेकिन सच ये है कि आप स्वेच्छा से दुखी हो रहे हैं और
दूसरों को दुखी कर रहे हैं । मूल रूप से यह काम सरकार की मंशा के खिलाफ है । मुल्क
के जिम्मेदारों को जनता के सुख के लिए बहुत सी बातें छुपना पड़ती है, बात बात पर झूठ बोलना पड़ता है । वे मानते हैं कि झूठ बोलना यदि पाप है तो
जनता के सुख के लिए वे जिंदगी भर झूठ बोलने के लिए तैयार हैं । याद रखिए संत कह गए
हैं कि अगर आपके किसी झूठ से दूसरे को सुख मिलता है तो वह सच से ज्यादा अच्छा है ।
अब गरीबी को
ही लीजिए । किसी जमाने में सरकार ने नारा दिया था ‘गरीबी हटाओ’ । सीधेसाधे गरीबों ने समझा कि हमारी हटाने
वाले हैं । लोगों को नहीं मालूम कि उनसे ज्यादा
गरीब वे होते हैं जो अमीर भी दिखते हैं । जिनके पास बहुत होता है उन्हीं को बहुत चाहिए
होता है । बरसों तक उनकी गरीबी हटती रही किसी को पता नहीं चला । जानते नहीं थे सो खुश
थे । एकदिन जान गए तो सदमे में आ गए । गुस्सा इतना आया कि सत्ता में बैठे लोगों को
घर बैठा दिया, पार्टी बदल दी । इतना करके वे खुश थे, नहीं जानते थे कि सरकार गई है तो आई भी सरकार ही है और सरकारें अपने चरित्र
में कभी नहीं बदलती । अब गरीबों के कल्याण की योजनाएँ हैं । सस्ता अनाज, सस्ता इलाज के बाद लोग सस्ती मसाज की उम्मीद में घर से निकलना पसंद नहीं करते
हैं । टीवी पर सुखदाई खबरे हैं और मोबाइल पर दो जीबी डाटा मुफ्त कैबरे करता है । हफ्ते
में दो बार भोजन भंडारे ... और क्या चाहिए गरीब को ।
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