सोमवार, 28 दिसंबर 2020

दमदमा दमदम

 




यहां दम की बात हो रही है । किसी के लिए बुरा नहीं सोच रहे हैं । हालांकि दम यानी दमें की बीमारी बुरी होती है  । किसी भी बीमार से पूछिए यही कहेगा की 'भगवान यह बीमारी किसी को ना दें, बहुत बुरी होती है' । लेकिन हम अपनी बता रहे हैं वह भी मजे के लिए । कोई डायरेक्ट दिल पर ना लें , वैधानिक चेतावनी जैसा है  , मानना ना मानना आपकी मर्जी, दिल आपका । वैसे दिल का क्या पच्चीसों डेंट तो पहले से ही लगे पड़े होंगे ।


हम देसी लोग जिसे दमा कहते हैं ना उसे ही शहरी लोग अस्थमा कहते हैं । वैसे नाम में क्या रखा है,  गुलाब का हो या बीमारी का या फिर आदमी का ही क्यों ना हो । भारतीय संस्कृति में बीमारियों को भी सम्मानित करने का रिवाज था । सो दमे को राजरोग कहा जाता है । आप यों चाहे फकीरी इंजॉय कर रहे हों, लेकिन दमावान होते ही राजयोगी हो जाते हैं । अगर इस इज्जत अफजाई को तवज्जो दें तो हम भी हो गए । इस बात को संस्कृति समर्थक खासतौर पर नोट करें तो राजरोगी भी अपने को मुख्यधारा में मान कर छाती छप्पन कर ले ।


देखिए हमारी जिम्मेदारी को जरा अलग से महसूस कीजिए। जब संसार सारी रात सोता है,  यहां तक कि भगवान भी, तब देशभर में दमदार जागते हैं । तो  भइया ऐसी ही एक रात की बात है अपनी । दम से हाथापाई करते बहुत देर हो गई थी तो याद किया भगवान को । दमदारों के पास उनकी डायरेक्ट हॉट लाइन होती है । हमने लॉजिक रखा कि देखिए साहब, आत्मा सो परमात्मा, सब जानते हैं ।  इधर आत्मा जो है दम इसे बेदम हुई जा रही है और उधर परमात्मा मजे में स्वर्ग के सुनहरे सपने देखें !! यह नहीं हो सकता । माना की आत्मा जमीनी कार्यकर्ता है और परमात्मा हाईकमान । लेकिन सुनना तो पड़ेगा । परमात्मा के रहते आत्मा को दमे ने दबोच रखा है और सारी ऑक्सीजन कॉंग्रेसी खेंचे जा रहे हैं ! यह तो नहीं चलेगा कुछ कीजिए वरना ....

परमात्मा 'वरना' के झांसे में आ गए और 'फूं' जैसा कुछ किया फटाफट । फौरन दमे ने अपनी पकड़ ढीली कर दी । वे बोले - अब कैसा लग रहा है ?


हमने यानी आत्मा ने कहा -- राहत महसूस हो रही है । धन्यवाद है जी आपका ।

 परमात्मा बोले धन्यवाद से काम नहीं चलेगा । दमे पर कुछ सुनाओ । कोई अच्छा सा  दमदार व्यंग्य । 

आत्मा बोली- अभी बड़े दर्द में हूँ, फिर दामे पर कोई व्यंग्य लिखता है क्या !!


दूसरों का कष्ट सुनने से परमात्मा को भी मजा आता है यह तो चौंकाने वाली बात है ! आत्मा बोली -- अभी कहो तो कविता सुना दूँ,  इन दिनों व्यंग से ज्यादा अच्छी कविताएं छन रही है बाजार में ।

परमात्मा अचानक उठकर खड़े हो गए, बोले -- तुम कविता संक्रमित हो !! 

ओह मैं सैनिटाइजर नहीं लाया ! अगर कविता की चपेट में हो तो चौदह दिनों के लिए क्वारंटाइन हो जाओ, इसी में साहित्य जगत की भलाई है । सोचो अगर  संक्रमण फैला और देश में सवा सौ करोड़ कवि पैदा हो गए तो लोग लॉक डाउन में भी मर जाएंगे । श्रोता नहीं मिले तो कवि जानलेवा हो जाता है । दुनिया पहले ही  आतंकवादी गतिविधियों से  परेशान है । तुम अच्छी आत्मा हो,  मुझे क्षमा करो । कहते हुए परमात्मा चले गए। 


निद्रा एक तरह की अचेतना का समय होता है । ज्ञानी तो यहां तक कहते हैं कि यह एक तरह की स्थाई मृत्यु है । इस तरह प्राणी रोज मरता है और रोज जीता है । कुछ लोग दोपहर में आधा-एक घंटा अतिरिक्त मर लेते हैं । गीता में कहा गया है की आत्मा वस्त्र बदलती है और उन्हें धारण करती है , लेकिन दमदार लोग सोते नहीं हैं इसलिए उसे औपचारिक रूप से जागने की जरूरत भी नहीं पड़ती है । घर में अगर एक खांसते जागते पिताजी पड़े हों तो घर के बाकी लोग चैन की नींद सो सकते हैं ।


ऐसी ही एक रात है और मैं जाग रहा हूँ । मोहल्ले के कुत्ते तक सो गए हैं । बाहर सुई पटक सन्नाटा है । पास लगे हाईवे से ट्रकों की आवाजाही की आवाज नहीं आ रही है । लग रहा है सन्नाटे का हाईवे पसरा पड़ा है दारू पी के । आज तो हवा भी बंद है,  पत्ते तक हिल नहीं रहे हैं । इसलिए अंदर के शोर को साफ-साफ महसूस कर रहा हूँ । सांसो में साएं साएं की आवाज मन की बात की तरह जबरिया सुनाई दे रही है । राहत नहीं मिल रही, शोर बहुत हो रहा है । लग रहा है शरीर में सांस एक आवश्यक बुराई है । सांस का सिस्टम नहीं होता तो आज मुझे दमा भी नहीं होता । लोगों को पता नहीं मछलियों को दमा होता है या नहीं । मस्तिष्क में पूरा संसार घूम रहा है । जो गुजर गया और जो गुजर सकता है वह दृश्य सा आ जा रहा है । एक बार फिर कहा -- कुछ करो परमात्मा,  इधर ले लो या फिर उधर आने दो । डॉक्टर मरने नहीं देते दमा जीने नहीं देता । एलओसी का गांव हो गए हमारे फेफड़े । 


दूसरे दिन बारिश हो रही थी, जोरदार से जरा कम । तीन-चार दिनों तक मौसम रह रह कर सुबकता रहा । किसी की हिम्मत नहीं कि बिना काम बाहर निकलता ।  हिदायतें , सावधानी और दवाओं के अलावा लोगों की दुआओं का भी जोर था कि दमे ने सिर नहीं उठाया । रात को खांसी नहीं  आई ! 

घर वाले ठीक से सो नहीं सके । रात में तीन चार बार नाक के पास हाथ लगाकर चेक किया है --"अभी तो हैं ! सो रहे हैं शायद !"


सुबह मित्रों के फोन आए । कैसा है भाई ? सावधानी रख यार । मौसम जानलेवा है । तेरी ही चिंता लगी रहती है । वैसे डरना मत ... दमे वालों की उम्र लंबी होती है । हालात भले ही खराब रहें पर जिंदा ज्यादा रहते हैं ।


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