वे
नाराज हुए, उन्हें लगता है कि एक राष्ट्रीय
पार्टी को चलाने के लिए नाराज होना बहुत जरूरी है । उनके पिता के नाना जब नाराज
होते थे तो पार्टी कसावट में आ जाती थी । दादी नाराज होती थी तब भी ऐसा ही होता था
। अब वो नाराज होते हैं तो चुटकुले बनने लगते हैं । विदेश से नाराज होने का क्रेश
कोर्स भी किया उन्होने पर बात नहीं बनी । जिम जा कर कसरत की,
वजन उठाया, बॉडी बनाई पर पार्टी कमजोर होती गई । वे फिर
नाराज हुए और दलदारों को कहा कि सुबह जल्दी उठो, जॉगिंग करो, लेकिन नहीं माने । बोले आप फोकट नाराज होते हो । आपको पता होना चाहिए कि खाने
से पार्टी मजबूत होती है कसरत करने से नहीं । अब सवाल ये हैं कि कहाँ खाएं, कैसे खाएं ! खाने को कुछ नहीं होगा तो कितनी भी कसरत करो कोई फायदा नहीं
है । और फिर यह भी ध्यान रखिए कि कमजोर आदमी ज्यादा नाराज होता है ।
इस
बार वे थोड़ा डरते डरते नाराज हुए । बोले कुछ तो करना होगा । एक एक करके सारे राज्य
भारत छोड़ो कहते जा रहे हैं । लगता है जैसे हम पार्टी नहीं आदिवासी हैं और हमें
अपने जंगल से खदेड़ा जा रहा है । हमारे लिए जान दे देने वाले वो कम्युनिस्ट अब रहे
नहीं । राजनीति में नक्सल होने की कोई परंपरा भी नहीं है । मैं अकेला बैठे बैठे
अनुलोम विलोम करता रहूँ तो पार्टी के फेफड़ों में जान आ जाएगी क्या ! आप सब लोग सुख
के साथी रहे हो, आज मुसीबत का समय आया है तो घर
में बैठे भोजपुरी सिनेमा देख रहे हो ! क्या लगता नहीं कि आपको शरम आना चाहिए ?
“राजनीति
में शरम का क्या काम !? ... बाबा आपको ठीक
से पढ़ाया नहीं गया है । न आपको खाने का पता है और न ही शरम का ! अपनी कानभरू
केबिनेट से कहो कि पहले पार्टी का इतिहास पढे और आपको भी पढ़ाए । बिना परंपरा जाने
केवल नाराजी के भरोसे आप पार्टी को चला नहीं सकोगे ।“
बाबा चौंक पड़े । ये क्या ! पार्टी में पहली बार
किसी गांधी को लोग दस का नोट समझ कर बात करने लगे हैं । पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़
दिया तो कट चाय की वेल्यू रह गई ! इससे तो अच्छा है कि पहले वे ही झोला उठा कर चल
दें । किसी मामले में तो आगे निकालें । कुछ देर कि खामोशी के बाद बोले – आपको पता
है परंपरा ? दादी के सामने आप लोग बैठने की
हिम्मत नहीं कर पाते थे और लत्ते खींच रहे हो पोते के !! अगर परंपरा नहीं रही तो
पार्टी कैसे रहेगी ! कह कर वे कोप के साथ
कक्ष में चले गए ।
दूसरे
दिन उनका दरवाजा नहीं खुला । लोगों को लगा कि नानी के यहाँ गए होंगे । हप्ता गुजर
गया और नौकरों से बात बाहर आई कि वे सो रहे हैं । उठते हैं टीवी पर खबरे देखते हैं
और सो जाते हैं । रात को जागते हैं और सुबह सो जाते हैं । सुबह किचन से मुर्गे की
बांग होती है और उनके मुंह से ‘गुडनाइट एवरी
बडी’ निकल जाता है । पार्टी खुश नहीं है मुर्गा खुश है । अभी
भी उनके कुछ फॉलोवर हैं, वे भी सो रहे हैं । सत्तर साल
पार्टी ने काम किया उसकी थकान उनमें उतार आई है । देश के लिए उन्होने एक संदेश छोड़
दिया है, पार्टी सो रही है ‘डू नॉट
डिस्टर्ब’ ।
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