मंगलवार, 1 जून 2021

हरिया को डर लगता है !


 

“ अबे तू कायको किच किच करता है रोज रोज सूबे सूबे !! गरीब हे तो गरीब के माफिक रेना चईए ना तेरे को ! रोज भेजा खाता हे एकी बात के लिए कि नेतेलोग ईमानदार होना चईए ! कायको होना चईए रे ईमानदार ?!  तेरे को मुनीम रखना है क्या अपनी फेक्टरी में ? “ पेलवान हरिया पे सटक लिए ।

“आपी लोग केते हो पेलवान जी कि देस के लिए अच्छा सोचो तो मेने सोचा कि इस्से अच्छी बात ओर क्या हो सकती हे कि नेतेलोग  ईमानदार हों ।“

“ तेरे को क्या लगता हे कि नेतेलोग ईमानदार नि हें !?”

“ मेरे को क्या मालूम ! वो इसको चोर बोलता हे ये उसको ! अब तो लोग डाकू तक बोल रे हें ! “

“ तू मगज़मारी मत कर । तेरे को क्या मतलब ऊंची पोलटिक्स से ? तू वोट दे देना, बस । ... समजा कि नि समजा ?

“ पेलवान कल को अगर इन्ने देस लूटा तो पुलिस हमको पकड़ के अंदर कर देगी कि तुमने गलत आदमी को वोट दिया । ... फिर !?

“ अबे ! ऐसा कहीं होता है !!”

“ होता हे ना .... एक बार मेरा छोरा छोटी सी चोरी कर के भाग गया तो पुलिस ने हमको अंदर कर दिया । बोले छोरा खराब निकला तो ज़िम्मेदारी तुमारी भी हे !! ...डर लगता हे पेलवान ।“


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1 टिप्पणी:

  1. यही बात लोकतंत्र का मूलाधार होती है। यह बात बोलने, लिखने में बार-बार दुहराता हूँ।

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