“ अबे तू कायको किच किच करता है रोज
रोज सूबे सूबे !! गरीब हे तो गरीब के माफिक रेना चईए ना तेरे को ! रोज भेजा खाता
हे एकी बात के लिए कि नेतेलोग ईमानदार होना चईए ! कायको होना चईए रे ईमानदार ?! तेरे को मुनीम रखना है क्या अपनी
फेक्टरी में ? “ पेलवान हरिया पे सटक लिए ।
“आपी लोग केते हो पेलवान जी कि देस के
लिए अच्छा सोचो तो मेने सोचा कि इस्से अच्छी बात ओर क्या हो सकती हे कि नेतेलोग ईमानदार हों ।“
“ तेरे को क्या लगता हे कि नेतेलोग
ईमानदार नि हें !?”
“ मेरे को क्या मालूम ! वो इसको चोर
बोलता हे ये उसको ! अब तो लोग डाकू तक बोल रे हें ! “
“ तू मगज़मारी मत कर । तेरे को क्या
मतलब ऊंची पोलटिक्स से ? तू वोट दे देना, बस । ... समजा कि नि समजा ? “
“ पेलवान कल को अगर इन्ने देस लूटा तो
पुलिस हमको पकड़ के अंदर कर देगी कि तुमने गलत आदमी को वोट दिया । ... फिर !?“
“ अबे ! ऐसा कहीं होता है !!”
“ होता हे ना
.... एक बार मेरा छोरा छोटी सी चोरी कर के भाग गया तो पुलिस ने हमको अंदर कर दिया
। बोले छोरा खराब निकला तो ज़िम्मेदारी तुमारी भी हे !! ...डर लगता हे पेलवान ।“
-------
यही बात लोकतंत्र का मूलाधार होती है। यह बात बोलने, लिखने में बार-बार दुहराता हूँ।
जवाब देंहटाएं