देश भर के अख़बारों में जूते को लेकर हेड लाइन छप रही थी। पहली बार जूता इतने बड़े स्तर पर बदनाम हो रहा था। जूता पैरों में हो तो उसकी सार्थकता है। जब जब भी वह किसी के हाथों में आया तो बदनाम हुआ। दुकानदार जूता दिखाए तो ग्राहक कहते हैं और दिखाओ जरा। वोट के ग्राहक को दिखाओ तो हेडलाइन बन जाती है। चलने के मामले में जूते की प्रतिस्पर्धा चप्पल से है। विशेष परिस्थितियों में जूते से ज्यादा चप्पल चलती है। बल्कि यों कहना चाहिए कि आशिकों का देश है तो चलती ही रहती है । लेकिन समाज पुरुष प्रधान है, सो इतिहास जूते ही बनाते हैं। यही कारण है कि मारक महिलाएँ अब जूते पहनने लगी हैं वह भी हाई कील (हील) वाली । लड़की देख के छेड़ने वाले हाई कील देख कर इरादा बदल देते हैं ।
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025
जोखिम दूसरे वाले से
सरकार किसकी बनेगी ?
"देखो जजमान, बिना भगवान कि
इच्छा के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है, जानते हो ना
?और यह भी सुन लो कि भगवान के आलावा सरकार को कोई नहीं हिला सकता है । भगवान जो
हैं मंत्रों के अधीन हैं और मंत्र किसके अधीन हैं यह बताने की जरूरत नहीं है ।
भगवान को जब तक मंत्र वालों द्वारा कहा नहीं जाए वे खुद भी हिलते नहीं हैं। सोया
हुआ कुम्भकर्ण किसी काम का नहीं होता है यह तो आप जानते ही हैं। एक हम ही हैं जो
लोक कल्याण के लिए जागते हैं । ज्योतिषी त्रिकालदर्शी है, वह
पिछला अगला सब जानता है लेकिन सबको बताता नहीं है । उसकी विद्या ज्ञान के सात
तालों में बंद रहती है। ब्रहम्मा ने सृष्टि में सब बनाया चाबी नहीं बनाई । इसलिए ताले
खुलवा लेना सबके बस की बात नहीं है।... खैर , बताओ तुम्हारा प्रश्न क्या है?
" जोतिस जी नए पूछा ।
" बस इतना जानना चाहते हैं कि बिहार में किसकी
सरकार बनेगी पंडी जी? " आगंतुक बोले ।
"किस पार्टी के हो?"
"इसीलिए तो जानना चाहते हैं। सरकार का पता चाल
जाए तो हम भी पार्टी डिसाइड कर लेते। अभी समझ में आ रहा है कि ऊंट किस करवट बैठेगा
। "
" तुम पहले हो जो इतना सोच कर चल रहे हो।"
" आपके सामने भले ही पहले हों, लेकिन पीछे आधा बिहार बाट जोह रहा है ।... एक बार पता चल जाए तो सब उसी
तरफ लुड़क जाएगा। "
" तो लोग अपना दिमाग़ नहीं लगाते हैं क्या !"
" दिमाग लगाया तभी न आपके पास आए हैं । ... और हमारे दिमाग़ लगाने से पत्ता हिल जाएगा
पंडी जी !? "
" नहीं हिलेगा। सारे पत्ते थ्रू प्रापर चेनल
हिलते हैं । स्टार्टर बटन हमारे पास है। "
" तो बताइये किसकी सरकार बनेगी? "
" मेहनत का काम है। बहुत सारे ग्रहों को काम पर
लगाना होगा। पूजा पाठ और पंडी-भोज भी जरूरी है । खर्चा भी बहुत होगा, क्या
करें?"
"खर्चे की चिंता नहीं कीजिए। एक बार सरकार बन जाए
तो इतना देंगे इतना देंगे कि आप भगवान को चौबीसों घंटा बिना रूकावट दौड़ाते रहेंगे।
"
" ठीक है, कुंडलियां लाए हो?
"
" हाँ लाए हैं.... ये लीजिये। "
" ये! किसकी है? "
" हमारी है पंडी जी। "
" तुम बिहार हो या बिहारी लाल? "
" दोनों नहीं हैं। "
" तो बिहार की कुंडली लाइए, आरजेड़ी की लाइए, जेडीयू कि लाइए, सीएम, पीएम की लाइए तब ही बता पाएंगे । "
" कांग्रेस की भी लगेगी? "
" नहीं, कुछ पार्टियां अपनी
कुंडली से नहीं मजबूरियों से चलती रहती हैं ।"
" उनकी पार्टी के पत्ते कैसे हिलते हैं पंडी जी !?
"
" पत्ते कहाँ अब । वहाँ एक ही तो पत्ता है।... ओ
हेनरी की कहानी पढ़ी है ना 'द
लास्ट लीफ'...। आखरी पत्ता । "
“ हाँ, उस कहानी में तो आखरी पत्ते
ने जीवन बचा लिया था । यहाँ पार्टी बचेगी ? “
“हमें नहीं पता ।“ पंडी जी बोले ।
" आप तो कह रहे थे कि ज्योतिषी त्रिकालदर्शी होते
है !! एक माह आगे का देखने के लिए कौनो
मंतर नहीं है !! मारिए जरा और
त्रिकालदर्शियों की इज्जत बचाइए । "
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मंगलवार, 30 सितंबर 2025
मजबूरी का हिन्दी प्रेम
पंडिजी जाहिरतौर
पर हिन्दीप्रेमी हैं और छुपेतौर पर अंगे्रजी प्रेमी। ऐसा है भई मजबूरी में आदमी को
सब करना पड़ता है। देश पढ़ेलिखे और समझदार मजबूर
लोगों से भरा पड़ा है। एक बार कोई मजबूरी का पल्ला पकड़ ले तो फिर उसे कुछ भी करने
की छूट होती है। मजबूरी को समाज बहुत उपर का दर्जा देता है। लगभग संविधान की धारा
की तरह यह माना जाता है कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है। अब आप ही बताएं कि
महात्मा जी नाम जुड़ा हो तो कोई कैसे मजबूर होने से इंकार करे। मजबूरी हमारी
राष्ट्रिय अघोषित नीति है। सो पंडिजी को मजबूरी
में अपने बच्चों को अंगेजी स्कूलों में पढ़वाना पड़
रहा है तो मान लीजिए कि कुर्बानी ही कर रहे हैं देश की
खातिर।
अब आपको क्या तो समझाना और क्या तो बताना। जब आप ये व्यंग्य पढ़ रहे हैं तो
जाहिर तौर पर समझदार हैं ही । जानते ही हैं कि हर आदमी को दो स्तरों पर अपने आचरण
निर्धारित करना पड़ते हैं। रीत है जी दुनिया की, शार्ट में
बोलें तो दुनियादारी है। सामाजिक स्तर पर जो हिन्दी प्रेमी हैं वे निजी तथा
पारिवारिक स्तर पर अंग्रेजी प्रेमी पाए जाते हैं। समझदार आदमी सार्वजनिक रूप से
हिन्दी का प्रचार प्रसार करता है, मोहल्ले मोहल्ले घूम कर
माता-पिताओं को समझाता है, प्रेरित करता है कि भइया रे अपने
बच्चों को हिन्दी माध्यम की पाठशाला में पढने के लिए भेजो और देश को अच्छे नागरिक दो। इस बात में किसी को शक नहीं होना चाहिए कि हिन्दी को प्रेम करना वास्तव में देश को प्रेम करना है। और देश को प्रेम करना हर आम आदमी का परम कर्तव्य है। जिसे कुछ भी करने का मौका नहीं मिलता
हो उसे देशप्रेम का मौका तो अवश्य मिलना चाहिए।
हांलाकि हिन्दी वाले जरा ढिल्लू किस्म के हैं। उनके पास जरा सा तो काम है कि
देशप्रेमी बना दो, कोई बहुत प्रतिभाशाली मिल जाए तो अपने
जैसा गुरूजी (शिक्षक ) बना दो, लेकिन वह भी हम से नहीं होता।
सितंबर के महीने में देश भर में हिन्दी के लड्डू बंटवाए
जाते हैं। सरकार के हाथ में लड्डू के अलावा कुछ होता भी नहीं है। साल में एक बार
हिन्दी का लड्डू नीचे तक पहुंच जाए बस यही प्रयास होता है।
पंडिजी की चिंता यह है कि तमाम हिन्दी स्कूलों में बच्चों की
संख्या कम होती जा रही है। गली गली में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल ऐसे खुल रहे हैं
जैसे मोहल्ले के चेहरे पर चेचक के निशान हों। वे इस कल्पना से ही पगलाने लगते हैं
कि क्या होगा अगर सारे बच्चे अंग्रेजी पढ़े निकलने लगेंगे। देश हुकूमत करने वालों से भर जाएगा तो कितनी दिककत होगी। आखिर राज करने के लिए
रियाया भी चाहिए होगी। हिन्दी नहीं होगी तो प्रजा कहां से आएगी। राजाओं के लिए
प्रजा और प्रजा के अस्तित्व के लिए हिन्दी को प्रेम करना जरूरी है। सरकार में मंतरी से संतरी तक इतने सारे हिन्दी प्रेमी भरे
पड़े हैं कि पूछो मत। लेकिन एक भी आदमी आपको ऐसा नहीं मिलेगा जो अपने बच्चों को
मंहगे अंग्रेजी स्कूल में न पढ़ा रहा हो। ये त्याग है देश के लिए। सरकारी नौकर जनता का सेवक होता है। जनता मालिक है, मालिक ही बनी रहे, ठाठ से अपनी सरकार चुने और ठप्पे
से राज करे हिन्दी में।
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सोमवार, 29 सितंबर 2025
लव-लुहान समय में
जी हाँ आप ठीक समझ रहे हैं,
अपना देश सिनेमा प्रधान है और बच्चा बच्चा लव-लंगूर । बजट छोटा हो
या कि बड़ा, हीरो- हीरोइन लवलुहान होने का ही पैसा लेते हैं।
सिनेमा के हिसाब से देखें तो देश में लव के आलावा कुछ होता ही नहीं है। किताबें
उठाएंगे तो ज्यादातर में लव रिसता मिलेगा। धार्मिक किताबों में तो इतना लव है कि
पढ़ने वाला प्रेमी हो पड़े। लेकिन ट्विस्ट ये है कि आप लव पढ़ सकते हैं, परदे पर देख सकते हैं लेकिन कर नहीं सकते हैं। किसीको भी करो, लव करते ही
बवाल मच जाता है। मान्यता है कि भक्त टाइप आदमी लव नहीं करते हैं। और सच्चा भक्त
वह होता है जो दूसरे को भी लव नहीं करने दे। लव करने से समाज कमजोर होता है और
अपने लक्ष्य से भटक जाता है।
‘वे’ बहुत बड़े वाले ‘वे’ हैं । आज ‘वे’
लव के वायरस से बचाव की समझाइश दें रहे हैं -- "देखिये नौजवानों ये समय बहुत
चुनौती भरा है। नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि विकास पथ पर दौड़ रहे समाज के लिए
लव सबसे बड़ी बाधा है। लव के कारण देश और धरम खतरे में है। आप जानते
ही हो लव अंधा होता है, वह विवेक हर लेता है। लोग धरम देखते
हैं न जाति, न छोटा बड़ा देखते हैं न ऊँच नीच बस लव करने लगते
हैं। लव से हजारों साल से चला आ रहा सिस्टम खराब हो रहा है। इसलिए कसम खाओ कि खुद
लव नहीं करोगे और किसीको करने भी नहीं दोगे। इस पवित्र भूमि पर कोई लव नहीं करेगा।
और तो और अपने भगवान, खुदा, गॉड जो भी
हैं उनको भी लव नहीं करना है। इनकी पूजा की जाती है, इनसे
प्रार्थना की जाती है, लव नहीं किया जाता। पूजा करने से
माहौल बनता है और लव करने से बिगड़ता है। हमें माहौल होना बस। माहौल बनने से ही बात
बनती है, सरकार भी बनती है। कुर्सी का खेल बच्चों का खेल
नहीं है। औघड़ श्मशान जगाता है तब उसे शक्ति मिलती है। वह लव करता तो एक बीवी और
चार बच्चों के सिवा और क्या मिलता उसे! इसलिए लव नहीं करना। यह हिदायत है गांठ
बांध लो और माहौल पर फोकस करो। माहौल के लिए कुछ भी करना पड़े वह करो सिवाय लव के।
"
प्रधानजी बड़ी जिम्मेदारी के साथ
मौजूद हैं और पाठ पढ़ा रहे हैं। लव को समाज से पूरी तरह खत्म करने का बीड़ा उन्होंने
उठाया है। वे मानते हैं कि समाज के पतन का कारण लव है। एक बार देश लवहीन हो जाए तो
उनकी टीम चैन की सांस ले। उनके सत्ता में आने के बाद भी लोग अगर लवलीन हैं तो शरम
की बात है। वे बड़ा लक्ष्य ले कर चल रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है। किसी
शायर ने कहा है "मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल,
लोग जुड़ते गए कारवाँ बनता गया "।
इधर आई लव फलाँ से लेकर आई लव ढ़िकाँ तक के ढ़ोल
बज रहे हैं। अरे भई सब अपने अपने वाले को लव करें तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती
है! कल को कोई आकर आपका दरवाजा पीटने लगे कि तुम अपने बाप से लव करते हो यह बंद
करो। तुम अपने बाप को इसलिए लव नहीं कर सकते क्योंकि
मैं अपने बाप को लव करता हूँ। एक मोहल्ले में दो बाप लवर नहीं हो सकते क्या!! तो
मुद्दा लव का है लेकिन लोग नफरत और गुस्से से भरे हुए हैं। पुलिस तो लव के नाम से
वैसे ही भड़कती है। इसलिए मौका मिलते ही वह लव लफंगों को अच्छी तरह बजा रही है।
असलियत जानने वाले मानते हैं की यहां लव का मतलब लव नहीं पॉलिटिक्स है। ऊपर वाला
भी जानता है की लव-अव कुछ नहीं है, बस माहौल बिगाड़ा जा रहा
है। दावे किए जा रहे हैं कि तेरे लव से मेरा लव बड़ा है। लव नहीं हुआ टीवीतोड़
किरकिट मैच हो गया! हम करेंगे पर तुझे नहीं करने देंगे चाहे सब लवलुहान क्यों न हो
जाएं ।
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रविवार, 28 सितंबर 2025
गधे का मांस
पूजा कराने वाले आदमी ने विधि विधान से सारी क्रिया की।
अंत में वह भोजन की थाली पर बैठे। भोजन परोसा गया।
पूजा कराने वाले आदमी ने कहा -- अरे यह क्या है!?!
" गधे का मांस है महाराज, भोग लगाइए।" जजमान ने कहा।
" गधे का मांस!! मैं गधे का मांस नहीं खाता।"
" हमारी परम्परा है। हमने तो यही पकाया है महाराज। "
" आपको विकल्प भी रखना चाहिए था, विकल्प जरूरी है। "
" विकल्प तो नहीं है महाराज, आप कृपा कर भोग लगाइए। "
" अबे विकल्प नहीं होगा तो क्या हम गधे का मांस खा लेंगे!!!"
" विकल्प नहीं होने के नाम पर भी लोग जो सामने पड़ा है उसे ही खाते रहते हैं महाराज। आप भी खाइए। "
" हम मूर्ख नहीं हैं जजमान।"
" मजबूरी है महाराज । " जजमान ने हाथ जोड़े।
" बकरे का नहीं है क्या? "
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बाहर गाँधी, भीतर रावण
"ना ना ना... ऐसा नहीं हैं कि चुनाव के टाइम पर
ही हम गाँधी को आगे रखते हैं । जब भी जनता के सामने जाना होता है तो गाँधी का मुखौटा
लगाए रखने का राजनीतिक शिष्टाचार हैं। इसमें छुपाने का कुछ नहीं है। अब तो किसी को
शरम भी नहीं आती है। लोग भी मानने लगे हैं कि जब वोट मांगने आया है तो उप्पर से हाथ
जोड़गा और चेहरे से जानीवाकर भी लगेगा ही । " नेता ने
अपने को गाँधीवादी बताने ले लिए सच बोलने का रास्ता पकड़ा ।
" और रावण ! ... वो किधर है ? "
" रावण जी तो नस नस में हैं । उनका कोई मुखौटा थोड़ी
लगाएगा !! देश अपने गौरवशाली अतीत की ओर उम्मीद से देख रहा है । ऐसे में बिना रावण
हुए कोई नेता बन सकता हैं क्या ? नेता के अंदर रावण रॉ-मटेरियल की तरह है और गाँधी पोस्टर मटेरियल। जिसमें रावण
है वही राजनीति में आगे जाता है । ये बात आप मानते हो कि नहीं ? "
" मानेंगे क्यों नहीं ! आप सरकार हैं, आपके झूठ पर
कोई सवाल नहीं कर सकता है, फिर ये तो सच बोल रहे हैं आप । ... अच्छा रावण में क्या
पसंद हैं आपको? "
" ये पूछिए क्या पसंद नहीं हैं। दस सिर, दस मुँह, बीस आँखें, बीस कान !!
इतना जिसके पास हो वो आज की राजनीति में गैंडे से कम नहीं है । "
" एक मिनिट, गैंडा तो जानवर होता है ना ?!"
"तो क्या हममे आप में जान नहीं है !! जिसमें भी
जान होती है वो जानवर होता है। आप भी किसी गलतफहमी में मत रहो, जानवर ही हो ।
" उन्होंने ऐसे कहा मानों जीवविज्ञान का कोई बड़ा सिद्धांत
उद्घाटित कर दिया हो ।
"जी सहमत हैं , ठीक कह रहे हैं। ... रावण को लेकर
कुछ बता रहे थे।"
"देखो ऐसा है, जिसको दस
मुँह मिल जाएं वो राजनीति में मीर है आज की डेट में। एक मुँह को वादों की मशीनगन
बना दो और दूसरे को वादों से मुकरने की तोप । तीसरा मुँह बढ़िया झूठ बोले और चौथा मस्त
बेशरमी से दाँत दिखाए । आजकल रोने का ट्रेंड भी है राजनीति में सो पाँचवा वक्त
जरूरत रोता रहे, छठ्ठा ठठा कर हँसने का काम सम्हाले । सातवाँ
बच्चे देखते ही लाड़ जताए और आठवाँ भीड़ देखते ही भाइयों और बहनों बोले । नौवा मतलब
के लोगों से यारी करे और दसवाँ अपने पुरखों को आँखें दिखाए । हो गए सब बीजी । रावण
के तो दस ही थे, दस और होते तो वापर लेते सबको ।"
“इस बार गांधीजी जयंती और दशहरा एक ही
दिन हैं । दिक्कत तो होने वाली है ।”
“कोई दिक्कत नहीं होगी । व्यवस्था ऐसी
रखेंगे कि दोनों में कोई टकराहट नहीं होगी ।... देखिए शराब की दुकानों का बाहरी शटर
बकायदे बंद रहेगा, जनभावना और परंपरा को देखते हुए पीछे की खिड़की खुली रखी जाएगी ।
माँस की दुकानों पर इससे अच्छी व्यवस्था रहेगी । उस दिन बारह बजे तक कोई हिंसा नहीं
होगी । उसके बाद जीवों को मुक्ति और मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ाया जाएगा । ... मीडिया से
हो ना ?”
“जी हाँ ।“
“तो जाओ फटाफट, चलाओ ब्रेकिंग न्यूज
।“
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मंगलवार, 9 सितंबर 2025
बाजार के हाथ कानून से भी लंबे होते हैं
हमारा लोकतंत्र इतना परिपक्व हो गया है कि वोटर को मूर्ख बनाना मतलब छाछ को बिलोना है । कुछ नेता मुगालता पाले इस काम में अपनी ऊर्जा खपाते हैं वे अपना समय बर्बाद करते हैं । क्योंकि एक सीमा के बाद और अधिक की संभावना हर जगह खत्म हो जाती है । यह बात मूर्खता पर भी लागू होती है । सोच समझ कर वोट देने के दिन गए, अब वोट बाजार भाव से देना होते हैं । बाजार के हाथ कानून से भी लंबे होते हैं । यहाँ कूड़ कबाड़ से लगा कर गोबर तक बिकता है । कुत्ता, बिल्ली, भैंस, बकरी ही नहीं दूल्हों का भी बड़ा बाजार है । जहाँ भी माँग और पूर्ति का मसला हो बाजार खड़ा दिखाई देता है । चुनाव के समय वोटर कुत्ता, बिल्ली, भैंस, बकरी, दूल्हा होता है । जरूरत के अनुसार उनकी कीमत लगाई जाती है । कुछ वोटर ब्रांडेड होते उनकी कीमत ज्यादा होती है । कुछ के पास दिमाग भी होता है लेकिन टाइम नहीं होता है । ऐसे लोग वोट करने नहीं जाते हैं । पूछने पर वे नाराजी के साथ कहते है कि सारे उम्मीदवार चोर, उचक्के, गुंडे-बदमाश हैं तो किसी को भी चुनो कोई फर्क नहीं पड़ता है । ऐसे वोटर खुद कितने कमजोर होते हैं इसका पता उन्हें नहीं होता है ।
किसी के पास
सक्रिय बाहुबल हो लेकिन मेधा निष्क्रिय हो तो उसे लाल मिट्टी का पहलवान कहते हैं ।
ये अच्छे वोटर ही नहीं अच्छे उम्मीदवार भी माने जाते हैं । जिस तरह जादूगर अंडे को
मुर्गी या मुर्गी को अंडा बना देता है उसी तरह छड़ी, लाठी डंडों से आदमी को वोटर भी
बनाया जा सकता है । राजनीतिक दलों को मालूम है कि यह भूखे प्यासे और गरीब मात्र एक
दिन की दारू और दो दिन के खाने में सरकार बनवा सकते हैं। शोधकर्ता देख सकते हैं कि
दुनिया भर में इसे सस्ता लोकतंत्र नहीं है। लोग महंगाई को लेकर हाय हाय करते हों
तो करते रहें, लेकिन जिनका विश्वास हमारे लोकतंत्र में है वह पूरी तरह से आश्वास्त
है कि उनके हाथों लगभग मूल्यहीन सरकार बन जाती है ।
अंग्रेजी
मीडियम में पढ़े हुए लोग यह जानकर प्रसन्न है कि उन्हें ऐसा समाज मिल रहा है जो
बहुत सस्ते में हर तरह की सत्ता दे देता है। अच्छी परंपराओं को सहेजने में कोई कसर
नहीं रखना चाहिए । देश में हजारों स्कूल इसी उद्देश्य से बंद हुए हैं कि देश को
सस्ता लोकतंत्र मिले। कुछ वर्षों के बाद जब अपढ़ों की संख्या बढ़ेगी और वे वोटर भी
बनेंगे तब लोकतंत्र का स्वर्णयुग आकार लेगा । राजनीति में दूरदृष्टि और पक्का
इरादा हो तो देश को नई दिशा दी जा सकती है । अपढ़ गरीब आदमी को कुछ मिले ना मिले वह
हमेशा देता रहता है। नदी दिखती है तो सिक्का फेंक देता है, मंदिर दिखता है तो हाथ
जोड़कर रुपया चढ़ा देता है, पुलिस दिखता है तो उसकी जेब गर्म कर देता है, गुंडे
दिखते हैं तो उन्हें हफ्ता दे देता है, व्यापारी
दिखता है तो दलाली दे देता है, सरकार दिखती है तो सलामी दे देता है। वह जानता है
की गरीब है तो उसे देना है, और जो अमीर हैं, समृद्ध हैं, सक्षम हैं, सशक्त हैं,
उन्हें लेना है।
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शनिवार, 19 जुलाई 2025
बादल तुम बरसो, यही तुम्हारी आईडी है
बादलों, कई
दिनों से तुम्हारे आने की खबर मिडिया में महक रही है। तुम्हें तो पता है पेड़ कम हो
चले हैं, चौतरफा विकास है। मई जून में आदमी ऐसा तपता है मानो
अंगार पर रखा भुट्टा हो। हर आत्मा पानी पानी पुकारती है, हर
आँख बादल देखना चाहती है। तुम्हें देख कर मोर यूँ ही नहीं नाच उठते हैं । फूल अभी
खिले नहीं हैं, झूले अभी पड़े नहीं हैं लेकिन तुम्हारे आने की
खबर से मन मोर हुआ जाना चाहता है । लोग कहते हैं तुम पानी से भरे हो, नहीं जी ... तुम जिंदगी से भरे हो । बरसते हो इसलिए बाकायदा गरजने के
हक़दार हो । अच्छा है कि तुम जुमलों की तरह दनादन नहीं बरस पाते हो, बरसते तो शायद बादल नहीं रहते। देखो तुम बादल ही रहना, बदलना मत। तुम्हें नहीं पता तुम्हारी पहली बूंदें प्रेम और उम्मीद से
कितना भर देती हैं तपती धरती को। और हाँ, इस बार ठीक से
बरसना, सभ्यता बारूद पर बैठी है। बारूद क्या है समझो आग ही है
। जमाना तरक्की कर रहा है ना ! हम प्रेम के खिलाफ़ हुए, प्रकृति
के खिलाफ़ हुए अब अपने ही खिलाफ़ होते जा रहे हैं। सभ्य हैं ना, अब एक दूसरे के भरोसे लायक नहीं रहे। तुम्हारी भी सम्पूर्ण आईडी मांगी जा
सकती है। युद्ध के बादल भी तो आकाश में घूम रहे हैं। इस फेक फेक जमाने में तुम पर
चट से विश्वास कौन करेगा ! लेकिन तुम बादल हो, तुम बरसो,
यही तुम्हारी आईडी है।
चाँद छुप रहा है बार बार। लग
रहा है तुम शहर की सीमा तक आ गए हो ! चले आओ कि झट से द्वारचार की रस्म भी कर लें।
एक झड़ी से तोरण मार कर तुम भी अपनी आमद दर्ज करना। लाड़ली बहनों पासबुक रख दो तकिये
के नीचे और निकलो घर से, गाओ मंगलगान, बादल सरकार आए हैं । जिम्मेदारियों
से भरे हैं बादल, आज बरसेंगे सारी रात। ध्यान रहे, उनकी आगवानी में कोई कमी न रह जाए।
इधर स्वागत में बिजली विभाग
मेंटेनन्स का नाम ले कर पेड़ काट रहा है। नगर निगम ने गड्ढे गिन लिए हैं। इस बार वर्ल्ड
रेकार्ड बन जाने की उम्मीद है । जल भराव का तो तभी पता चलेगा जब तुम झूम के बरस
लोगे। झुग्गी बस्तियां बहुत बन गई हैं । इन्हें भी उजाड़ना है । बादलों ऊपर से तुम आओ नीचे से बुलडोजर आएंगे । बहुत
कट्ठी जान होते हैं गरीब । यही लोकतंत्र की ताकत भी हैं । इन्हें उखाड़ते बसाते रहना
लोकतंत्र को मजबूती देता है । इसमें तुम्हारा योगदान कम नहीं है बादलों ।
बड़े लोग जागरूक है इनदिनों। कुछ
ने इन्वर्टर खरीद लिए हैं बाकी ने मोमबत्तीयां। नदी नाले उफ़नेंगे,
बस्तीयां भी डूबेंगी, लेकिन आपदा में अवसर की
नाव हाकिमों को पार लगाएगी। बाकी के लिए भगवान हैं ही, प्रभु
ने पर्वत उठा लिया था अपने भक्तों के लिए। जिम्मेदारी समझेंगे तो आएंगे, नहीं आए तो
उनकी मर्जी । तुम तो बिंदास फट लो, सुना है बादल फटते भी हैं
!! फट लेना, डरना मत। बहुत से लोग मेंढक मछली की तरह जी रहे
हैं। आ जाओ स्वागत है तुम्हारा बादलों ।
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शुक्रवार, 18 जुलाई 2025
चेनू उर्फ भईया उर्फ भगवान
अपने ‘भईया-लोग’ भगवान तो नहीं पर
भगवान से कम भी नहीं हैं । लोग कहते हैं कि देश भगवान भरोसे चल रहा है तो अनुभवीजन
बिना देर किये इसकी गहराई को समझ जाते हैं । मानो तो भगवान जी हैं, न मानों तो
जोखिम आपका । सितारे बुलंद हों तो पुलिस जनसेवक है, न हों तो अंतिम सत्य राम है ।
समझदार को इशारा काफी होता है । तो बोलो ॐ शांति ॐ, शांति शांति ॐ ।
बराबरी, स्वतंत्रता और सहयोग के इरादे
से शुरू हुए लोकतंत्र में भईया भगवान हो गए यह बिकास नहीं महाबिकास है । चैनसिंग
उर्फ चेनू उर्फ भईया उर्फ भगवान आज टीवी मीडिया से मुखातिब हैं । कल विपक्ष के एक
नेता मीडिया के सामने कह गए थे कि कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब है और सरकार
गुंडों को नियंत्रित नहीं कर पा रही है । जो जेल में सुरक्षित रहता है वो अस्पताल
में मारा जाता है । असामाजिक तत्वों ने आमजन का भी जीना मुश्किल कर दिया है । इसी
के जवाब में आज मंच पर फैले चेनू अपनी बात रख रहे हैं ।
“एक बात समझ लो आप लोग अच्छी तरह से
कि जिसे ये लोग गुंडा-गुंडा कह रहे हैं उनकी सोच पुरानी है । अब गुंडा-कर्म एक
कमाऊ इंडस्ट्री है देश की । गुंडे जी उच्चकोटी की समाज सेवा में लिप्त हैं । G-इंडस्ट्री जहाँ जहाँ काम कर रही है वहाँ हमारे खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है
। सरकार कोई भी हो G-इंडस्ट्री सेवा कर डालने से पीछे नहीं
हटती है । काम जिम्मेदारी से करते हैं, इसलिए हमारा नाम है ।“
एंकर को अपनी जिम्मेदारी और खतरे
पता है, बोली –“सर दरअसल G-इंडस्ट्री के बारे में जनता को पता नहीं है ! उनकी
जानकारी में आप इजाफा कर सकते हैं । ”
“ G-इंडस्ट्री
समाज में एक सक्रिय, आत्मनिर्भर और हाई टर्नओवर कंपनी है । विपक्ष ने इसे असामाजिक
तत्व कह कर अपमानित किया है । सही समय आने पर G-इंडस्ट्री
इसका हिन्दी में जवाब देगी । उन्हें यह देखना चाहिए कि देश बेरोजगारी के संकट से
गुजर रहा है । एक हमारी इंडस्ट्री ही है जिसने युवा हाथों को काम दिया है । क्या
ये देश सेवा नहीं है ! मैं दावे के साथ कह रहा हूँ कि है । यहाँ कोई असहमत हो तो
सामने आ कर अपनी बात रखे ।“ चेनू ने हॉल में नजर दौड़ते हुए कहा ।
एंकर को
कोई बात नहीं सूझती है । ऐसे मौकों पर मुस्कराहट काम में लेती हैं, -“दर्शकों को
एक बार फिर बता दें कि आज हमारे स्टूडियो में खासतौर से G-इंडस्ट्री
के सीईओ चेनू सर मेहमान हैं और मजबूती के साथ अपना पक्ष रख रहे हैं । ... तो सर
आपने बताया कि आपकी इंडस्ट्री इसलिए फलफूल रही है क्योंकि देश में बेरोजगारी है ।“
“ गरीबी
बेरोजगारी पॉलिटिकाल इंडस्ट्री का रॉ-मटेरियाल है । चुनाव में यूज करने के बाद
बाकी टाइम में ये लोग हमारे काम आते हैं । मतलब गरीब सेकंड हेंड, बेरोजगार सेकंड
हेंड हम वापर लेते हैं । हम चाहते हैं इनकी मदद हो, सबका कल्याण हो । नेता भी खुश
रहें, धरम-धंधे वाले भी, साथ में गरीब और बेरोजगार भी । अपने अपने पेट के हिसाब से
सबको भरावन मिले । इसमें कोई बुराई है क्या ?”
“बुराई तो
नहीं है सर, लेकिन आप दूसरे अच्छे काम भी तो करवा सकते हैं इनसे ।“
“नजरिया
बादलों आप लोग । अच्छे काम ही करते हैं । हमारी वजह से ही पुलिस को रोजगार मिला
हुआ है, जेलों का कारोबार चलता है, अस्पतालों को हड्डियों के ज्यादातर केस कौन
देता है, चाकू कट्टे की फेक्टरी में रोजगार किसकी वजह से है ... और बताओ जरा
सरकारें कौन बनवाता है ? “
“सर ऐसी
क्या बात है । अब तो सरकार हम भी बनवाते हैं ।“ एंकर ने मुस्कराते हुए कहा ।
“गलतफहमी
कोई भी पाल सकता है ।“ ceo बोले
।
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गुरुवार, 10 जुलाई 2025
खाली डब्बे खाली बोतल
बूढों के मामले
में आजकल बड़ी गफ़लत चल रही है। हर बूढ़े को कहा जा रहा है कि तुम अपने आप को जवान
समझो। दोस्त बनाओ, मॉर्निंग वाक पर जाओ, जो मन
में आए देखो, हँसो-बोलो गुनगुनाओ। उम्र कुछ नहीं सिर्फ एक
नंबर है। बाल झर रहे हैं ! कोई बात नहीं सबके झरते हैं। चश्मा सबको लगता है। दाँत
तो होठों के परदे में हैं, किसको पता दत्तक हैं या सगे वाले।
बाल रंग लो तो मन भी अंदर से रंगीन हो जाता है और किसीको पता भी नहीं चलता है।
होना उतना जरूरी नहीं है जितना कि मान लिया जाना। कितने ही लोग हैं जिन्हें जमाना
करोड़पति मानता है लेकिन गले तक कर्ज में डूबे हुए हैं बेचारे। ज्ञानी कहते हैं इस
धरती पर हम एक किरदार हैं, जो रोल हमने चुना है वो निभा रहे
हैं। तो अंदर से आप कुछ भी हो, किरदार में अपने को जवान
समझो। सिर्फ समझना ही तो है, कुछ करना थोड़ी है। पार्क में
देखो कितने पिचहत्तर-पारी हैं जो पचासा जी रहे हैं। स्त्रियों से सीखो। किसी को
आंटी बोल दो फिर देखो कैसे तबियत से एक पत्थर उठाके आसमान में छेद कर देती हैं !
मानती है दुनिया, मनाने वाला चाहिए।
लोग
चमत्कार को नमस्कार करते हैं। और आज के समय में मेकअप से बड़ा चमत्कार दूसरा नहीं।
मेकअप वाले धरती पर दूसरे भगवान हैं जो घर और संसार को रहने सहने लायक बनाते हैं।
तो सारी महिमा मेकअप की है। मेकअप औरतों और बूढ़े आदमियों की जरुरी जरुरत है। मेकअप
बढ़िया हो तो रावण भी साधु दिखने लग जाता है। मेकअप वाला आदमी बूढ़ा नहीं होता। लगता
है कि लोग बाल ही देखते हैं। बाल काले भक्क होना चाहिए,
चाहे चेहरा चपटा चूसा आम हो। बाल देखो या दिल देखो, जवानी की रीडिंग इधर ही मिलती है। करवाने वाले चेहरे पर भी काम करवा लेते
हैं और 52 साल का फिल्मी आदमी भी 25 का
दिख सकता है। जानकार बताते हैं कि देश भी मेकअप से चल रहा है। पुल अच्छे दिखाना
चाहिए, सड़कें लम्बी दिखनी चाहिए, आंकड़े
अच्छे होना चाहिए, भाषण बढ़िया देना चाहिए, वादे ऊंची आवाज में
करना चाहिए वगैरह । मेकअप का तो सिद्धांत ही है कि अच्छा दिखे बस, हो गया। सूरत अच्छी दिखना चाहिए फिर चाहे
चेहरा फुंसियों और पिंपल से भरा हो। आजकल तो लोग तारीफ
भी इतनी करते हैं कि अच्छे भले बेशर्म आदमी को भी बगलें झांकना पड़े। इसे शाब्दिक
या जुबानी मेकअप कहते हैं। पैसा सरकारी हो तो आप उसे यहां वहां फेंक कर फोकट फंड
में अपना मेकअप कर सकते हैं। मेकअप सिर्फ चढ़ाना या थोपना भर नहीं है, उतारना भी है । सब जानते हैं कि साहब बूढ़े हैं, साहब भी जानते हैं
कि वे बूढ़े हैं। भगवान तो जानते ही है कि साहब बूढ़े हैं। साहब क़ी बेगम तो भरी
बैठी हैं कि साहब ब्लेक डॉग कि खाली बोतल हैं। जींस और टी शर्ट भी अपना काम नहीं
कर पा रही है। लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं । किसी शायर ने लिखा है
- वक्त का काफिला आता है गुजर जाता है ; आदमी
अपनी ही मंजिल पर ठहर जाता है ।
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अस्पताल चलें हम !
मरना तो सबको पड़ता है । आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर । तो अस्पताल चलें
हम । अस्पताल में आदमी कायदे से मारता है। अस्पताल के पास सुपर स्पेशलिटी होती है।
वे अपना काम जानते हैं और करने में दक्ष होते हैं। घरों में लोगों को नहीं मालूम
होता हैं कि कब क्या करना चाहिए। मरीज की सांस उखड़ने लगती है तो दौड़कर बुआ जी को
फोन करते हैं कि जल्दी आ जाओ बाबूजी की सांस उखड़ रही है। जो भी होना है बुआजी के
सामने हो तो अच्छा होता है वरना बाद में केस बिगड़ सकता है। अस्पताल में ऐसा नहीं
है। जब किसी की सांस उखड़ने लगती है तो वह डिपॉजिट की रकम बढ़ा कर जमा करवा लेते
हैं। इससे जमा बॉडी के जिन्दा रहने की उम्मीद बढ़ जाती है। लोगों को लगता है कि
इतना रुपया जमा करवा रहे हैं तो अच्छा इलाज करेंगे। मरीज यानी जमा बॉडी को इतना
आराम हो जाता है कि उसकी तरफ से सांस भी मशीन लेती है। इधर आत्मा यमराज के दरबार
में पेश हो चुकती है, उसके करम चेक हो चुकते हैं, स्वर्ग या नरक में उसको खोली मिल चुकती है और बंदा अस्पताल में बाकायदा
सांसे ले रहा होता है। अब इसे भी आप चमत्कार नहीं कहोगे तो मरो घर पे।
हम एक लोकतांत्रिक देश है । सिस्टम उसे जिंदा मानता है जो वोट दे देता
है। मजबूरी है, क्या किया जा सकता है । अमीर आदमी का रुतबा अलग है वह वोट नहीं
देता फिर भी बकायदा जिंदा रहता है। इसका रहस्य है कि वह चंदा देता है। राजनीतिक दल
चंदे से जिंदा रहते हैं। अमीर लोग राजनीतिक दलों के ऑक्सीजन सिलेंडर होते हैं।
सत्ता की सांसें अमीरों की तिजोरी में होती है। आमिर ना हों तो ऊपर बैठे मालिक का
कारोबार भी ठीक से नहीं चले। आप समझ गए होंगे कि अमीर की इच्छा ही सिस्टम की जान
होती है। इसलिए अमीरों को बचाना सिस्टम को बचाना है। बड़े और समझदार आदमी हर काम कायदे से करते हैं। इसलिए अमीरों के अस्पताल अलग
और गरीबों के अलग होते हैं । कायदे चाहे अस्पताल के हों, न्यायालय के हों या फिर धरम
के हों, कोई भी कायदा गरीब अफोर्ड नहीं कर पाता है । वो अक्सर अच्छे अस्पताल और ईलाज
की कामना करते हुए मर जाता है। वैसे कामना का क्या है, लोग
हूरों की भी करते ही हैं । गालिब ने कहा है कि ‘दिल को बहलाने के लिए खयाल अच्छा
है’ । बहुत से कार्ड वाले गरीब अस्पताल के दरवाजे तक पहुँच कर कैसे तो भी मर लेते
हैं। दरअसल गरीब को भ्रम होता है कि वह जिंदा है। अस्सी
करोड़ को मुफ़्त राशन और ऑक्सीजन मिल रही है
। सांस चल रही हो तो लोग भी मान लेते हैं कि आदमी जिंदा है। सरकारें अस्पताल
बनवाती हैं ताकि आदमी जिंदा रहे और गरीब भी । गरीबों के अस्पताल भी खासे गरीब होते
हैं । गरीब से गरीब की मेचिंग होती है और ये संबंध लंबा चलता है । यहाँ कोई
ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए नहीं दौड़ता, ताबीज और भभूत के लिए पेरेरल दौड़ता दिखता है ।
गरीब अस्पताल में जब तब रोने चीखने की आवाज गूँजती है तो जमीन पर पड़े मरीज के घर
वाले खुश होते हैं कि शायद अब बेड मिल जाएगा । हूरों वाली कामना आखरी में आ कर एक
बेड पर सिमट जाती है । बेड पर मरने को मिले तो गरीब की मुक्ति हो जाती है ।
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बुधवार, 25 जून 2025
दोस्ती में फट लिया डूडू

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रविवार, 8 जून 2025
साधो ये मंडी शब्दों की
पता नहीं ये बाजार का डर है या बाजार का प्यार, कहते हैं कि बाजार घर में घुस आया है, कोई रोक सके तो रोक ले । पुराने जमाने में तो घर के मुख्य दरवाजे पर वेलकम लिखने का चलन था, अतिथि देवो भव । मतलब दिल दरिया है जी, कोई सामने हो ना हो, सबका वेलकम है जी । किसी शायर ने लिखा है “हँस के बोला करो, बुलाया करो; आपका घर है, आया जाया करो ।” अपने मतलब की बात बाजार बहुत जल्दी समझ लेता है चाहे उर्दू का शेर ही क्यों न हो । बस मुँह ऊंचा कीजिए बाजारजी और घुसे चले आइए, गली में चाँद निकला है । तरफदार कहते हैं कि पैसा पास हो तो बाजार से अच्छा नौकर कोई नहीं । नाच मेरी बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा टाइप। अब अगर चिराग का जिन्न आ जाए तो लायसेंस परमिट का फंदा डाल कर उसका गला घोंट दिया जाएगा । मॉल छाप जिन्न अपने आगे दुकान छाप किफायती जिन्न को टिकने देगा भला । कहने को बाजार दोनों के लिए खुला है । गलाकाट प्रतिस्पर्धा है जी । बड़ा छोटा हर आदमी मुनाफे की टोह में है । चार पैसे के चक्कर में रोटी खाना भी भूल जाता है । सबर करो रे, सब बेच दोगे तो तुम्हारे पास बचेगा क्या !
दीनानाथ
ढाइपोटे हमारे पुराने दुश्मननुमा मित्र हैं । आते ही खौलते प्रेम के साथ बोले –
तुम भी क्या मनहूस आदमी हो ! कभी शापिंग करने निकलते नहीं हो लेकिन बाजार को लेकर
आएं बाएं बकते रहते हो । पता है ! भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन
गया है ! न्यूज चैनल देखना छोड़ने का यही परिणाम है, देश की तरक्की का कुछ भी ज्ञान
नहीं है तुम्हें ! न्यूज देखा करो नहीं तो पिछड़ जाओगे और फिर गलत पार्टी को वोट दे
मरोगे ।
“यार
ढाइपोटे, तुम जिसे न्यूज चेनल कह रहे हो वो दरअसल शोरूम हैं किसी कंपनी के । खास किस्म का प्रोडक्ट बिकता रहता है वहाँ
! तुम्हें शायद पता नहीं शब्दों की बड़ी
मंडी हो गई है आजकल । “
“क्या बात
करते हो ! शब्द बिकते हैं क्या ! लेखकों को पारिश्रमिक तक तो मिलता नहीं है । कोई
फोकटिया बाजार भी है ऐसा मैंने तो देखा नहीं ।“
“बाजार
दिखता है क्या ? दुकानें दिखती हैं, बाजार को देखना समझना पड़ता हैं, जैसे चरित्र को समझना होता है । बेचने वाला घर
जैसा आदमी बन जाता है, मीठी बातें करता है लेकिन ध्यान उसका बेचने पर ही होता है
।“
“चलो माना
। लेकिन शब्दों का बाजार !! “
“बाजार
नहीं मंडी । शब्दों की मंडी में डालपक मीठे मीठे शब्द, मानो कोई पुरातन दुकान हो
मिठाई की । शब्द चिकने हों, गोल गोल हों, रसीले हों, तो एक मौसम का पता देते हैं ।
मौसम सारे प्राकृतिक नहीं होते हैं, कुछ सरकारी भी होते हैं । अपने बीमा वाले
गुप्ता जी हैं ना ! कितनी शुगर शुगर बात करते हैं अपने क्लाइंट से कि वो बेचारा
पहले इंसुलिन लेता है और बाद में पालिसी भी । काम हो जाने के बाद गुप्ता जी गुप्त
हो जाते हैं और कान मे रह जाते हैं उनके चीठे मीठे शब्द । हर चैनल में गुप्ता जी
हैं और मीठा मीठा पेल रहे हैं । एक चेन है शोरूम्स की । इन्सेंटीव के मारे सेल्स
मेन झूठ के फुग्गे फुगा फुगा कर दिए जा रहे हैं । लोग लिए जा रहे हैं ।“
“देखो जितनी
जल्दी हो सके भ्रम से निकलो । देशभक्त बनों, वरना किसी काम के नहीं रहोगे । फिर मत कहना कि ढाइपोटे ने समय रहते
उचित सलाह नहीं दी ।“











