मंगलवार, 10 मई 2022

आज गरमी बहुत है भाई !


 



‘बहुत गरमी है भाई !’ , आते ही हरगोविंद जी बोले . मैंने सहमति जताई, आप सही कह रहे हैं, आज बहुत गरमी है . गरमी एक ऐसी चीज है जिससे हर कोई सहमति जता सकता है . वरना तो आजकल माहौल ऐसा है कि किसी भी मुद्दे पर सहमत होना बड़ा मुश्किल है . जहाँ तक हरगोविंद जी का सवाल है उनसे प्रायः  सब सहमत हो कर सिर हिला देते हैं . कुछ तो उनकी बड़ी बड़ी मूंछों का मान रखते हैं जो हाल के वर्षों में उन्होंने पालपोस ली हैं . और हम जैसे नाचीज तो उनसे कम उनकी लाठी को देखते हुए बात करते हैं . वे पुलिस विभाग से रिटायर हुए जवान हैं . सो लाठी, मूंछों और उनका लंबा संग-साथ है . सुना है वे दोनों को तेल पिलाते हैं सुबह शाम, कहते हैं कि इससे दोनों असरदार बनी रहती हैं . दरअसल लाठी उनके व्यक्तित्व के साथ जुड़ गयी है, जैसी गाँधी जी की प्रर्तिमाओं में हम उन्हें लाठी के साथ देखते हैं . हरगोविंद जी की मूंछे और लाठी परस्पर पूरक भी हैं . लाठी के बिना मूंछ और मूंछों के बिना लाठी जैसे नाड़ा और पजामा . दोनों मिल कर हरगोविंद जी को वो बना देते हैं जो वे नहीं हैं . पुलिस विभाग ने भी दरअसल मूंछों और लाठी को ही रिटायर किया है, हरगोविंद जी तो केयर टेकर हैं सो साथ ही बाहर आ गए . वे फिर बोले –‘इस बार गरमी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है’ . हमने समर्थन किया – ‘आप ठीक कह रहे हैं, वातावरण बहुत गरम है’.

“वातावरण गरम है मतलब !?” वे बोले .

“मतलब वातावरण में बहुत गरमी है .” हमने सफाई दी .

“आपकी बातों में सरकार के विरोध की बू आ रही है ! ‘वातावरण’ कहने की क्या जरुरत है ? ‘बहुत गरमी है ‘ इतना कहना पर्याप्त नहीं होता क्या !?” उन्होंने मूंछों और लाठी पर हाथ फेरते हुए कहा . 

“वातावरण का कोई खास मतलब नहीं है, वैसे ही कह दिया कि बात प्रभावी हो जाये”.

“शब्दों की यह फिजूलखर्ची आपको किसी दिन महँगी पड़ सकती है . वातावरण एक आपत्तिजनक शब्द है, समझते  नहीं हो क्या ?!”

“वातावरण में अपत्तिजनक क्या हो सकता है !! न यह साम्प्रदायिकता बढ़ने वाला शब्द है न ही किसी का अपमान करने वाला .”

“है क्यों नहीं ! ये सांप्रदायिक भी है और अपमानजनक भी . ठीक से सोच कर देखिये .”

“अब इतनी बारिकी से कौन सोचता है हरगोविंद जी ! किसके पास इतना वक्त है .”

“किसी गलत फहमी में मत रहिये, जिन पर जिम्मेदारी है देश की उन्हें सब सोचना पड़ता है . वातावरण के लिए करोड़ों खर्चने होते हैं, जगह जगह जा कर भाइयो-बहनो कहना पड़ता है तब कहीं जा कर एक वातावरण बनता है . और आप हैं कि बातों बातों में ‘वातावरण’ ऐसे उछाल देते हैं जैसे वह रास्ते में पड़ी कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतल हो ! अगर पुलिस चाहे तो मामला देशद्रोह का बन सकता है .”

“अब आप तो रिटायर हो गए हैं ... दूसरा कोई तो है नहीं यहाँ .”

“विभाग ने वर्दी ले ली है लेकिन मूंछे और लाठी हमारे पास है. ...पुलिस न हो पर मोराल पुलिस हमारे साथ है ...  तो अपने को सही कीजिये, कहिये ‘आज गरमी बहुत है और गरमी के सिवा कुछ नहीं है’. “

“आप सही कह रहे हैं हरगोविंद जी, आज गरमी बहुत है गरमी के सिवा कुछ नहीं है’.”

 

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