शनिवार, 14 मई 2022

महंगाई एक भ्रम है






“देखो संसार में महंगा सस्ता कुछ नहीं होता है . महंगाई सिर्फ एक भ्रम है .  फिर भी  अगर तुमको लगता है कि दाल महँगी हो गई है तो पानी थोड़ा ज्यादा डाल दिया करो . अभी पानी तो सस्ता है ना .” वीर सिंह ने पत्नी को समझाया .

“मिर्च-मसाला, प्याज-लहसुन, तेल सभी तो महंगा है ! इनकी जगह क्या डालूं ... धूल !”

“ अरे तो कौन सा पहाड़ टूट गया है जो नाराज हो रही हो ! सादी दाल खायेंगे. हमारी दादी कहा करती थी कि सादी और पतली दाल स्वास्थ्य के लिया बढ़िया होती है . बीमार भी पड़े पड़े पचा लेता है . सादी दाल ही बना लिया करो यों भी हम लोगों का पेट पिछली सरकारों का सस्ता सस्ता खा कर ख़राब हो गया है . आम आदमी हैं, हमें जीने के लिए खाना चाहिए . खाने के लिए जीने का अधिकार उनका है जिनके जेब में दो चार एमपी पड़े होते हैं . “

“लेकिन गैस का क्या !? ...सिलेंडर हजार से उप्पर जा कर भी उछलूँ उछलूँ कर रहा है . “ वे बोलीं .

“थोड़ी सी समझदारी बताओ भागवान . थोड़े दिनों की बात है दो हजार पैंतीस तक सब ठीक हो जायेगा . दिन जाते कोई देर लगती है . भामाशाह ने महाराणा प्रताप के सामने सोने चांदी के आभूषण ला कर रख दिए थे . बताओ आभूषण क्या वे पहनते थे ? घर की महिलाएं पहनती थीं, उन्होंने दिए थे . आज समय विकट है लेकिन कोई भामाशाह महाराणा के चरणों में कुछ रख नहीं रहा है बल्कि अपने आभूषण दुगने चौगुने कर रहा है .”

“तो पेट्रोल-डीजल, गैस से इसका क्या मतलब है !”

“वित्तमंत्री को किसी ने बताया कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकलता है सो उस बेचारे ने टेक्स लगाने पड़ रहे हैं . देखो, महंगाई को लेकर शोक या क्रोध करने का समय नहीं है . देश जनसँख्या पीड़ित भी है . लाख से ज्यादा पैदा हो रहे हैं रोजाना . महंगाई जनसँख्या नियंत्रण का एक उपाय भी है . हमें इसमे सहयोग करना चाहिए .”

“दो बच्चे हैं हमारे ... ये सहयोग कम है क्या ?! ... कम और ज्यादा बच्चे वालों के लिए एक ही महंगाई !! ये तो अन्याय है .”

“सोचो कल हम विश्वगुरु होंगे, महाशक्ति बनेंगे, जहाँ भी खोदेंगे वहां पानी, तेल और  मूर्तियाँ मिलेंगी, दुनिया हमें झुक कर सलाम करेगी, हम ... हम ... हम ...”

“घर मुझे चलाना होता है . जब भी मैं अपनी समस्या बताती हूँ तुम बौद्धिक देने लगते हो !! महंगाई का तुम्हें दर्द नहीं है तो कम से कम कहीं ओवर टाइम करो, कोई एक्स्ट्रा काम करो, चार पैसे लाओ ताकि दाल को पानी होने से बचाऊँ तो सही . पनीली दाल से बच्चों को देश का भविष्य कैसे बना पाएंगे !?”

“अरे देवी ! ... एक तो तुम सोचती बहुत हो . सरकार को पता चल गया तो देशद्रोह में पकड़ी जाओगी . देखो, सोचना ही है तो सही दिशा में सोचो . अतीत का सोचो, कितना गौरवशाली था . वर्तमान का सोचो कि कितना खतरा है अन्दर बाहर से . भविष्य में सिर्फ डर है लेकिन उस डर को जिन्दा रखो क्यों की डर के आगे पार्टी की जीत है, ... समझी ?”

“और महंगाई ?!”

“कहा ना शुरू में ... महंगाई एक भ्रम है .”

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