गुरुवार, 26 मई 2022

मच्छरों का चिंतन शिविर


 

                       मच्छरदानी समझते हैं ना आप ?  छोटे से तम्बू जैसी, जलीदार कपड़े की होती है, बिस्तर पर परदे सी लटकी हुई . मच्छर जब आपसे मिलने आते हैं तो सबसे पहले उनका पाला इसी से पड़ता है .  इसे प्रायः रात को सोते समय ताना जाता है . अगर कोई दिन में भी ताने तो मक्खियों से बचाव हो सकता है लेकिन तब दिक्कत ये होगी कि इसे मक्खीदानी कहना पड़ेगा . हालाँकि नाम बदलने में क्या है आजकल ! फट से बदला जा सकता है . फिर भी सोचना इसलिए पड़ता है कि  इससे मच्छरों को बुरा लग सकता है . अपने यहाँ मच्छर भले ही वोटर न हों पर वोटर मच्छर होते हैं. इसी रिश्ते से हर कुर्सीदार और कुर्सीकामी को उनका ख्याल रखना पड़ता है . मच्छरों की कई जातियां होती हैं . जैसे काटने वाले, गुनगुनाने वाले, चूसने वाले, खून पीने वाले, शराब पीने वाले, गटर वाले, ड्रेनेज वाले, मलेरिया वाले, डेंगू वाले, दिन वाले, रात वाले, और भी कई तरह के . कुछ मित्रनुमा भी होते हैं जो ‘न जाने वाले अतिथि’ को बाहर का रास्ता दिखाने में मदद करते हैं . लेकिन मच्छर गुलाम नहीं होते हैं . उन्हें आज़ादी पसंद है . भले ही मर जायेंगे पर खून पिए बगैर नहीं मानेंगे . मच्छर गड्ढों में, अँधेरी, गीली जगहों पर रहते हैं और थोक में लार्वा पैदा करते हैं . लोगों को डराते हैं कि एक दिन पूरी दुनिया मच्छरों से भर जाएगी . लेकिन सवाल ये भी है कि जब सारे मच्छर होंगे तो ये खून किसका पियेंगे ! इसका जवाब उनके पास नहीं है .

                            खैर, बहुत पहले हम मच्छरदानी नहीं लगाते थे . मच्छर भी कम ही थे, जितने घर के अन्दर थे उतने ही . अब तो घुसपैठ होने लगी है, पैदा कहीं और होते हैं खून चूसने कहीं घुस आते हैं . सच तो यह है कि हमारे पास मच्छरदानी थी ही नहीं . मतलब बाज़ार में तो थी, लेकिन हमारे पास नहीं थी . इसे यों समझिये कि कानून तो था किताबों में लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता था . उस समय के मच्छर भी गाँधी, अहिंसा और सेक्युलर का पोस्टर ले कर खून चूसने  निकलते थे और कटाने से पहले कान में ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीर परायी जाने रे’ गुनगुना देते थे . आदमी भजन पूरा करने के चक्कर में लग जाता और मच्छर अपना काम पूरा करने में . भजन भक्ति के साये में कब रक्तदान  हो गया आदमी को पता ही नहीं चलता था . आज भी यही है, ध्यान नहीं दो तो मच्छर कब खून चूस जाते हैं पता ही नहीं चलता है .

                             पिछले दिनों मच्छरों का चिंतन शिविर चल रहा था .  उनकी कुछ मांगें तय हुई . पहली मांग तो यही थी कि मच्छर मारने वाले प्रोडक्ट से बाज़ार भरा पड़ा है . इस पर प्रतिबंध होना चाहिए . अहिंसावादी भी मच्छर मारने के मामले में बहादुर हो रहे हैं, इन पर रोक लगे . कुछ शहरों में साफ सफाई की मुहीम चलाई जा रही है , ये मच्छरों के खिलाफ षडयंत्र है . मच्छरदानी के प्रयोग को पाप घोषित किया जाए . यदि इन मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो मच्छर अपने अलग राज्य ‘मच्छारिस्तान’ के लिए आन्दोलन शुरू कर देंगे . मच्छर जानते हैं कि किसी सरकार के पास मच्छरों की रोकथाम का कोई उपाय नहीं है .

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