समुद्र तट पर अजनबी को देख कर लोग इकठ्ठा हो गए, पूछा – “तुम कौन हो जी !? और यहाँ आये कैसे !?”
“मैं गुलिवर हूँ बौने मित्रों, पिछली बार की तरह यात्रा पर निकला था लेकिन तूफान में मेरा जहाज फँस कर टूट गया . मैं बड़ी मुश्किल से तैर कर यहाँ पहुँचा हूँ .” गुलिवर ने बताया .
सुन कर बौने एक दूसरे को देखने लगे . उन्हें याद आया कि ऐसा ही कुछ पहले भी हुआ था . पुरखों से सुना था कि थका यात्री गुलिवर जब सो रहा था तो बौनों ने उसे कैद भी कर लिया था . एक बौना मुस्करा कर बोला – “ आप हमारे अतिथि हैं जरुर थक गए होंगे, सो जाइये ना .”
“थका तो हूँ पर सोऊँगा नहीं . पिछली बार थक कर मैं सो गया था तब उस समय के बौनों ने मुझे रस्सियों से बांध लिया था . बहुत दिनों तक उनकी कैद में रहना पड़ा था .” गुलिवर ने कारण बताया तो बौने समझ गए कि ये वही आदमी है . बोले – “ आप डरो मत, अब यहाँ किसी को बाँधा या कैद नहीं किया जाता है, मोबलीचिंग करते हैं .”
“मोबलीचिंग ! ये क्या नया कानून है ?”
“ये कानून से ऊपर एकता का दिव्य कर्म है . मतलब सब इकठ्ठा हो कर, झुण्ड बना कर सेवा कर देते हैं और सामने वाले का पुराना संस्कार निकाल कर नया डालते हैं .... “
“झुण्ड बना कर क्यों करते हैं ... सेवा !!” गुलिवर चौंका .
“बौने हैं ना, ऊँचाई कम है . तुमने सुना होगा कि लकड़बग्घे झुण्ड बना कर प्रयास करते हैं तो बड़े शेर को भी चट कर जाते हैं .”
“ओह ! आप लोगों की ऊँचाई कैसे कम हो गयी !!” गुलिवर डर गया लेकिन बातों में उलझा कर कोई रास्ता निकलना था उसे .
“महंगाई और टेक्स बहुत है, बोझ से दब कर छोटे होते जा रहे हैं . राजा चाहता है कि उसकी प्रजा बेक्टेरिया की तरह हो जाये तो पूरी दुनिया पर राज करेंगे . उसका हुकम है कि एकता रखो, संगठन में शक्ति है, पढ़लिख कर ऊँचाई प्राप्त करना मूर्खता है , शिक्षा दूसरों की गुलामी का औजार है . इसलिए हमारे बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं संगठन में जाते हैं .”
“फिर भी यह समझ में नहीं आया कि शरीर इतना बौना कैसे हो गया !? क्या महंगाई के कारण पेट नहीं भर पाता है आप लोगों का ?” गुलिवर ने सहानुभूति पैदा करना चाही .
“महंगाई की कोई बात नहीं है जी, अब तो लाल झंडे वाले भी चुप हैं तो टापू के सामने महंगाई कोई मुद्दा ही नहीं है . दरअसल राजा साहब चाहते हैं कि प्रजा स्वस्थ और सक्रीय रहे . सक्रीय रहने के लिए भूखा रहना जरुरी है . भूखे अपने लक्ष पर पूरी ताकत से टूट पड़ते हैं. जो लोग खाए अघाए होते हैं वो आलसी-लद्दड़ टापू पर बोझ होते हैं . अगर वे टेक्स-पेयर नहीं होते तो बौनों ने अब तक उनका मोबलीचिंग कर दिया होता . टापू को विकास की तेज दर हासिल करना है उसके लिए धन भी चाहिए . उस दिन का इंतजार है जब पूरा टापू भूखों और बौनों से भर जायेगा . इसके बाद हमारे राजा विश्वगुरु बन जायेंगे .”
“क्या टापू में इतने बौनें हैं की राजा विश्वगुरु बन पायें ? .”
“सच बात ये है कि टापू जनसँख्या वृद्धि का शिकार है . बौनों के पेट आधे या चौथाई हो जाते हैं . इस तरह पचास लोगों के भोजन में सवा सौ लोग पाले जा सकते हैं . हमारा राजा बहुत दूर की सोचता है .” एक बौना बोला .
दूसरे बौने ने और खुलासा किया – “ पूरी जनसँख्या अगर बौनी हो गयी तो अनाज बचेगा, भूखे काम भी खूब करते हैं, जनसँख्या नियंत्रण की गति भी बढ़ेगी और संगठन को शक्ति भी मिलेगी .”
“कितना कीमती विचार है !! फिर तो राजा को महंगाई को लेकर कुछ ठोस सोचना चाहिए .” गुलिवर ने कहा .
“राजा सोचते हैं, उनके मन की बात बौने जानते हैं . वे वैज्ञानिकों से भी बड़े वैज्ञानिक हैं . जिस तरह धूप से सोलर-इनर्जी निकलती है उसी तरह भूख से बाटम-इनर्जी निकलती है . टापू पर बाहरी लोग घुसे चले आते हैं . ....”
“बाहरी लोग कौन ?!”
“जैसे एलियन, जैसे इस वक्त तुम ... इनसे लड़ने के लिए बौनों में टापू प्रेम और मार मिटा देने का जज्बा होना चाहिए . भूखों में जीवन का कोई आकर्षण नहीं होता है इसलिए आधी रात को भी मरने मारने को तैयार रहते हैं .”
“लेकिन पिछली बार जब मैं आया था तो टापू के लोगों ने बहुत प्यार किया था मुझे . खूब खिलाया पिलाया था ...”
“टापू वही है, बौने वही हैं, सेना भी वही है . लेकिन राजा बदल गया है . गुलिवर ... तुम भले ही जाग रहे हो पर अब तीसरी यात्रा तुम्हारे भाग्य में नहीं होगी .” कह कर बौनों की भीड़ गुलिवर पर टूट पड़ी .
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