रात के बारह बज गए ! अभी तक
मुद्रा-मंत्री की आवाज सुनाई नहीं दी ! बिना उनकी गुड नाइट सुने उन्हें नींद नहीं आती
है । बेचैन नगर सेठ ने आखिर चिराग घिसा । एक दो घिस्सों के बाद आम तौर पर ‘हुक्म मेरे आका’ की आवाज सुनाई पड़ जाती है । लेकिन
आज चिराग में सन्नाटा पसरा लग रहा है ! जब कोई हाथ नहीं आता है तो रगड़ना उनकी
फितरत में है । चिराग रगड़ने या नहीं रगड़ने का कोई स्पष्ट नियम भी नहीं है । नियम
होता तो भी वे तोड़ देते । नियम तोड़ने का मजा नशे कि तरह होता है । बड़े आदमी छोटे
नशों से प्रायः मुक्त होते हैं । सो उन्होने
चिराग को इतनी ज़ोर से रगड़ा कि उसकी आवाज निकाल गई – “इस रूट की सभी लाइनें स्थगित
हैं । सरकार अभी मशीन में बंद है । कृपया कुछ दिनों बाद कोशिश करें ।“ नगर सेठ
चौंके, ये क्या बात हुई ! सरकार मशीन में बंद है लेकिन
मुद्रा-मंत्री छुट्टा होगा ! उन्होने हेंगार पर टंगे कोट के अंदरूनी जेब में हाथ
डाला, वहाँ कोई नहीं था । टेबल पर,
तकिये के नीचे देखा, नहीं था । वे हड़बड़ा गए, कहाँ रख दिया ! बड़े काम का था ।
आप सोच रहे होंगे कि मुद्रा-मंत्री
को भला कोई अपनी जेब में कैसे रख सकता है !! भई आप जेब में पूरा देश रख कर दुनिया
घूम सकते हैं, बस कुव्वत होना चाहिए । किसी
जमाने में जेबें और सूट नहीं होते थे तब लंकापति धन कुबेर को अपनी काँख में दबा कर
रखते थे । इसका मतलब अपने यहा तो परंपरा है, और जो परंपरा के
बूते पर ही खड़े हैं उन्हें कोई ऐतराज हो सकता है भला ! न चाहते हुए भी उनका हाथ
अपनी काँख की ओर चला गया । स्मेल का एक भभका सा गुजरा । अचानक उन्हें ख्याल आया कि
कितनी दिक्कत होती होगी कुबेर को, उस समय तो डीओ का चलन भी
नहीं था ।
“क्या हुआ इतनी रात को ? कुछ ढूंढ रहे हो ?” बेडरूम में पड़ी एक गोल सी आकृति
ने पूछा जिसे हर समय ब्यूटी पार्लर की जरूरत महसूस होती रहती है ।
“ सरकार .......”
“पेंट की चोर जेब में देखा ? अक्सर वहीं पड़ी रहती है । “
“अरे भागवान पूरी बात तो सुना करो ।
... सरकार मशीन में बंद पड़ी है अभी ! बिना सरकार के कारोबार करना कितना कठिन है
जानती हो !?” नगर सेठ ने अपनी चिंता बताई ।
“तो कल सुबह नई सरकार बनवा लेना
इसमें दिक्कत क्या है ?” आकृति ने बैठने की
कोशिश करते हुए कहा ।
“ हम जो भी बनाते हैं रॉ-माटेरियल
से बनाते हैं । सीधे सरकार बनाने का सिस्टम नहीं है देश में । मशीन से जो कुछ भी
निकलेगा उसी से सरकार बनेगी ।“
“अच्छा देखो, पहले कहे देती हूँ हेल्थ मिनिस्टर ढंग का बनवाना । मेरा वेट एक सौ तीस
केजी से नीचे नहीं जा रहा है । और एजुकेशन मिनिस्टर भी ज्यादा समझदार नहीं होना
चाहिए, दोनों बेटे रियल लाइफ में डाक्टर-डाक्टर होना (खेलना)
चाहते हैं । “
“तुम अपना रोना बंद करोगी ! मुझे
मुद्रा-मंत्री की चिंता हो रही है । कोई पढ़ा लिखा मुद्रा का जानकार फंस गया तो
मुश्किल होगी । “
“इसमें मुश्किल की क्या बात है !!
क्या पढ़े लिखे दूसरी दुनिया से आते रहे हैं ? और
पढ़ा लिखा चुनाव क्यों लड़ेगा, माना कि लड़ भी लेगा तो जनता उसे
वोट क्यों देगी ? जनता पर भरोसा रखो और सो जाओ शांति से । “ आकृति
लुढ़क गई, आमतौर पर जिसे लेटना कहते हैं ।
------