संस्कारवान लोकसेवक घर में पोर्न नहीं देखते हैं । जनता ने उन्हें इस काम
के लिए बाकायदा चुन कर सदन में भेजा है और वे जनदेश का सम्मान करते हैं । पोर्न से
उन्हें आध्यात्म का अनुभव और ज्ञान प्राप्त होता है । पोर्न पारायण एक प्रकार की
भक्ति है जिसमें आस्थावान कभी भी साधना में लीन हो सकता है । देश जड़ों तक आजाद है,
जिस किसी सेवक को पोर्न की तलब लगे वो
फौरन अपना आईपाड निकाल कर अपनी ज्ञान पिपासा को अधिकारपूर्वक शांत कर सकता है ।
देखने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि
किसी डाक्टर ने नहीं कहा है कि देखने से आँखों का केन्सर वगैरह होता है । सदन में
बहस हो रही हो , कोई बिल-विल पास
हो रहा हो , किसी मुद्दे पर
मतभेद हो उस समय पोर्न शान्ति बनाए रखने में बहुत सहायक होता है । हमारे सदन मच्छी
बजार के नाम से दुनिया में बदनाम हैं । उनकी प्रतिष्ठा कायम करना लोकसेवकों की
प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है । कहने वाले कहते हैं कि हमारे सदनों में अपराधी
प्रवृत्ति के लोग चुन कर घुस आए हैं । कइयों पर तो हत्या तक के आरोप हैं । सदन में
चाकू-छूरे या पिस्तौलें निकलें यह अच्छी
बात नहीं है । सदन एक तरह से माननीय सभासदों की यज्ञशाला है । यहां आईपाड के अलावा
और कुछ भी निकालना शोभा नहीं देता है ।
कुछ लोग पोर्न देखने की निंदा की, विशेषकर अपने को शरीफ सिद्ध करने वालों ने । इस पर जनमत कराने की आवश्कता
है कि देश को घोटाले करने वालों से नुकसान हो रहा है या पोर्न देखने वाले नेताओं
से ? मूर्ख से मूर्ख बुद्धिजीवी
भी कहेगा कि पोर्नाहुती में व्यस्त नेता देश के लिए बेहतर है । सुना ही होगा कि
यदि किसी का भला होता हो तो दाग बेहतर हैं । नेता अगर मेहरबानी करके अपनी सक्रियता
कुछ समय के लिए बंद कर दें तो देश जनता के मजबूत कंधों के भरोसे भी तरक्की कर सकता
है । लेकिन विरोधी दल वाले बहुत चालाक हैं , सदन में हल्ला मचाते हैं और खुद घर में पोर्न का
पारायण करते हैं । इससे देश , सदन
और घर का माहौल खराब होता है । लेकिन हमारी पार्टी तीनों की गरिमा का घ्यान रखती
है । हमारे लोकसेवक संस्कृति के प्रति बहुत निष्ठावान हैं । घर में डांटना,
फटकारना और हल्ला मचाना हजारों वर्ष
पुरानी पुरुष प्रधान संस्कृति की रक्षा करना भी है । पार्टी के पोर्न-पुरुष वास्तव
में हमारे समाज के नर-रत्न हैं । सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द ‘पोर्नपाल-बिल’ लाए और भारी बहुमत से इसे पास कर इतिहास रचे । एक बार
सदन में पोर्नपाठ लीगल हो जाएगा तो उपस्थिति भी बढ़ जाएगी और शांति भी । विरोधियों
को अल्ल-फल्ल बकने का मौका नहीं मिलेगा वहीं दुनिया के तमाम देशों को जहां
लोकतंत्र नहीं है वहां लोकतंत्र की मांग जोर पकड़ेगी । आशा है पाठक सहमत होंगे ।
पोरनाम ..... ।
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बहुत तीखा वयंग है , मुबारक ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधुदीप जी .
हटाएंजवाहर भाई आप का जवाब नहीं .. साधुवाद
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