पार्षद का चुनाव तो सोमती देवी ने जीता था लेकिन लोगों के सामने उनके पति मुंहजोरसिंह
रौनक अफरोज़ होते आ रहे हैं । इधर रिवाज है कि औरत अगर बुलंद नसीब हो तो उसके हाथ
की लकीरें नोच कर अपनी मुट्ठी में भर लो । लेकिन सोमती देवी की बात जुदा है । वे
खानदानी और हुकुमत मिजाज हैं, इसीलिए
चुनाव लड़ा, खूब खर्च किया और जीत
भी गईं । उनके पास रसोई चलाने के लिए खानसामा, कार चलाने के लिए ड्रायवर और पार्षदी चलाने के लिए पति
है । वे खानसामा एक बार और ड्रायवर तीन बार बदल चुकी हैं, इसी डर से खानसामा और पति अदबोआदाब के साथ काम करते
हैं । मुंहजोरसिंह को इस माहौल की आदत है । एक जमाना था जब वे सोमती देवी के पिता
के घर में विदेशी लिक्विड सोप से उनकी कारें धोया करते थे । आप भी जानते हैं कि
काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है, बस आदमी को ‘दिल लगा के’
, काम करना चाहिए । मुंहजोरसिंह के
भाग्य में सोमती देवी थीं सो मिलीं, किन्तु उन्हें अपनी हैसियत मालूम है । सोमती देवी को वे आज भी ‘मैडम’ कहते हैं क्योंकि उन्हें ‘मैडम’
सुनने की आदत है ।
सभ्य समाज में पतियों के कई प्रकार पाए जाते हैं । लेकिन जब से लोकतंत्र
मजबूत हुआ है और महिलाओं को भी चुनाव लड़वाया जाने लगा है पतियों की एक प्रजाति और
पैदा हो गई है - पार्षद-पति । एक आम-पति निजी संपत्ति की तरह होता है यानी
प्रायवेट प्रापर्टी, पार्टी कहीं
भी धोए, सुखाए, बिछाए, नो ओब्जेक्शन । पार्षद-पति नगर निगम की संपत्ती होता
है, यानी पब्लिक प्रापर्टी । नगर
निगम अपने कर्मचारियों को वेतन देता है लेकिन पार्षद-पति ! बिन फेरे हम तेरे ।
हुकूमत भ्रष्टाचार की तरह एक सिस्टम का है । पता नहीं पड़ता कि यह उपर से
नीचे जाता है या नीचे से उप्पर । इसलिए हर पार्षद-पति अपने को क्षेत्र का लगभग
प्रधानमंत्री समझता है । ऐसा करना गैरकानूनी या अनैतिक नहीं है । इससे उसका आत्मविश्वास
बढ़ता है और उसे लगता है कि वह मामूली नहीं राष्ट्रीय स्तर की किसी पोस्ट पर है ।
लेकिन लोकतंत्र में ओवर कान्फिडेन्स से दिक्कतें भी होती हैं । एक बार लाल पट्टी
पर ‘पार्षद’ लिखी कार में मुंहजोरसिंह सार्वजनिक शौचालय का
विधिवत उद्घाटन करने पहुंचे । आदमियों के हौसले तो बुलंद थे पर औरतों ने विरोध
किया कि - हमारी पार्षद ‘मैडम’
हैं, हमको ‘वोई’
होना । वोई बोले तो एकदम ‘वोई’ ।
मुंहजोरसिंह ने समझाया कि - ‘‘ मैं पार्षद-पति हूं । आप लोग यह मान कर चलिए कि मैडम ही आपके सामने हैं और
वही उद्घाटन कर रही हैं ।
‘‘ ऐसा है तो साड़ी-पेटीकोट पहन कर आओ । हमने औरत को पहचान
और सम्मान दिलाने के लिए ही उनको वोट दिया है । ’’ औरतें नहीं मानी और उन्होंने ‘नारीशक्ति जिन्दाबाद’ के नारे भी लगा दिए ।
‘‘ अरे भैनजियों , मान जाओ, मेरी कुर्सी छिनवाओगी क्या आप लोग !? ’’
‘‘ मान तो जाएं , लेकिन अपनी नेता के लिए हम चूड़ी, बिन्दी, बिछिया और
मंगलसूत्र लाए हैं , वो किसे
पहनाएं ? ’’
‘‘ मुझे पहना देना माता-भैनों , इतनी जिम्मेदारी तो बनती है मेरी । ’’ मुंहजोरसिंह ने वैसे ही कहा जैसे टीवी पर
अक्सर सुना जाता है ।
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