रविवार, 9 जून 2013

पार्षद-पति !

पार्षद का चुनाव तो सोमती देवी ने जीता था लेकिन लोगों के सामने उनके पति मुंहजोरसिंह रौनक अफरोज़ होते आ रहे हैं । इधर रिवाज है कि औरत अगर बुलंद नसीब हो तो उसके हाथ की लकीरें नोच कर अपनी मुट्ठी में भर लो । लेकिन सोमती देवी की बात जुदा है । वे खानदानी और हुकुमत मिजाज हैं, इसीलिए चुनाव लड़ा, खूब खर्च किया और जीत भी गईं । उनके पास रसोई चलाने के लिए खानसामा, कार चलाने के लिए ड्रायवर और पार्षदी चलाने के लिए पति है । वे खानसामा एक बार और ड्रायवर तीन बार बदल चुकी हैं, इसी डर से खानसामा और पति अदबोआदाब के साथ काम करते हैं । मुंहजोरसिंह को इस माहौल की आदत है । एक जमाना था जब वे सोमती देवी के पिता के घर में विदेशी लिक्विड सोप से उनकी कारें धोया करते थे । आप भी जानते हैं कि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है, बस आदमी को दिल लगा के’ , काम करना चाहिए । मुंहजोरसिंह के भाग्य में सोमती देवी थीं सो मिलीं, किन्तु उन्हें अपनी हैसियत मालूम है । सोमती देवी को वे आज भी मैडमकहते हैं क्योंकि उन्हें मैडमसुनने की आदत है ।
सभ्य समाज में पतियों के कई प्रकार पाए जाते हैं । लेकिन जब से लोकतंत्र मजबूत हुआ है और महिलाओं को भी चुनाव लड़वाया जाने लगा है पतियों की एक प्रजाति और पैदा हो गई है - पार्षद-पति । एक आम-पति निजी संपत्ति की तरह होता है यानी प्रायवेट प्रापर्टी, पार्टी कहीं भी धोए, सुखाए, बिछाए, नो ओब्जेक्शन । पार्षद-पति नगर निगम की संपत्ती होता है, यानी पब्लिक प्रापर्टी । नगर निगम अपने कर्मचारियों को वेतन देता है लेकिन पार्षद-पति ! बिन फेरे हम तेरे ।
हुकूमत भ्रष्टाचार की तरह एक सिस्टम का है । पता नहीं पड़ता कि यह उपर से नीचे जाता है या नीचे से उप्पर । इसलिए हर पार्षद-पति अपने को क्षेत्र का लगभग प्रधानमंत्री समझता है । ऐसा करना गैरकानूनी या अनैतिक नहीं है । इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और उसे लगता है कि वह मामूली नहीं राष्ट्रीय स्तर की किसी पोस्ट पर है । लेकिन लोकतंत्र में ओवर कान्फिडेन्स से दिक्कतें भी होती हैं । एक बार लाल पट्टी पर पार्षदलिखी कार में मुंहजोरसिंह सार्वजनिक शौचालय का विधिवत उद्घाटन करने पहुंचे । आदमियों के हौसले तो बुलंद थे पर औरतों ने विरोध किया कि - हमारी पार्षद मैडमहैं, हमको वोईहोना । वोई बोले तो एकदम वोई
मुंहजोरसिंह ने समझाया कि - ‘‘ मैं पार्षद-पति हूं । आप लोग यह मान कर चलिए कि मैडम ही आपके सामने हैं और वही उद्घाटन कर रही हैं ।
‘‘ ऐसा है तो साड़ी-पेटीकोट पहन कर आओ । हमने औरत को पहचान और सम्मान दिलाने के लिए ही उनको वोट दिया है । ’’ औरतें नहीं मानी और उन्होंने नारीशक्ति  जिन्दाबादके नारे भी लगा दिए ।
‘‘ अरे भैनजियों , मान जाओ, मेरी कुर्सी छिनवाओगी क्या आप लोग !? ’’
‘‘ मान तो जाएं , लेकिन अपनी नेता के लिए हम चूड़ी, बिन्दी, बिछिया और मंगलसूत्र लाए हैं , वो किसे पहनाएं ? ’’
‘‘ मुझे पहना देना माता-भैनों , इतनी जिम्मेदारी तो बनती है मेरी । ’’ मुंहजोरसिंह ने वैसे ही कहा जैसे टीवी पर अक्सर सुना जाता है ।


                                                                         ----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें