मंगलवार, 11 जून 2013

भयंकर ईमानदार !!

         
मूलरूप से वे धरती-पकड़, जमीन-जकड़ हैं और भूमाफ़िया कहने वालों से बकायदा खफ़ा हो जाते हैं । सब जानते हैं कि वे प्रापर्टी के पुराने कीड़े हैं । किसी भी चीज में या प्रापर्टी में एकबार उनके नाम का कीड़ा लग जाए तो वह उनके पक्ष में नष्ट हो जाती है । इनदिनों वे राजनीति में आ गए हैं और राजनीति के भी बाकायदा कीड़े हो गए हैं । 
बहुत से परंपरागत नेता अपने पाले प्रतिभावान गुण्डों को कार्यकर्ता कहते हैं । कुछ प्रगतिशील नेता इन्हें पट्ठे, चेले, साथी, बाहुबली, बांए-हाथ वगैरह भी कहते पाए जाते हैं । लेकिन ‘वे’ अपने कार्यकर्ताओं को पिल्ले कहते हैं, जो वक्त जरूरत ‘छू’ लगाने के काम आते हैं । उनकी देखरेख और दूध पर पले पिल्ले उनके प्रति ‘किसी की भी जानलेवा’ स्तर तक वफादार हैं और विरोधी को फाड़ खाने में सक्षम भी । ‘पिल्ले’ जहां-तहां गुर्राते रहते हैं कि- राजनीति में हमारे नेताजी जैसा ‘भयंकर ईमानदार’ शायद ही कोई दूसरा हो । लोगों को सहमत होना पड़ता है । लोकतंत्र असहमति का अधिकार अवश्य देता है लेकिन सामान्य समझदार भी जानता है कि यहां सहमत होना ही सुरक्षित होना है । धंधे में आजकल ईमानदार मिलते कहां है । पीले का धंधा करने वालों के हाथ भी काले दिखाई दे जाते हैं । फिर वे तो घोषित रूप से राजनीति के कीड़े हैं । वे कहते हैं धंधा कोई भी बुरा नहीं होता, चाहे राजनीति ही क्यों न हो । धंधे में शरम कैसी, लोग जूता फैंके या ताना मारे !! प्रतिभाशाली कीड़े घूरे से भी सोना बना लेते हैं  । कहने को नेता जनसेवक कहलाता है ! लेकिन जो भाग्य लिखा कर लाए हैं वे लोकतंत्र में भी राजा ही होते हैं । पहले भी उनके तहखानों में खजाना होता था , आज भी होता है । पहले प्रजा जयजयकार करती थी आज जनता करती है । पुराने जमाने में पेड-हिस्ट्री लिखवाई जाती थी आज पेड-न्यूज । उंगली उठाने वालों का मस्तकाभिषेक पहले भी किया जाता था आज भी होता है । कुछ नहीं बदला सिवा इसके कि पहले राजा मुस्कराते थे तो ईनाम देते थे , आज मुस्कराते हैं तो बरबाद कर देते हैं ।
                      खैर, आपको इन सब बातों से क्या लेना-देना । आप तो बस इतना भर जानिए कि वे भयंकर ईमानदार हैं । राजनीति के पूरे जंगल में उनकी ईमानदारी का आतंक है । वे ईमानदारी से बत्तीस रुपए रोज भी नहीं कमा पाते हैं इसलिए नियमानुसार गरीबी की रेखा की नीचे होने का दवा है उनका । सरकार गरीबी हटाने की , या यों कह लीजिए कि गरीबी मिटाने की अनेक योजना बनाती आ रही है । वे इन योजनाओं के भी कीड़े हैं । सबकी गरीबी मिटेगी , लेकिन पहले उनकी मिटेगी तब अगलों का नंबर भी आएगा । 
                     आंखों में तैरते लाल डोरे उनके सेवक होने का सबूत है । वे कहते हैं कि सेवाभावना उनके खून में है और खून के आखरी कतरे तक वे देश की सेवा करेंगे, कोई माई का लाल उन्हें सेवा करने से रोक नहीं सकता है । कोई यानी विरोधी वगैरह उन्हें सेवा से रोकने का प्रयास करेगें तो वे अपने पिल्लों के जरिए उसका खून पी जाएंगे लेकिन देश को अपनी सेवा से वंचित नहीं करेंगे । देश को चाहिए कि उनके जैसे त्यागी और समर्पित व्यक्ति को महापुरुष घोषित कर अपना कर्तव्य पूरा करे । वरना वे ईमानदार हैं और सेवाभावी भी । किसी दिन  राष्ट्र्पति भवन में घुस गए तो ‘भारत रत्न’ उठा लाएंगे और फिर लौटाएंगे नहीं । बोलो जै हिन्न !
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