मंगलवार, 18 जून 2013

पुलिस आपकी सेवक मात्र है.

                 कहने को तो पुलिस जनता की, यानी हम-आप जैसे नाचीजों की सेवक है लेकिन पूजन यानी ठुकाई-पिटाई पर उतर आए तो अच्छे-अच्छों के ‘देव’ उतार देती है । आदमी पुलिस के चक्कर में नहीं पड़े तभी तक हाड़मांस का आदमी जैसा है, पूजा-पत्री के बाद एक्सरे कराओ तो हड्डियों की जगह भूसा दिखाई दे सकता है । अपने भियाजी को ही लो, एक जमाने में पुण्य आदि कमाने के लिए छोटी-मोटी वसूली, मारपीट, रेप-वेप, गुण्डई-लफंगई जैसी पवित्र जनसेवा किया करते थे, और अक्सर रुतबा बढ़ाने के लिए शौकिया अंदर-बाहर होते रहते थे। जब वे वरिष्ठ-गुण्डे हो गए तो अंदर पुलिस ने उनकी पूजा बढ़ाई और उन्हें प्योर-दिगम्बर अवस्था में औंधा लटका कर, पूरे सैनिक सम्मान के साथ, बाकायदा जूते मारती थी और गिनती नहीं थी । मजबूरी थी, क्योंकि पुलिस को गिनती आती नहीं थी। फिटनेस के लिए पुलिस को बहुत परिश्रम करना पड़ता है । लेकिन पारदर्शिता और स्पष्टता के मामले में उनका कोई हाथ नहीं पकड़ सकता है । थाने में उन्होंने बड़े-बड़े अक्षरों में, हिन्दी में, सभ्यतापूर्वक साफ-साफ लिखवा रखा है कि ‘पुलिस मात्र आपकी सेवक है, अकाउंटेंट नहीं’ । जाहिर है सूचना के अधिकार के तहत कुछ आंकड़े ‘भियाजियों’ के अलावा पुलिस और व्यवस्था के सम्मानार्थ सार्वजनिक नहीं किए जा सकते थे । लेकिन फिर भी अपने भियाजी का तजुरबा इतना बरीक रहा है कि पहले दो-चार जूतों में ही वे जान जाते थे कि पुलिस वाले भिंड-मुरैना के हैं या उज्जैन के । भिंड-मुरैना के पुलिस वाले जरा भगवान टाइप के लोग होते हैं । एक बार कोई इनके हाथ में आ जाए तो उसकी तकदीर लिख कर नीचे जहां कहीं जगह बची हो, बाकायदा अपने दस्तखत भी कर देते हैं । उज्जैन-पुलिस जरा ‘भगत टाइप’ होती है, जूते ऐसे मारती है जैसे श्रद्धालू आरती में ताली मार रहा हो । भियाजी को उज्जैन पुलिस मुफीद पड़ती है, वो पीटते वक्त गाली की जगह पूरी श्रद्धा से ‘जै महाकांल‘ का उच्चारण भी करते हैं तो लगता है कि वाकई पूजा हो रही है । वे ग्वालियर पुलिस की तरह-भूसा भर देने जैसे आतंकी शब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं, वे जब भी बोलते हैं भस्म-आरती कर देने की बात ही कहते हैं । 
               भियाजी आज की डेट में बड़े आदमी हैं और हर किसी को ‘मूं-नी’ लगाते हैं, लेकिन जब अपने खासम खासों के बीच बैठते हैं तो बताते हैं कि उज्जैन पुलिस से जूते खाना सचमुच में एक दैवीय अनुभव है, समझ लो डायरेक्ट बाबा का ‘आसिरवाद’ है । आज उनके पास गाड़ियां हैं, बंगले हैं, बैंक बैलेंस है, चमचे हैं, पार्टी की लायसेंसी टोपी है और वही पुलिस उनकी सुरक्षा और सलाम के लिए भी है ! और क्या चाहिए किसी भले आदमी को इस सुन्दर व्यवस्था से ! इसीलिए वो लोकतंत्र को जिन्दा रखने की हिमायत पूरी ताकत से करते हैं । लोकतंत्र नहीं होता तो अभी भी वे कहीं पुलिस की हेल्थ बनवाने में काम आ रहे होते ।
                    खैर, सब कुछ पा लेने के बाद हर प्रतापी आदमी प्रसिद्ध भी होना चाहता है । भाग्य का खेल है जिसमें गोटी होती है न पासे । लेकिन यह भी सही है कि नंगे के नौ ग्रह बलवान होते हैं । भियाजी के मामले में तो किसी को शक होना ही नहीं चाहिए, वे स्वयं दसवें ग्रह हैं । उनके मन में कोई बात आ जाए तो पूरी होना ही है । ऐसा आदमी मंच पर बैठ कर आराम से सांस भी ले तो आती को अनुलोम और जाती को विलोम कह कर लोग वाह वाह करते हैं । भियाजी को इधर काफी स्कोप दिख रहा है इनदिनों । विलोम के तो वे मास्टर हैं ही, सोचा कि आधी कला तो आती है, आधी ही आजमा लें तो भक्त भेड़ों की तरह आ गिरेंगे । इनदिनों वे विलोम करवा रहे हैं । उनके प्रभाव से व्यवस्था विलोम, शिक्षा विलोम, सत्ता विलोम, आस्था विलोम, श्रद्धा विलोम, विश्वास विलोम, सब विलोम ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें