मंगलवार, 9 अगस्त 2022

हमारी अपनी सरकार


 



            याद कीजिये शुरू शुरू में जब आप ‘सरकार’ से रू-ब-रू हुए तो अन्दर तक गुदगुदा रहे थे । बहुत ज्यादा पसंद थी, इतनी कि आपसे कुछ कहा नहीं जा रहा था । पीले पीले लड्डू फूट रहे थे और मन में अरमानों का सोता बह निकला था । घर द्वार बेहाल था, लगा इसके आने से स्वर्ग बन जायेगा, अम्मा-बाबूजी को गरम रोटी मिलेगी । तभी कांपते हाथों से उसने आपके पैर छू लिए थे । हालाँकि आपकी मंशा नहीं थी पैर छुवाने की लेकिन छू लिए । एक परंपरा है अलिखित, जब भी सरकार सत्ता के करीब आना चाहती है हाथ जोड़ती है, पैर छूती है । उसने पैर छुए और आपको एक जबरदस्त फिलिंग हुई । लगा कि आप महान टाईप और नियर टू ग्रेट हैं । चरण स्पर्श रोकने के बहाने आपने उनके हाथों को सफलतापूर्वक छू लिया था । दिखा तो नहीं पर स्पार्क जैसा कुछ हुआ, करंट भी लगा लेकिन फ्यूज नहीं उड़ा । आप कुछ समझे नहीं, थोड़ी कोशिश करते तो समझ जाते कि बैटरी फुल चार्ज है । कुछ झटके ऐसे होते हैं जो मजा देते हैं । मन तुरत फुरत में ‘दिल ओ जान’ कुरबान कर डालने के लिए मचलने लगा था ।  लेकिन ‘मन थोड़ा धीर धरो’ नाम की पेरासेटामॉल ने मदद की और कुरबानी का बुखार डाउन होने लगा ।

            आखिर वो दिन भी आ गया जिसका इंतजार था । कुछ प्रक्रियाओं के तहत ‘सरकार’ पहले बाएँ बैठी । एकदम आज्ञाकारी रोबोट लग रही थी, लगा अभी कुछ करने को कहेंगे तो फट से कर देगी । आपकी जैसे रीढ़ की हड्डी तन गयी । बड़प्पन की फीलिंग चुपके से आ कर ठहर गयी । लगा था सभापति से लगा कर राष्ट्रपति तक सारे पति आप ही होने जा रहे हैं । ‘सरकार’ ने सर झुकाते हुए धीरे से कहा था कि आप स्वामी हैं और मैं सेवक हूँ आपकी । सुनते ही आपको लगा था कि बदन में हवा जैसा कुछ भर गया । याद करो उन दिनों आप फूले फूले से डोलने लगे थे । पल्ले बंधी नयी ‘सरकार’ दीवाना करे दे रही थी । रोज नए सपने, रोज रोज नए वादे, रोज नए नए सुख ! एक दिन बोली थी ‘सुनिए जी, हमारा बेटा होगा तो उसका नाम विकास रखियेगा’ । आपने कहा अगर बेटी हुई तो ? ‘तो उसका नाम उन्नति रखियेगा’, वो बोलीं । आप विकास और उन्नति के सपनों में इतने खो गए कि जुड़वां की उम्मीद करने लगे । सरकार मोती होती गयी लेकिन विकास नहीं हुआ । जब भी टेस्ट करवाओ रिपोर्ट नेगेटिव आती रही ।

             सरकार को एक बार यह साफ हो जाये कि वो सुरक्षित स्थिति में आ गयी है तब वह शासन करने लगती है । गरमा गरम रोटी, घर को स्वर्ग बनाने की सपने कब कुम्हला कर सूख गए पता नहीं चला । मौका देख कर एक दिन आपने हिम्मत की और पूछ लिया कि ‘सरकार, कभी तुमने कहा था - ‘स्वामी-प्राणनाथ, तुम आगे मैं पीछे साथ साथ ! भूल गयीं क्या ?!’ वो बोलीं ‘जुमले थे, जुमलों का क्या ! इन पर ध्यान मत दो । सरकार तुम्हारी है तुम्हारी ही रहेगी, और ये कोई छोटी बात नहीं है । गर्व करों इस बात पर । तुमने चुना है, तुमको ही पालना है, जितना कमाते हो उतना काफी नहीं है मेरे लिए । कुछ पार्ट टाइम भी किया करो ।‘ सकुचाते हुए आपने पूछ लिया –‘और विकास ? ... अभी तक नहीं हुआ !’

            ‘इसके लिए तुम जिम्मेदार हो ।‘ सरकार ने चिढ़ते हुए कहा ।

            इतना सुनते ही कहीं गुलदान सा कुछ गिर कर टूट गया । सरकार ने आदेश दिया – “झाड़ू उठाओ और साफ करो फटाफट, सावधानी से करना, हाथ में किरच न लगे ।“

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1 टिप्पणी:

  1. सर क्या शानदार लिखते हैं आप । पत्नी के बहाने सरकार और सरकार के बहाने पत्नी दोनों को बहुत शिद्दत से लपेट लिया आपने ।

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