पार्टी के कुछ उपेक्षित जनों ने विज्ञापननुमा बयान दिये हैं कि
वे ठीकरे फुड़वाने के लिए अपना सिर प्रस्तुत करते हैं। लेकिन ठीकरों की तुलना में
उनके सिर बहुत छोटे हैं। अगर फोड़ने की कोशिश की गई तो सिर के मुआवजे उपर से गले पड़
जाएगें। फिर इसमें त्याग और बलिदान की बू आ रही है। वे जानते हैं कि इस वक्त कोई
ठीकरे फुड़वा लेगा तो कल उसके गले में उन्हें खुद माला डालना पड़ेगी, इज्जत का एक आसन देना पड़ेगा, बावजूद इसके क्या गैरंटी कि कल वंश परंपरा के दावों को भी
वह स्वीकार कर लेगा।
कहने को पार्टी में जगह जगह हार के कारणों पर चिंतन बैठक चल रही
है। किन्तु वास्तव में उनकी चिंता उपयुक्त सिर की तलाश है। बच्चों को जोखिम में
नहीं डाल सकते, उन्होंने
तो अभी अभी सिर उठाना सीखा है। अभी तो उन्हें ठीकरों का मतलब भी मालूम नहीं है। यह
भी नहीं पता कि वे फूटते कैसे हैं। पता चलेगा तो शायद वे राजनीति से दूर ही रहना
चाहें।
अगर कहीं ऐसा हो गया तो भी दिक्कत होगी।
पार्टी जिन्हें अपना चाणक्य कहती आई है, उन्हें बुलाया गया। पूछा कि – “आप ही रास्ता बताइये .... कि ठीकरे भी फूट जाएं और शीर्षस्थ
सिर
भी बच जाएं।“
बहुत विचार के बाद वे बोले – “हमें इतिहास में से कोई सिर ढूंढ़ना चाहिए। हमारा इतिहास
महत्वपूर्ण सिरों से भरा पड़ा है। ठीकरों की तुलना में ये सिर बड़े भी हैं। समय समय
पर हमने उन्हें श्रेय दिया है, उनके माथे पर पगड़ी बांधी है, गले में माला पहनाई है। आज समय
आया
है कि वे बुरे वक्त में पार्टी के काम आएं। “
‘‘” ये नहीं हो सकता। इतिहास
में तो वंश है। “ उचित व्यक्ति ने
आपत्ती
की।
‘‘ “वंश
के अलावा भी हैं इतिहास में । “
‘‘” वो पार्टी का इतिहास नहीं
है। बाकी किसी को हम इतिहास नहीं
मानते।
आप कोई और रास्ता बताइये।“
‘‘ “मीडिया
के सिर फोड़ दीजिए।“ चाणक्य बोले।
‘ “दुकान बंद नहीं कर रहे हैं हम। “ उचित
व्यक्ति ने नाराजी से कहा।
‘” फिर तो एक ही तरकीब है, जनता के सिर फोड़ दो। आम आदमी
हर
समय काम आते हैं।“
‘‘” ठीक, आम आदमी का सिर सही
रहेगा। एक पत्थर से दो
शिकार।
....”
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