शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

नई सरकार प्याज ज्यादा खाती है



राजनीति जिनकी बोटी-रोटी है उनके लिए एक एक पल काटना कितना मुश्किल होता है ये
चवन्नी कार्यकर्ता भी अच्छी तरह जनता है। हमारा तो फिर भी ठीक है भिया, हाई कमान का सोचो, उनपे क्या बीतती रही होगी। अपनी बेरोजगारी छुपते हुए दूसरों की बेरोजगारी का मुद्दा उठाना कितना मुश्किल काम है। कोई पलट के पूछ लेता कि भिया इधर से ये डालो और उधर वो निकाल लो तो क्या जवाब देते ! कहते हैं बिन गृहणी घर भूत का डेरा। जिसे रोज रात भूतों के बीच बिताना पड़े उस ऊँघते भले आदमी से दिन में कोई क्या उम्मीद कर सकता है। बोलने जाते हैं कुछ और मुंह से निकलता है छुक !! घर में कोई देसी बुजुर्ग होता तो चाल देख कर हाल समझ लेता। लेकिन बालहठ है - मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं !  मईया ने बहुत समझाया कि --चंदा ते अति सुंदर तोहि, नवल दुलहिया ब्यैहौं ॥   इधर कुर्सी कुर्सी ना हुई चन्द्र खिलौना हो गई। यशोदा ने तो थाली में चाँद दिखा कर भोले लल्ला को समझा लिया था । अब टीवी पर कुर्सी देख कर भूला लल्ला और मचलता है।

देखो भिया ऐसा है कि लोग किसी को थाली में रखके सत्ता नहीं देते हैं।  जनता की परख, जनता की समझ और जनता की राय लोकतंत्र में सबसे ऊपर होती है। यही सबसे बड़ा फच्चर है सिस्टम में, वरना इतिहास गवाह है बच्चों तक को तख्त नसीब होते रहे हैं । अपन ठहरे पीवर जनता, वोट डालने का 30 साल का तजुर्बा है अपने पास। नेता की शक्ल देख के ताड़ लें कि लेने आया है या देने। चुनावों में हर पार्टी घूँघट हटा के और घुंघरू बांध के मंच पर आती है। जनता ना कहे तो भी छम छम और दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए। जिन्हें कभी फूटी आँख नहीं देखा वे तक नूर-ए-चश्म हो जाते हैं। हाथ में वोट दबाए बैठे अद्दा भाई, पिद्दा भाई बिना राज और राजवाड़े के महाराज हैं । एक फीलिंग होती है, ऐसी कि मूंछमुंडे भी अंदर दबी मूछों पर ताव देने लगते हैं। लोकतंत्र में राजे महाराजे भी मात्र एक फीलिंग ही हैं । लाल बत्ती हो जाए तो सिपाही के सामने कार उन्हें भी रोकना पड़ती है । सिपाही नहीं हो तब तो सभी बाश्या हैं ।

खैर छोड़ो उनको अपन बात दूसरी कर रहे थे सरकार की।  तो समझ लीजिए कि सरकारें गन्ने की तरह पेलने लायक होती हैं । इनको एक दो बार से ज्यादा पेल नहीं सकते । मतलब यह कि जितना निचोड़ सकते हैं उतना निचोड़ लिया । उसके बाद बचा क्या फोथरा फोथरा । इसलिए अपुन को नई सरकार होना । नई सरकार हमेशा प्याज ज्यादा खाती है । देख लो आते ही किसानों का लिया फट से दिया कर दिया । पैसा दे कर वोट लेने की होड़ मची है । वो दिन दूर नहीं जब बोलियों से नीलम होंगे वोट । कानून इजाजत नहीं देगा तो कल्याण योजना बनायेंगे, पर बोली लगाएंगे । बस खरीदने वाले की छाती चौड़ी होना चाहिए । दुनिया में हर चीज है बिकती है, सांसद, विधायक, मंत्री-संतरी सब । बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ?
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सोते हुए जागता देश !



नए वर्ष में मैंने संकल्प लिया कि सुबह देर तक सोया करूंगा । इसके दो कारण हैं ,पहला तो यह कि मैं गैर राजनीतिक आदमी हूँ सो अपने लिए संकल्प वही करना चाहता हूँ जिसे पूरा कर पाऊँ । सुना है प्रधान मंत्री जी मात्र चार घंटे की नींद लेते हैं और बीस घंटे काम में लगे रहते हैं !! बताइये ! कौन समझदार आदमी इनसे प्रेरणा ले कर मुसीबत मोल लेगा ? सरकारी महकमों तक में अगर छापामारी की जाए तो पता चलेगा कि ज़्यादातर लोग चार घंटे से अधिक काम करना बड़े संघर्ष से प्राप्त हुई भारत की आज़ादी का अपमान समझते हैं । लोकतन्त्र है भई, वोट दिया है खनकता हुआ, क्या कहते हैं मंहगा वाला यानी मूल्यवान । ऐसे में मनमर्जी की नींद लेने का अधिकार तो बनता ही है । सरकारें जब कर्जा माफ कर रही हैं, मुफ्त इलाज करवा रही हैं, खाना-दाना दे रही हैं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और ब्याह शादी तक करवा रही हैं, बैंके जबरिया लोन दे रहीं हैं पकड़ पकड़ के तो रोना किस बात का ! और भला कोई जागे भी तो क्यों !? जनता सोई रहे पालने में तो लोरियों का टोटा है क्या ?  प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है, एक कुंभकरण योजना देता है तो दूसरा महा कुंभकरण योजना का वादा करता है । पाठ्यक्रम में बच्चे पढ़ेंगे आलू से सोना बनाओ । अगर लोग सोएँगे नहीं तो सपने कैसे देखेंगे ? सपनों का ऐसा है कि देखने वालों का भविष्य तय करें न करें पर दिखने वालों का अवश्य तय करते हैं । मैं एक सच्चा नागरिक, हवा का रुख समझता हूँ तो बुरा क्या है अगर देर तक सोते रहने का संकल्प ले लूँ !
दूसरा कारण कबीर हैं, कह गए हैं  सुखिया सब संसार, खाबै और सोवै । दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै । आप बताइये, रोने की शर्त पर जागना कौन चाहेगा । जागना जोखिम भरा है, जागने में डर बहुत है, माँ बच्चों को कहती है, सो जा नहीं तो गब्बरसिंग आ जाएगा  और समझदार बच्चा सो जाता है, माँ भी सो जाती है, दोनों को सोता देख मरद बेफिक्री से पड़ौस में कहीं निकाल जाता है । आज़ादी समझो कि मुकम्मल हो जाती है । मरदों की जिम्मेदारिया बड़ी होती हैं इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है । कर्मयोगी केवल कर्म करते हैं और प्रायः फल का संज्ञान नहीं लेते हैं । लेकिन दुनिया का क्या करोगे भाई ! दूसरे के गिरेबान में झाँकने का चलन जो है ।
चचा जल्दी उठ गए, सोचा सुबह की हवाखोरी कर लें । जाते हुये साल ने बताया कि चीन में बीते साल में पचपन लाख बच्चे पैदा हुए । चचा ने सुना तो मुंह में भरा पान मसाला जिसमें महकती बुड्ढा तंबाकू भी थी, फ़चाक  से थूक दी । बोले – इन चीनियों ने तो पूरा मार्केट कवर कर रखा है । पता नहीं बच्चे भी फेक्टरी प्रोडक्ट हैं या इंसानी !! पचपन लाख बच्चे !! शरम नहीं आई कमबख्तों को !! आबादी में नंबर वन हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया पर रहम न करने की छूट है इनको । नामाकूल, नामुराद, जाहिल कहीं के । दुनिया कहाँ जा रही है और ये बेशऊर कहाँ जा रहे हैं !!
फटकार सुन जाता हुआ साल सहम गया । धीरे से बोला भारत में भी हुई है बच्चों की आमद । हकबकाए चचा जरा देर के लिए गफला गए, बोले– बको । जाता साल बोला– भारत में बीते साल एक करोड़ पैंतालीस लाख बच्चे पैदा हुए हैं ।
चचा के मुंह में थूकने के लिए कुछ नहीं था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि देश सो रहा है या कि जाग रहा है !
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पाण्डुलिपि बढ़िया होना चाहिए !



हिन्दी का प्रकाशन जगत वह जगह है जहां खाद-पानी से पौधे नहीं गमले फलते फूलते हैं । इसलिए पौधों के लिए जरूरी है कि वे अपनी खुराक हवा से प्राप्त करें, यदि वे वाकई पौधे हैं । वरना वे प्लास्टिक हो जाएँ, लगे कि पौधे हैं, लगे कि हरे हैं, लगे कि लदे हैं फूलों से भी, लगे कि सदाबहार हैं । साहित्य अब ड्राइंग रूम में सजाने दिखाने की चीज है । जैसे अक्सर  रायबहादुरों की दीवारों पर टंगी होती हैं बारहसिघों की गरदनें बंदूकों के साथ । लेकिन छोड़िए, अपन चलते हैं प्रकाशक के दफ्तर में ।
“पाण्डुलिपि बहुत अच्छी है आपकी ।“ प्रकाशक ने पन्ने पलटते हुए कहा तो भानु भोले के अंदर लड़खड़ा रहा आत्मविश्वास अचनक सीधा खड़ा हो गया । बोले– जी, मुझे भरोसा था कि आपको पसंद आएगी ।
“टायपिंग अच्छी है, और कागज भी आपने अच्छा इस्तेमाल किया है ।“
“जी, आपका इतना बड़ा प्रकाशन है, इतना नाम है आपका तो कागज बढ़िया लेना ही था । आप देखिये हर पन्ने पर गोल्डन बार्डर भी प्रिंट करवाया है मैंने । ऐसी पाण्डुलिपि पहले कभी नहीं आई होगी आपके पास । “ भोले के आत्मविश्वास ने सिर उठाया ।
“बार्डर तो बढ़िया है लेकिन ..... मैटर हल्का है । “
“मैटर !! आपका मतलब कविताओं से है क्या ?!”
“अभी कवितायें कहाँ ..... सब मैटर है । पाण्डुलिपि भर शब्द । मुश्किल है हमारे लिए । किसी और को दिखा लीजिये । “
“अरे सर ऐसा क्या !! किताबें तो आपके प्रकाशन के नाम से बिकती हैं । लोग मान कर चलते हैं कि आपने छापी हैं तो अच्छी ही होंगी । जहाँ दूसरी बीस किताबें सप्लाय करते हैं उन्हीं के बीच एक यह भी निकाल जाएगी । फिर लागत तो मैं आपको दे ही रहा हूँ, चालीस हजार । अगर मैटर की दिक्कत आ रही हो तो पाँच और बढ़ा लीजिये पर छपना तो आपको ही पड़ेगी । “ भानु भोले व्यावहारिक भाला फ़ैका ।
“ठीक है, पाँच और ले लूँगा । लेकिन मैटर की दिक्कत बड़ी है । लेन-देन हमारा आपस का मामला है लेकिन पाठक के पास तो किताब जाती है । “
“पाठक हैं कहाँ अब, आप ही कहते हैं कि किताबें बिकती ही नहीं हैं । मुफ्त दे दो तो सजावट के काम आती हैं । कवर बढ़िया होना चाहिए बस । “
“ऐसा नहीं होता है भानु भोले जी । थोक खरीदी में जाती हैं किताबें । अधिकारी एक दूसरे की टांग भी खींचते हैं । मैटर ठीक नहीं हो तो कभी कभी पूरा लाट चेक हो जाता है । और बड़ी दिक्कत आपके लिए भी है । अक्सर लेखकों का मूल्यांकन उनके मरने के बाद होता है । शोकसभा में किसी ने कह दिया कि किताबें तो सात हैं लेकिन लेखन कूड़ा है तो सोचिए क्या होगा । फोटो पर चढ़ी मालाएँ फट्ट से सूख नहीं जाएंगी !?
“ !!! ... आप कुछ तो कीजिये ना । “   
“ कवितायें बनवाना पड़ेंगी । कुछ लोग बनाते है, यू नो राजधानी में सब काम होता है । चार्ज लगेगा लेकिन मैटर ठीक हो जाएगा । “
“तो क्या उसका नाम भी जाएगा किताब पर !?”
“उसका नाम क्यों जाएगा !? जिल्द बनाने वाले का जाता हैं क्या ? दूसरे किसी लेबर का जाता है क्या ? आप निश्चिंत रहिए । नाम सिर्फ आपका जाएगा, पैसा तो आप दे रहे हैं । “
“फिर ठीक है । “
“कैश लाये है ना , जमा करवा दीजिये । और लोकार्पण की तैयारी कीजिये, महीने भर में किताब मिल जाएगी । ... पाण्डुलिपि चाहें तो ले जाइए, अच्छी बनी है ।“
भानु भोले ने पाण्डुलिपि रख ली, सोचा अगली किताब बनवाने के काम आएगी ।
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शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

सोते हुए जागता देश !



नए वर्ष में मैंने संकल्प लिया कि सुबह देर तक सोया करूंगा । इसके दो कारण हैं ,पहला तो यह कि मैं गैर राजनीतिक आदमी हूँ सो अपने लिए संकल्प वही करना चाहता हूँ जिसे पूरा कर पाऊँ । सुना है प्रधान मंत्री जी मात्र चार घंटे की नींद लेते हैं और बीस घंटे काम में लगे रहते हैं !! बताइये ! कौन समझदार आदमी इनसे प्रेरणा ले कर मुसीबत मोल लेगा ? सरकारी महकमों तक में अगर छापामारी की जाए तो पता चलेगा कि ज़्यादातर लोग चार घंटे से अधिक काम करना बड़े संघर्ष से प्राप्त हुई भारत की आज़ादी का अपमान समझते हैं । लोकतन्त्र है भई, वोट दिया है खनकता हुआ, क्या कहते हैं मंहगा वाला यानी मूल्यवान । ऐसे में मनमर्जी की नींद लेने का अधिकार तो बनता ही है । सरकारें जब कर्जा माफ कर रही हैं, मुफ्त इलाज करवा रही हैं, खाना-दाना दे रही हैं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और ब्याह शादी तक करवा रही हैं, बैंके जबरिया लोन दे रहीं हैं पकड़ पकड़ के तो रोना किस बात का ! और भला कोई जागे भी तो क्यों !? जनता सोई रहे पालने में तो लोरियों का टोटा है क्या ?  प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है, एक कुंभकरण योजना देता है तो दूसरा महा कुंभकरण योजना का वादा करता है । पाठ्यक्रम में बच्चे पढ़ेंगे आलू से सोना बनाओ । अगर लोग सोएँगे नहीं तो सपने कैसे देखेंगे ? सपनों का ऐसा है कि देखने वालों का भविष्य तय करें न करें पर दिखने वालों का अवश्य तय करते हैं । मैं एक सच्चा नागरिक, हवा का रुख समझता हूँ तो बुरा क्या है अगर देर तक सोते रहने का संकल्प ले लूँ !
दूसरा कारण कबीर हैं, कह गए हैं  सुखिया सब संसार, खाबै और सोवै । दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै । आप बताइये, रोने की शर्त पर जागना कौन चाहेगा । जागना जोखिम भरा है, जागने में डर बहुत है, माँ बच्चों को कहती है, सो जा नहीं तो गब्बरसिंग आ जाएगा  और समझदार बच्चा सो जाता है, माँ भी सो जाती है, दोनों को सोता देख मरद बेफिक्री से पड़ौस में कहीं निकाल जाता है । आज़ादी समझो कि मुकम्मल हो जाती है । मरदों की जिम्मेदारिया बड़ी होती हैं इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है । कर्मयोगी केवल कर्म करते हैं और प्रायः फल का संज्ञान नहीं लेते हैं । लेकिन दुनिया का क्या करोगे भाई ! दूसरे के गिरेबान में झाँकने का चलन जो है ।
चचा जल्दी उठ गए, सोचा सुबह की हवाखोरी कर लें । जाते हुये साल ने बताया कि चीन में बीते साल में पचपन लाख बच्चे पैदा हुए । चचा ने सुना तो मुंह में भरा पान मसाला जिसमें महकती बुड्ढा तंबाकू भी थी, फ़चाक  से थूक दी । बोले – इन चीनियों ने तो पूरा मार्केट कवर कर रखा है । पता नहीं बच्चे भी फेक्टरी प्रोडक्ट हैं या इंसानी !! पचपन लाख बच्चे !! शरम नहीं आई कमबख्तों को !! आबादी में नंबर वन हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया पर रहम न करने की छूट है इनको । नामाकूल, नामुराद, जाहिल कहीं के । दुनिया कहाँ जा रही है और ये बेशऊर कहाँ जा रहे हैं !!
फटकार सुन जाता हुआ साल सहम गया । धीरे से बोला भारत में भी हुई है बच्चों की आमद । हकबकाए चचा जरा देर के लिए गफला गए, बोले– बको । जाता साल बोला– भारत में बीते साल एक करोड़ पैंतालीस लाख बच्चे पैदा हुए हैं ।
चचा के मुंह में थूकने के लिए कुछ नहीं था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि देश सो रहा है या कि जाग रहा है !
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मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

मशीन में बंद सरकार



रात के बारह बज गए ! अभी तक मुद्रा-मंत्री की आवाज सुनाई नहीं दी ! बिना उनकी गुड नाइट सुने उन्हें नींद नहीं आती है । बेचैन नगर सेठ ने आखिर चिराग घिसा । एक दो घिस्सों के बाद आम तौर पर हुक्म मेरे आका की आवाज सुनाई पड़ जाती है । लेकिन आज चिराग में सन्नाटा पसरा लग रहा है ! जब कोई हाथ नहीं आता है तो रगड़ना उनकी फितरत में है । चिराग रगड़ने या नहीं रगड़ने का कोई स्पष्ट नियम भी नहीं है । नियम होता तो भी वे तोड़ देते । नियम तोड़ने का मजा नशे कि तरह होता है । बड़े आदमी छोटे नशों से प्रायः मुक्त होते हैं ।  सो उन्होने चिराग को इतनी ज़ोर से रगड़ा कि उसकी आवाज निकाल गई – “इस रूट की सभी लाइनें स्थगित हैं । सरकार अभी मशीन में बंद है । कृपया कुछ दिनों बाद कोशिश करें ।“ नगर सेठ चौंके, ये क्या बात हुई ! सरकार मशीन में बंद है लेकिन मुद्रा-मंत्री छुट्टा होगा ! उन्होने हेंगार पर टंगे कोट के अंदरूनी जेब में हाथ डाला, वहाँ कोई नहीं था । टेबल पर, तकिये के नीचे देखा, नहीं था । वे हड़बड़ा गए, कहाँ रख दिया ! बड़े काम का था ।
आप सोच रहे होंगे कि मुद्रा-मंत्री को भला कोई अपनी जेब में कैसे रख सकता है !! भई आप जेब में पूरा देश रख कर दुनिया घूम सकते हैं, बस कुव्वत होना चाहिए । किसी जमाने में जेबें और सूट नहीं होते थे तब लंकापति धन कुबेर को अपनी काँख में दबा कर रखते थे । इसका मतलब अपने यहा तो परंपरा है, और जो परंपरा के बूते पर ही खड़े हैं उन्हें कोई ऐतराज हो सकता है भला ! न चाहते हुए भी उनका हाथ अपनी काँख की ओर चला गया । स्मेल का एक भभका सा गुजरा । अचानक उन्हें ख्याल आया कि कितनी दिक्कत होती होगी कुबेर को, उस समय तो डीओ का चलन भी नहीं था ।
“क्या हुआ इतनी रात को ? कुछ ढूंढ रहे हो ?” बेडरूम में पड़ी एक गोल सी आकृति ने पूछा जिसे हर समय ब्यूटी पार्लर की जरूरत महसूस होती रहती है ।
“ सरकार .......”
“पेंट की चोर जेब में  देखा ?  अक्सर वहीं पड़ी रहती है । “
“अरे भागवान पूरी बात तो सुना करो । ... सरकार मशीन में बंद पड़ी है अभी ! बिना सरकार के कारोबार करना कितना कठिन है जानती हो !?” नगर सेठ ने अपनी चिंता बताई ।
“तो कल सुबह नई सरकार बनवा लेना इसमें दिक्कत क्या है ?” आकृति ने बैठने की कोशिश करते हुए कहा ।
“ हम जो भी बनाते हैं रॉ-माटेरियल से बनाते हैं । सीधे सरकार बनाने का सिस्टम नहीं है देश में । मशीन से जो कुछ भी निकलेगा उसी से सरकार बनेगी ।“
“अच्छा देखो, पहले कहे देती हूँ हेल्थ मिनिस्टर ढंग का बनवाना । मेरा वेट एक सौ तीस केजी से नीचे नहीं जा रहा है । और एजुकेशन मिनिस्टर भी ज्यादा समझदार नहीं होना चाहिए, दोनों बेटे रियल लाइफ में डाक्टर-डाक्टर होना (खेलना) चाहते हैं । “
“तुम अपना रोना बंद करोगी ! मुझे मुद्रा-मंत्री की चिंता हो रही है । कोई पढ़ा लिखा मुद्रा का जानकार फंस गया तो मुश्किल होगी । “
“इसमें मुश्किल की क्या बात है !! क्या पढ़े लिखे दूसरी दुनिया से आते रहे हैं ? और पढ़ा लिखा चुनाव क्यों लड़ेगा, माना कि लड़ भी लेगा तो जनता उसे वोट क्यों देगी ? जनता पर भरोसा रखो और सो जाओ शांति से । “ आकृति लुढ़क गई, आमतौर पर जिसे लेटना कहते हैं ।
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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 9 ( पूरी-पटेटो )



आगे वाला यानी लल्लू कप्तान चिल्ला कर बोला “ देश का नेता कैसा हो ......”
पीछे से आवाज आई – “ आलू पूरी जैसा हो । “
“अबे ओ !!! ये क्या बोले रे !! ... पोपसिंग भिया जैसा हो बोलना चाइए था ना । ... ये आलू पूरी जैसा क्या होता है !!?”
“लल्लू भिया, आठ दिन से दोनों टेम आलू पूरी खा रहे हैं तो मुंह से यही निकलेगा ना । इसमे हम क्या करें ?” फिल्मी व्यक्तित्व सा राजा मिसरा बोला जो पिछले कई दिनों से चुनाव प्रचार में नाश्ते-खाने और एक पौवे के लिए लगा हुआ है । यहाँ इसलिए कि दूसरी जगह कहीं इसकी दाल नहीं गल पाई है ।
“ये कोई बात है बे !! अगर लड्डू-बाफले खाओगे तो क्या देश का नेता लड्डू-बाफले जैसा हो बोलोगे  !! ... खाने का नारे से से क्या लेना देना है ? जानते हो जब संघर्ष का मौका आया तो महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई थी । और यहाँ अपन मजे में पूरी-पटेटो खा रहे हैं । कितना विकास हो गया देश में, कुछ पता भी है  ?”
अभी घंटा भर के नारे हुए थे कि लंच का रिक्शा आ गया । इंचार्ज ने हाँका लगाया – चलो भिया लंच ले लो ।
राजा ने उम्मीद के साथ पूछा – आज क्या है ?
“ मंगलवार है । “ इंचार्ज ने आँख मारते हुये कहा ।
“ अरे भिया खाने में क्या है ये पूछ रहा हूँ । “
“ खाने में !! ....चिकन-मसाला, चिकन-कढ़ाई, चिकन-तंदूरी, वेज में मेथी-मटर-मलाई, पालक-पनीर,  शाही-मटर-पनीर , दाल-मखनी, दाल-फ्राई ....... “
“ चल बस कर यार ..... निकाल आलू-पूरी के पेकेट ।“
" आलू पूरी नहीं , पूरी पटेटो बोल भाई । देश तरक्की कर रहा है । "

  सारे कार्यकर्ता पेकेट ले कर बैठ गए खाने । लेकिन राजा का मन कूढ़ रहा था । साथ वाले से बोला “यार रोज रोज अपने से आलू-पूरी खाते नी बनती है । छे पूरी और आलू की सूखी भाजी ! साला कारकरता नी हुआ बाइक हो गया, रोज ढक्कन खोल के एक लीटर पेट्रोल कूड़ दो हो गया !!”
“सब दूर येई चल रा हे रे  । ... खा ले यार , आज तली हुई मिर्ची भी है । “
“ अरे गेस भोत होती हे , हजम नी होती  है आलू-पूरी । “
“ पुलिस वाले भी यही खाते हैं, और बेचारे कितनी लंबी ड्यूटी करते हैं । पंचायत चुनाव से ले कर प्रधान मंत्री चुनाव तक आलू पूरी ही चलती है । “
“नीचे के लेबल पे चलती होगी । “
“अरे तो यार अपन कब से ऊपर के लेबल में आ गए ?”
“ ऐसा नहीं है यार, अपने मोटभाई को टिकिट नी मिला इस बार नहीं तो देखते तुम । उनके यहाँ तो समझो कि शादी का रिसेपसन चलता रेता हे वोटिंग के दिन तक । गए साल तो महिना भर दोनों टाइम जम के सूता अपन ने । “
“ और क्वाटर  ?”
“ क्वाटर आखरी के सात दिन । वो भी ब्लेक डॉग इंडियन । “
“ पता है मोटा भाई कभी कोई चुनाव क्यों नहीं जीत पाया ? .... इसलिए कि उसके कारकरता खा खा के लद्दड हो जाते हैं । पर्ची तक नहीं बाँट पाता था कोई । “
“ पर आलू कोई चीज है !! कभी छोले पनीर भी  तो बन सकते हैं । “
“ आलू से तुमको न जाने क्या है !! वरना आजकल तो च्यवनप्राश में भी आलू पड़ता है । कोई महिना भर च्यवनप्राश खा ले तो गाल आलू जैसे निकल आते हैं । समोसे से ले कर डोसे तक पूरे देश में आलू का राज है । सही बात तो ये है कि आलू के दम पे प्रजातन्त्र है । इसलिए आलू खाओ देश को आगे बढ़ाओ । “
“किसी ने मेंगों-मेन कहा, किसी ने केटल-क्लास बोला, लेकिन असल में हम पूरे आलू भी नहीं हैं, आलू-चिप्स हैं । हर अवसर पर, हर प्लेट में एक जरूरी आइटम । “ राजा मिसरा ने पेकेट खोल कर आलू-पूरी  गाय को खिला दी । बोला – लो माते , चुनाव में तुम्हारा भी बड़ा योगदान चल रहा है, तुम भी खाओ और पोपसिंग भिया को जिताओ । “
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मंगलवार, 13 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 8 ..... ( चंदा मामा दूर के )



चुनाव में चंदा नहीं होना ऐसा है जैसे पूनम की रात में चाँद न हो । चाँद खिले, तारे हँसे तभी रात मतवारी है, समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है । पोपसिंग जादो भिया के पास अपनी एक चंदा केबिनेट है, जिसके ऑफिस इंचार्ज साले साब हैं । उन्हें सब  चंदा मामा कहते हैं । भाभी जी केबिनेट हेड हैं, वे  सागर की तरह गहरी और विशाल हैं  और अगर ठीक से बांधी जाएँ तो आठ मीटर साड़ी में वन पीस समेटी जा सकती हैं । सारा चंदा अंत में उन्हीं की खाड़ी में जा कर गिरता है । भाभी जी के बन्दरगाह पर सिर्फ पेटियाँ ही उतरती हैं । हिसाब भी केवल पेटियों का रखा जाता है । जो पेटीदार हैं वही सूची में दर्ज है । शहर में पच्चीस पचास पेटियों वाले भी हैं और दो चार पेटियों वाले भी । पच्चीस पचास पेटियों वाले मध्य रात्री में उड़ते हुए आते हैं और सीधे खड़ी के खाड़े में अपनी पेटियाँ डाल कर लौट जाते हैं । चंदा केबिनेट दिनरात धनसंपर्क में व्यस्त रहता है । जिस तरह बूंद बूंद से घड़ा भरता  है उसी तरह थैली थैली से पेटी भी भरती  है । थैली वाले निराश न हों इसलिए राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त दो तीन लोग चंदा मामा के नीचे इस काम में भी लगे हुए  हैं ।
तेरह चुनाव देख चुके तजुर्बेकार बाप ने समझाया कि बेटा जमाना लोकतंत्र का है । पानी में अगर इज्जत से बने रहना है तो बड़े मगरमच्छों को भी छोटे मगरमच्छों से बैर नहीं करना चाहिए । ये सारे छोटेलाल मौसमी होते हैं, आते हैं और जाते हैं । जैसे जिन्न चिराग में रहता है वैसे ही ये लोग पेटी में रहते हैं  । जब भी पेटी रगड़ो ये जो हुकम मेरे आका कहते सेवा में हाजिर हो जाते हैं । कहने को जनता के हैं लेकिन असल में होते हमारे हैं । और कुछ नहीं तो शादी ब्याह में खड़े कर दो तो शान बढ़ जाती है । दे दो, देने में घाटा नहीं है । इनके होने से अपन भी मनमर्जी से काम कर लेते हैं, वरना कानून किसी का सगा होता है !?”
बेटा समझा तो सही , लेकिन अभी भी उसके मन में सवाल थे –“ किस  किस को देंगे बाबूजी ! तमाम लोग खड़े हैं चुनाव में । “
“ हर पार्टी वाले को दो बेटा, कौन कैसे सरकार में आ जाए इसका भरोसा नहीं । हम वणिक बुद्धि के है, थैली दे कर पेटी बनाते हैं और पेटी दे कर खोखे । सिस्टम को समझो बेटा । किसान बीज फैकता है तो फसल मिलती है । तो पेटी फैको,  पेटी की फसल उगाओ । “
“ ठीक है, पेटी में हजार और पाँच सौ के पुराने नोट रख कर दे दूँ ? खप जाएंगे अभी । वो तो सिर्फ पेटियाँ गिनते होंगे ।... इसी बहाने पुराने नोट अगर सरकार फिर से चला दे । “
“ सब जगह बेईमानी कर लेना बेटा, लेकिन यहाँ नहीं । हमारा उनका परंपरागत संबंध है । सदियों से हम उनके काम आए हैं और वो हमारे । हमारा चोली दामन का साथ है , वे हमारी ढँकते हैं और हम उनकी । नए  नोट दो, गुलाबी । समझे ।  
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रविवार, 11 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 7 ( दारू कब बांटेगी )



“पता चला,कब बांटेगी ?”
“अभी तो कोई रमूज नी लगी हे । पर बांटेगी जरूर । “
“ अभी बांटना चिए यार । अपने को कोई दिक्कत नी हे पर कारकरता दिनभर टप्पे खाता रेता हे । थकान हो जाती हे तो दूसरे दिन उठ नी पाता हे ।“
“भिया भी क्या करें यार । अभी बांटना सुरू कर दें तो बजट बिगड़ जाएगा । अभी तो अठरा दिन बाकी हें ।“
“ कारकरता खिसक लेंगे पेलवान इस स्यानपत्ति में । सुना हे कि सामने वाले ने बांटना सुरू कर दी हे । “
“ कोन सी वाली बाँट रा हे ?!”
 वोई , कुत्ता छाप । क्वाटर मिल रा हे हरेक को  ।“
“ फिर तो लोग खिसक लेंगे जेसे जेसे पता चलेगा !! “
“ येई तो ! येई चार दिन होते हें कारकरता की जवाईं की तरे पूछ होती हे , वरना बाद में तो चूसी हड्डी भी नी डालता हे कोई । “
चुनाव में दारू बांटना पड़ती है । जैसे फसल लेने के लिए पौधों को सींचना पड़ता है । पुलिस को पता होता है, कुछ पेटियाँ पहले उनको भी पहुंचाई जाती हैं । आखिर पुलिस भी इंसान है, थकते वो भी हैं । गरीब के लिए तो दारू सम्मान है । मिल जाए तभी उसको लगता है कि इज्जत हुई । पिछली बार तो आखरी दो दिन मुर्गे भी बांटे गए थे ।  वो तो मोटा भाई को टिकिट नहीं मिला इस बार, वरना एक ट्रक बकरों का आर्डर दे रखा था । महीने भर से लोगों की हंडियाँ उम्मीद से हो गईं थीं ।  मोटा भाई दारू के साथ पाँच सौ का नोट भी बांटता है । लेकिन मेनेजमेंट सही नहीं था इसलिए पिछले दो चुनाव हार गया ।
पोपसिंग जादो का मेनेजमेंट बढ़िया है । सुबह का समय थोड़ा खाली रहता हैं । कार्यकर्ता लेट आते हैं । सबको जमा होने में नौ बजता है और प्रचार के लिए निकलते निकलते दस । इसबीच पोपसिंग भिया कुछ घरों में पर्सनली मिल आते हैं । आज भी वे सिविल लाइन की मनाकर फेमिली में पहुंचे हैं । सुरेश मनाकर गमलों में पानी दे रहे थे । और उनकी पत्नी जयश्री मनाकर किचन में थी ।
पोपसिंग भिया ने गाड़ी से उतरते ही हांक लगाई –“ और क्या सुरेश जी, क्या हो रहा है ?”
“ कुछ नहीं गमलों से जनसम्पर्क कर रहा हूँ , आइये । “
पोपसिंग उत्तर के विस्तार में जाते इसके पहले जयश्री दिख गईं । -“ नमस्कार भाभी जी, आज नास्ते में क्या बन रहा है ? सोचा आज आपके हाथ का ही खाऊँगा । “
“ अभी तो कुछ नहीं बन रहा है भाई साहब । दिवाली का पड़ा है बहुत सारा । मेरा इनका पेट खराब है , बनाने का कोई फायदा नहीं है । “ जयश्री मनाकर ने साफ मना कर दिया ।
“ तो आज सुरेश जी को नास्ता नहीं मिलेगा क्या ? चलो सुरेश भाई आज मैं आपको नास्ता करवा के  लाता हूँ । भाभी जी के लिए भी ले कर आते हैं बढ़िया जलेबी पोहा । “
 “ अरे ऐसा कैसे ! तुम कुछ बनाने वाली थीं ना  ? सुरेश जी ने अर्थपूर्ण संवाद किया ।
“ शाम की रोटियां बची हैं , उन्हीं को चूर के बघारना है बस । “
“ अरे वाह !! बासी बघारी चूरा-रोटी !! ये तो मुझे बहुत पसंद है । बनाओ बनाओ । “ पोपसिंग को पता है कि जयश्री मोहल्ला भगिनी मण्डल  की अध्यक्ष है । “
और क्या सुरेश जी ?”
“ वोट तो आपको ही देना है । सामने वाली पार्टी ब्लेक डॉग का आफ़र दे रही थी । मना कर दिया हमने तो । कहा कि अगर ब्लेक डॉग ही लेना होगी तो अपने भिया से ले लेंगे । घर की बात है ।“ सुरेश मनाकर ने अपनी मांग रखी ।
“ अरे इसमें क्या है ! आपको एक बोतल पहुंचा दूंगा । “
“ सामने वाली पार्टी दो दे रही थी पर मैंने मना कर दिया .....”
“ ठीक है, कोई दिक्कत नहीं है , दो भेज दूंगा ..... पर ....?”
“ आप बिलकुल चिंता मत करो । वाइफ भगिनी मण्डल सम्हाल लेगी और बाकी मैं देख लूँगा । “
जयश्री प्लेट मे बघारी रोटी-चूरा ले आई । "घर में दूध नहीं है वरना चाय भी बनती ।"
" कोई बात नहीं भाभी जी , आपके लिए भी वोड्का भिजवाता हूँ आज । "
" एक तो गले में ही अटक जाती है भाई साब । "
" आपके लिए दो भिजवाता हूँ भाभी जी । "

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शनिवार, 10 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 6 .... ( ढम ढम बाजे ढ़ोल )




पोपसिंग जादो भिया के पट्ठों ने शहर भर के ढोलियों को बयाना दे कर बुक कर लिया । इरादा ये कि अगर टिकिट नहीं मिला तो किसी और को भी बजवाने नहीं देंगे । सारे ढोलियों को अखाड़े के आंगन में बैठे रहने का पैसा देंगे । और अगर मिल गया तो हमारा ही बजेगा किसी और का नहीं बजने देंगे । गनीमत यह रही कि पोपसिंग जादो भिया को टिकिट  मिल गया और जैसा कि तय था खबर के साथ ढोलियों को जोत दिया गया है । ढोलियों की खास मांग पर सबको एक एक अंटा भांग का भी दिया गया है, साथ में यह हिदायत भी कि पहले दौर में सब बजाएँगे और एक घंटे तक हाथ रुकना नहीं चाहिए । पल झपकते ही माहौल जानलेवा बन गया । लगा जैसे आसमान फट पड़ा हो शोर का । सबसे पहले कुत्ते बिल्लियाँ भाग कर दुबक लिए कहीं । माताओं से छोटे बच्चे चिपक लिये । बूढ़े बीमार जो आलरेडी भगवान को याद कर रहे थे, उन्हें लगा कि प्रभु विराट रूप के साथ प्रकट हो रहे हैं । जैसे स्टेशन पर ट्रेन आते ही लोग अपना लगेज थामने लगते हैं, कइयों ने गंगा जल मुंह में डाल लिया है । अभी गगन भेदी माहौल बना ही था कि पोपसिंग जादो भिया की माँ घबरा कर अचेत होने की ओर कूच कर गईं । तत्काल ढ़ोल बंद कराये गए । हवा में सवाल तैर गया “गईं क्या ?!” उछल कूद रही पोप पलटन गियर बदल कर छती कूटने और विलापने को तत्पर होने लगी । लेकिन किसी ने आ कर कहा कि अभी इसकी जरूरत नहीं है । खैर ।
ढ़ोल आज की राजनीति में नेता का घोषणा पत्र है । ढ़ोल में जितनी पोल होती है उतना ज़ोर से बजता है । चुनाव में सुर की नहीं शोर की जरूरत होती है । इसलिए उम्मीदवार जब जनसम्पर्क पर निकलते हैं तो विशेष सावधानी रखते हैं कि कहीं जनसम्पर्क हो न जाए । जनता को संपर्क में नहीं शिकायतों में रुचि होती है । नेता दो मिनिट को भी हाथ लग जाए तो पाँच साल का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं कंबखत । पकड़म पाटी के इस खेल में नौसिखिये नेता अक्सर फंस जाते देखे गए हैं । पोपसिंग भिया के साथ भी इस समय ढोलियों का जरूरी इंतजाम है । खुद उनके कार्यकर्ता लोग आपस में सुन नहीं पा रहे हैं, लेकिन मान रहे हैं कि मजा आ रिया हे । वोटर अलग प्रजाति का नहीं है, उसने कान बंद कर लिए हैं और इस चक्कर में मुंह भी बंद ही है ।  यही ढ़ोल वोटर ने पाँच साल पहले भी सुने थे । पहले पाँच ढोली थे आज बीस हैं । तरक्की तो हुई है । नेता जो कहते हैं वो करते भी हैं । लेकिन लोग समझे तब ना । वो तो अच्छा है कि सामने वाली पार्टी भी ढ़ोल ले कर निकलती है और जनता को कुछ अल्लम गल्लम समझा नहीं पाती है । वरना लोगों को महंगाई, बेरोजगारी, अपराध जैसी रूटीन की और फालतू बातें याद दिलाने में देर लगे क्या !! सरकार ने समझाया है कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है । और उत्सव में कुछ सोचा नहीं जाता है, सिर्फ मनाया जाता है ।
जनसम्पर्क में एक भीड़ साथ चल रही है जिनमें से अधिकांश मौका मिलते ही खिसकाना चाहते हैं लेकिन अपने अपने कारणों से फंसे हुए हैं । कुछ लोग कल सामने वाले के जनसम्पर्क में शामिल थे और पोहा जलेबी के साथ एक एक लीटर पेट्रोल को भी याद कर रहे थे । कुछ माने हुए हैं कि मिलेगा । पोपसिंग भिया की जेब उनके कुर्ते में नहीं होती है, उनकी जेबें शहर भर में फैली हुई हैं । यह समय जादू-समय है, बड़ा आदमी इस समय थैली या जेब हो जाता है । आज एक खाली करेगा तो कल दो भरेगा । उम्मीद पर दुनिया के अलावा सिस्टम भी टिका हुआ है ।
काफिला एक जगह थमा तो सारे ढोली सुस्ताने बैठ गए । अंदर नाश्ता बाँट रहा था । कार्यकर्ता एक प्लेट ले कर खाते हुए दूसरी के लिए वितरण स्थल की ओर लक्ष किए थे । कुछ को चाय का प्लास्टिक कप भी हाथ लग गया था । ढोलियों ने मांगा तो उन्हें पानी मिल गया, बाकी के लिए वे संभावना शेष थी ।
“भिया, थोड़ा  नाश्ता  देओ ना हमको भी ।“ एक ढोली ने कहा ।  
“ पहले पार्टी वाले खा लें यार ..... फिर देखता हूँ .... । “
“ नाश्ता मांग रहे हैं भिया वोट नहीं । “
“ हाँ हाँ , देखता हूँ । रुको तो । “  कह कर वो गया तो केलेण्डर का पन्ना हो गया ।
अचानक जनसम्पर्क फिर शुरू हो गया । ढोलियों को लगाना पड़ा । सारे एक सुर में ढ़ोल पीटने लगे, धुक्कड़  धेइई  ... धेइईधान धेइई ,  धुक्कड़ धेइई... धेइईधान धेइई  जनसम्पर्क चल रहा था , ढोली मुस्करा रहे थे । उनके ढ़ोल चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे “भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं , भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं” । मानो गूंगे का गुड़ था जिसका मजा वे ढोली ही ले रहे थे ।
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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 5 ( असिस्टेंट भीड़ मेनेजर )


पार्टी कार्यालय के पास जय भवानी टी स्टाल पर इन दिनों राजनीति का क्रेश कोर्स सा चल रहा है । कोई गुरु है कोई उस्ताद और कोई फ्रेंड, फ़िलासफ़र, गाइड है । नए पुरानों से और पुराने नयों से सीख रहे हैं । इसी चक्कर में पुराने टी शर्ट  में और नये आधी बांह के कुर्ते में नजर आ रहे हैं । पचहत्तर पार वाले टी शर्ट, हेयर डाइ और काले चश्में के सहारे अपने को युवा हृदय सम्राट की पटरी पर घसीट रहे हैं । छोटों का दावा ये कि वे बड़ों के रेले जानते हैं और बड़े छोटों कि नस नस से वाकिफ हैं । वोटरों के पैर छू छू के जिनकी आत्मा पर छाले पड़ गए हैं वे अब नयों से घुटने छुलवा कर चन्दन सा कुछ लगवा रहे हैं । यहाँ चाय का मतलब कट चाय है और भिया का मतलब तो आप जानते ही हैं । साधारण लोग जिसे लोकतंत्र समझते हैं दरअसल वो भियातन्त्र है । भिया इसलिए लीडर हैं क्योंकि वे सपने दिखाना जानते हैं । लोगों के हाथ में काम नहीं है लेकिन आँखों में सपना है, वो भी भिया बनने का । महापुरुष कह गए हैं कि सपने देखना बंद मत करो । पूरे हो ना हों सपने देखते रहने से टाइम अच्छा पास होता है । पाँच साल कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता है । एक जमाना था जब नौजवान लोग भगतसिंग-आज़ाद बनने का सपना देखा करते थे । लेकिन नयी पीढ़ी गलतियाँ ढ़ोने की बजाए सुधारने की हामी हैं । वे मानते हैं कि पुराने लोगों से सीखेंगे तो कुछ हासिल नहीं होगा । जमाना बादल गया है, हासिल करना ही सफलता है । इसलिए राजनीति के इस स्कूल में भिया-दर्शन, भियावाद, भियाचिंतन, भिया-एक्शन, भिया-रिएक्शन, भिया-कलेक्शन सिलेबस में हैं । जिसने समझ लिया, रास्ते उसके लिए खुल्ले हैं । चाय बेचो या शराब, इरादे मजबूत होना चिए  । दुनिया करमचंदों की है शरमचंदों की नहीं ।
  “देखो पेलवान,  क्या हे कि हर किसी को अपना अपना काम ठीक से करना चिए । सास्त्रों  में लिखा है कि काम कोई भी छोटा नहीं होता है । अपन नोकरी के भरोसे बैठे रहते तो आज भी बैठे ही रहते । अपन जग्गा बापू हैं क्या । नाम तो सुनाई होगा ? आज जग्गा बापू का नाम चलता है ऊपर से नीचे तलक तो ऐसई नहीं । “
“ जग्गा बापू !!! आप  तो ......च च !”
“हाँ , चोरी का बिजनेस है अपना । क्या हे कोई काम छोटा नहीं होता है और कोई काम बुरा भी नहीं होता है । भावना अच्छी होना चिए बस । पर लोग होन जो काम कर नहीं पाते हैं उसको बुरा बोलने लगते हैं । अब माल्या लोन लेके भाग गया तो हर कोई उसको गाली दे रहा है । इनमें से किसी को भी हजार करोड़ दे दो फिर देखो ये कहाँ मिलते हैं । ... तुम क्या करते हो ?  जग्गा बापू ने पूछा ।
“ अभी तो असिस्टेंट भीड़ मेनेजर हूँ । पोपसिंग यादो भिया ने बोला है कि चुनाव का टाइम है, भीड़ बनो बनाओ, नारे-वारे भी लगाना । ... पर पता नहीं पेमेंट देंगे या नहीं । “
  “ पढे लिखे हो क्या !?” बापू ने धीरे से पूछा ।
“ हाँ, इंजीनियर हूँ । घरों के नक्शे बना सकता हूँ ....लेकिन....ये करना पड़ रहा है ।“
“ सही रास्ते पर हो । काम कोई छोटा बड़ा या अच्छा बुरा नहीं होता है । पोपसिंग यदो ने ठीक किया, लोकतंत्र से कुछ हासिल करना है तो सबसे पहले भीड़ बनना चिए । सरकार पर भीड़ का कर्ज होता है । इसलिए हर मौके पर वो भीड़ के समर्थन में होती है । भीड़ को छोटा मत समझो, जो काम कानून से नहीं हो सकता है वो भीड़ से हो जाता है । और ये बात भी ध्यान रखो कि बिना भीड़ के नेता नहीं होता है ।“
“ लेकिन चुनाव के बाद क्या करूंगा बापू ?”
“ ये पोपसिंग यदो भिया का हेडेक है तुम्हारा नहीं । तुम बस भीड़ बने रहो । शेर के साथ लगे रहने वाले को हड्डी का टोटा नहीं रहता है । .... चाहो तो मेरे साथ लग जाना । अपने हाथ के नीचे भी चार आदमी काम करते हैं । आजकल पासवर्ड के मार्फत चोरी होती है, तुम पढे लिखे हो तो अपनी कंपनी बड़ी हो जाएगी ।“
“अरे बापू !! में ये नहीं कर पाऊँगा । पकड़े गए तो जिंदगी बर्बाद हो जाएगी । “
“ऐसे कैसे पकड़े जाएंगे !! भिया का काम नई कर रये ! भिया का हाथ है अपने उपर । फिर पुलिस, वो सब जानती है, और मानती भी है । सब एक दूसरे के लिए जरूरी हैं और सारे एक ही हम्माम में खड़े हैं ।“
बापू मानते हैं कि पुलिस डाइरेक्ट जनता की सेवक है और उनके जैसे लोग इंडाइरेक्ट सेवक है । पिछली बार भिया को फंड की जरूरत पड़ी थी तो बापू ने बैंक के तीन एटीएम तोड़े थे । लोकतन्त्र की रक्षा के लिए हर किसी योगदान देना पड़ता है । 
 अभी देखो, भिया ने बोला है कि बापू एक महिना चोरी बंद, बस पार्टी का काम करो । जैसे पुलिस ड्यूटी करती है वैसी अपनी भी है । पहले सरकार बन जाए, विभाग तय हो जाएँ, भिया लोग काम सम्हाल लें उसके बाद व्यवस्था बहाल हो जाएगी ।
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