बड़े दिनों
के बाद डब्बू का फोन है, बड़े साले साहब का मंझला बेटा । बोला – “हेल्लो फूफाजी, कैसे हैं आप ? तबियत तो
ठीक है न ?”
“हाँ डब्बू,
छत पर धूप ले रहे हैं, और तबियत भी ठीक ही है । बस जोड़ों में दर्द रहता है । गठिया
बताया है डाक्टर ने । लेकिन तुम्हारी बुआ को लगता है कि नौटंकी है । कहती हैं कुछ
काम घाम नहीं करता हूँ इसलिए जोड़ों में सूजन चढ़ गयी है । अब बताओ कल जबरदस्ती छत
की झाड़ू लगवाई । बुआ तो खुश है पर घुठने और कमर नाराज चल रहे हैं । समझ में नहीं
आता किसकी सुनूँ, डाक्टर की या बुआ की । डाक्टर तो दस मिनिट देखता है, इनके पंजे
में तो चौबीस घंटे रहना पड़ता है । आज बिलकुल चला नहीं जा रहा है और ये सामने झोला
पटक गयी हैं कि बाज़ार जाओ और सब्जी भाजी ले आओ । समझ में नहीं आ रहा है कि इलाज
किसका करावाऊँ । पड़ौस में अगरवाल साहब रहते हैं । बोलते हैं गठिया का ही करवा लो,
ठीक हो जाने के चांस भी रहते हैं । अभी जाऊंगा सब्जी लेने लेकिन मुझे पता है कि
मेरी लाई सब्जी इनको पसंद नहीं आएगी । बहाना चाहिए इन्हें । डांट डपट कर पूरी खर्च
हो लें तब ही औरत से इन्सान बन पाती हैं । तुम तो जानते हो इनकी दिमागी ताकत ।
कहती है हमारी अम्मा ने बचपन में बादाम खूब खिलाई है । अब देखो भाई किया धरा अम्मा
का भुगत हम रहे हैं । दिमाग इनका पजल गेम से ज्यादा जटिल है । एक तरफ से मिलाओ तो
दूसरी तरफ से बिगड़ जाता है । हालत ये है कि न पूरे पूरे कमजोर हो पाते हैं न ही
ताकतवर । न जीने में न मरने में, अनारकली बना के रखा है हमें । दूध से सारी मलाई
खेंच कर घी बना लेती हैं । तीन बार एक चम्मच घी मांगों तो एक बार आधा चम्मच देती
हैं । सारा घी भगवान के दीपक को जाता है । थोड़े से घी के चक्कर में भगवान भी
तुम्हारी बुआ की तरफ हैं । कभी हिम्मत की भी कि आज जरा डपट दें उनको, तो बुखार
पहले चढ़ जाता है । मामला उलट जाता है , दिन में तीन बार उनकी डांट के साथ
पेरासेटामाल खाना पड़ जाती है । अब तुम तो जानते हो कि पांडव के साथ भगवान थे तो सौ
भाई और बड़ी सेना भी हार गयी थी । इधर हम तो अकेले हैं । रोज गीता पढ़ते हैं लेकिन
युद्ध के लिए जरुरी हिम्मत पैदा नहीं हो पाती है । अब सोच रहे हैं कि घी का दिया
हम भी लगाया करें । लेकिन किचन में घी पता नहीं कहाँ रखा रहता है कि ढूंढते रहो
मिलता ही नहीं । एक बार घी ढूंढते रंगे हाथ पकड़ लिया तो तीन दिनों तक जमानत नहीं
मिली । थाने में होते तो तीन घंटे में मिल जाती । पिछले दिनों सरकार ने महिलाओं के
पक्ष में बिल पास करके उन्हें और ताकतवर बना दिया । इधर राज्य सरकार रिश्तेदारी
बना रही है सो अलग । अब स्थिति देखो, भगवान इनके
सरकारें भी इनकी ! ऐसे में एक बेचारा फूफा क्या कर सकता है सिवा गरल पीने
के । ... तुम बताओ , तुमने कैसे फोन किया ?”
“कुछ नहीं
फूफाजी । बस आपके हालचाल पूछना थे । “
“डब्बू एक
तुम्हीं हो हमारी ससुराल में जो हाल पूछ लेते हो । बाकी तो सारे मजे लेने के लिए
फोन करते हैं । जवाई हैं सो अपनी दुर्गति बताने में लाज आती है । इसी का फायदा
उठाया जाता है । बोलें भी तो क्या फायदा, उधर से कोई सहायता तो मिलना नहीं है ।
उल्टा अगर तुम्हारी बुआ जान गयीं कि क्या कुछ बोला है तो उनके पास अपनी ईडी है
पक्के बाँस की । तुम्हारे भाई चिंटू की शादी में जो हम रूठे थे तो आज बता दें
तुमको, बुआ का ही आदेश था । बोली थीं ससुराल में शादी है थोडा मुंह फुला कर बैठना
तो नेग एक सौ एक मिलेगा वरना ग्यारह में निबटा देंगे । बोलीं मैं खूब जानती हूँ
अपनी भौजाइयों को, एक से एक छंटी हुई हैं । तीन चार साल हुए सावन में मैके गयीं
थीं । बुलवा लिया था तुम्हारे पापा ने । इधर क्या तो वक्त गुजरा बिंदास । हमारे भी
कोपलें फूट आयीं, रेगिस्तान में हरियाली छाई, कुछ फूल भी खिले । लेकिन बादाम खाया
दिमाग हैं न बुआ का । अपनी भौजाइयों से रूठ आयीं किसी बात पर । अब भाइयों की
हिम्मत नहीं कि दोबारा बुला लें । हरियाली फिर रेत रेत हो गयी और आज तक एक बीज
अंकुरित नहीं हुआ । अब क्या कहें, हम तो किसी से कुछ कहते नहीं । तुम चिंता नहीं
करना बेटा । गब्बर से हमें एक ही आदमी बचा सकता है खुद गब्बर । ... अब फोन रखें कि
कुछ और सुनोगे ?”
“अब रख ही
दो फूफाजी । हम नीचे कमरे से बोल रहे हैं, फोन स्पीकर पर है और बुआ पास ही बैठी
हैं ।“
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