चुप रहने
के लिए नहीं कह रहे हैं, बस जरा मौन रखिये । मौन एक साधना है । साधना से मनुष्य का
विकास होता है । उसकी सहनशक्ति जो है काफी बढ़ जाती हैं । अभी जो आप बात बात में
ततैया की भांति डंक ले कर उचका करते हो ना, ये बीमारी ख़त्म हो जाएगी । बीमार आदमी
समाज के लिए अच्छा नहीं होता है । इसलिए आँख कान बंद रखिये और मुंह भी । न देखिये,
न सुनिए और न ही बकिये । गाँधी को पढ़ा है ना ? क्या कह गए थे ? बुरा मत देखो, बुरा
मत सुनो, बुरा मत कहो । वो लम्बी सोचते थे, जानते थे कि तुम्हारे जैसे लोग रहेंगे
खोपड़ी में सफ़ेद बाल की तरह और पूरे सर को बदनाम करेंगे । आप लोग रात में लिखने
बैठते हैं, यही समय उल्लुओं का काम पर निकलने का होता है । विकास जैसे अच्छे काम
दिन में होते हैं और दिन में आप सो जाते हो ! रात तो बनी ही है बुरे कामों के लिए
चाहे लेखन ही क्यों न हो । भ्रष्टाचार अगर दिन में हो तो बताओ क्या उसकी गरिमा रह
पायेगी ? दिन में सेवा की जाती है, राजनीति के लिए रात होती है । समझदार वो होता
है जो जानता सब है लेकिन मौन रहता है । मंदिर जाते हो न ? भगवान को सब पता होता
है, किन्तु कुछ बोलते हैं क्या ? छोटी बड़ी कैसी भी सजा देना होती है तो देते हैं
चुपचाप । बगल में बैठा आदमी जेकेट से निकाल कर चोरी से काजू खा लेता है और देखने
वाला देख लेता है । जैसे मछली केंचुवा लपकती है और काँटे में फंस जाती है । इसलिए
राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर लोग कहते हैं कि आप नेता हों या अधिकारी, दिन में
काजू के लिए भी मुंह नहीं खोलना चाहिए । रात है न आजू, बाजू, काजू के लिए ।
और लाख
रुपये की बात, तुम्हारे लिखे से किसी का कुछ बदल रहा है क्या ? तुमने कवियों पर
कितना व्यंग्य कसा लेकिन क्या असर हुआ ! उल्टा उनकी फसल झूम के आ रही है । देख
लेना वह दिन जल्दी आएगा जब फेसबुक का नाम पोएटबुक रखना पड़ेगा । दुनिया की चाल
निराली है, वो अपने हिसाब से चलती है । आम जन को दुनिया के हिसाब से चलना होता है
। अगर आप बदल सकते तो शुरुवात अपने घर से करते । सुधारक होने का बड़ा भ्रम पाले हो
और अपने घर में दो रोटी के लिए मौन साधे रहते हो या नहीं ! बीवी बच्चे आपको देखते
सुनते हैं क्या ? वो समझदार है, ज़माने के साथ चल रहे हैं । न बुराई को देखेंगे न
बुरे को ।
ठीक है आप
बोलते नहीं लिखते हो । और लिखने को लेकर गाँधी जी ने कुछ नहीं कहा है । तो भईया
जान लेओ कि गाँधी के ज़माने की बात और थी । लोग पढ़ नहीं सकते थे, सिर्फ सुनते थे ।
इसलिए तरह तरह की कथा बांची जाती थी । अब लोग शिक्षित हैं, पढ़ते हैं और समझते भी
हैं । बांचा बंचायी बंद हो गयी । तुम्हारा लिखा कंकर की तरह आँखों में किरकिरी करता
है । ध्यान रखो अब लोककल्याण की राह पर है देश । जब सारे लोग पुष्प वर्षा करने में
लगे हैं तुम कंकर फैंक रहे हो !! ना भईया ना, दिल बड़ा करो और जुबान छोटी । लेखकों
की सूचि बन रही है, कहो तो नाम लिखवा दें तुम्हारा भी । ले लेना ... मुफ्त मंजीरे
मिलेंगे । मन बाजे छनन छन छन ... मजे में
रहोगे ।
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