जब से
चुनाव परिणाम आए हैं रामभरोसे उदास बैठे है। उदास होने का उनका यह पहला अनुभव नहीं
है.। वक्त जरूरत के हिसाब से वे उदास होते रहे हैं। लेकिन इस बार बात कुछ अलग है।
सोचा था कि लोकतंत्र की चाबी मंदिर में है। धर्मभीरू जनता मंदिर के सिवा कुछ नहीं
देखेगी। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि चुनाव के पहले जो जनता अपनी और प्यारी
लग रही थी चुनाव के बाद वह आंख की किरकिरी क्यों लग रही है। अब तो उनका भगवान पर
से भी भरोसा उठता जा रहा है। किसी जमाने में सवा रूपये के प्रसाद में मान जाते थे।
ठीक है कि मंदिर अभी अधूरा है, पर इतना भी
अधूरा नहीं है कि टांग तोड़ कर बैसाखी पकड़ा दो!! रामभरोसे मानते थे की जनता भोली
है। भजन भंडारे और भगवान के नाम पर जिधर चाहेंगे हाँक लेंगे। पांच साल से भेड़िया
आया भेड़िया आया चिल्ला रहे थे। लेकिन भेड़ बकरियों ने अपने चौकीदार को सींग मार कर
चित कर दिया यह चिंता का विषय है। इस बार और माहौल बनाए रखते तो देश को एक मैड इन
इंडिया बायोलॉजिकल भगवान मिलने ही वाला था । रामभरोसे के पास तो आरती और वंदनाएं
भी तैयार पड़ी हैं। सोचा था अपने भगवान के मंदिर बनाएंगे, वे
जहां-जहां कदम रखेंगे उसे पवित्र घोषित कर देंगे। संत उनके नाम की कथाएं सुनाएंगे।
उनके काम का बखान करते हुए नए-नए पुराण लिखे जाएंगे। देश हजारों साल पुराने नए युग
में प्रवेश करेगा। लेकिन सारे सपने धरे के धरे रह गए। किसे पता था कि मूर्ख जनता
सांप सीढ़ी खेलने बैठ गई है।
राम भरोसे ने टीवी बंद कर दिया, अब खबरों में
वह बात नहीं। मजा ही नहीं आ रहा है। जिनकी सूरतें भूल गए थे वे भी दिखने लगे हैं।
डर लगता है उन्हें देखकर। उन्होंने अखबार उठा लिया और उलट पलट कर रख दिया। इनके भी
सुर बदलते जा रहे हैं। चंद दिनों में ही कितना कुछ बदल गया! सोचा नहीं था कि यह
दिन देखने पड़ेंगे। क्या करें किसी काम में मन नहीं लग रहा।
"आइसक्रीम खाओगे?" पत्नी ने पूछा
" अरे यह कोई आइसक्रीम खाने का मौसम है!! कुछ तो सोच समझ कर
बोला करो।" राम भरोसे को गुस्सा आया।
"गर्मी बहुत पड़ रही है और तुम्हारा मन भी थोड़ा खिन्न है।
आइसक्रीम खा लो अच्छा लगेगा।"
" अब तुम जले पर आइसक्रीम मत लगाओ। देख रहा हूं तुम भी बहुत
बदल गई हो। "
"हफ्ता भर हो गया उदासी औढ़े बिछाए बैठे हो!... सब दिन एक समान
नहीं होते हैं। भगवान चाहेगा तो बैसाखियां बहुत जल्दी हट जाएगी। "
" यही तो दिक्कत है भगवान ही तो नहीं चाह रहा है। "
" भरोसा रखो भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।"
" इसका मतलब है कि तुमने भी वोट उधर वालों को ही दिया है!! जब
घर में ही सेंड लगी हो तो कोई क्या कर सकता है।"
राम भरोसे की उदासी और बढ़ गई और अनमने से आवारगी के लिए बाजार कि
और निकल गए।
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