पिछले दिनों दबंग -3 की शूटिंग
देखने के चक्कर में पचिसों धक्के और दो दो डंडे खा कर लौटे चुल और बुल उदास बैठे
थे और सलमान को बीड़ी पीते हुए रिजेक्ट कर रहे थे । तभी कुछ पार्टीबाज़ हुजूम में आए और उन्हें पर्चे
पकड़ा गए । लिखा था गरीबी हटाएँगे । किसी जमाने में दादी ने कहा था, पापा ने भी कहा था, अब ये कह रहे हैं ।
पर्चा देखते
हुए चुल बोला – “चल जाएगी ?”
बुल ने पूछा- “क्या दबंग -3 ?”
“नहीं रे, गरीबी हटाओ -3 । “
“काठ की हांडी कितनी ही मजबूत क्यों
न हो तीसरी बार नहीं चढ़ती है । “ बुल ने मुहावरा जड़ा जो चुल को समझ में नहीं आया, बोला – “किसको वोट दें समझ में नहीं आ रहा है ! “
“अरे इसमे दिक्कत क्या है !! जो
चुनाव में खड़े हैं उनमें से किसी एक को दे मरो । “
“बहुत कंफूजन है यार ! जो खड़े हैं
उनके लिए कोई वोट मांग नहीं रहा है । कहते हैं वोट भले ही इनको दो वो जाएगा ऊपर ही
। “ चुल ने पर्चे को गौर से देखते हुये कहा ।
“तो जाने दे ऊपर । कितनी बार वोट दिये
हैं कुछ पता चला उनका क्या हुआ ! अपने हाथ से एक बार निकला वोट किधर जाता है इससे
अपने को क्या ?”
“ है क्यों नहीं !? गरीबी हटाने की कै रहे हैं । अगर हट गई तो हमारे भी सुख चैन के दिन आ
सकते हैं कि नहीं । दद्दा मर गए सपना देखते देखते । पता नहीं अब भी सपना देख रहे हों
कहीं पैदा हो के । हम सोचते हैं कि अबकी सही जगो पे वोट दे दें तो क्या पता गरीबी
जो है दारी हट ही जाए । बहुत परेसान कर लिया । “ चुल उम्मीद से भरने लगा ।
“अबे पागल है क्या ! गरीबी कोई सब्जी
मंडी का अतिक्रमण है जो कि सरकार के कहे से पुलिस डांडा ले के हाँक देगी और वो हट
जाएगी !” बुल नहीं माना ।
“देख ले ! बहत्तर हजार देने का बोले
हैं । सबको मिलेगा । सस्ता अनाज, सस्ता अस्पताल, सस्ता स्कूल, सस्ता घर सब देंगे तो कहाँ रहेगी गरीबी
। मैं तो काम वाम छोड़ दूंगा । मजे में बैठ के खाऊँगा सुबे शाम पऊवा लगा के । और
क्या चाहिए अपने को । नेता नहीं राजा महाराजा हैं ये लोग ।“ पर्चे में लिखी
घोषणाएँ दिखा कर चुल बोला ।
“राजा महाराजा नहीं रे मूरख, राजनीति में भी चुलबुल पांडे होते हैं बड़े वाले । हाथ हिलाते निकल जाएंगे
और आखरी में जब पिक्चर खतम होगी तो हमारे हाथ में आधा फटा हुआ टिकिट रह जाएगा बस । उसी से मिटा लेना अपनी गरीबी ।
.... देख कचरा गाड़ी आ रही है, पूछ लेना इस पर्चे को गीले में
डालना है या सूखे में । “
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