गुप्तचरों ने सूचना दी कि जनाधार घट रहा है । सुन कर धराधीश बोले – “लोकतन्त्र में जनाधार एक भ्रम है, और उससे भी बड़ा भ्रम है दल । जिन्हें शासन करना आता है वे जनाधार और दलों की परवाह नहीं करते । फिर भी आत्मसंतोष के लिए जरूरी है कि राज्य का हर आदमी खुश हो ।“
उन्होने
प्रचार माध्यमों से प्रजा को संदेश दिया कि “हम प्रजा को खुश देखना चाहते हैं
इसलिए जिनके घर में कोई गमी हुई हो उनको छोड़ कर बाकी लोग आगामी आदेश तक खुश रहें
।“ इतना सुनते ही तमाम लोगों में खुश होने
की होड लग गई । लड्डू बंटे , कुछ ढ़ोल पर नाचे, जुलूस निकले, नारे लगे । खुशी चरम पर पहुंची तो कुछ ने पत्थर फ़ेंके और कुछ ने आग लगाई
। दिन गुजरा तो रात में सोते हुए भी खुश हुए । दो चार दिनों में ही उनका ध्यान इस
बात पर गया कि कौन लोग खुश नहीं हुए । नाखुश लोग राज्य का माहौल बिगड़ सकते हैं ।
कार्यकर्ताओं ने मोहल्ला स्तर पर सूची बनाई । पता लगा कि ज़्यादातर लोग खुश नहीं
हैं । पहले भी जो खुश नहीं थे उनके यहाँ छापे पड़े थे । लेकिन ये आम लोग हैं इनके
यहाँ छापे पड़े भी तो छुपने छुपाने की जगह से छिपकली-काकरोच ही बरामद होंगे । इसलिए
सिफ़ारिश हुई कि खुशी का कानून बनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है । हालांकि धराधीश
ने कहा था कि विकास करेंगे ताकि लोग खुश हों । मीडिया वालों ने बात समझे बगैर इसको
चला दिया । दरअसल उनका मतलब था कि लोग खुश हों ताकि वे विकास कर सकें । लेकिन कोई
बात नहीं, भूलें होती ही हैं सुधार करने के लिए ।
सख्ती हुई तो अब हर कोई खुश है । जिसने खुश न रहने की कसम खा रखी थी वो भी बकायदा खुश है । खुशी एक हवा है जो सबसे ऊपर चल रही है । उससे नीचे, यानी थोड़ा नीचे कोरोना चल रहा है । थोड़ा और नीचे चलें तो पता चलेगा कि मंदी भी चल रही है । उसी के साथ साथ बेरोजगारी भी चल रही है । और नीचे मत उतरियेगा, भुखमरी और आत्महत्याएँ वगैरह भी चल रही हैं, लेकिन वो आपसे देखी नहीं जाएंगी । आप तो ऊपर देखिए, ऊपर कि हवा देखिए, खुशी देखिए । तबीयत जो है हाथों हाथ मस्त हो जाएगी । हवा ही सब कुछ है । हवा को प्राण वायु कहा गया है । धराधीश भी यही मानते हैं, प्रजा को भी मानना चाहिये । अपने अंदर झाँकने की जरूरत नहीं है । कबीर कह गए हैं – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ; जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय । मतलब ये कि जितनी भी बुराई है, अपने अंदर है । बाहर हवा है खुशी की । उसके साथ चलो । खुशी के बिना जीवन मृत्यु के समान है । लोग गा-गा कर कह गए हैं कि अपने लिये जिये तो क्या जिये; तू जी ए दिल, जमाने के लिए । इसी तरह दूसरों के लिये खुश होना असली खुशी है । धराधीश के लिये खुश होना सच्ची देशभक्ति है । जो खुश नहीं हो सकते उनके जीने का कोई अर्थ नहीं है । समझ रहे हैं ना आप लोग । धरती माँ है और माँ के ऊपर जो भी बोझ हो उसे कम कर देना सुपुत्रों का कर्तव्य है । कोई दिक्कत हो तो अभी बताएं । खुश होना सीखना पड़ता है, सिखा देंगे । ये अपने आप खुश होने वाली खुशी से अलग है । इसमें खुश दिखने का महत्व है । हर समय रुदन का दास केपिटल लिए फलफूल रही खुशी में खलल डालना देशद्रोह है । जितनी जल्दी सीखोगे उतनी जल्दी देशभक्त बनोगे । जय हो ।
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