दुनिया का क्या करो साहब, जलने
वालों से भरी पड़ी है। किसी का दामाद कमाऊ है, तो है। लेकिन नहीं साहब, भला हमारे
दामाद से ज्यादा उसका दामाद कमाऊ क्यों हो! लेकिन भइया किस्मत उसकी, खुद उपर वाले ने अपने दाहिने हाथ से लिखी है
तो कोई क्या कर लेगा। और जलने वाले कोई आज थोड़ी पैदा हुए हैं, उनकी तो पीढियां हो गई जलते जलते और विपक्ष
में बैठते हुए। फर्क सिर्फ यह हुआ है कि पहले चूल्हा-सिगड़ी की तरह जलते थे अब इनडक्शन-प्लेट
की तरह तपते हैं। लेकिन दामाद जैसे पहले ‘श्री-जी’ थे वैसे ही आज
भी होते हैं ।
यों तो भारत में जो भी आदमी है, यानी जिन्हें जनगणना वाले हमारे भाई सरकारी कागजों में ‘पुरुष’ लिखते हैं, वो कुछ करे या न करे दामाद हो जाने की योग्यता तो रखता ही है, बस शर्त यह है कि लड़की को पसंद आ जाना चाहिए।
गोरा-काला, पढ़ा-बेपढा, दुबला-मोटा, लंबा-नाटा, कैसा भी उल्लू का पट्ठा हो, किसी न किसी का दामाद हो जाने में सफल हो ही जाता है। मीडिया-घराने फिल्मी
कलाकारों का रेटिंग चार्ट बनाते रहते हैं, वैसा अगर कलाकार-दामादों का भी बनाएं तो सबसे उपर सरकारी दामाद-‘श्री--जी’ होंगे। दामाद नंबर वन पूरे देश का ‘मेहमान’ होता है। देश जो है बाकायदा उसकी ससुराल है। उसे हर
जगह अपने को पुजवाने और नेग लेने की आदत पड़ जाती है। शीध्र ही वो पार्वती-महादेव
के सांड की तरह दबंग हो जाता है। जिधर मर्जी होगी उधर मुंह मारना उसका वैवाहिक
अधिकार होता है। खेत में हल चलाने का काम बैलों का होता है, मेहनत के बाद उन्हें थोड़ा सा चारा मिलता है। किन्तु
पार्वती का सांड किसी भी खेत को चर डालने का अद्रश्य लायसेंस अपने सींग में बांधे
रहता है। व्यवस्था को पता होता है कि सरकार का दामाद होते ही, चाहे कोई कल का कितना भी मामूली आदमी क्यों न
हो, उसको एक तरह का लायसेंस मिल
जाता है, इसके बाद उसे किसी
दूसरे लायसेंस की जरूरत नहीं रह जाती। बात चरने की आएगी तो अक्खा खेत उसका है। और
खेत की क्या औकात है जी!, देश उसका
है, यानी देश उसी का है। सास का
चिड्डा, सास का खेत, खालो चिड्डा भर भर पेट। पहले देश ‘......माता’ था अब सासू-मां है। पहले देश की धरती में खेले, अब जमीन से खेल रहे हैं तो लोगों को बुरा लग रहा है!
जांच की मांग उठाई जा रही है! जांच में इसके अलावा कौन सा सच सामने आएगा कि दामाद ‘दामादजी’ हैं ।
दामादजी अगर तफरी पर निकले और उसे दो-तीन अमरूद, एक-दो गुलाब के फूल और दो-चार एकड जमीन पसंद आ जाए तो
क्या ले लेने से उसे मना किया जा सकता है! क्या यही है गौरवशाली भारतीय संस्कृति ?
विपक्षी भारतीय संस्कृति की बहुत दुहाई
देते रहते हैं, आज अगर सरकार
संस्कृति का पालन और संवर्धन कर रही है तो पच नहीं रहा है किसीको!! राम का राज ‘रामराज्य’ था तो उसकी गहराई में जा कर देखो। राम नाम ले कर
राजनीति करने वालों को पता चल जाता अगर राम का कोई दामाद भी होता। बड़ा दिल रखने की
जरूरत है विपक्षियों, ...... मानने
से गैर भी अपने लगते हैं। ‘श्री-जी’
को आप अपना भी दामाद मान लोगे तो फिर
कोई समस्या नहीं रहेगी।
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