गुरुवार, 24 सितंबर 2020

कुलीन कुत्ता

 







     कुत्ता एक विचार की तरह बहुत समय से कवि के साथ बना हुआ था । किसी जमाने में, यानि युवावस्था में जब उनका झुकाव वामपंथ की ओर था तब   उन्हें भौंकते हुए कुत्ते अच्छे लगते थे । लेकिन अब जब जिंदगी प्लेटफॉर्म पर खड़ी ट्रेन लग रही है उनका रोम रोम दक्षिण दक्षिण लहक रहा है । बाहर जो जो बदल सकते थे बदल चुके हैं । लेकिन भीतर भौंक रहा विचार कमबख्त अपनी टेढ़ी दुम के साथ अभी भी गाहे बगाहे मुश्किल पैदा कर देता है ।

“विचार एकदम से नहीं बदलते चाहे बाहर बहुत कुछ बादल जाए ।“ फ़ेमिली डाक्टर बोले । “आप ऐसा कीजिए भीतर के कुत्ते को बाहर के कुत्ते से रिपलेस कीजिए ।  बाहर का कुत्ता बाहर से बिना दुम का होता है लेकिन भीतर  से खूब दुम हिलाता है ... हो सकता है सफलता मिल जाए ।“

कवि ने बारह हजार में एक दुमहीन कुलीन पिल्ला खरीदा । कुलीन महंगे बिकते हैं यह वे जानते थे । कोशिश करते तो इस कीमत में तीन इंसानी बच्चे मिल जाते ।  जैसे जैसे समाज में सभ्यता का विकास हो रहा है वैसे वैसे मनोकामना-पूर्ति प्रभु के दर्शन मात्र से हो रही है । बिन ब्याही लड़कियों के ओवन-फ्रेश बच्चे ऑफ लाइन मार्केट में मिल रहे हैं । रहा कुलीनता का सवाल तो वह वहीं बची दिख रही है जहाँ धन है शायद । इंसानी कुलीनता तो ड्राइंग रूम में रखा मोर पंख रह गई है । कोई पंख ले कर उसका मोर ढूँढने निकलेगा तो ढूंढते ही रह जाएगा । मोर ज़ेड सिक्यूरिटी में कहाँ शिलाजीत के बिखरे दाने चुग रहा है पता ही नहीं चलेगा । बहरहाल, कुत्ता कवि की गोद में किलोल कर रहा है और बार  बार उनका मुंह चाटने की कोशिश भी । कुत्ते को अपनी कीमत का पता है । हर कुलीन संसार के बारे में कुछ जाने न जाने पर अपनी कीमत के बारे में जरूर जानता है । इस समय वह यानि कुत्ता कवि को मुंह चाटना सीखा रहा है । कुत्ता मंहगा हो और आपने खुद खरीदा हो तो उसके साथ मुंह-मिलन में कोई जान नहीं पता कि कौन किसका चाट रहा है  । महंगा होने के बावजूद वह अदृश्य दुम हिला सकता है तो खरीदने वाले को भी ईगो प्रोब्लेम नहीं होना चाहिए । आखिर उसे भी तो पैसा वसूल करने का अधिकार है ।

कवि की संगत से कुत्ते में संस्कार पैदा हो गए । महीना भर में कुत्ता कविता सुनने लगा । कवि को कदरदान मिला तो अंदर से चौड़ी छाती से हुमक कर जब तब आवाज आने लगी कि अब दुनिया जाए भाड़ में । कवि के साथ श्रोता ! वो भी दुम हिलाता हुआ !! किसके नसीब में होता है । कवि को पद्मश्री दिलाने के लिए एक ही कुत्ता काफी है । बारह हजार में और क्या लोगे !!

अचानक पड़ौसी हीरा भागचंदनी आ गए और कुत्ते को देखते ही बोले - माल अच्छा है, नाम क्या रखा है कुत्ते का ?’

अभी तक कुत्ते का नामकरण नहीं हुआ था, कवि ने पूछा – क्या रखें  ?

“जिनपिग रख दो । ... धंधा चौपट हो गया है सांई । ऐसा वाइरस छोड़ा है कमीने ने कि सारी दुनिया ऑक्सीज़न मांग रही है ।“

कवि ने विचार किया, बोले – जिन रख देते हैं ।  पिग तो ठीक नहीं लगेगा, बारह हजार दिए हैं नगद । कुत्ते कि इज्जत का सवाल है । भागचंदानी को इज्जत कि बात ठीक नहीं लगी तो कुत्ते पर टेढ़ी नजर डालते हुए बोले – इज्जत की बात थी तो देखभाल कर लाते । इसका तो मुंह काला है !

“मुंह पर मत जाइए । कलर देखिए, कितना सुनहरा पीला है !! दूर से सोने का कुत्ता लगता है, जैसे माता सीता को हिरण लगा था सोने का । 

“वो तो ठीक है सांई, पर आदमी तो मुंह देखता है ना , मुंह काला तो सब काला । देसी पिग कहीं का । “

“कैसे पड़ौसी हो जी तुम ! बुराई किए जा रहे हो ! काले मुंह का बड़ा फायदा है । कल को तुम कह नहीं सकोगे कि तुम्हारा कुत्ता मुंह काला करके आया है !”

“इसकी तो दुम भी गायब है ! कुत्ता दुम नहीं हिलाए तो किस बात का कुत्ता !! बारह हजार किस बात के दे दिए आपने !!”

“ देखो भगचंदनी, ये बड़े से बड़े शतीर ब्लेक मार्केटियर को देख कर पहचान सकता है और पुलिस को फोन भी लगा सकता है  मोबाइल से ।“

“ अरे बाबा ! ये पुलिस को फोन कैसे लगा सकता है ! हमको बेवकूफ मत नाओ । “

“कुलीन है ना, इसके सारे रिश्तेदार पुलिस में हैं । एक बार ये फोन पर भौंक भर दे तो पुलिस फाड़ खाए । “

“अरे बाप रे ! कुत्ता है कि वाइरस है बाबा !” कहते हुए हीरा भागचंदानी भाग लिए ।

----


शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

ये रात अजब मतवारी है !

 



लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है । कविता की पंक्तियाँ देखते ही शिक्षा मंत्री की त्योरियां  चढ़ गईं । इसलिए नहीं कि उन्हें कविता समझ में आ गई, बल्कि इसलिए कि इसमें हार्स ट्रेडिंग के खुलासे की बू आ रही है । राजनीति में सब कुछ उजागर नहीं होना चाहिए वरना धंधे की इमेज खराब होती है ।  कल को बच्चे इसे पढ़ेंगे तो बगावती होंगे और मांग करेंगे कि मीडिया घोड़ों से लोहे का स्वाद ही नहीं लोहे का भाव भी पूछे । सरकार को पाँच साल आगे देखते हुए चलना पड़ता है । घोड़ों से सिर्फ ट्रेडिंग के समय बात की जाती है वो भी बंद कमरों में । उन्हें पाँच सितारा में बैठा कर इतना पिलाया खिलाया जाता है कि लोकतंत्र के ये अश्व बारात के घोड़े हो जाते हैं । जनता की तरफ से कोई शिकायत नहीं है । जनता समझदार और सहिष्णु है, संत शिक्षा में  रची पगी हुई है उसे चाहे कितनी ही बार ठगो वो कुछ नहीं बोलती है । संत कह गए हैं “कबीरा आप ठगाइए और न ठगिए कोय, आप ठगाय सुख ऊपजे, और ठगै दुःख होय”। इससे सुंदर और क्या बात हो सकती है हमारे लोकतन्त्र में !!  सत्ता किसी की भी हो जनता के सुख में ही सरकार का सुख है । कबीर जन कवि थे तो ज़िम्मेदारी जनता की ही बनती  है कि वो श्रद्धा पूर्वक हर मौसम में सुखी रहे ।

आपको लग रहा होगा कि जनता भोलीभाली लल्लू टाइप है । तो जान लो कि लोग मूर्ख नहीं हैं जो अपने खच्चरों को युद्ध का घोड़ा बना कर भेजते रहे हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीति एक युद्ध है और युद्ध में सब जायज होता है, यहाँ तक कि खच्चर भी । अब आगे वालों पर है कि वे वक्त जरूरत के हिसाब से बाजिब कीमत दे कर वे उन्हें गधा या बैल बनाते हैं । ढोने के मामले में गधों की अहमियत कम नहीं है । जब एक शाह ने दिल्ली से दौलतबाद राजधानी शिफ्ट की थी तो किसकी पीठ पर गई थी सरकार !! और दस साल बाद वापस दिल्ली भी उसी विश्वास के साथ किसकी पीठ पर लौटे थे !? इतिहास में बकायदा दर्ज हैं गधे भी, नाम भले ही बादशाह हो ।

        जिम्मेदारों ने शिक्षा मंत्री को पहले ठंडा पानी और बाद में बादाम शर्बत पिलाया । इरादा यह था कि गुस्सा ठंडा हो और बुद्धि को बल मिले यदि हो । कहा – सर इस कविता में सब कुछ सिंबोलीक है यानी प्रतिकात्मक । ये घोड़ा उस तरह का घोड़ा नहीं है जिस तरह का आप सोच रहे हैं । ये घोड़ा है पर नहीं है । जो नहीं है वो घोड़ा है । समझिए घोड़ा बिरादरी में यह पपुवा है । और लगाम भी लगाम नहीं है लोहे के चने हैं जो पपुआ बरसों से चबा रहा है । चबा क्या रहा है हुजूर, सच तो यह है कि आप ही लोग चबवा रहे हैं । कवि जब कह रहा है कि इससे लोहे का स्वाद पूछिए तो असल में आप लोगों की प्रशस्ति गा रहा है । कवि जो है इशारों में अपनी बात कह रहा है । वो एक भजन है ना .... समझने वाले समझ गए ना समझे वो अनाड़ी है ।

            “ये क्या बके जा रहे हो बे !!  हम क्या कोई दूसरे ग्रह से आए हैं !! ... एक तो वो भजन नहीं है । दूसरा उसमें तो वो चाँद खिला वो तारे हँसे, ये रात अजब मतवारी है  था ! उसमें घोड़ा कहाँ था ? याद है हमें अच्छी तरह से । ऐसे ही नहीं बन गए है प्रदेश के शिक्षा मंत्री !! मूरख समझते हो !” शिक्षा मंत्री भड़के ।

           जिम्मेदार हाथ जोड़ कर बोला – “सॉरी सर । हमारी कहाँ औकात समझने कहने की । आपकी कृपा बनी रहे बस, घोड़े को लोहे और स्वाद सहित अभी हाँक दिया जाएगा । आदेश करें हुजूर ।“

                                           ----- 



मंगलवार, 11 अगस्त 2020

हवा हवा हवेली

 

बड़े ठाकुर के पास कोई चारा नहीं था । लोगों को बुलवा कर साक्षी बनाने के लिए बहुत डरते डरते निर्णय लिया । अंत समय निकट आ चुका था और जैसा कि परंपरा है अपना सब कुछ पुत्र को सौंपना था । उनकी जान पुश्तैनी हवेली में बसी थी ।  हवेली में बहुत सी कीमती चीजें जड़ी और सजी पड़ीं थीं । बोले- “ सपूतसिंह अंत समय करीब है, मुझे जाना पड़ेगा । इन तमाम रिश्तेदारों, पंचों और गाँव वालों के सामने कसम खा कर कहो कि तुम हवेली की रक्षा करोगे और उसे कभी भी बिकने नहीं दोगे ।“

सपूतसिंह ने ऊंची आवाज में कहा –“ मैं कसम खाता हूँ की चाहे जो भी हो जाए हवेली नहीं बिकने दूंगा । अब आप निश्चिंत हो कर आंखे मूँद लें पिताजी । इस समय मुहूर्त बहुत अच्छा है, हम सब प्रार्थना करते हैं कि आपको स्वर्ग मिले ।“

सपूतसिंह ने अपने विश्वसनीय साथियों की ओर देखा । उन्होने सहमति में आँखें झपकाई । कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाना शेष है । लेकिन शव से सहयोग मिल जाएगा इसमें उन्हें संदेह नहीं है ।

न चाहते हुए भी बड़े ठाकुर चल बसे । खबर फैली और लोग जमा होने लगे । पुराने आदमी, पुरानी परम्पराएँ । बैठने के लिए बड़े हाल से फर्नीचर हटाया गया और कुछ बड़ा सामान भी । जो बाद में कहाँ गया पता नहीं चला । ... दिन बीतने लगे और एक एक करके हवेली का समान भी बिकता गया । लोगों को लक्षण अच्छे नहीं लगे तो कुछ ने चिट्ठी लिख कर याद दिलाया कि ठाकुर साहब की इच्छा थी कि तुम हवेली को सम्हालोगे ... लेकिन ... खाली होती जा रही है हवेली !

“आप लोग निश्चिंत रहिए, मैं हवेली को बिकने नहीं दूंगा ।“ सपूतसिंह ने दृढ़ शब्दों में आँखें गोल करते हुए कहा ।

कुछ लोगों ने आपत्ति ली कि - “काफी सारा फर्नीचर दिख नहीं रहा है ! घोड़े-बग्घी बिक गए हैं ! फोन और बिजली भी कटवा दी हैं !!  गौशाला खाली पड़ी है ! .... आखिर माजरा क्या है ? तुमने तो कसम खाई थी .... “

“जो गिना रहे हैं आप लोग, उनके बारे में मैंने कोई कसम नहीं खाई थी । मैंने कहा था हवेली नहीं बिकने दूंगा । वो आज भी कहता हूँ, हवेली नहीं बिकने दूंगा चाहे एक एक चीज बिक जाए । आप बेफिक्र रहें, हवेली हमेशा रहेगी ।“

“अरे !! ... हवेली कैसे रहेगी ! सुना है आपने हवेली के कीमती दरवाजे और  खिड़कियों का भी सौदा कर दिया है ! “

“ हवेली में चोरी जाने जैसा कुछ भी नहीं है तो दरवाजों का क्या काम ?”

“ परदे और झडफानूस गए !?

“हाँ .... कालीन और फर्श भी । .... तो ?” सपूतसिंह गुर्राया ।

“तो ...  हवेली में बचेगा क्या ?! “

“हवेली में कुछ नहीं बचेगा तब भी क्या वो हवेली नहीं रहेगी । हवेली हमारा इतिहास है जो हमेशा रहेगा, हवेली हमारी संस्कृति,  हमारी भौगोलिक पहचान है । वो हमेशा कायम रहेगी । बाकी चीजें तो आनी जानी हैं, आती रहेंगी जाती रहेंगी ।“

स्वतन्त्रता दिवस के दिन लोगों ने देखा कि हर साल की तरह इस बार भी हवेली पर ध्वज फहरा रहा है ।  नीचे अपने लोगों में घिरे सपूतसिंह तमाम इंचों वाली छाती चौड़ी किए बता रहे हैं कि - लोग चाहे जो कहें कहते रहें, मैं हवेली नहीं बिकने दूंगा ।

----------

खुशी एक हवा


गुप्तचरों ने सूचना दी कि जनाधार घट रहा है । सुन कर धराधीश बोले – “लोकतन्त्र में जनाधार एक भ्रम है,  और उससे भी बड़ा भ्रम है दल । जिन्हें शासन करना आता है वे जनाधार और दलों की परवाह नहीं करते । फिर भी आत्मसंतोष के लिए जरूरी है कि राज्य का हर आदमी खुश हो ।“ 

उन्होने प्रचार माध्यमों से प्रजा को संदेश दिया कि “हम प्रजा को खुश देखना चाहते हैं इसलिए जिनके घर में कोई गमी हुई हो उनको छोड़ कर बाकी लोग आगामी आदेश तक खुश रहें ।“  इतना सुनते ही तमाम लोगों में खुश होने की होड लग गई ।  लड्डू बंटे , कुछ ढ़ोल पर नाचे, जुलूस निकले, नारे लगे । खुशी चरम पर पहुंची तो कुछ ने पत्थर फ़ेंके और कुछ ने आग लगाई । दिन गुजरा तो रात में सोते हुए भी खुश हुए । दो चार दिनों में ही उनका ध्यान इस बात पर गया कि कौन लोग खुश नहीं हुए । नाखुश लोग राज्य का माहौल बिगड़ सकते हैं । कार्यकर्ताओं ने मोहल्ला स्तर पर सूची बनाई । पता लगा कि ज़्यादातर लोग खुश नहीं हैं । पहले भी जो खुश नहीं थे उनके यहाँ छापे पड़े थे । लेकिन ये आम लोग हैं इनके यहाँ छापे पड़े भी तो छुपने छुपाने की जगह से छिपकली-काकरोच ही बरामद होंगे । इसलिए सिफ़ारिश हुई कि खुशी का कानून बनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है । हालांकि धराधीश ने कहा था कि विकास करेंगे ताकि लोग खुश हों । मीडिया वालों ने बात समझे बगैर इसको चला दिया । दरअसल उनका मतलब था कि लोग खुश हों ताकि वे विकास कर सकें । लेकिन कोई बात नहीं, भूलें होती ही हैं सुधार करने के लिए ।  

सख्ती हुई तो अब हर कोई खुश है । जिसने खुश न रहने की कसम खा रखी थी वो भी बकायदा खुश है । खुशी एक हवा है जो सबसे ऊपर चल रही है । उससे नीचे, यानी थोड़ा नीचे कोरोना चल रहा है । थोड़ा और नीचे चलें तो पता चलेगा कि मंदी भी चल रही है । उसी के साथ साथ बेरोजगारी भी चल रही है । और नीचे मत उतरियेगा, भुखमरी और आत्महत्याएँ वगैरह भी चल रही हैं, लेकिन वो आपसे देखी नहीं जाएंगी । आप तो ऊपर देखिए, ऊपर कि हवा देखिए, खुशी देखिए । तबीयत जो है हाथों हाथ मस्त हो जाएगी । हवा ही सब कुछ है । हवा को प्राण वायु कहा गया है । धराधीश भी यही मानते हैं, प्रजा को भी मानना चाहिये । अपने अंदर झाँकने की जरूरत नहीं है । कबीर कह गए हैं – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ; जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय । मतलब ये कि जितनी भी बुराई है, अपने अंदर है । बाहर हवा है खुशी की । उसके साथ चलो । खुशी के बिना जीवन मृत्यु के समान है । लोग गा-गा कर कह गए हैं कि अपने लिये जिये तो क्या जिये; तू जी ए दिल, जमाने के लिए । इसी तरह दूसरों के लिये खुश होना असली खुशी है । धराधीश के लिये खुश होना सच्ची देशभक्ति है । जो खुश नहीं हो सकते उनके जीने का कोई अर्थ नहीं है । समझ रहे हैं ना आप लोग । धरती माँ है और माँ के ऊपर जो भी बोझ हो उसे कम कर देना सुपुत्रों का कर्तव्य है । कोई दिक्कत हो तो अभी बताएं । खुश होना सीखना पड़ता है, सिखा देंगे । ये अपने आप खुश होने वाली खुशी से अलग है । इसमें खुश दिखने का महत्व है । हर समय रुदन का दास केपिटल लिए फलफूल रही खुशी में खलल डालना देशद्रोह है । जितनी जल्दी सीखोगे उतनी जल्दी देशभक्त बनोगे । जय हो ।

 

-------


बुधवार, 29 जुलाई 2020

सोच बदलें और आगे बढ़ें

देखो रे, एक बात साफ साफ समझ लो ... क्राइम व्राइम कुछ नहीं होता है, जो होता है वो समाज सेवा होती है । पुलिस जनता की सेवा के लिए है, नेता और सरकार भी सब लोगों की सेवा के लिए हैं तो अपुन भी जनता की सेवा के लिए हैं । इसमें कोई पर्सनल दिक्कत क्या  ?  अगर हो तो बताओ अब्बी ठीक कर देते हैं । सब मीडिया वालों का टीआरपी का चक्कर है और कुछ नहीं । अपोजीशन का फैलाया भ्रम है कि क्राइम से जनता परेशान है । जनता का कुछ मत पूछो, वो तो वोट दे के भी परेशान है । सच्ची बात ये है कि क्राइम को बदनाम कर रखा है । आप लोग डिक्शनरी के अर्थ पे मत जाओ, प्रिंटिंग मिस्टेक हो जाती है । अबकी डिक्शनरी वाले हाथ लग गए तो करेक्ट करवा देंगे । दरअसल क्राइम भी एक तरह का प्रोफेशन है । अपनी सोच बदलो और आगे बढ़ो । जिसने क्राइम के साथ जीना लिया समझो विकास कर लिया । वो लंबी रेस का घोड़ा है । जो सोच में पिछड़ गया वो गया काम से ।

लोकतन्त्र के नाम पे सब लोग छाती चौड़ी करते हैं पर सोचा कभी कि हम नहीं होंगे तो क्या होगा । चुनाव कौन करवाता है, नेता किसके दम  पे हूल मारते हैं ! नींव का पत्थर हैं अपन तो काय के लिए ! ... समाज सेवा के लिए ही ना । अभी आप एनकाउंटर के बारे में सोच रहे होगे, ...  तो होता है, समाज सेवा में जोखिम होतई है । महान लोग को अपने काम में हमेशा खतरा रहता है । गांधी जी को भी जान से इसकी कीमत चुकानी पड़ी तो अपन क्या चीज हैं । सब लोग जनता के लिए पाप पुण्य देखे बगैर लगे हैं सेवा में तो हम भी लगे हैं । कोई नया काम तो कर नहीं रहे, बस तरीका थोड़ा अलग है । आपने किसी अस्पताल से पूछा कि भईया इत्ता सारा बिल किस लूट का हिस्सा है !? किसी स्कूल वाले से पूछा कि मोटी फीस लेने के बाद भी किताब-कपड़ा जूता-मोजा के अंदर दीमक से लगे क्यों चाट रहे हो हमें !? मॉल में जाते हो और तीन मोसम्बी का ज्यूस दो सौ में पी कर जेब कटवाते हो और वो भी राजी खुशी ! तब कोई आवाज नहीं निकलती है !! ये सब लोग सेवा कर रहे हैं ! और हमने जरा सा हप्ता मांग लिया तो ततैया काट गई कान पे !! अभी समझो हम टांग तोड़ दें तुम्हारी तो हमारा कुछ बिगड़ेगा ? सरकार या देश का कुछ बिगड़ेगा ? बीवी बच्चों के अलावा कोई नोटिस लेगा ? नहीं ना । तुम अस्पताल जाओगे और वहाँ पैसा दोगे या नहीं दोगे ? तुम्हारी टांग नहीं तोड़ रहे हैं तो तुम्हारे दो लाख बचा रहे हैं । और मांग क्या रहे हैं हफ्ते का हजार ! हजार भारी पड़ रहा है तुमको ! तुमने बीमा करा रखा है ना ? सोचते हो पैसा मिल जाएगा, ... नहीं मिलेगा । बीमा वाले बीमारी के इलाज का पैसा देते हैं । वो भी क्राइम को बीमारी नहीं मानते हैं । क्राइम को बीमारी कोई नहीं मानता है । क्राइम संस्कृति के अंतर्गत आता है । परंपरा है हमारी । लोग रिपोर्ट लिखवाते हैं थाने में । लिखवाना ही चाहिए, इससे क्राइम लाइम लाइट में आता है । सेवक की फोटू छ्पती है फ्रंट पेज पर । लोग अपने सेवक को पहचानने लगते हैं । एक जरूरी मेसेज जाता है लोगों में कि सोच बदलें और आगे बढ़ें । तुम भी चलो, हम भी चलें, चलती रहे जिंदगी । ... तो अपनी जेब में खुद हाथ डालोगे या फिर ये काम भी सेवक को करना पड़ेगा ?

-----


शनिवार, 4 जुलाई 2020

वैक्सीन आ रहा है !

यह खबर सुनते ही कि कोविड-19 का वैक्सीन दरवाजे पर दस्तक देने वाला है देशभर के अमीरों ने आश्वस्ति की अंगड़ाई ली । आने दो,  किसी भी भाव में मिलेगा लगवा लेंगे । सस्ता हुआ तो दो दो लगवा लेंगे और मौका मिला तो स्टाक भी कर लेंगे । हो सकता है सरकार महाराष्ट्र, केरल, बंगाल और छ्त्तीसगढ़ जैसे राज्यों को वैक्सीन-ड्राय मान ले तो सप्लाय का मौका मिलेगा । दवाओं के धंधे में यह अच्छा है कि मुनाफा लागत के हिसाब से नहीं मौके के हिसाब से तय होता है । इधर अच्छा यह है कि जनता भी मानती हैं कि मौके पे जो काम आ जाए वो भगवान होता है मुनाफाखोर नहीं । मुनाफे के साथ भगवान होने का सुख इतना दिव्य होता है कि लगता है अपन विष्णु हैं और स्वयं लक्ष्मी चरण दबा रही है ।

इधर लड्डू फूट कर बिखर रहे थे और उधर तमाम बाहुबली फोन पर उँगलियाँ नचा रहे थे कि स्टाटिंग में पहले भाई लोग को वैक्सीन होना । भाई बचेंगे तोई सब बचेंगे नई तो कोविड से पहले भाई माड्डलेंगे सबको तो क्या कल्लोगे । भाई के बाद भाई के शूटर लोग को भी वैक्सीन होना एकदम ताजा, बोले तो गरम गरम । बिकौज उन लोगों को फील्ड में रेना पड़ता है, झोपड़ पट्टी में ऐसी वैसी जगो में छुपना पड़ता है । सरकार की मॉरल ड्यूटी है कि भाई लोगो की जित्ती भी कंपनी है, ए बी सी डी ई एफ जी, सबको प्रोयरटी पे रखे । बिकौज कंपनी रहेगी तोई सरकार रहेगी । भाई ने जिस किसी भी नेतु को भिडू बोल दिया फिर उसको हमेशा भिडू समझा । बरोबर टाइम पे पर्सेंटेज दिया, टुकड़ा डाला । इसलिए अपुन का हक्क बनाता है पहले वैक्सीन लेने का । इज्जत का सवाल है, पहले भाई लोग उसके बाद पिच्छू से भिडू लोग । और देख लो रे समझ लो अच्छी तरा से कि पब्लिक को परसाद की तरा वैक्सीन नहीं बाँट देने का । एक पालीसी बनाने का बढ़िया सी । जिनके तीन से ज्यादा बच्चे हैं उनको वैक्सीन नहीं । जिनकी एक से ज्यादा ब्याहता हों उनको भी नहीं । वैक्सीन पहले उधर जिधर चुनाव सिर पर हैं । बंगाल में दीदी लंबे समय से नेगेटिव चल रही है । उधर वैक्सीन नहीं भेजा जाएगा जब तक कि वो पॉज़िटिव नहीं हो जाती । ज्यादा सोचने का नहीं, सबको पता है कि जंग, मोहब्बत और सियासत में सब जायज है ।

चर्चा है कि संगठन ने सीधे कान में फुसफुसा दिया है कि कोई कितना ही बड़ा वीआईपी क्यों न हो वह ये न सोचे कि उसे तुरंत वैक्सीन मिल जाएगा । पहले संगठन वालों को लगेगा, यहाँ तक कि उसे भी पहले लगेगा जो बांसुरी और ड्रम बजाने के काम में लगे हुए हैं । चिंता नहीं करें, पार्टी के सभी लोगों को वैक्सीन लगेगा । लेकिन जो कांग्रेसी झुंड के रूप में यानि अपने टिड्डी दल के साथ आ रहे हैं उन्हें हमेशा की तरह प्राथमिकता दी जाएगी । उनको इंजेक्शन लगेगा पर उसमें वैक्सीन नहीं विटामिन बी भरा जाएगा । सरकार तजुर्बे से चलती है । पिछले दिनों फ्री राशन खूब बांटाना पड़ा । अब सावधानी रखें, हर घर में पहले कमाने वाले को वैक्सीन दें और आराम से अपने हाथ ऊंचे कर दें । स्वस्थ रहो और कमाओ खाओ मजे में । जो काम नहीं करेगा उसे कोरोना के साथ जीना पड़ेगा । इस काम को करते हुए बहुत सावधानी और पड़ताल करना होगी । क्योंकि वोटर पट्ठे बहुत चालक हो गए हैं । हरमी साड़ी बोतल लेने के बाद भी वोट नहीं देते हैं । सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द भ्रष्टाचार का वैक्सीन बनाए और सबसे पहले इन साड़ी बोतल वाले कमीनों को लगवाए । सुधरें तो सही ये भ्रष्ट, बेईमान, कलंक कहीं के ।

और हाँ , सबसे महत्वपूर्ण बात तो रह ही गई । कम्युनिस्टों को वैक्सीन नहीं लगाया जाएगा । क्योंकि उन्हें कोविड 19 का खतरा बिलकुल नहीं है । वे वर्षों से आलरेडी कोरंटाइन चल रहे हैं । देश के लोग भूल गए हैं कि कम्युनिस्ट कौन कौन है !! कम्युनिस्ट भी भूल गए होंगे कि वे किस देश में हैं । अगर कोविड हुआ भी तो उन्हें अपना अपना सा लगेगा । उसे एक बार लाल सलाम बोल देंगे तो रात को वह भी चीयर्स करने लगेगा । .... सो, टेक केयर .... वैक्सीन आ रहा है ।

----


शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

कृपा-कारोबार और राम मोहन रास्तेवाला

इस मार्केट में कृपा को लेकर बड़ी ले-दे मची हुई है । मंत्री-वंत्री को छोड़िए कृपा के मामले में चपरासी भी हाथ तंग किये घूम रहे हैं । कृपा ऐसे नहीं मिलती जैसे बाज़ार में ठंडा पानी मिलता है । दस/बीस का नोट फेंका और फट्ट से ढक्कन खोल कर गट्ट से पी गए । कुछ का मानना है कि कृपा का दिव्य मोल होता है । बाज़ार भाव से लो तो हर चीज मिल सकती है । ज्यादा मोलभाव करने वालों को वैसे भी नरक की एक्सपायरी डेटेड सीट मिलती है । कृपादाता कोई भोले शंकर नहीं हैं कि एक लोटा जल चढ़ा कर घंटा ठोंक दिया और हो गए प्रभु प्रसन्न । कारोबार में यह सब नहीं चलता है । कृपा का बाज़ार बहुत बड़ा है । मंडियाँ लगती हैं और दलाल भी भिड़े रहते हैं । दुनिया में यही एक ऐसी मंडी है जो होती है पर दिखाई नहीं देती है । जो मार्ग जानता है उसे ही प्रभु मिलते हैं । जो नहीं जानता वह कृपा की कुंजी दीवार पर लटके केलेण्डर में ढूँढता है, लेकिन नहीं मिलती है । केलेण्डर सिर्फ कृपा का विज्ञापन होते हैं कृपा नहीं ।

कृपा-कारोबार भारतीय संस्कृति का पारंपरिक उद्यम है । कहते हैं कि तथास्तु की कुंजी से इसका द्वार खुलता है । इस कुंजी को प्राप्त करने के लिए दीनहीन जनों की बड़ी फजीहत हुआ करती है । उन्हें प्रायः बहुत कठिन तप और परिश्रम से गुजरना पड़ता है । कहते हैं कि चप्पलें घिसनी पड़ती हैं । तथास्तु अक्सर भगवान या उनके प्रतिनिधि बोला करते हैं । जैसे जैसे जनसंख्या संक्रामण की तरह फैलने लगी भगवान ज़िम्मेदारी से बचने लगे । पहले ज़िम्मेदारी ले लेना, फिर उससे बच निकालना भक्तों के सामने भी धर्मसंकट खड़ा कर देती है । ये तो अच्छा है कि भक्तों के पास भगवान का कोई विकल्प नहीं है और न ही उनके पास अन्य कोई रोजगार है । इसलिए  कीर्तन में बराबर बने रहना उनकी ऐसी मजबूरी है जिसे लोग श्रद्धा के नाम से ज्यादा जानते हैं । कीर्तन की खासियत यह है कि यह भगवान और भक्त दोनों की जरूरत है । कीर्तन के कारण ही भगवान भगवान हैं और भक्त भक्त । आप पूछ सकते हैं कि पहले कौन आया ?  भगवान, भक्त या फिर कीर्तन ? तो मैं कहूँगा कीर्तन । कीर्तन ने ही पहले आ कर भगवान और भक्त बनाए । अगर लोग आपका कीर्तन करने लगें तो भगवान बनाने में आपको देर नहीं लगेगी । और अगर लोगों के साथ मैं कीर्तन करूँ तो भक्त हुआ ही । भक्त और भगवान का रिश्ता कीर्तन के कच्चे सूत से बंधा होता है । दोनों में से कोई भी इस रिश्ते से खींचतान नहीं कर सकता है ।

राम मोहन रास्तेवाला बरसों कृपा के चक्कर में रहा । कहीं कृपा नहीं मिली इसलिए आजतक कुँवारा है । लेकिन हठयोगी है, उसने किसी से नहीं मानने की कसम खा रखी है । एक की कृपा नहीं मिली तो हजार की लेंगे । कोई टिकिट नहीं देगा तो निर्दलीय लड़ेंगे । कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है । और जिसका भगवान होता है वो कुछ भी हो हमेशा पहलवान ही  होता है । आज राम मोहन रास्तेवाला बड़े नेता हैं और खुद कृपा के सुपर स्टाकिस्ट भी । कृपा कारोबार बढ़ गया है, और लोग देने वाले को श्रीभगवान मानते हैं । दाता एक .... भिखारी सारी दुनिया । जय हो ।

 

----


रविवार, 31 मई 2020

ड्रिंक एंड ड्राइव इकनामिक्स



शुरुवात में कुछ बड़े लोग पॉज़िटिव थे । दूसरे उनके संपर्क में आते गए और संक्रमित होते गए । धीरे धीरे कार-पॉज़िटिव लोगों की संख्या बढ़ती गई । जी हाँ मैं कार की बात कार रहा हूँ । सरकार ने चौराहों पर हरी लाल बत्ती लगाई । कुछ नियम बनवा दिए, जरूरत पड़ने पर ऑड़-इवन भी किया । लोग ठुकने-ठोकने लगे तो सीट बेल्ट बांधने और धीरे चलाने के निर्देश दिए । हार्न बजाने और ब्रेक लगाने को भी कहा । तमाम कोशिश करके थक गई तो सरकार ने ट्वीट किया कि लोगों को अब कार के साथ ही जीना सीखना होगा । कार अब हमारे जीवन का हिस्सा है ।

इधर लॉक डाउन खुला और उधर चौथी बार के संक्रमित कार बहादुर जी शो रूम में पहुँच गए । सेफ़्टी के लिए उनका ज़ोर जरूरत से ज्यादा देख शोरूम वाला बोला –“देखिए साहब ये कार है । कंपनी ने सारे जरूरी पुर्जे लगा दिए हैं । रोड टेस्ट ले लिया है । सब ओके है हमारी तरफ से । अब आप इसे खरीद रहे हैं तो कैसे चलना / चलाना  है इसकी ज़िम्मेदारी आपकी है । कहाँ आपको हार्न बजाना है, कहाँ ब्रेक लगाना है, यह सब आपको तय करना है । सावधानी हटी, दुर्घटना घटी के बोर्ड सब जगह लगे हुए हैं हिन्दी अँग्रेजी में । पढ़ना और समझना आपको है, सरकार ... यानी कंपनी की ड्यूटी खत्म । सावधानी रखोगे तो गाड़ी चलती रहेगी ।“

“बीमा भी तो होता है ना ?” कार बहादुर ने पूछा ।

“देखिए साहब बीमा की बात अलग है । जिसको मिल गया उसको मिल गया । वरना शर्ते लागू हैं ही । बीमा राशि लेना हो तो बीमा कंपनी के हिसाब से मरना जरूरी है । कोरोना वाले को भी बीमा नहीं मिलता है ।“

“भाई साहब मैं कोरोना की नहीं कार कि बात कार रहा हूँ ।“ कार बहादुर ने टोका ।

एक ही बात है जी । कार और कोरोना साहबों की बीमारी है और छूत से फैलती हैं । देख नहीं रहे हर घर के सामने बिना बात एक एक दो दो कार खड़ी हैं ।“

“ठीक है लेकिन बीमा से सुरक्षा तो मिलती है ।“

“सुरक्षा बीमा कंपनी को मिलती है । बाकी को भय और भ्रम मिलता है ।“

“टीवी पर भीख मांगता हुआ विज्ञापन तो आ रहा है कि कब करवाओगे .... अब तो करवा लीजिए .....”

“विज्ञापन तो कोरोना के भी आ रहे हैं कि डिस्टेन्स रखिए मास्क लगाइये । लेकिन कोई ध्यान देता है !!”

“ फिर ? लूँ या नहीं  लूँ  ? ..... सोचता हूँ क्या करूंगा ले कर !”

“ले लो साहब । महीने में पाँच को भी संक्रमित कर दोगे तो कंपनी को लाभ होगा और सरकार को भी । अर्थ व्यवस्था का तो पता ही है आपको । मदिरा और कार पर तो देश चल रहा है । यानी ड्रिंक एंड ड्राइव इकनामिक्स ।

 


बुधवार, 27 मई 2020

धराधीश के कर कमलों से


धरम का काम था । धरम के काम बहुत कठिन होते हैं लेकिन करना पड़ते हैं । धराधीश की धरम करम में कोई आस्था नहीं है, लेकिन राजनीति में है । वैसे राजनीति में रोजना कौन किसी की पीठ खुजाता है । सच पूछो तो राजनीति कुर्सी के पाए से बंधी कुतिया है । जिसे बैठना हो उसे कुतिया की पीठ सहलाना ही पड़ती है । धंधे के लिए आदमी को क्या कुछ नहीं करना पड़ता है । इसी के चलते धराधीश धर्म आयोजन में मगज़मारी करना पड़ी । एक तो लोकतन्त्र में मीडिया वालों की बड़ी दिक्कत है । जरा जूता पहन कर दीपक जला दो तो फोटो खींच लेते हैं । मन मसोस कर रह जाना पड़ता है । वैसे देखा जाए तो खुद उनकी चरण पादुकाएँ लोकतन्त्र का मंदिर हैं और उनको अपवित्र कहना या समझना राजद्रोह हो सकता है । लेकिन कुछ चीजें होती हैं जिन पर धराधीश का भी वश नहीं चलता है ।
अभी तक साधू संतों के पैर धुलवाने का चलन था । इससे महात्माओं का मनोबल बढ़ता है और वे धराधीश के पक्ष में प्रवचन करते हैं । इधर सलाहकारों को नई सूझ पड़ी कि धराधीश श्रमिकों के पैर धोएँ तो नया संदेश जाएगा प्रजा में । यह ऐतिहासिक घटना होगी क्योंकि श्रमिकों के पैर आज तक कमरेडों ने भी नहीं धोए हैं । छोटे मोटे मामलों में घराधीश बहुत सोच विचार के बाद निर्णय लेते हैं । अंदर से उनका मन नहीं हो रहा था । वे बोले – “ पैर नहीं, अगर मुँह धुलवाएँ तो कैसा रहे ? सलाहकार बोले – राजन, मुँह के साथ पेट जुड़ा होता है । राजनीति के लिए प्रजा का पेट सबसे खतरनाक चीज होती है । पैर धोना सेफ है । धोया और फारिग हुए । बहुत हुआ तो एक जोड़ी हवाई चप्पल दे कर बाहर निकला जा सकता है । लेकिन पेट !! आज तक किसी का भरा है हुजूर । और ये भी देखिए कि मजदूरों के पैर धोने से अर्थव्यवस्था और बैंकों की कर्जनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा । जो लोग दशकों तक गरीबी हटाओ का नारा लगाते रहे हैं उन पर पाँच मजदूरों के पैरों की धुलाई भारी पड़ेगी । हर वर्ष अगर पैर धुलाई का आयोजन रख लेंगे तो प्रजा में गरीब होने की होड मच जाएगी । ऐसे में गरीबी हटाओ का नारा लगाने वाली पार्टियों पर लोग पत्थर ले कर दौड़ेंगे । असल राजनीति गरीबी बनाए रखने में है ।
“तो ठीक है, हम मजदूरों के पैर धोएँगे ।“ धराधीश बोले ।
स्थानीय प्रशासन ने पाँच मजदूर पकड़े और उन्हें दूसरे मजदूरों से नहलवाया धुलाया और सेनेटाइज करवाया । सबसे पहले कवर करने के लिए मीडिया जमा हुआ । ठीक समय पर धराधीश ने लक़दक़ इंट्री ली । पांचों मजदूर डर के मारे काँप रहे थे । उन्हें लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि उनके पैर अब म्यूजियम में रखने के लिए ले लिए जाएँ । धुलाई के बाद धराधीश आराम से टाटा करते निकल लिए ।
मीडिया मजदूरों की ओर लपका । पूछा – “आप लोगों को कैसा लग रहा है धराधीश जी के हाथों पैर धुलवा कर ?”
“बहुत अच्छा साहब । हम बहुत खुश हैं । पैर बच गए हमारे, हमें और कुछ नहीं चाहिए ।“ वे बोले ।
----

गुरुवार, 14 मई 2020

लोगों बात मत करो


“ये क्या, तुम दिन भर फोन पर लगे रहते हो ! कुछ आगे-पीछे का, आज-कल का ध्यान तो रखा करो कि उठाया फोन और लगे खयाली खेत जोतने ।“ सुनीला से आखिर रहा नहीं गया । उन्हें असल में गुस्सा इस बात का है कि उनके घरेलू काम बढ़ गए हैं इन दिनों और ये जनाब पड़े पड़े हांक रहे हैं । तोंद कोरोना के आंकड़ों की तरह हर दिन बढ़े जा रही है और ये सरकार कुछ करने की बजाए सहलाए जा रहे हैं बस ! जैसे तोंद न हो मटका हो खजाने का ।
“लॉकडाउन है भई ! किसी से बात भी नहीं करूँ क्या ! हर आदमी घर में खाली खोपड़ी ले कर खाली बैठा है । जानती हो अगर लोग बात नहीं करेंगे तो सरकार के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगेंगे । यह कोई अच्छी बात थोड़ी है हमारे लोकतन्त्र के लिए ।“ अरुण बोले ।
“ढ़ोल पीट पीट कर बताया जा रहा है कि मोबाइल फोन से वायरस फैलता है । पता हैं कोरोना कान से घुसता है ! दिन भर कान और मुँह से सटाए रखोगे तो किसी दिन चपेट में आ जाओगे फिर मुझे कुछ मत कहना हाँ ।“ सुनीला देवी ने अपनी ज़िम्मेदारी का खुलासा किया ।
“मेरे फोन में वायरस नहीं है । कल ही विस्की से साफ किया है मैंने ।“
“हर कोई फोन में विस्की बर्बाद नहीं करता है । ... और वायरस अगर सामने वाले के फोन में हुआ तो ? जो चीन से पूरी दुनिया में जा सकता है वो एक से दूसरे फोन में नहीं आ सकता है क्या ? वो वायरस है शांताबाई नहीं जो पूरे कोरोना सीजन नहीं आएगी । देवी का दर्द ।
“शांताबाई की तरह वायरस भी फोन से आता या जाता नहीं है । समझी ?”
“पैसा आ सकता है जा सकता है, फोटो-वीडीओ आ-जा सकते हैं तो वायरस को अलग से सिम की जरूरत पड़ेगी क्या !? सारे लोग सावधानी रख रहे हैं एक तुम्हारे पास ही हैं अकल के बीज । .... कभी आईने के सामने भी खड़े हो कर अपनी कमाई को भी देख लिया करो ।
“देवी, कोरोना का वायरस छूने से फैलता है । और मैं मूरख नहीं हूँ, जानकारी रखता हूँ । बोलने बात करने से इसका कोई संबंध नहीं है ।“ अरुण ने सूक्ष्म बाणों पर ध्यान न देने की नीति अपनाई ।
“ये तो मानते हो ना कि हमारे नेता, वो चाहे किसी भी पार्टी के हों, सब जनता की सेवा के लिए काम करते हैं ?”
“इसमें भला किसी को क्या शक है । हमारे देश में हर कोई जानता है कि हमारे नेता सेवा के लिए ही राजनीति करते हैं ।“
“तो बताओ लॉकडाउन के बाद कोई बोल रहा है पहले जैसा ! वो हैदराबाद वाले दोनों शांतिदूत कहाँ गए जो बोल बोल के बिरियानी पकाते थे । कोरोना के कारण स्मृति लोप हो गई, लोग माया-ममता तक सब भूल गए । पार्टी प्रवक्ता को टीवी की भट्टी में झोंक कर सारे नेता क्वारंटाइन हैं तो ऐसे ही नहीं । सब जानते हैं कि बोलने से वायरस फैलता है ।“ नीलीपीली होते हुए वे बोली ।
“दूसरे कोई बोलें न बोलें, टीवी वाले तो खूब बोल रहे हैं ना । अब कहोगी कि टीवी समाचारों से भी कोरोना फ़ैल सकता है !“
“फ़ैल क्यों नहीं सकता है ! जब टीवी से आलस्य, मोटापा और चटोरापन फ़ैल सकता है कोरोना क्यों नहीं ?
अरुण को हथियार डालने में समझदारी लगी, बोले – “चलो ठीक है फोन रख देता हूँ, अब तो खुश ।“
“सिर्फ फोन रखने से क्या होगा !! अपनी तौंद भी रख कर आओ कहीं ।“
----


सोमवार, 11 मई 2020

लोटी स्नान


“देखिए भाई साब, अब से आप लोग आधी बाल्टी पानी में नहाया करें । पानी बचना है ना अपने को ? जानते हैं ना कि धरती में पानी बहुत नीचे चला गया है ।“ आधी बाल्टी मुहीम के अगुआ भोला भाई जल बचाओ दल के साथ हर घर जा रहे हैं ।
“आप यह बात ध्यान रखिए कि आधी बाल्टी से नहाना एक तरह का कौशल है ।“
“इन्हें पानी से नहाने की क्या जरूरत  !! देखते नहीं पीएचडी हैं, ज्ञान की बाल्टी लबालब भरी हुई है । उसी में गोता लगाएँ, नहाएँ धोएँ किसी को दिक्कत है कोई ?  सिंग साब ने वर्मा जी को देखते ही चिकोटी काटी ।
“डाकसाब देश हित के लिए आधी बाल्टी से नहाना होगा आपको ।“ भोला भाई बोले ।
“आधी बाल्टी पानी बचाने से क्या होगा !?”  वर्मा जी बोले ।
“आप जानते हैं कि देश की जनसंख्या एक सौ छत्तीस करोड़ है । अगर सब लोग आधी बाल्टी से नहाएँ तो 68 करोड़ बाल्टी पानी बचेगा ।“
“नहाने की जरूरत ही क्या है । अगर नहीं नहाएँ तो पूरे एक सौ छत्तीस करोड़ बाल्टी पानी बचेगा । क्यो वर्मा जी ?“ सिंग साब ने फिर चिकोटी का इस्तेमाल किया ।
“नहाने पर पानी बर्बाद होता है या बचता है पहले इस बात को साफ कर लें ।“
“इसमें साफ क्या करना ! नहाने से पानी बर्बाद होता है और नहीं नहाने से बचता है । साधारण सी बात है ।“
“तो हम पानी बचाने की मुहिम पर हैं या बर्बाद करने की ?” सिंग साब ने गरदन पकड़ी ।
“बेशक पानी बचाने की मुहीम पर ।“
“ध्यान रहे कि आप लोगों को आधी बाल्टी पानी से नहाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ।“
तो इसमें गलत क्या है ! राष्ट्र हित में यह जरूरी है । मैं तो कहना चाहूँगा कि आधी बाल्टी स्नान का कानून बना कर सख्ती से लागू करना चाहिए ।“
“जो लोग सप्ताह में एक बार नहा कर देश को मजबूत बना रहे हैं उनके बारे में क्या योजना है ? ... क्या वे प्रति सप्ताह साढ़े तीन बाल्टी का उपयोग कर सकते हैं ?”
“मैं एक दिन छोड़ कर नहाता हूँ और दाढ़ी भी एक दिन छोड़ कर बनाता हूँ । ये एक कला है ... इस बात को समझिए ।“ गंगवानी बोले ।
“इसमें कला कि क्या बात है भाई साब !?”
“जिस दिन दाढ़ी बनाता हूँ उस दिन नहाता नहीं हूँ लेकिन नहाया हुआ लगता हूँ । ये कला नहीं है ?”
“लेकिन जिस दिन नहाते होंगे उस दिन तो पूरी बाल्टी पानी बर्बाद करते होंगे ।“
“तो इसमें गलत क्या है सांई ! एवरेज तो बराबर पंद्रह बाल्टी महीने का निकला ना ।“
“देखिए देश के बारे में सोचिए । जब भी नहाएँ यानी एक दिन छोड़ कर या सात दिनों में । हमें आधी बाल्टी से ही नहाना है । देश हित के काम में एवरेज कि चतुराई न करें ।“
“पांडे जी दिन में दो बार नहाते हैं उसका क्या !? पूछिए उनसे । बताइये पांडे जी, आप दिन में दो बार नहीं नहाते हैं ?”
“देखो भाई, बात को समझो । तांबे की एक लोटी में हम तैंतीस कोटी देवी देवताओं को नहला देते हैं तो हम कोई अलग थोड़ी हैं । दिन में दस बार भी नहाएँ नहलाएँ तो भी लोटी का पानी खत्म नहीं होता है ।“
“अरे इस बात पर तो ध्यान ही नहीं गया ! क्यों नहीं सब लोग लोटी स्नान कर देश मजबूत बनाएँ । “
यह नहीं हो सकता है ।“ पांडे जी बोले । “देवस्नान आमजन के लिए नहीं है ।“
-----




रविवार, 3 मई 2020

अगले जनम मोहे खंबानी कीजों


भारत में हर आदमी शादी करने के लिए पैदा होता है । दरअसल पैदा होना एक पैदाइशी कर्ज है जिसे उतरे बिना मोक्ष नहीं मिलता है । इस तरह बात साफ है कि शादी मोक्ष का द्वार है और पत्नी मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाली देवी । मोक्ष का मतलब तो आप जानते ही होंगे ? कोई बात नहीं, हम बता देते हैं । मोक्ष वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को दोबारा पैदा होने की जरूरत नहीं पड़ती है । आदमी पापमुक्त हो तो उसे जन्म मरण के चक्र से छुट्टी मिल जाती है । लेकिन पापी संसार में आ कर कोई पाप से अछूता कैसे रह सकता है । उसे बार बार जन्म लेना पड़ता है, लेकिन इसमें बड़ा जोखिम है । आज भारत में पैदा हुए, बहुत अच्छा । लेकिन कल चीन या अफ्रीका में पैदा होना पड़ गया तो !! वैसे ही अपने देसी आदमी को लेंगवेज प्राबलम कितना बड़ी होती है । आज हिन्दू हैं अच्छा, ब्राह्मण हैं और भी अच्छा लेकिन कल ऊपर वाला कौन सी जात में डाल के फेंक दे, कुछ कहा जा सकता है ! कहते हैं  कि करमों वरमों के हिसाब से जनम मिलता है । मिसिर जी सोच रहे हैं कि अब तक तो करम का अच्छा बुरा होना अपुन ही डिसाइड करते आ रहे हैं । लेकिन भैया लोकतन्त्र है, कुछ कहा नहीं जा सकता किसके सिर पगड़ी साज जाए । भाग्य गरीबों गुरबों का होता है और अमीरों का तो पुरुषार्थ होता है । लेकिन दिक्कत ये है कि पैदाइश के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है । कुछ दिन पहले पान की दुकान पर यासीन मियां मिले, कह रहे थे कि मुझे सपने में घाट, मंदिर, घंटे, आरती दिखते हैं । ऐसा लगता है कि पिछले जनम में मैं पंडित था बनारस में । सुन कर मिसिर जी ऐसे बेचैन हुए कि अभी तक वैसे ही सिर खुजा रहे हैं । भगवान का भरोसा बस कहने भर को ही है, वरना दुनिया के ये हाल होते । सोच रहे हैं कि कहीं उन्हें भगवान ने गलती से दाढ़ी टोपी में डाल दिया तो क्या होगा !! मेंढक की तरह कूदते रहेंगे जैसे यासीन मियां कूद रहे हैं दिन में इधर रात में उधर ।
देखिए भाई, आत्मा को फिर फिर पैदा तो होना पड़ेगा । उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है । सो समझदार आदमी तो यही चाहेगा कि अगले जनम में वो एशिया के सबसे अमीर आदमी के यहाँ पैदा हो । नहीं सबसे अमीर तो टॉप टेन वाले किसी बंदे के यहाँ जरूर । मिसराइन ने सुना तो बमक गई । बोलीं यहाँ कौन बात की कमी है !! हम चुटकी काटते है क्या तुम्हें !! कुंडली में मंगल दोष तुम्हारे, भुगतते रहे हम !
“ शांत देवी, हम तो तुम्हारे बारे में चिंतन कर रहे थे । सात जनम के लिए साथ लगी हुई हो ना । हम अगर टॉप टेन में पैदा हो गए तो असल सुखी तुम ही रहोगी । तुम वर्ष के साढ़े तीन सौ व्रत उपवास करने वाली, भगवान की सगी हो । उपाय बताओ कि कैसे मिसिर से खंबानी हो जाएँ अगले जनम में ।“
वे बोलीं – “हेअनाथ, यह तो संभव नहीं है । महाभारत के बाद एक दंपति के यहाँ सौ पुत्र पैदा होना बंद हो गए हैं । अमीर घराने कि स्त्रियाँ भी जान गई हैं कि एक सन्तान पैदा करने के बाद उनका फीगर बिगड़ सकता है ।“
“तो हे देवी, किसी दूसरे धर्म में, किसी दूसरे देश में, पशु पक्षी या जन्तु के रूप में पैदा हो कर मैं तुम्हारा अगला जन्म खराब नहीं कारना चाहता हूँ ।“
“हेअनाथ, तुम क्या चाहते हो ?”
“मेरी इच्छा है यही कुल, यही गोत्र, यही नगर, यही लोग ।“ मिसिर जी बोले ।
“तथास्तु, .... यही गोत्र, यही नगर, यही लोग मिलेंगे । .... किन्तु हेअनाथ, आप स्त्री बन कर पैदा होगे ।“
-------

रविवार, 26 अप्रैल 2020

‘आमार शोनार आलू’

हमारे घर में रोज पूजा होती है .... मतलब भगवान की । आज गृह-देवी आलू पर जल चढ़ा रही थीं । लगा कोई चूक हो रही है, सुधार दें, वरना इन दिनों रामायण चल रही है और माहौल में शाप-वाप का मूड बना हुआ है । कब कौन कुपित हो जाए कहा नहीं जा सकता है । सो भागते हुए गए और उनका हाथ पकड़ लिया जिसमें जल का लोटा था । समझाइश की मुद्रा में कहा –“ये क्या कर रही हो भागवान !! आलू पर जल क्यों चढ़ा रही हो !”  
देवी बोलीं – “ये आलू नहीं है जी, आलू महादेव हैं । सवा महीना हो गया है, बताओ किसके सहारे हो ?... भगवान के या आलू के ? देख लेना जब नारे लगाने की छूट मिलेगी तो लोग यही बोलेंगे – हर हर आलू, घर घर आलू । “
वक्त वक्त की बात है ।  पूजा-पाठ के समय अगरबत्ती खोंसने के लिए कुछ नहीं मिलता था तो आलू कट कर स्टैंड बना लेते थे और उसमें अगरबत्ती खोंस कर भगवान के चरणों के पास रख देते थे । अब देखिए ! ईश्वर की सोहबत और ज़िम्मेदारी वाली भूमिका क्या मिली आलू खुद महादेव हो गए ! माना कि उनके कारण किचन आबाद है, सरकार चल रही है, तो भईया आलू महाराज कहो । महाराज भी कोई छोटी बात नहीं है आज की डेट में । ये नहीं कर सकते तो आलू का परसाद चढ़ा दो चिप्स बना कर । लेकिन ये आलू महादेव क्यों ! कल को भगवान माइंड कर गए तो !
असल बात ये है कि महीने भर से पति की सूरत नॉनस्टाप देख देख कर देश की आधी आबादी का मूड जो है धमाधम करने के लिए हुमक रहा है । समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस बार करवा चौथ के व्रत पर भारी उलटफेर की आशंका प्रबल है । जो मुए करोना से बच जाएंगे उन्हें करवा से निबटना होगा । अंदर घुमड़ रही आवाज बार बार लीक हो रही है कि काम के न काज के, दुश्मन अनाज के । ऐसे माहौल में किसी भी किस्म का हस्तक्षेप करना अपने हाथ में सुतली बम फोड़ना है । फिर भी इतना तो कह ही दिया कि – “लोग सुनेंगे कि आलू पर जल चढ़ाया तो क्या कहेंगे !!”
“जय जय आलू महादेव कहेंगे और क्या । पता है, हम लौह-लक्ष्मियों ने तय किया है कि मोहल्ले में एक मंदिर बनेगा आलू महादेव का ।“ वे बोलीं । 
आलू महादेव का मंदिर !! कोई नहीं आएगा ।“ हमने दावे से कहा । 
बोलीं- “समोसे का परसाद चढ़ेगा तब नहीं आएगा कोई ?”  
“ओह , फिर तो सोचना पड़ेगा ।“
एक बार फिर जोखिम लेते हुए कहा -  “देखो देवी, तुम आलू के बारे में नहीं जानती हो । आलू को भगवान बनाने से भक्तों की भावनाएँ आहात हो जाएंगी ।“ 
वे बोलीं – बिलकुल नहीं होंगी । कल अगर कांग्रेस अपना चुनाव चिन्ह आलू बना ले तो देख लेना दन्न से सरकार बना लेगी । वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कोरोना लंबा चलेगा । अब कोरंटाइन तो बार बार होंगे इसलिए आने वाला समय को लोग लोकतन्त्र नहीं आलूतन्त्र कहेंगे । जिस देश में अस्सी प्रतिशत लोग गरीब हों और आलू पर निर्भर हों वहाँ आलू ही भगवान है ।“ वे अड़ गईं ।
“शांति शांति, ...  देवी अगर गरीबों का सहारा आलू है, तो आलू कामरेड हुआ । उसे अकेला उबाल के खा जाओ या टीवी की बहस में पका पका के । या किसी भी अल्पमत सब्जी में डाल दो बहुमत में आ जाए । सब करो पर इसे भगवान मत बनाओ प्लीज, ... भगवान बनते ही वो दक्षिण पंथी हो जाएगा । उसकी पहचान नष्ट हो जाएगी । ममता दीदी को पता  चला तो आमार शोनार आलू ... आमार शोनार आलू गा गा कर दिल्ली हिला देंगी ।“
“तुम चिंता मत करो, दिल्ली आलू से नहीं प्याज से हिलती है । इतना भी नहीं समझते क्या !!“  
----

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

बस बैठे हैं भिया !


जिसे भी फोन कीजिए एक ही जवाब मिलता है बस बैठे हैं भिया । उधर से अगले को भी पूछना ही पड़ता है और ... आप क्या कर रहे हो ?’ , जवाब वही बस बैठे हैं भिया । सेना से लगा कर सेवक तक लगे हैं काम में और हम बस बैठे हैं भिया । लगता है पूरा देश बैठा है, जनवासे में । टीवी, रेडियो, अखबार के जरिए कोई न कोई दिन में दस बार अनुरोध करता है कि जजमान आप बैठिए, आराम कीजिए, बाहर मत निकालिए, कुछ जरूरत हो तो आदेश कीजिए । भूल जाइए कि किसी ने लाल किले से कभी कहा था आराम हराम है । अब तो आराम का फरमान है । इतना आराम करवाएँगे, इतना आराम करवाएँगे तुमसे, कि भूल जाओगे कि पाँव किधर है और हाथ किसे कहते हैं । पड़े पड़े जब पोटले हो जाओ तो एक सेल्फी जरूर डाल देना, गूगल के किसी क्लिक पर दर्ज रहोगे । किसी लोकल शायर ने कहा है कि गूगल की सर्च पर लगते रहेंगे हर दिन मेले, आराम कर कर के मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।   
फोन पर कज़िन पड़ौसी है, यानी पाँच मोहल्ला दूर रहने वाले । उनका फ्लेट है, किचन प्लस स्टोर विथ थ्री रूम्स अटैच टाइलेट । यह बताने के पहले कि उसने अभी मूंग के भजिए खाए हैं, वह खात्री करता है कि तुम्हारे पास आटा-दाल वगैरह की कमी तो नहीं है । आदमी पढ़ालिखा हो, व्यावहारिक हो तो शिष्टाचारवश सावधानी रखता ही है । अच्छा नहीं लगता है कि आप भजिए बखाने और अगले के पास खाने कि समस्या हो । मैं जानता हूँ उसकी गुफ्तगू का सबब, सो उसके मैनु के आतंक से बचाने के लिए कहता हूँ दिक्कत तो है यार, कुछ कर सकते हो ? वह सूझाता है कि नगर निगम की कचरा गाड़ी आती है ना उसी को बोल दो, दे जाएंगे । नहीं तो अपने पार्षद को खड़काओ, पता नहीं इस लोक में है या उस लोक में । या फिर अपने झारा पकड़ विधायक को बोलो, रोज फोटो छ्पवा रहे हैं पूड़ी तलते हुए । साफ हो जाएगा कि खा ही रहे हैं या खिला भी रहे हैं । वैसे यार तुमको पहले से कुछ इंतजाम कर लेना चाहिए था । आसपास किराने वाला है ना, उनको बोलो । हमारे इधर तो जाहिल बस्ती में खूब थैलियाँ बंटी, आटा, दाल, चाय-शकर मिर्च मसाला, आलू कांदा सब । एक एक घर में लोगों ने चार चार थैलियाँ ले ली । इतना माल मिल रहा है तो भला कोई करोना से क्यों डरे ! बैठने वाले बैठे हैं तस्सवुरे जाना किए हुए और जिन्हें फिक्र है खिदमतदारों की वो थैलियाँ बटोर रहे हैं दनादन । पुलिस को लागत है कि लोग बाहर फालतू घूम रहे हैं । उन्हे कौन बताए कि घर में रहने से बच्चों के अलावा कुछ मिलता है क्या ।“
बात बदलते हुए मैं पूछता हूँ, - “और आपके घर तो सब ठीक हैं ना ? बाहर मत निकलना, पुलिस न हो तब भी मत निकलना, सरकार ने कहा है तो हमारा फर्ज है कि अच्छे नागरिक की मिसाल बनें । हमारे इधर तो पूरा सन्नाटा रहता है रात को और दिन को भी । तुम्हारे तरफ कोई निकलता तो नहीं है ?”
वो पाज़ यानी बातचीत में एक ठहराव लेता है, फिर सोचते हुए बोलता है –“ हमारे इधर भी कोई नहीं निकलता है लेकिन सन्नाटा नहीं है ।  सूअर घूमते रहते हैं और झड़पें होती रहती है । खूब शोर होता है । मेडिकल साइंस क्या कहता है, सूअरों को करोना नहीं होता है क्या ?
“ पता नहीं, वेट्नरी डाक्टर ही बता सकते हैं कि करोना की नातेदारी किस किस से है । ... और क्या ?
“बस बैठे हैं भिया”।
------