लाल कोबरा अपने बिल से बाहर निकला तो जंगल की बदली रंगत देख कर उसकी फूंक निकल गई . चारों ओर सरसों और टेसू फूले हुए थे . माहौल में ग़जब का उछाल था और जमीन से आसमान तक कहीं केसरिया तो कहीं पीला दमक रहा था . वह सोच में पड़ गया कि क्या गजब अनसोचा सीन है !! उसके मुंह में जितने डॉयलाग पड़े हुए थे सारे सकते में आ गए . अभी तक तो सब तरफ लाल था कहाँ चला गया ! वह लाल से ही होली खेलता आ रहा था . जब लोग लाल से होली खेलते थे तो लगता कि पार्टी का प्रमोशन हो रहा है. लाल उसका इतना प्रिय कि खुद अपने खून से उसे ‘कामरेड, कोई शक’ की आवाज सुनाई देती है . उसने गरीबों का मसीहा बनने के लिए डंडा पकड़ा था . स्कूल में जब परेड होती थी तो वह लेफ्ट-राइट को अनसुना कर देता था और उसकी जगह लेफ्ट-वन लेफ्ट-टू सुनता . लेफ्ट ही उसका राइट था और राइट हमेशा लेफ्ट . उसने लाठी को उठा कर उसका वजन कूता और हाईकमान को फोन लगाया, -“साहब इधर तो सब मोसंबी-नारंगी है ! मेरा लाल किधर गया ? होली है सर होली ! सारा लाल साफ कर दोगे तो होली कैसे खेलेगी पब्लिक ! थोड़ा लाल जरुरी है कल्चर के वास्ते.”
“नवजात ... भूल जाओ लाल को, याद रखो लाल को
देखते ही भड़क जाना अब तुम्हारी ड्यूटी है
.” साहब ने याद दिलाया .
“लेकिन साहब मैं लाल कोबरा हूँ .”
उधर से आवाज आई - “कोबरा नहीं तुम डांसर
थे और अब सांड हो . कोई डांसर अपने आपको कोबरा-फोबरा कुछ भी समझता रह सकता है
लेकिन पार्टी का अपना आकलन होता है . पार्टी अनुशासन को फ़ॉलो करो, लाल
को देखते ही तुम्हें फ़ौरन भड़क पड़ना है . कोई शक ?”
“नहीं साहब, ... जी साहब, जिधर भड़काओगे
भड़क जाऊंगा साहब . लेकिन होली का क्या ?
वो तो लाल से ही ....”
“अनुशासन को प्राथमिकता दो डांसर, यहाँ
डिस्को नहीं भारतनाट्यम सिखाया जाता है . सुबह जल्दी उठो, प्रार्थना करो और
व्यायाम भी . वरिष्ठजनों से ज्ञान लो उसके बाद मुंह खोलो . और होली है तो टेसू के फूल चुनने जाओ. कुछ दिन रहो हमारे साथ , अच्छा लगने लगेगा. वैसे कोबरा जी, आप चिंता मत करो उचित समय आने
पर आपको दूध भी पिलाया जाएगा.” साहब ने फोन बंद कर दिया .
कोबरा ने अपने को ऊपर से नीचे तक देखा,
एक लहर सी उठी और लगा कि उसका अस्तित्व एक दुम में तब्दील हो गया लग रहा है . उसने
ऊपर देखते हुए अपने आप से सवाल किया कि एक कोबरा दुम कैसे हो सकता है !! आकाशवाणी
हुई, प्रभु बोले - ‘ वत्स, लेफ्ट से राइट हो चुके हो तुम . विकास के इस मायावी पथ पर अनेक
रंगबिरंगी दुमें साथ चलीं जो अब ब्लेक कोबरा हैं . तुम भी विकास पथ पर आगे बढ़ चुके हो तो दुम क्या चीज है, कुछ भी हो सकता है . वैसे सांड होना भी बुरा नहीं है. प्रमोशन समझो इसे. सोचो भगवान
के गले में लिपटे पड़े होने से उन्हें पीठ पर ले कर चलना अधिक सम्मानजनक है. सो अब
उठो, चाय-वाय पियो, केंचुली बदलो फटाफट और लाल रंग देख कर भड़को. ... क्या पता कल को सीएम ही बना दिये जाओ ... नई जिम्मेदारी है, इसमे कोई शक नहीं होना
चाहिए ? ”
वह बुदबुदाया
“भालो पोरभो ... आमि इक्ता कोबरा , इक चोबोल-ई छोबि .”