देखिये एक बात समझ लीजिये, आझादी व्यवहार में लाने की नहीं अनुभव करने की चीज है . ये डेवलपमेन्ट का एक नया कांसेप्ट है . इसलिए कुछ और अनुभव करने की न तो आपको जरुरत है और न ही इझाझत . आप आझाद हैं सिर्फ इस बात को अनुभव कीजिये . अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि मुँह बंद रखिये, बोलिए मत . बोले कि अनुभव ख़त्म . विक्रम-बेताल का पता है ना ? राजा ने मुँह खोला और अनुभव का बेताल उड़ा . जो बोलेगा वो अनुभव नहीं करेगा और जो अनुभव नहीं करेगा उसकी आझादी ख़त्म . मन एकदम शांत होना चाहिए . कोई कितना भी महंगाई को ले कर उकसाए, पेट्रोल-डीज़ल के भाव बतलाये, कोरोना वाले मौत के आंकड़े गिनवाये आप विचलित नहीं होंगे और शांति से बैठेंगे .
शुक्रवार, 19 नवंबर 2021
खुशी को डीप में उतर कर महसूस कीजिए
देखिये एक बात समझ लीजिये, आझादी व्यवहार में लाने की नहीं अनुभव करने की चीज है . ये डेवलपमेन्ट का एक नया कांसेप्ट है . इसलिए कुछ और अनुभव करने की न तो आपको जरुरत है और न ही इझाझत . आप आझाद हैं सिर्फ इस बात को अनुभव कीजिये . अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि मुँह बंद रखिये, बोलिए मत . बोले कि अनुभव ख़त्म . विक्रम-बेताल का पता है ना ? राजा ने मुँह खोला और अनुभव का बेताल उड़ा . जो बोलेगा वो अनुभव नहीं करेगा और जो अनुभव नहीं करेगा उसकी आझादी ख़त्म . मन एकदम शांत होना चाहिए . कोई कितना भी महंगाई को ले कर उकसाए, पेट्रोल-डीज़ल के भाव बतलाये, कोरोना वाले मौत के आंकड़े गिनवाये आप विचलित नहीं होंगे और शांति से बैठेंगे .
कचौरी खाने का परमिट
राजा पिता होता है प्रजा का . प्रजा
को कितना चाहिए, क्या चाहिए, क्यों चाहिए ! विकास तभी होगा जब सारा कुछ बाप के
नियंत्रण में होगा. वरना तो भेड़ के झुण्ड की तरह खाया कम उजड़ा ज्यादा. देश बूफे
नहीं है समधी का कि ठूंसते चले गए. सबको अनुशासन में रहना होगा. कितना-क्या खाना
है, क्या पहनना है, किसकी कितनी पूजा करना है, किसको लाइक, किस पर कमेन्ट करना है,
कब सोना-जागना है, पड़ौसी को कब हाय-बाय बोलना है. सब . इसके लिए वार्ड स्तर पर प्रशासनिक
व्यवस्था की गई है .
नंबर आने पर उन्होंने आवेदन लिया और पढ़ा . “माननीय महोदय,
सेवा में विनम्र निवेदन है कि मुझे बहुत समय से बेचैनी जैसा फील हो रहा है . मन
बहुत उदास रहता है . भूख लगती है परन्तु नहीं लगती है .
रात को नींद खुल खुल जाती है और बड़ी बड़ी कचौरियां दिखाई देती हैं .
थाली में पड़ी दाल-रोटी काटने को दौड़ती है . दिल हरी और लाल चटनी के लिए हूम हूम करता है . बाबा ने भी कहा है कि
कृपा वहीं अटकी हुई है . इसलिए हुजूर से निवेदन है कि मुझे कचौरी खाने का परमिट
देने की कृपा करें . हुजुर का आज्ञाकारी, केन्द्रीय आधार-कार्डधारी, लोकल बालमुकुन्द
गिरधारी . “
देश आत्मनिर्भरता की सड़क पर है जिसमें
जगह जगह अनुशासन के स्पीड ब्रेकर भी हैं . क्षेत्रीय कचौरी-समोसा अधिकारी बड़ी सी
टेबल लिए, बुलंद ब्रेकर बने बैठे हैं . दीवार पर सुनहरे रंग में लिखा है ‘न खाऊंगा,
न खाने दूंगा’. बावजूद इसके दफ्तर में लोग खा रहे हैं और खाने दे रहे हैं . कचौरी
और समोसों की अनुमति के लिए बाहर अलग अलग लाइन थी .
साहब ने उपर से नीचे तक ताड़ने के बाद पूछा
– “टेक्स देते हो ? ... रिटर्न की कॉपी नहीं लगाई !”
“टेक्स नहीं देते हैं सर ... हमारा
मतलब है टेक्स नहीं बनता है . “
“क्यों नहीं बनता है ?”
“गरीब हैं सर ... मज़बूरी है .”
“फिर तो सरकार खिलाएगी तुम्हें कचोरी-वचोरी सब. कार्ड बनवा लो बस .”
“कार्ड तो बना है साहब ... “
“फिर क्या दिक्कत है !?”
“कचौरी नीचे आते आते भजिया हो जाती है,
वो भी ठंडा-बासी. ... सुना है सब
प्राइवेट हो रहा है, बड़े बड़े लोग बहुत बड़ा बड़ा और गरमागरम खा रहे हैं ... परमिट
मिल जाए तो हम गरम कचौरी खा लेंगे” .
“कितनी कचौरी का परमिट चाहिए ?”
“तीन-चार बस .”
“पिछली दफा कब खाई थी ?”
“याद नहीं सर ...बहुत दिनों से नहीं
खाई .”
“याद नहीं !! क्या मतलब है इसका !
कचौरी खाई और भूल गए ! सिस्टम को मजाक समझ रखा है ! टीवी वाला पूछेगा तो कह दोगे कि सरकार कुछ करती नहीं है ! ... एफिड़ेविड लगेगा
अब. चले आए मुंह उठा के ! जंगल समझ रखा है क्या ! नियम कानून कुछ है या नहीं ! देश
‘नहीं खाने से’ आगे बढ़ता है, कचौरी के लिए लार टपकाने से नहीं . ”
“करीब डेढ़ महिना हुआ सर ... तब खाई थी
.”
“उसका सेंक्शन लेटर कहाँ है ? फोटो
कॉपी लगाना पड़ेगी .”
“अगली बार लगा दूंगा सर, इस बार कुछ ‘मेनेज’
कर लीजिए प्लीज”.
थोड़ी यहाँ वहाँ के बाद पचास रूपए का
नोट जेब में डालते हुए बोले -“कितनी खाओगे ?”
“जी ... तीन-चार ... नहीं पांच-छह .“
“सिर्फ दो खाओ वरना कचौरीजीवी हो
जाओगे .”
“परमिट मिल जाये सर तो चार पांच दिन
में खाऊंगा ताकि मन भर जाये .”
“वो देखो क्या लिखा है ... ‘न खाऊंगा,
न खाने दूंगा’, वो कचौरी के लिए ही है . बावजूद इसके तुम्हें परमिट मिल रहा है.”
“सर ये कचौरी के लिए नहीं किसी और चीज
के लिए लिखा है !”
“हाँ हाँ समझ रहे हैं . दूर कर लो
गलतफहमी ... रिश्वत खाई नहीं जाती है ली जाती है . लेने-देने पर रोक होगी तो विकास
कैसे होगा ! ... चलो भटको भटकाओ मत . ये लो बिना तारीख का परमिट दे रहे हैं ... सिर्फ सन लिखा है . इकत्तीस दिसंबर तक खाओ
जितनी खाना है .... लेकिन बताना मत किसी को ... नहीं तो मिडिया वालो को ही बता दो तो
वो खायेंगे कम बिखेरेंगे ज्यादा . “
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मिले गंजों को मुआवजा
कई बार होता है जब कुछ सूझता नहीं है तो हम सर
पर हाथ फेरते गुमसुम बैठे होते हैं . सर अपना और हाथ भी अपना, दोनों के बीच अपनी निजी
ममता, नानपॉलिटिकल, उदार और शीतल . शरीर भी तो एक संघीय व्यवस्था है . ऐसा लगता है
जैसे बंगाल की सरकार केंद्र सरकार को सहला रही हो . लेकिन ये काम आप गार्डन में कर
रहे हों तो कोई किशोर या कोई प्रशांत बीच में नहीं कूदेगा ऐसा हो नहीं सकता .
‘हल्लो’ कहते हुए प्रशांत उपस्थित हुआ . बोला – “ मैं जानता हूँ आप किस चिंता में
डूबे हुए हैं .”
“आप कैसे जानते हैं !?”
“मैं जान लेने में दक्ष हूँ . सब जानते हैं कि जो
कोई नहीं जानता वो भी मैं जानता हूँ . और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैं जानता
हूँ, इसलिए लोग तगड़ी फीस देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि मैं जानता हूँ .” उसने जो
कहा वह सुन कर सिर खुजाने की जरुरत पड़ी लेकिन हाथ रुक गए .
“एक सदमें का शिकार हो गया हूँ मैं .....”
“ना, ... बिलकुल नहीं . आपको इस वक्त पॉजिटिव
सोचना चाहिए . आप अकेले चपेट में नहीं आये हैं . इस समय देश में गंजों की संख्या
पर ध्यान दीजिये, कितने बढ़ गए हैं ! चिंता से गंजापन बढ़ता है . कारण ये कि जागरूकता
बढ़ी है, लोग देश के बारे में सोचने लगे हैं इसलिए गंजे हो रहे हैं . जो भी सोचेगा
गंजा हो जायेगा . आपको अच्छी तरह जानता हूँ मैं, आप देश के लिए कितने चिंतित रहते
हैं पिछले कुछ सालों से . तीन चार साल में ही सतपूड़ा से थार हो गए हैं . देख कर
अच्छा तो नहीं लगता है लेकिन क्या किया जा सकता है ! कम से कम राष्ट्रवादी गंजों
को तो मुआवजा मिलना चाहिए . ... पहली बार कब लगा था आपको कि बाल झर रहे हैं ?”
“ वो दिन कैसे भूल सकता हूँ . शाम का मनहूस वक्त
था, खाना भी नहीं खाया था ... अचानक टीवी बोला कि हजार-पांच सौ के नोट अब रद्दी हो
गए ! सुनते ही माथा घूम गया . लगा कि शेयर मार्केट के बुल ने सींग मार के हवा में
उछाल दिया . सर में खुजली सी होने लगी, रात भर खुजाता रहा . सुबह तक काफी फर्क हो
गया .“
“कैसा फर्क ? ... सिरदर्द कम हुआ ?”
“काफी हल्का हल्का सा लग रहा था . ऐसा लगा कि सर
का बोझ कम हो गया . पत्नी भौंचक देखती रही तो आइना देखा . पहले तो मैं पहचाना नहीं
... जाने ये गंजा कौन है !! लगा जैसे हाइवे के लिए जंगल साफ हो गया है . विकास सर
पर चढ़ कर बोला रहा था . ओफ ... उसके बाद तो बचेखुचे भी चले गए जल्दी जल्दी . कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे . डर है कि मोची यह न कह दे कि आ जाओ साहब पालिश
करके चमका दूँ . “
“वो तो अच्छा हुआ भाई तुम्हारी शादी हो गई थी
2013 में ... पॉजिटिव सोचिये . अगर नहीं
हुई होती तो क्या होता ! जिंदगी भर हेलमेट लिए अकेले गुजारते .”
“इतनी महंगाई में अकेले की गुजर हो जाये शायद ...
काश शादी नहीं हुई होती .”
“पॉजिटिव सोचिये ... इतना ज्यादा सोचोगे तो दांत
भी चले जायेंगे .”
“सोचने से दांत भी जाते हैं क्या !?”
“पूरा शरीर चला जाता है जी, सुना होगा चिंता
चिता सामान .” प्रशांत ने समझाया .
“कैसे न सोचूं, सीमा पर कितना तनाव है ! चीन ने नियंत्रण
रेखा के आसपास गाँव के गाँव बसा लिए हैं और इरादे भी ठीक नहीं हैं उसके ! “
“अरे उसकी चिंता आप क्यों करते हैं ! आपकी
प्राथमिकता ये होना चाहिए कि सिर की सीमा पर बची रह गयी झालर की रक्षा कैसे करें .
.. आपको तन्जली का केश तेल लगाना चाहिये था . लाला आरामदेव की दाढ़ी और सिर देखा,
.... कितना घाना जंगल है !”
“इसका मतलब है कि उनको देश की कोई चिंता नहीं है
!! कुछदिनों के लिए उन्हें रक्षामंत्री बना देना चाहिए . हप्ते भर में ही ड्रेस्ड
चिकन हो जायेगा चेहरा . “
प्रशांत ने कुछ देर सोचने के बाद कहा – “अकेले
मत सोचो . समझदारी इसमें है कि गंजों का एक संगठन बनाओ . ‘राष्ट्रीय सफाचट समूह’
कैसा रहेगा ? सालभर में ही आपका संगठन इतना मजबूत हो जायेगा कि लोग सर मुंडा कर
इसमें शामिल होने लगेंगे . आप जिसे चाहोगे जिताओगे या हराओगे . सरकार आप लोगों की
मर्जी से बनेगी . पॉजिटिव सोचो, आप एक महत्वपूर्ण संगठन के संथापक अध्यक्ष होने जा
रहे हो . इतिहास आपको बड़े आदर से याद रखेगा और इसकी वजह क्या होगी ? ... आपका गंजा
सर . ... थेंक्यू बोलिए मुझे .”
अचानक अन्दर उमंग की हिलोरें सी उठी . मेरे मुंह
से निकला –“थेंक्यू प्रशांत जी.”
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रविवार, 17 अक्टूबर 2021
ऑफ़लाइन हिदायतें
“कविता कैसी भी हो चलेगी, लेकिन कुरता साफ, स्तरी किया हुआ होना चाहिए . पिछली बार आपके कुरते पर पान की पीक गिरी दिख रही थी . दाढ़ी रखते हैं ! अच्छी बात हो सकती है, लोग कहते हैं कि कवियों को रखना चाहिए, लेकिन ठीक से सेट करवा लीजियेगा . वो क्या है स्क्रीन पर तो आदमी को जेंटल-मेन लगना चाहिए . परफ्यूम या डियो लगाने की कोई जरुरत नहीं है . नीचे आपने पायजामा पहना हो या पतलून, या फिर लुंगी या कुछ भी नहीं, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा . लेकिन ध्यान रहे कार्यक्रम ऑन लाइन होगा और आपको अपने चेहरे के आलावा कुछ भी दिखाने का प्रयास नहीं करना है . पीछे बैगराउंड आप अपनी पसंद का रख सकते हैं, किताबों की अलमारी हो तो आपके लिए अच्छा है . आपके पास डॉगी हो तो उसे पास में नहीं बैठाएं . पिछली दफा एक साहित्यकार लगातार अपने डॉगी से नोजी लड़ाते रहे और लोग समझ नहीं पाए कि कौन किसका मुंह चाट रहा है . बार बार उठता ये सवाल नेट का कीमती समय चाट गया . ऑनलाइन कार्यक्रम में जुड़े सारे लोग भी कवि होते हैं इसलिए दाद नहीं मिलने की जोखिम ज्यादा होती है . बावजूद इसके कठ्ठा-जी करके आपको मुस्कराते रहना है जैसा कि हमारी टीवी वाली एन्कर करती हैं . दुनिया लेन-देन पर चलती है . आपको दाद तभी मिलेगी जब आप दूसरे को देंगे . अगर आपको किसी की कविता पसंद नहीं आये तो भी थोड़ी बहुत दाद अवश्य दीजिये . जेब से क्या जाता है, इसे ऑनलाइन शिष्टाचार मानिये . जैसे कि लोग अपने मेहमान को दोबारा नहीं चाहते हैं लेकिन उसे ‘और आइयेगा’ अवश्य कहते हैं .
पिछली दफा आपने एक मंच पर कवियत्री देवी की साड़ी
की तारीफ में दो गुलूगुलू गजलें ठोक दी थीं . साड़ी आपको पसंद आई, गजलें देवीजी को
पसंद आईं लेकिन ये दोनों बाते कवियत्री के पतिदेव को पसंद नहीं आयीं . पति की इस
नापसंदगी पर कुपित हो कर देवी ने अब तक पचास से ज्यादा कवितायें लिख मारी हैं . सिलसिला
अभी थमा नहीं है . डर है कि कवियत्री का यह आन्दोलन किसान आन्दोलन की तरह लम्बा
खिंच सकता है . पतिदेव डाक्टरों के संपर्क में हैं और सुना है किसी कारगर वेक्सिन
की तलाश में लगे हुए हैं . अगर वे कहीं सफल हो गए तो लोग डीपीटी के साथ इस वेक्सिन
को भी लगवाने लगेंगे और हो सकता है कि भविष्य में मंचों को मंजी हुई कवियत्रियाँ मिलना ही बंद हो जाएँ . सो प्लीज ऑनलाइन
कवियत्रियों को देख कर आगे से ऐसा खतरनाक कुछ न करें . इसे साहित्य में आपका बड़ा
योगदान माना जायेगा .
आपको पूरे समय याद रखना है कि कार्यक्रम लाइव
जाता है इसलिए चलते कार्यक्रम में यथासंभव पानी के आलावा कुछ न पियें . चाय-कॉफ़ी पीनी
ही पड़े तो पूरा टी-सेट, क्रोकरी, बिस्किट-भजिया वगैरह कतई नहीं दिखाएँ . लोगों को
लगता है कि हम आपको अच्छा पारिश्रमिक देते है और बाकी को सूखा निचोड़ लेते हैं . लेकिन
सच्चाई का खुलासा करवाना आप भी नहीं चाहोगे . बंधी मुट्ठी ग्यारह सौ की और खुल गई
तो ग्यारह की . पिछली बार आपने गले में सोने की दो तीन चेन और हाथों में कई लाल
पीली अंगूठियाँ पहन रखीं थीं . यह सच है कि आजकल बच्चों के रिश्ते ऑनलाइन तलाशे
जाते हैं लेकिन साहित्यिक कार्यक्रम को इसका जरिया बनाना ठीक नहीं है . इन्कमटेक्स
के बहुत से अधिकारी भी इनदिनों कविता लिख रहे हैं और ऑनलाइन ताकझांक करते हैं, इस
बात का विशेष ध्यान रखने की जरुरत है . .... माना कि वो सारी ज्यूलरी नकली थी .
लेकिन ये बात आप जानते हैं, हो सकता है ऑनलाइन संयोजक और संचालक भी जानते हैं कि
नकली है ... लेकिन दर्शकों को नहीं पता होता है कि वो नकली हैं . इसी सिचुएशन में
डॉन निकल भागा था और बारह मुल्कों की पुलिस हाथ मलती रह गयी थी . और एक अंतिम बात,
कविताएँ अपनी ही सुनाएँ चाहे कितनी दोयम दर्जा हों . विदेशी भाषा से अनुदित कविताओं
के कच्चे माल से बनी या कॉपी-पेस्ट कविताएँ फ़ौरन पकड़ ली जाती हैं . .... तो ठीक है
कविराज, कल मिलते हैं .
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सोमवार, 11 अक्टूबर 2021
बड़े आदमी, बड़ा काम
जो बड़े बड़े काम करता है वो बड़ा आदमी होता है . बड़े कामों की दुश्मनी प्रायः कानून से होती है . इसलिए बड़े आदमी को पहले कानून की नब्ज पकड़ना पड़ती है . नब्ज कानून के हकीमों के हाथ में होती है . कानून के हकीम वरिष्ठ, अनुभवी और प्रसिद्ध लोग होते हैं . कानून के बाज़ार में उन्हें कानून का जादूगर भी कहा जाता है . कानून का बाज़ार तफरी का स्थान नहीं है कि “दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ , बाज़ार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ “ कह कर निकल जाये कोई . सुना है कि इस बाज़ार में जो एक बार घुसा वो तभी चलन से बाहर होता है जब नोट की तरह जगह जगह से कटा-फटा और चिपकाया गया हो . आम आदमी के लिए जो कानून बर्बादी का कारण बनता है वही बड़े आदमी के लिए ‘जीपीएस’ का काम करता है . पीसी सरकार स्टेज से हाथी गायब कर देता था, बड़ा आदमी सरकार से बड़ा होता है और रेलें, हवाई जहाज वगैरह तक गायब कर देता है . बड़ा आदमी हार नहीं मानता है और लगा रहता है . सफलता उसे ही मिलती है जो लगा रहे . जादू लगातार रियाज यानी प्रेक्टिस मांगता है . कहते हैं बेवकूफों की कमी नहीं ज़माने में, एक ढूँढो हजार मिलते हैं . ये पंक्तियाँ जादू की जान हैं . कुछ लोग खुद पॉलिटिक्स नहीं करते, वो लोगों को पाल लेते हैं . पालना ज्यादा सुविधाजनक होता है . जब बोटियों से गोटियाँ चलती हों तो खुद मगजमारी करने की क्या जरुरत है ! आप कह सकते हैं कि असल बड़े आदमी यही होते हैं .
कभी कभी बड़े आदमी को गिरफ़्तारी का सामना भी करना पड़ता है . थोड़ी बहुत काली भेड़ें हर सिस्टम में होती हैं ! होना भी चाहिए, इससे कानून, सिस्टम और सरकार को इज्जत मिलती है . राजनीति कितनी ही बदचलन क्यों न हो ये काली भेड़ें उसकी मांग का लाल सिन्दूर होती हैं . इसीलिए उन्हें गिरफ्तार करने के समय सफ़ेद भेड़ों को अपनी बगलें झांकना पड़ती है . साहब का सर अगर शुरुर्मुर्ग हो रहा हो तो साहब की सूखे कुएँ सी बगल भी उन्हें ही झांकना पड़ती है . साहब की बड़ी साइज़ की बगल झाँकने पर सिपाही को करीबी होने का सुख और गर्व का भाव हो सकता है . सिपाही रोबोट जैसा होता है, साहब का कुछ भी झांकते वक्त गर्व महसूस करना उसकी ड्यूटी है . अभ्यास अच्छा हो तो बगलें झाँकने में पुलिस भी अच्छा परफोर्म करती है . ट्रेनिंग में उन्हें ‘दायें-बाएं-थम’ बार बार कराया जाता है तो इसके कुछ जरुरी कारण होते हैं लोकतंत्र में . कब कौन स्वयंसिद्ध कुर्सी पकड़ ले कोई भरोसा नहीं होता है . स्वयंसिद्धपन एक गॉड-गिफ्टेड प्रतिभा होती है जो शिखर पर भी पहुँच जाओ तो भी जाती नहीं है . जानकार जानते हैं कि स्वयंसिद्धपन उसके जींस में हैं . उसे वित्त मंत्रालय दे दो या शिक्षा मंत्रालय, वो काम नहीं करेगा, उसके जींस करेंगे... यानी गॉड करेंगे . गॉड सबका होता है . गॉड जो भी करता है अच्छा ही करता है . इसमे किसी को शक नहीं होना चाहिए . इसलिए बड़े आदमी को शक की निगाह से देखना पाप है . फिर भी रस्मी तौर पर बड़ा आदमी गिरफ्तार होता है तो प्रसिद्धि मिलती है . बड़े आदमी के लिए प्रसिद्धि पूँजी होती है, जिसे देख कर बैंकें अपना सब कुछ खोल कर चरणों में गिर जाती हैं . और बड़ा आदमी देश की प्रतिष्ठा के लिए, विकास के लिए, सहयोगी सरकार के लिए लगातार बड़े काम करते जाता है . जे-हिन .
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शनिवार, 18 सितंबर 2021
पुराना कोट
हवेली
में कई चीजें सहेज कर रखी गईं थीं . बारहसिंघे और हिरन की गरदन, भूसा भरा बाघ, नीलकंठ
पक्षी, चीते की खाल वगैरह . एक एक चीज वे तफसील बयाँ करते हुए दिखा रहे थे . शीशे के
बड़े बाक्स में टंगा कोट दिखाते हुए बोले – “ ये हमारे परदादा का कोट है . निशानी
है उनकी . विरासत है हमारे लिए .”
मेहमान
ने भी रूचि से देखा . –“ काफी पुराना है ... बहुत ध्यान रखना पड़ता होगा ! साफ सफाई
भी बड़ा मेहनत का काम होता होगा ?”
“साफ
सफाई में मेहनत !! ... जनाब हाथ भी नहीं लगा सकता है कोई इसे . बस दूर से ही देख
लेते हैं दिन में चार पांच बार . जैसा था वैसा ही बनाये रखा है . जरा सा भी बदला
या दुरुस्त किया हुआ नहीं है . ओरिजनल ... अनटच रखा है . “ उनका सीना चौड़ा हो रहा
था .
“बहुत
बड़ी बात है ये, किसी चीज को वैसे का वैसा बनाये रखना . ... बटन की जगह लकड़ियाँ लगी हैं . वो भी शायद ख़राब हो चली हैं .”
आगंतुक ने कहा .
“पुराने
ज़माने में लकड़ियाँ ही लगती थीं . और ये
ख़राब नहीं हैं, उनका कलर ऐसा है कि लगता है ख़राब हो गयी हैं . “
“अगर
ड्रायक्लिनिंग वगैरह करवा लें तो और बेहतर
लगेगा .”
“कहा
ना ... हाथ भी नहीं लगा सकता है कोई ! ... जैसा है वैसा ही रखना हमारी जिम्मेदारी
है . हमें पहनना थोड़ी है, बस इससे प्रेरणा लेना है . छेड़छाड़ हमें बर्दाश्त नहीं
होगी . इस मामले में हम कट्टर हैं . विरासत को विरासत की तरह ही रखेंगे . “ वे
बोले .
“अच्छा
है जी, बड़ा सम्मान रखते हैं आप कोट पर .” अतिथि ने बहस छोड़ते हुए कहा .
“कोट
तो तुम्हारे परदादों के पास भी थे !!” उन्होंने सवाल किया .
“हाँ
हैं ना .”
“कहाँ
रखे हैं ?”
“
रखे कहाँ हैं ... ये पहना हुआ एक तो ... परदादा का ही है .” अतिथि ने बताया .
“ये
तो नया लग रहा है !! ... झूठ बोल रहे हो !”
“परदादा
का ही है ... मैं इसे समय समय पर धुलवाता हूँ, जरुरी होने पर दुरुस्त भी करवाता
हूँ ताकि पहनने लायक रहे . इसकी झाड़ झटक भी होती है, धूप भी दिखाते हैं ... बटन
देखिये नए हैं . समय और जरुरत के हिसाब से थोड़ा बदलाव करते रहने से उपयोगिता बनी रहती
है . कोट पुराना है लेकिन नया भी है ...
और सबसे बड़ी बात हम लोग आज भी पहन रहे हैं .
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सोमवार, 13 सितंबर 2021
आलसी आदमी गजब का आत्मनिर्भर होता है
ज्ञानी कह गए हैं कि मुसीबतें आदमी को मजबूत बनती हैं . सफल वही होता है जो जीवन में संघर्ष करता है . जिसे आत्मनिर्भर बनना है, तरक्की करना है उसे कष्टों से जूझना तो पड़ेगा . सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जनता को तरक्की के अवसर प्रदान करे . महंगाई, बेरोजगारी, दावा-दारू, दाना-पानी पेट्रोल-डीज़ल वगैरह की कमी होने और कीमतें ज्यादा होने को लेकर नजरिया बदलने की जरुरत है . इन्हें परेशानियाँ नहीं समझना चाहिए, ये सीढियाँ हैं तरक्की की . आपने सुना होगा भूखी बिल्ली शेर हो जाती है जबकि खाए अघाए शेर के सर पर चूहे कूदते हैं और उसकी मूँछ तक कुतर जाते हैं . तो भूखा होना, अभाव या कष्ट में होना आत्मनिर्भरता की दिशा में पहला जरुरी कदम है . अगर कोई कमी नहीं होगी, जरुरत महसूस नहीं होगी तो आदमी कोशिश क्यों करेगा ! समस्याएं उपहार हैं ईश्वर का, धन्यवाद ईश्वर जी . और ये महत्वपूर्ण काम है सरकारों का, शुक्रिया सरकार जी . किसी ने कहा है कि अगर लोगों को उठा कर पानी में फैंक दिया जाये इस बात की सम्भावना है कि उनमें से आधे तैरना सीख जाएँ . रहा सवाल उन आधों का जो तैर नहीं पाए तो वे डूब ही जाएँ तो अच्छा है . भगवान जो करता है अच्छा ही करता है यह बात सबको समझ लेना चाहिए . जो तैर नहीं सकते उनका नदी किनारे क्या काम ?
आत्मनिर्भरता का नारा देना सर्वश्रेष्ठ तरीका है
किसी भी तरह की जिम्मेदारी से हाथ ऊंचे करने का . प्रसन्नता की बात है कि सरकारें
सर्वश्रेष्ठ करने में ही विश्वास करती हैं . जो कौमें मुसीबतें झेलती हैं, अभाव
में जीवन गुजारती हैं, आधा पेट खा कर पूरी लड़ाई लड़ती हैं वही असल विजेता होती हैं .
जरा गौर कीजिये हमारे साधु संत झोपड़ी में रहते थे, मुट्ठी भर अन्न से पेट भरते थे,
परिधान के नाम पर दो लंगोटी में साल गुजर देते थे और देखिये उनमें ताकत इतनी होती
थी कि शाप दे कर किसी हरे भरे को भी भस्म कर देते थे ! हमें ऐसी ताकत चाहिए लोगों
में . अगर सरकार बैठा कर लोगों को मुफ्त खिलाती रही तो आलू का बोरा हो कर रह
जायेगा वोटर . दूसरे उसे छोड़ेंगे क्या ? समोसा बना कर खा जायेंगे .
हमें आगे बढ़ाना है बिना किसी सहारे के तो विश्वास
कीजिये ऐसे ही बन जायेंगे बैठे बैठाये आराम से, मेहनत नहीं करना पड़ेगी . मजबूरी की
बात अलग है, आज इच्छा से मेहनत करता भी कौन है ! आसपास नजर डालिए, आपको एक से एक आलसी
भरे पड़े दिखाई देंगे . उन्हें अगर पद्मश्री भी पेश करो तो लेने नहीं जायेंगे,
पूछेंगे क्या काम आएगी ? आलस्य का सुख
मेहनत के कष्ट से बड़ा होता है . अगर कोई काम है सर पर तो बस देखते रहिये और जब तक
बेहद जरुरी न हो, करना ही न पड़ जाये तब तक पड़े रहिये मजे में . हो सकता है कोई दूसरा ही कर
जाये गलती से . कोई आलसी संत कह गए हैं - “ आज करे सो कल कर, कल करे सो परसों ;
इतनी जल्दी क्या है अभी तो जीना है बरसों “ . लोग कहते हैं कि विज्ञान ने तरक्की
के द्वार खोले हैं लेकिन असल में विज्ञान ने आलस्य और मोटापे के द्वार खोले हैं .
हम टीवी एसी पंखा वगैरह रिमोट से बंद चालू करते हैं . अब तो सुना है रिमोट की
जरुरत भी नहीं होगी, बोलने मात्र से काम हो जायेगा . जैसे बोल कर टाईप हो जाता है,
आँखे बंद कर बैठे रहिये किताबें मशीन पढ़ कर सुना देगी . क्या पता कल को खाना पीना
भी रिमोट से हो या रोबोट कर दे . वो तो अच्छा ही कि भगवान ने जुबान दी है और उसमें
स्वाद की क्षमता भी . वरना वैज्ञानिक हमारे पेट में कट लगा कर ढक्कन वाला पाईप फिट
कर देते और हम जैसे पेट्रोल लेते हैं वैसे फ़ूड स्टेशन पर जा कर अपना ‘फ्यूल’ भरवा
लेते . बड़ा आदमी प्रीमियम क्वालिटी फ़ूड से फुल टेंक करवाता और गरीब औकात के हिसाब
से घासलेटी फ़ूड डलवाता . न खाने चबाने का झंझट और न दांत साफ करने की किल्लत . आलसी
आदमी गजब का आत्मनिर्भर होता है, जहाँ पड़े वहीं शिला हो गए . पांच साल में एक बार
वोट डालने के लिए उठ जाता है यही बहुत बड़ी बात है . इसलिए वह लोकतंत्र की नींव का महत्वपूर्ण
पत्थर भी हुआ .
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मंगलवार, 7 सितंबर 2021
शांतिवन में प्लास्टिक
सोमवार, 6 सितंबर 2021
कहो जी तुम क्या क्या खरीदोगे !
बाबूजी तुम क्या क्या खरीदोगे !? यहाँ तो हर चीज बिकती है . ये दुनिया है बाज़ार बाबू, नगद उधार मिलेगा, अपना हो या कि ना हो, ... पर मिलेगा . घर के सामने की आधी सड़क ले लो, पीछे गली हो तो पूरी ले लो . छोटी बड़ी सब मिलेगी . एयरपोर्ट ले लो, हवाई जहाज बिकाऊ हैं , चाहो तो आधा आसमान लेलो, इन्वेस्टमेंट अच्छा है . रेल लेलो, मेल लेलो, पटरियां और प्लेटफार्म लेलो. गाड़ी मिल जाएगी सुपरफास्ट, साथ में ड्रायवर ध्रतराष्ट्र लेलो . स्कूल की इमारतें सरकारी, खाली पड़े मैदान चुन लो, एक दो नहीं दस बीस लेलो . अस्पताल मिल जायेंगे घटे दरों पर, दवा की दुकान लेलो . स्कूटर, सीमेंट, पम्पस की फेक्ट्रियां मिलेंगी चालू हालत में . शिपिंग, स्पात, इलेक्ट्रोनिक्स के चलते संस्थान लेलो . बैंक, बीमा, टेलीकाम, ऊर्जा सब मिलेगा . सोचो मत, ऐसा मौका फिर कब मिलेगा . दुनिया फानी है, कुर्सी आनी जानी है .
चाहो तो बर्फीले पहाड़ खरीदो, नगदी हो तो नदियाँ तालाब तुम्हारे . खेल के स्टेडियम मिलेंगे, छोटे बड़े खिलाड़ी लेलो . मुरब्बा बनाओ, आचार डालो; विद्वान्, बुद्धिजीवी, चतुर सायाने लेलो. राजनीति नहीं है जी खेला है, लोकतंत्र का मेला है . रेडियो टीवी लेलो, खबरों से कर लो मनमानी. हवा लेलो, सांसें लेलो या ले लो सागर का पानी . सस्ता महंगा मत देखो, घर जाने का भाव देखो . महल कचहरी, सील सिक्के, सेना लेलो सरदार लेलो . तोंद सहित पुलिस मिलेगी, बिना इशारे नहीं हिलेगी . वर्दी वाला हेड लेलो, सावन भादौ जेठ लेलो . नया पुराना गाँधी लोगे ? या बादल बरसात आँधी लोगे ? सेल है सब मिलेगा, औने पौने में भी चलेगा, कोई माल मुफ्त नहीं मिलेगा . बापू की धोती, चप्पल और चश्मा है ... दाम लगाओ . लाठी बकरी नहीं मिलेगी, चाहो तो ‘हे राम’ लेलो . राम की चिड़िया है जी और खेत भी राम का, खा-लो चिड़िया भर पेट, ... चिड़िया मिलेगी, चहक मिलेगी . सूखी गीली तंदूरी खनक मिलेगी . हजम करने को बाबा की पुड़िया है . डरो मत जनता गूंगी बहरी बुढ़िया है . घोड़ा, हाथी, ऊंट लेलो, वजीर बिक चुका है, प्यादे धोले काले लेलो . शकुनी वाले पासे लेलो, भरी सभा में तन कर खेलो . खरीदो कि बाज़ार खुल गए, नगद लेलो, क़िस्त करवा लो, वजन धरो उधार भी मिलेगा . नहीं कुछ है अगर, अपने हो मगर तो उपहार मिलेगा . मंदी का माहौल है पता है, बस राम नाम जपना है पराया माल अपना है .
आप पूछेंगे कि किस हैसियत से बेच रहे हैं आप ! तो जान लो कि चरवाहा जितनी देर बकरियां चराता है जंगली जानवरों से रक्षा की जिम्मेदारी उसकी होती है . इस वक्त वो मालिक होता है बकरियों का . परन्तु चरवाहे से बकरियों की रक्षा कौन करेगा इसके बारे में कानून मौन है . किसकी हिम्मत सवाल करे, माई का लाल कौन है ! नगदीकरण या मोनेटाईजेशन एक सुन्दर शब्द है . इसमें संपत्ति का स्वामित्व बेचने वाले के पास रहता है ... यानी बिकता कुछ नहीं है बस सेवा का नगदीकरण हो जाता है . जैसे काल गर्ल का कुछ नहीं जाता, वह बस सुख का नगदीकरण या मोनेटाईजेशन कर लेती है . अपराध नहीं है मोनेटाईजेशन, अपनी सोच को बड़ा करो . असल में ये संसार बाज़ार है, लेन देन ही जिन्दा रहने का प्रमाण होता है यहाँ . और यह भी तो देखो कि बेचना हर किसी को कहाँ आता है . मीठा बोल कर बेचने वालों की मिर्ची भी बिक जाती है और जो मौन रहते हैं उनका गुड भी नहीं बिकता है , कुर्सी अलग चली जाती है . बेचना एक कला है, लोग धरती पर बैठे चाँद पर छोटे बड़े प्लाट तक बेच रहे हैं . हम आगे बढ़ेंगे तरक्की करेंगे, पाऊच में पेक कर सूरज की रौशनी भी बेचेंगे .
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बुधवार, 1 सितंबर 2021
भावना आहत करें, सत्ता में आयें
भारत एक राजनीति प्रधान देश है और यहाँ राजनीति भावना
प्रधान है . भावना दन्न से आहत होती है और गुलशन में नए गुल खिल जाते हैं . जैसे मधुमक्खी के छत्ते में
पत्थर मारो तो वे उड़ कर माहौल में छा जाती हैं उसी तरह जनभावना को आहत कर दो तो एक
खास किस्म का बदला हुआ मजबूत माहौल बन जाता है . जानकार
इसे जनभावना से खिलवाड़ करना भी कहते रहते हैं . लेकिन यह कोई मामूली काम नहीं है . जन समूह की भावना के साथ खेल लेना राजनितिक
कौशल का काम है . कुछ लोग इसे बुद्धिमानी का काम भी कहते हैं . भावना जब जनता की
हो तो खिलवाड़ करने के लिए दूरदृष्टि और बड़े अनुभव का होना लाभदायक होता है .
बहुत दिनों तक भावना आहत नहीं हो तो यह काम खुद पार्टी को करना पड़ता है .
लोग अब जागरूक और समझदार भी हो चले हैं, भावना के मामले में वे शाक-प्रूफ होते जा
रहे हैं . एक तरह से ये अच्छा भी है . अगर गैस-पेट्रोल, दाल-तेल की महंगाई से उनकी
भावना आहत होने लग जाए तो लोग चुनाव के वक्त पर नेता के सामने सोंटा और वोटा के समय
नोटा इस्तेमाल करने लगेंगे . फार्मूला यह है कि चुनाव आते ही भावना आहत कर दें या
फिर भावना आहत हो चुकी हो तो तुरंत चुनाव करवा लें . लीडर का काम है कि जनता की भावना का
वो हिस्सा आहत करवाए जो पार्टी के काम का हो . धर्म इसमें बड़ा काम आता है .
भावनाएं पोल्ट्री फॉर्म की मुर्गियों की तरह हैं जिन्हें मार देने के लिए ही पाला जाता है
. सरकारें आती हैं जाती हैं, नेता आते हैं जाते हैं लेकिन लोकतंत्र के लिए जनता की
आहत होने वाली भावनाएं बनी रहनी चाहिए .
एक लोकतान्त्रिक देस में दो पार्टियाँ हैं, एक
टप्पू पार्टी और एक गप्पू पार्टी . गप्पू पार्टी को लोगों की भावना से खेलने में
मास्टरी है सो ग्रासरूट तक खेलती है . टप्पू पार्टी अपनी पुश्तैनी शेरवानी और लाल
गुलाब में ही टप्पे खा रही है . जनता से उसे वोट के आलावा कोई खास लेना देना नहीं
था जितना कि गप्पू पार्टी को था . टप्पू ठहरे छली घर्मनिर्पेक्ष और लोगों की भावना जो है धार्मिक मसलों पर ‘फट्ट से’ आहत होती है. ये खेल उनके बस का नहीं रहा . जिनकी भावना आहत नहीं होती यानी नास्तिक और
बुद्धिजीवी टाईप लोगों की, उन पर गप्पू समर्थक वाट्स एप के जरिये इतना थूकते हैं
कि वे अपने झंडे डंडे के साथ कहाँ गायब हो गए हैं पता नहीं चलता . मतलब मैदान साफ
हो जाता है . लोकतंत्र में आहत भावना सत्ता के लिए रेड कारपेट होती है . इस बात से
किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कारपेट पर चलने वालों के पैर कीचड़ में कितने सने
हुए हैं .
इधर आधी जनसँख्या यानी महिलाओं की भावनाएं बहुकोणीय होती हैं . जाहिर
हैं कि आहत होने के लिए उनके पास अलग अलग कोण की सुविधा होती हैं . जैसे एक कोण
पति,सास या अन्य रिश्तेदारों से आहत होने लिए होता है, दूसरा किसी की साड़ी, जेवर
वगैरह देख कर आहत होने के लिए . इसी तरह और भी तमाम कोण हैं, आहत होने का कोई मौका
वे नहीं छोड़ती हैं . बजट में टेक्स के इजाफे की पहली खबर से उनकी भावना आहत होना
शुरू कर देती है . वित्तमंत्री इस बात को जानता है . इसलिए बजट में वह चालाकी से टिकी बिंदी को टेक्स छूट के साथ गैस के पांच रुपये नब्बे पैसे कम कर देता है और देश भर की महिलाओं के सर पर बधाई के साथ
अहसान का टोकरा भी चढ़ा देता है . साथ में यह बयान कि सरकार ने महिलाओं की भावना का
ध्यान रखा है . भावुक देवियाँ इतने में खुश हो कर खोटे सिक्कों को पर्स में डाल कर
दिल के करीब रख लेती हैं . जनभावना ऐसा सिक्का है जिसके दोनों तरफ ‘हेड’ है, उछालने
वाला चाहिए . जो सही सही आहत कर ले सत्ता उसकी .
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रविवार, 29 अगस्त 2021
सब चंगा है जी !
पचहत्तर वर्ष की आज़ादी ने भारत के लोगों को बोलना सिखा दिया था . जब तक लाल झंडे वाले सक्रिय थे लोग खूब चीख चिल्ला भी लेते थे . किसी ज़माने में महंगाई बढ़ते ही सरकार की नींद हराम हो जाया करती थी . लोग सडकों पर उतर आते थे और अख़बार भी दूसरे दिन हाय हाय करते दिखाई पड़ते थे . यह सब स्कवाभाविक था, कहा जाता था लोगों को खाना कपड़ा नहीं मिलेगा तो चिल्लायेंगे ही . कामरेड उनकी पहली आवाज़ थे, लेकिन अब वक्त बदल गया है . कामरेड कचरे के ढेर में सूई की तरह खो गए हैं . अब सबके पास शांति और खुशहाली की पासबुक है . खाना कपड़ा सभी के पास है . लोग खुश हैं, कमाई खूब है, जो लोग साठ रुपये लीटर पेट्रोल नहीं भरवा पाते थे वे एक सौ दस का डलवा रहे हैं और 'चूं' भी नहीं कर रहे हैं ! सोचते हैं दफ्तर से घर और घर से दफ्तर ही तो जाना है इसमे 'चूं' क्या करना . एक किस्म की तसल्ली है दिल में . देश छोड़ कर तो जाना नहीं है . बन्दूक की गोली से मरने की अपेक्षा दवा, इंजेक्शन या आक्सीजन की कमी से मर जाना काफी हद तक गरिमापूर्ण है . उसके बाद अगर पता यह चले कि ये मौत मौत नहीं मुक्ति है तो दिल में सुकून और शीतलता ऐसी भर जाती है मानों शरीर डीप फ्रीजर हो . जो भी गुस्सा, असंतोष, आक्रोश अन्दर पैदा होता है वो तुरंत आइस क्यूब हो जाता है . शरीर से खून जलने या खौलने का सिस्टम तो जैसे ख़त्म ही हो गया है . लगता है जनता के जीन्स ही बदल गए हैं ! और कितना विकास चाहिए जनता को एक वोट के बदले !?
तमाम बाबाजी लोग तनाव दूर करने के राष्ट्रीय कार्यक्रम में लगे पड़े हैं लेकिन उन्हें कोई तनावग्रस्त मिल ही नहीं रहा है . सरकार आटा और सरकारी सेठ डाटा भर भर के दे रहे हैं . युवा बेरोजगार भले हों पर हाथ किसी का खाली नहीं है . सबको मुफ्त मिल जाये खाने को तो क्यों जाये कमाने को ! मेहनत से डरने वाली कौम सपनों के बल पर ठाठ से जिन्दा रह सकती है . उस पर मैसेजबाजी से दंगों का डर अगर दिमाग में भर दिया जाये तो इतिहास में यह राजनितिक कौशल के रूप में दर्ज हो सकता है . बड़ा बदलाव है समाज में . लोग देखना चाहते हैं लेकिन नहीं देख रहे हैं . लोग सोचना चाहते हैं लेकिन नहीं सोच रहे हैं . लोग बोलना चाहते हैं लेकिन नहीं बोल रहे हैं . शासन करने के लिए इससे बेहतर जनता और कहाँ मिलेगी ! चाशनी नहीं हैं इसलिए विरोधी दल आपस में जुड़ नहीं पा रहा है . जिन पर लोगों सम्हालने की जिम्मेदारी हैं वे खुद लड़खड़ा रहे हैं . एक दिन ऐसा आएगा जब सरकार और टीवी-रेडियो के आलावा कोई कुछ नहीं बोलेगा . देश मूक फिल्मों की तरह दिखाई देगा . खाने और पाखाने के आलावा किसी के पास कोई काम नहीं होगा . सुना है स्वर्ग में भी यही होता है . और मजे की बात है कि ये स्वर्ग लोगों को बिना मरे मिलेगा . तुस्सी जीउंदे रहो जी, मौज करो मौज .
कुछ सिरफिरे कहते
हैं कि तालिबानी हिंसा के खिलाफ तो बोल दो, अपना विरोध तो दर्ज करो, लेकिन बुद्धिजीवी चुप ! कौन बोले भाई
!? यहाँ लोग अपने जख्म चुपचाप चाट रहे हैं वो दूसरों के लिए हाय हाय कैसे करेंगे !
जो कोई बोल भी रहे हैं तो गूंगों की साईन लेंग्वेज में, जिसे वे खुद समझ रहे हैं
या फिर दूसरा गूंगा . खुल कर कोई नहीं बोल रहा . सफाई देने वाले कह रहे हैं कि मुसलमानों
को बोलना चाहिए क्योंकि जो जुल्म का शिकार हो रहे हैं वो भी मुसलमान हैं ! दुनिया
भर की मुस्लिम औरतों को बोलना चाहिए, क्योंकि तालिबान सबसे ज्यादा अत्याचार अफगानी
औरतों पर ही कर रहे हैं . तो यहाँ की औरतें बोल सकती हैं . मौका आने पर जो भीड़ पर प्यार से पत्थर
चला सकती हैं, सरकार या पुलिस से छका सकती हैं तो इस समय उनकी चुप्पी क्यों आखिर !? ये चुप्पी तालिबानों के पक्ष में जा रही है. ..... जा रही है तो जाने दो . हमकौम दुश्मन थोड़ी होते हैं !
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बुधवार, 25 अगस्त 2021
आदमी हैं या वायरस कोई
इस वक्त सारी दुनिया अफगानिस्तान में चल रही
लहरें गिन रही है . हम भी दुनिया से बाहर नहीं हैं और गिन रहे हैं . पहली लहर में वे
कोरोना की तरह चुपके से नहीं, चीखते चिल्लाते आये और मुल्क में घुस गए . एक एक कर राज्यों को चपेट में ले लिया . देखते ही देखते लोग घरों में कैद हो गए जैसे कि दुनिया भर में लाकडाउन के
चलते लोग घरों में बंद थे . किस लेब में तैयार होते हैं वायरस और किस तरह एक
स्वस्थ मुल्क को संक्रमित कर देते हैं इस पर चर्चा चल रही है . वायरस से जिन्हें
लड़ना था वे अपनी जान बचा कर भाग गए . अब किसीको सूझ नहीं रहा है कि इस वायरस को
कैसे निष्क्रिय किया जाये . मौंतें लगातार हो रही हैं . कौन कहाँ मर रहा है पता
नहीं . परिजनों को लाश भी देखने को नहीं मिल रही है . मुल्क से भागने वालों को रास्ते
नहीं मिल रहे हैं, जैसे महानगरों से हजारों लोग पैदल भागे थे अपने गाँव की तरफ और
उन्हें बस, ट्रेन या गधा-घोड़ा कुछ भी नहीं मिला था . वक्त तारीख बदल कर दोहरा रहा
है अपने को . कल तक जो लोग भरोसे में थे कि सरकार लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से वेक्सिन
लिए दौड़ पड़ेगा और दुनिया वाले भी हैं ही . लेकिन एक सपना था, टूट गया . अब मैदान
में जहाँ जहाँ भी देखो कन्धों पर बन्दूक लिए वायरस ही है . आम नागरिक मर रहे हैं
और किसी को पता भी नहीं चल रहा है . अनपढ़ जाहिल वायरस मारते ज्यादा हैं और गिनते
कम हैं . कम गिनने से मुल्क के दस्तावेजों पर दाग नहीं लगते हैं . कुछ देश बीमारी
और वायरस के हिमायती बन कर उसके बचाव में कमर कसे खड़े हैं . वायरस से बचने के लिए
वे वायरस से दोस्ती करना पसंद कर रहे हैं . उन्हें नहीं मालूम आस्तीन के सांप सबसे
पहले किसका शिकार करते हैं .
दूसरी लहर में वायरस बदले हुए यानी नए वेरिएंट के
साथ आया है . अब उसके कई मुंह हैं, और हर कुछ समय बाद वह अपने इरादे, अपने वादे,
अपनी मुद्रा, यानी सब कुछ बदल लेता है . इस वेरिएंट ने प्रेस
कांफ्रेंस करके अपने को मुल्क का हिमायती और उदार दिल बताने की कोशिश की है . उसने
टीवी पर खुले चेहरे वाली महिला से बातचीत करके दुनिया को बताने की कोशिश की कि
औरतों से उन्हें कोई दुश्मनी नहीं है, वे
उन्हें कुछ पाबंदियों के साथ जीने देंगे . वायरस को शराफत के हिजाब में देख कर कुछ
देर के लिए दुनिया को लगा कि दूसरी लहर उतनी खतरनाक नहीं है . लेकिन अगले ही दिन
टीवी पर देखा कि एक मरियल सी औरत को हट्ठा कट्ठा आदमी कोड़ों से पीट रहा है .
समाचार वाचक ने बताया की औरत आधे कोड़े खाने के बाद ही बेहोश हो गई और थोड़ी देर बाद
मर गई . बचे हुए आधे कोड़ों के लिए अब उसे दूसरी औरत जरुरी है वरना न्याय नहीं हो
पायेगा . इधर टीवी देखने वाली दुनिया भर की औरतें ‘इश इश’ कर रही हैं . वे कोड़ों
की मार को महसूस कर रहीं हैं और जंगल राज के खौफ को भी . भगवान को शुक्रिया पर
शुक्रिया भेजा जा रहा है कि हमारे देश में यह सब नहीं है . भले ही दाल, तेल, आटा
महंगा हो गया हो, नौकरी चली गयी हो या धंधा बर्बाद हो गया हो पर हम सुखी हैं . अगर
यहाँ भी कोड़े ले कर संसकृति रक्षक ब्लाउज की बैक नापने लगें और कोड़े फटकारने लगें
तो जीना मुश्किल हो जायेगा . माना कि अफगानिस्तान दूर है, लेकिन खरबूजों का भरोसा
नहीं , खरबूजों को देख कर कब रंग बदलने लगें .
कोविड को तो एक न एक दिन काबू में कर लिया जायेगा
लेकिन इन वायरस का क्या जो रोज खून से कुल्ला करते हैं !! दुनिया में हैं किसी के
पास इनकी वेक्सिन ?!
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शनिवार, 21 अगस्त 2021
चिड़ियों से खतरा
पूरे मुल्क में मशीनगनें एक एक लड़ाके को लटकाए यहाँ से वहां भटक रही हैं . मशीनगनें जानती हैं कि उसके कन्धों पर एक ऐसा शख्स सवार है जो चिड़ियों से डरता है . दरअसल उन्हें पता है चिड़ियों के हौसले और उड़ान . दुनिया भर में वे जमीन से आसमान तक नाप रही हैं . उनसे आँख मिलाते खौफ होता है और उससे ज्यादा शरम आती है . हाथ में अगर मशीनगन न हो तो सर उनके कदमों में रखना पड़ सकता है . इसलिए जरुरी है कि चिड़ियाएँ परदे में रहें या घरों में कैद, पिंजरों में बंद रखी जाएँ या बेड़ियों में जकड़ी जाएँ . चिड़ियों की न चोंच होनी चाहिए न ही पंख . चिड़ियों के लिए मुल्क पोल्ट्री फॉर्म से ज्यादा कुछ नहीं है . अंडे दें, चूजे निकालें यही उनका फर्ज है . अगर वे शिक्षित हुईं तो पंख फैला सकती हैं, उड़ सकती हैं, अपने अधिकारों को पहचान सकती हैं, उसके लिए लड़ भी सकती हैं . शिक्षा और समझ के मैदान में लड़ाके उनका मुकाबला नहीं कर सकते हैं .
लड़ाकों की अपनी तरह की कोशिश ये रहती है कि किसी तरह बराबरी बनी रहे . जाहिलों
के लिए खातूनों का भी जाहिल होना जरुरी है . इसी को प्रापर मैच कहा जाता है . उन्हें
अपनी पसंद के मर्द से प्रेम नहीं करने दिया जायेगा . वे निजाम द्वरा तय किये आदमी
से ही मोहब्बत करेंगी . किसी औरत को सार्वजानिक रूप से कोड़े खाने का शौक हो तो वे किसी
और मर्द से ताल्लुख रखेंगी और अपनी ख्वाहिश पूरी करेंगी . समाज में बदचलनी नहीं
फैले इसलिए उन्हें संगसार भी किया जा सकता है ताकि वे एक नेक काम में मिसाल बन
सकें . अगर दुनिया भर में औरत को इन्सान समझा जाता है तो इसके लिए लड़ाके जिम्मेदार
नहीं हैं . दूसरों को चाहिए कि हमसे सीखें और अपनी गलतियों को सुधारें . औरतों का
स्कूल जाना सबसे पहले बंद किया जायेगा . एक मलाला सर दर्द बनी अगर पूरा मुल्क मलालाओं
से भर गया तो !! यह सोच कर ही रूह कांप जाती है . दुनिया में जहाँ जहाँ भी औरतों
को बराबरी का दर्जा देने की बेवकूफी की गयी है वहां मर्दों का हाल देखिये क्या है !!
दाढ़ी तक नहीं रख पाते हैं ! तो क्या इज्जत है उनकी ! वो तो अच्छा है कि पुरखों ने
औरतों को गुलाम बनाने की शानदार रवायत हमें बख्शी है . दीन ओ मजहब के साथ और
सपोर्ट से बिरादरान के इरादे मजबूत रहते हैं . अगर मालिक ने ही औरतों को बराबरी का
हक़ दिया होता तो उनके भी दाढ़ी होती . जिन्हें पैदा ही गैर बराबरी के साथ किया है
तो उसे बनाये रखना कौन सा गुनाह है ! अब वे कहीं नौकरी नहीं करेंगी, घर से बहार
निकलते वक्त किसी मर्द के साथ होंगीं, अकेले नहीं घूमेंगी फिरेंगी . लोग पूछते हैं
कि लड़ाकों के रहते औरतों को किसका डर ?! तो जान लो कि लड़ाकों में भी भूखे प्यासे
होते हैं . इनसे बचने का एक ही तरीका है कानून को मानों .
लड़ाकों को जंगल में रहना पसंद है . किसी भी तरह की सभ्यता उनकी दुश्मन है .
मालिक ने पूरी धरती को जंगल बनाया था . लोगों ने साइंस के जरिये तरक्की की, जो कि
गलत है . पढ़े लिखे, समझदार और शांतिप्रिय लोग ही नहीं उनकी मूर्तियाँ भी लड़ाकों को
बर्दाश्त नहीं हैं . मूर्तियाँ तोड़ी जाएँगी, लोग मारे जायेंगे और जंगल का रुतबा
फिर कायम किया जायेगा . जंग, जंगल और जमीन ही लड़ाकों का सपना है . वे पूछना चाहते
हैं कि दुनिया भर में लोग एक दूसरे से इंसानी रिश्ता रखते हैं तो मशीनगन और गोला
बारूद किसलिए बनाया है !! इनका क्या उपयोग
हैं ? जो इस वक्त शांति और अमन की रट
लगाये हैं वो बताएं कि हमें हथियार किसने दिए ! तुमने अपना बिजनेस किया, हम
अपना कर रहे हैं . जब तक जंगल में एक एक चिड़िया को नकाब नहीं पहना देते हमारा काम
जरी रहेगा . और हाँ, एक अपील है दोस्त मुल्कों से, लड़ाकों के लिए खूब सारे हथियार
और आर्थिक मदद तुरंत मुहय्या करवाएं, दवाएं और वेक्सिन वगैरह भी .
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बुधवार, 18 अगस्त 2021
सोते रहिये, कोई खतरा नहीं है !
खतरा जागने वाले को महसूस होता है . जो सोता रहता है वह भले ही मारा जाये पर उसके लिए न खतरा न डर किसीका . कहते हैं जो डर गया वो मर गया . जागने वाला डर के साथ मरता है, सोने वाला मजे में बिना डर के मर जाता है . मरते दोनों हैं पर फायदे में सोने वाला हुआ . कबीर ने कहा है कि “दुखिया दास कबीर, जागे और रोवे ; सुखिया सब संसार, खावे और सोवे”. अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है उससे हमें जरा भी चिंतित होने की जरुरत नहीं है . हमें क्या ! मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में . हमारे देश में कोई तालिबान थोड़ी है, न ही कोई तालिबानी हरकत . यहाँ सब प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं . एक दूसरे के धर्मों का आदर जी जान से करते हैं . न कोई किसी को धमकाता है डराता है . मौके बेमौके कुछ हो जाये तो एक दूसरे के सम्मान में जरा सा पत्थर वत्थर भले ही फैंक लें, पांच पचास घायल भी हो जाएँ लेकिन उसके बाद तुरंत स्थिति सामान्य होने में वक्त नहीं लगता है . सहिष्णुता और समझदारी से लबालब है देश की जनता . दुनिया हमें गाँधीवादी यूं ही नहीं कहती है . देश भर में एमजी रोड क्यों बनाये हैं बताइए ! शांति मार्च निकालने के लिए . हजारों की संख्या में चौराहे चौराहे पर गाँधी जी लाठी ले कर खड़े हैं . असली चौकीदार गाँधी जी हैं . चोर चौकीदार से डरते हैं इसलिए समय समय पर उनके गले में माला डाल कर उनकी गुडबुक में बने रहने की कोशिश करते रहते हैं .
यह ठीक है कि
हम विश्व शांति के समर्थक रहे हैं . आज भी हैं, लेकिन देखिये अमेरिका को ! फटे में
में पांव घुसाने का नतीजा क्या मिला ! माया मिली न राम, मुफ्त में हो गए बदनाम . कोई
कबीलायी मानसिकता का है तो है, हमारे यहाँ तो कोई नहीं है . वो हजार साल पीछे ले
जाना चाहते हैं मुल्क को, लेकिन हमारे यहाँ तो सब प्रगतिशील हैं . तालिबान जहाँ
हैं वहां अपने लोगों को मार रहे हैं तो समझिये कि उनका घरेलू मामला है . वो आपस में
भाई भाई हैं, उनकी वे जानें . राम की चिड़िया राम का खेत; खा ले चिड़िया भर भर पेट .
वहां की औरतें रो रो कर बुरखा पहन रही हैं . वे जानती हैं कि जिन्हें देख लेना है वो
बावजूद बुरखे के देख लेंगे . 15 से 45 वर्ष की औरतों को आगे के सफ़र के लिए सूचि
में दर्ज कर लिया गया है . यह बहुत बुरी बात है, लेकिन हमें क्या ! हमारे यहाँ ऐसा
कुछ नहीं है . यहाँ महिलाएं पसंद का कुछ तो भी पहनने के लिए स्वतंत्र हैं, कहीं भी
बेफिक्र हो कर अकेले घूमफिर सकती हैं कोई दिक्कत नहीं है . लुच्चे लफंगे छेड़छाड़ तक
नहीं करते हैं . लड़की चाहे गरीब ही क्यों न हो, उसकी मज़बूरी का कोई फायदा नहीं
उठता है . रहा सवाल बलात्कारों का तो वो एक अलग बात है . एक सौ पैंतीस करोड़ की
जनसँख्या में प्रतिदिन मात्र एक सौ बलात्कार होते हैं ! आप जरा सोचिये कितने कम हैं
. इससे न देश की प्रतिष्ठा को धक्का लगता है और न ही व्यवस्था को लेकर चिंता करने
की जरुरत है . कल का हमें नहीं पता लेकिन आज लड़कियों को कोई घर से जबरदस्ती उठा कर
नहीं ले जाता है . और क्या चाहिए अच्छी नींद के लिए ! जब तक जागने की जरुरत नहीं
हो, सोते रहिये . पानी नाक तक नहीं आ जाए तब तक कोई खतरा नहीं .
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शनिवार, 14 अगस्त 2021
एक अनुभव है आजादी
देखिये एक बात समझ लीजिये, आजादी व्यवहार में लाने की नहीं अनुभव करने की चीज है . ये डेवलपमेन्ट का एक नया कांसेप्ट है . इसलिए कुछ और अनुभव करने की न तो आपको जरुरत है और न ही इजाजत . आप आजाद हैं सिर्फ इस बात को अनुभव कीजिये . अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि मुँह बंद रखिये, बोलिए मत . बोले कि अनुभव ख़त्म . विक्रम-बेताल का पता है ना ? राजा ने मुँह खोला और अनुभव का बेताल उड़ा . जो बोलेगा वो अनुभव नहीं करेगा और जो अनुभव नहीं करेगा उसकी आजादी ख़त्म . मन एकदम शांत होना चाहिए . कोई कितना भी महंगाई को ले कर उकसाए, पेट्रोल के भाव बतलाये, कोरोना वाले मौत के आंकड़े गिनवाये आप विचलित नहीं होंगे, शांति से बैठेंगे . जिस समय आजादी का आनंद लेने की प्रक्रिया चल रही हो उस समय किसी भी प्रकार का विचलन देशद्रोह माना जायेगा . सरकार चौकीदार है, जनता के लिए अनुभव की कठिन तपस्या में अगर कोई बाधक बनेगा तो उसे उठवा कर खाड़ी में फैंक दिया जायेगा . कुछ गुमराह नौजवान ‘आजादी-आजादी’ का नारा लगा रहे थे . सुना होगा आपने, हमारे टीवी वाले सहयोगियों ने इसका खूब प्रचार किया था . उन लोगों को गलतफहमी के आलावा कुछ नहीं मिला . उनके पास आजादी हैं पर वे अनुभव नहीं करते हैं . ‘सरकार जनता की सेवक है’ यह सुनने में कितना अच्छा लगता है . अगर महसूस करेंगे तो और अच्छा लगेगा . आपको राजा वाली फीलिंग आ जाएगी . सरकार जिसकी सेवक हो उसे तो समझो स्वर्ग मिल गया, आप बैठिये और इसको अनुभव कीजिये .
लोग रोजगार को लेकर बकवास करते रहते हैं और जनता को कुछ भी अच्छा अनुभव नहीं करने देते हैं . अरे भाई, आप वोट देते हो और सरकार बनवाते हो . मालिक हो आप देश के, आपको न खाने की चिंता होनी चाहिए न ही दावा-दारू की . सबको मुफ्त राशन मिलेगा, दावा-दारू मिलेगी, घर में टीवी है ही, रेडियो भी होगा . मजे में खाइए और न्यूज चेनल देखिये, रेडियो में मन का गाना सुनिए . सोचिये जरा, अनुभव कीजिये, कैसा लग रहा है आपको !? मजा आ रहा है ना ? अनुभव कीजिये इस मजे को . दोष देने से, कूढने से, कोसने से सरकार का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है . फिर काहे के लिए मगजमारी ! हास्य क्लब देखे होंगे, इसकी सदस्यता ले लो फटाफट . वे सारे लोग बिना किसी बात के खूब हँसते है ! कई बार तो ठहाके लगा लगा कर आकाश गूंजा देते हैं ! तो क्या ये समझदार लोग पागल हैं ? ये अन्दर से चाहे कितने भी परेशान और दुखी हों हँस हँस कर अपनी सोच बदल लेते हैं . आप भी हँसा करो, समाचार पढ़ो तो हँसो, समाचार देखो तो हँसो, पेट्रोल भरवाओ तो हँसो, दाल पतली हो तो हँसो, बिना डाक्टर-दावा या आक्सीजन के मर जाओ तो हँसो . फिल़ासफी की मदद लो, सोचो क्या ले कर आये थे और क्या ले कर जाओगे ! ये दुनिया एक सराय है, आपको हमको सबको एक न एक दिन जाना पड़ेगा . कोई अमर नहीं है . फिर जबरदस्ती की हाय तौबा क्यों ! सोच कर देखो कि आमिर को कितनी महँगी मौत मरना पड़ता है ! लेकिन गरीब आदमी मजे में और सस्ते में मर लेता है . कितनी अच्छी बात है ये ! अगर सरकार गरीबों की शुभचिंतक नहीं होती और अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रही होती तो लाल झंडे वाले क्या मजे में बैठे कहीं तीन पत्ती खेल पाते ! हाँ, कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है कि अपराध बढ़ गए हैं . दरअसल चोरी करने वाले हमारे भाई लूट-बिजनेस में आ गए हैं . लेकिन किसीको इन छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान होने की जरुरत नहीं है . आपको घर में सुरक्षित रहने की आजादी है ही . अपने सुना होगा कि संतोषी सदा सुखी . जनता को हमेशा संतुष्ट रहना होगा . इसके लिए कड़े कानून बनाये जायेंगे . जनता का सुख संतोष सरकार की प्राथमिकता है . तो अपने को सख्ती से संतुष्ट अनुभव कीजिये, नमस्कार .
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शनिवार, 31 जुलाई 2021
मटकी, माखन और दिल्ली
मथनी की तरह घूम घूम कर वे दिल्ली को मथ रही थीं . विश्वास ये कि माखन निकलेगा . दिल्ली को मथने से माखन निकलता है ये मिडिया से भी पता चलता है . जिसने ठीक से मथा नवनीत उसे ही मिला . कृष्ण ग्वालबालों की टोली के साथ होते थे और कंकरियां मार के मटकी फोड़ दिया करते थे . छींकों में ऊपर बंधी मटकी भी ग्वालों की सहायता से उतार लेते थे . मतलब ये कि कृष्ण ने शिक्षा दी है कि मिल कर प्रयास किये जाएँ तो मटकी फोड़ी जा सकती है . कृष्ण भी उनकी तरह काले थे सो वे एक स्याह आत्मविश्वास से भरी हुई खुद कृष्णा हो रही थीं .
“कृष्णा जी विपक्ष की एकता का विचार अच्छा है लेकिन माखन कैसे बंटेगा इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है ! “ पुरातन दल के नवांकुरित दलपति ने अपनी बात रखी .
“ये बताइए कि सारा माखन आपको दे दें तो आप हजम कर लोगे दलपति जी ?” उन्होंने फायरब्रांड सवाल दागा .
“दो मिनिट रुको, मम्मी से पूछ कर बताता हूँ .”
“ऐसी कौन सी मम्मी है जो दुनिया का सारा माखन अपने बच्चू को नहीं देना चाहेगी !? वो तो हाँ ही कहेंगी .”
“फिर दीदी से पूछ लेता हूँ ...”
“अभी रक्षाबंधन आने वाला है . बहन भी सारा माखन भाई को ही देगी .”
“फिर किससे पूछूं ! और किसी पर मुझे भरोसा नहीं है .”
“मैं हूँ ना, मुझसे पूछो . देखो अपन पिरामिड बनायेंगे और सब मिल कर मटकी फोड़ेंगे तो थोड़ा थोड़ा माखन सबको मिल जाएगा .”
“पिरामिड में सबसे ऊपर किसको रखोगे ? गोविंदा किसको बनाओगे ?”
“मैं दिल्ली मथ रही हूँ तो साफ है गोविंदा मैं बनूँगी .”
“लेकिन हमारा दल राष्ट्रिय है और सबसे बड़ा है तो गोविंदा हमारा होगा और सबसे ज्यादा माखन भी हमें देना होगा .”
“सच्चाई को देखिये, आपका दल बूढ़ा हाथी है, खाता ज्यादा है और हिलता कम है . ऐसे में खेला कैसे होगा ?”
“कृष्णा जी ... मईंड योर लेंग्वेज प्लीज, हम जानते हैं अपने हाथी को, वह बूढ़ा नहीं है .”
“आप ठीक से जानते हैं ?... अच्छा बताइए कि हाथी की सूंड किधर होती है और पूंछ किधर ?”
“सिंपल है, हाथी जिधर से खाता है उधर सूंड और जिधर से निकालता है उधर पूंछ होती है .”
“ये तो हमारे बंगाल में केजी के बच्चों को भी पता होता है . पोलिटिक्स में हाथी अलग होता है .”
“तो आप ही बताएं कृष्णा जी ... मतलब दीदी ...आप बताएं .”
“जिधर से वादे किये जाते हैं, घोषणाएँ की जाती हैं उधर सूंड होती है और जिधर से वादों घोषणाओं की हवा निकल जाती है उधर पूंछ होती हैं .”
इस बीच मम्मी आ जाती हैं, उन्हें भी सामूहिक प्रयास के बारे में बताया जाता है .
“माखन का इशू पहले साल्व करना पड़ेगा. यू नो सिक्सटी परसेंट माखन हमारा गुड्डू के लिए जरुरी है .”
“देखिये मैडम, हमारा गोल मटकी फोड़ना है, एक बार मटकी फूट जाये माखन का इशू बाद में हल हो जायेगा . “
“चलिए फिफ्टी वन परसेंट हमको दीजिये, बाकी का बाकी को . दूसरे क्या बोल रहे हैं ?”
“जितनी भी पार्टियों से मिली हूँ सारे फिफ्टी वन परसेंट मांगते हैं !”
“आपकी अपनी क्या राय है .“
“मुझे भी फिफ्टी वन परसेंट होना ... आखिर दिल्ली तो मैं ही मथ रही हूँ .
“तो दिल्ली आपका बस की नहीं है मैडम ... नमस्कार .”
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सोमवार, 26 जुलाई 2021
प्रजातंत्र की भ्रमित प्रजा
जो लोग अपने घर-परिवार का भार उठाने में असफल हो जाते हैं वे प्रायः देश
का भार उठाते देखे जाते हैं . चूँकि पढ़े लिखे प्रजातंत्र की रक्षा के प्रति उदासीन
होते हैं और अक्सर वोट भी डालने नहीं जाते हैं . ऐसे में प्रजातंत्र की रक्षा का
यह दायित्व अपढ़, कुपढ़ और अंधभक्तों की झोली में चला जाता है . ये वो लोग हैं जो
अपने को प्रजा समझते, मानते और गर्व करते हैं . प्रजातंत्र के हक़ में यह जरूरी है
कि मानने वाले मजबूत और संतुष्ट हों . प्राण जाये पर वचन न जाये टाईप . शिक्षितों
और समझदारों के भरोसे आप विकास जैसा कोई काम नहीं कर सकते हैं . विकास के लिए एक
खास किस्म का विश्वास होना चाहिए . जानकर कहते हैं कि शिक्षा बाल की खाल निकलने का
औजार है . सबसे पहले तो ये लोग प्रजातंत्र को लोकतंत्र कह कर राज करने का सारा मजा
किरकिरा कर देते हैं . जैसे कोई सर का कोहिनूर-ताज उतर कर टोपी पहना दे . अगर किसी
राज्य में जनसेवक अपने को राजा या महाराजा मानता है तो लोग अपने को प्रजा मान कर प्रापर
बेलेंस कर सकते हैं . उन्हें करना ही चाहिए क्योंकि कोई भी व्यवस्था संतुलन से
चलती है . लेकिन जब भी विश्वास करने का मौका आता है शिक्षित लोग आँखे बंद नहीं
करते हैं, जैसे कि बाकी देशभक्त कर लेते
हैं . और जब आँख खोलते हैं तो संदेह और अविश्वास की दीवार खड़ी कर लेते हैं ! इसलिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बहुत
जरुरत है . जब तक इनमें व्यावहारिक ज्ञान नहीं होगा ये न अपना भला कर सकते हैं न
देश का . शिक्षा ऐसी होना चाहिए कि आदमी शिक्षित हो कर निकले पर शिक्षितों जैसा व्यवहार
न करे . समझदार हो पर ज्यादा समझदार न बने . जब भी देखे अच्छा देखे, राजनीति के
फटे में नजर डालना और उसके बाद हाय हाय करना उसका काम नहीं है . इसे शासकीय काम
में दखलंदाजी या देशद्रोह भी माना जा सकता है . चाहे कोई कितना भी शिक्षित या
समझदार क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं है, सिवाय सरकार के .देखिये लाइफ जो है दो तरह की होती है . एक होती है भगवान की दी हुई
भूख,प्यास, निद्रा, मैथुन वाली बेसिक लाइफ और दूसरी होती है सभ्य समाज की प्रेक्टिकल
लाइफ . यह बात गंवार से गंवार आदमी जानता
है कि प्रेक्टिकल लाइफ से ही व्यक्ति अच्छा और सफल नागरिक बनता है . शिक्षित आदमी
अड़ियल किस्म का होता है इसलिए बेसिक लाइफ जीता है . पढ़े हैं सो बार बार संविधान की
तरफ दौड़ते हैं . उसमें लिखा है कि देश सेक्युलर है तो सेक्युलर की रट लगाये रहेंगे
. चाहे आधा दर्जन आदमी भी सेक्युलर नहीं मिलें पूरे देश में . अरे भई जनता धर्मों
में बंटी है, धर्मों को ले कर अड़ जाती है, चुनाव, वोट, मंत्रिमंडल सब जाति-धर्म के
हिसाब से होता है . इस पर प्रेक्टिकल नजरिया ये है कि हम सेक्युलर नहीं हैं लेकिन प्रजातंत्र
में किताबों में लिखा हुआ अच्छा लगता है इसलिए हैं भी . तो भईया पढ़ो लिखो, कोई हरज
नहीं हैं, बस आँखें बंद और कान खुले रखो, सवाल मत करो, जेब कटे या गरदन अपना फरज
समझो . जियो तो भक्ति, मरो तो मुक्ति .
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