गुरुवार, 29 अगस्त 2019

भ्रष्टाचार खत्म हो गया है



“देखिए जी, लेन देन की कोई बात नहीं करें । भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो गया है । आप निश्चिंत रहें, महकमें में आपसे कोई रिश्वत नहीं माँगेगा  मुस्कराते हुए गोवर्धन बाबू ने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए बैठने की अनुमति प्रदान की । दो साल पहले इन्हीं से काम पड़ा था तो हजार रुपए लिए बगैर फाइल को छूआ तक नहीं था इन्होंने । और तेवर तो ऐसे थे मानो सरयू पार वाले समधी हों । खैर, बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई । आज बात कर रहे हैं तो अपने से लग रहे हैं । कहा – “लेकिन चपरासी ने अभी दो सौ रुपए लिए मुझसे, तब आई फाइल आपके टेबल पर !!”
“गोपाल ने लिए होंगे । दरअसल वो रिश्वत नहीं है । भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो गया है ।  देखिए जगह जगह तख्ती भी लगी है कि रिश्वत देना और लेना मना है । उसने बताया नहीं कि दो सौ रुपए गऊ चारे के लिए हैं !?  .... यू नो, गाय हमारी माता है । निबंध तो लिखे होंगे आपने पाँचवी कक्षा में ? ... कहाँ तक पढ़े हैं ?”
“गऊ माता तक ... मतलब समझिए पाँचवी तक” ।
“फिर क्या दिक्कत है ! धरम का काम है । जहाँ भी मौका मिले पुण्य संचय करना चाहिए । पता नहीं कब बुलावा आ जाए । ऊपरवाला भी टेबल कुर्सी ले कर बैठा है । चलिए ... बताइये क्या काम है ?”
“छोटा सा काम है जी । एक आर्डर रुका हुआ है । पता चला कि फाइल आगे नहीं जा रही है । आपके यहाँ से ओके हो जाए तो ...”
“बिलकुल हो जाएगा । कागज पूरे हैं आपके ...मतलब फोर्मेलिटी कंप्लीट है । बस भगवान चाहेगा तो कोई दिक्कत नहीं है । ... भगवान ...” ।
“बड़ी मेहरबानी आपकी” । कह कर हाथ जोड़ दिए ।
“अरे हाथ मत जोड़िए, हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं है । लोग देखेंगे तो समझेंगे कि रिश्वत मांग रहा हूँ । भ्रष्टाचार एकदम खत्म हो गया है । भगवान उधर हैं ( काली लकड़ी के छोटे से सुंदर मंदिर में गऊ सहित बांसुरी बजाते भगवान मौजूद थे ) वहाँ पाँच सौ के तीन नोट चढ़ा दीजिए । हमने भी पाँच गौएं पाल रखी हैं । समय की मांग है कि गौ पालन में सब योगदान करें । धरम का काम है, .... वैसे कोई जबर्दस्ती नहीं है । आपकी फाइल यहाँ सुरक्षित है जब गो-प्रेम जागृत हो तब चले आना, ... जल्दी नहीं है” । कह कर उन्होंने फाइल बंद की ।
“गो-प्रेम जागृत है जी, ... भला ऐसा कौन है जो गो-प्रेमी नहीं है आज के समय में” । उसने नोट चढ़ा दिए । गोवर्धन जी ने ड्राज से निकाल कर कुछ दाने शकर के हाथ पर धर दिए । बोले “प्रसाद है, लीजिए । मन प्रसन्न होना चाहिए, आस्था बड़ी चीज है, संसार तो आनी जानी है । ... गऊ का महत्व जानते हो ना । पुंछ पकड़ लो तो वैतरणी पार हो जाती है । फाइल की भला क्या औकात कि एक टेबल पर अटकी रहे ! .... लीजिए हो गया आपका काम । .... जय गऊ माता । ” ।
“धन्यवाद आपका । अब बड़े साहब को तो ... मेरा मतलब है कि पुण्य संचय उधर भी करना पड़ेगा ? कोई मंदिर है क्या उनके कक्ष में भी ?”
“है क्यों नहीं ! आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए धरम करम से मुक्त नहीं है । वे एक गोशाला के ट्रस्टी हैं ।” 
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

ईमानदारी के पक्षधर



कुर्सी पर ठीक से काबिज होने के बाद वे ईमानदारी के पक्षधर हो गए । राजनीति भी कहती है कि  पक्षधर होना ईमानदार होने से ज्यादा फायदे की बात है । सफल आदमी फ्रूट मर्चेन्ट की तरह पेड़ का पक्षधर होता है  लेकिन पेड़ लगाना उसके लिए जरूरी नहीं है । जब भी मन हुआ वह किसी भी हरे में जा कर अपनी पक्षधरता का जश्न मना सकता है । जैसे पक्षधर यहाँ वहाँ धर्म पताकाएँ तान आते हैं और जब अपने निजी में प्रवेश करते हैं तो हरी पीली लुंगियों में घूमते हैं । लड़ाई झगड़ों, युद्ध या दंगे- फ़सादों के पक्षधर अकसर सुरक्षित स्थानों  पर चौपड़ और पाँसे लिए बैठे होते हैं । ईमानदारी का पक्षधर मन, वचन और कर्म से दृढ़ता पूर्वक दूसरों को ईमानदार देखना चाहता है । यही उसका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण काम है । वह जानता है कि ईमानदार आदमी को कुछ नहीं मिलता है । देश के करोड़ो गरीब दरअसल ईमानदारी का ही प्रतीक हैं । वो यह भी जानता है कि गरीब के कंधों पर लोकतन्त्र एक लदान है । इसलिए लोकतन्त्र को बनाए रखने के लिए गरीबों की रक्षा जरूरी है और गरीबी बनाए रखने के लिए मजबूत ईमानदारी की । गरीब लोकतंत्र का हल खींचने वाले बैल हैं जिनके मुंह पर जाली बंधी होती है । वे गर्व से अपने को लोकतन्त्र का सिपाही घोषित करते हैं ।
बिजली की तरह अगर ईमानदारी की भी मीटर रीडिंग हो सकती तो पता चलता कि जो जितना ईमानदार वो उतना गरीब है । यदि ऐसा हो सकता तो हम किसी को गरीबी के आंकड़े बताते हुए शर्मिंदा नहीं होते बल्कि ताल ठोंक कर ईमानदारी के लिए गिनिस वर्ल्ड रेकर्ड वालों की नींद उड़ा देते । दुनिया वाले भी गरीबों के आधार कार्ड देख कर हमारे दावे को सहज स्वीकारना पड़ता । हालांकि शेष रहे कुछ उलटापंथी विचारक यहाँ भी पाकेट साइज़ लाल झण्डा ले कर हाय हाय करने से बाज़ नहीं आते । उनके चिंतन का यह विषय हो सकता है कि लोग ईमानदारी के कारण गरीब हैं या गरीबी के कारण ईमानदार । लेकिन लोकतन्त्र में हाय हाय को भी रामलीला मैदान दिया जाता है । सब अपना काम करें इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है । जल्द ही सबको स्मार्ट फोन दिए जाएंगे । जिनके पास काम नहीं होगा वह भी व्यस्त हो जाएगा । व्यस्तता विकास का प्रमाण है । फेसबुक में आम राय है कि जो व्यस्त है वही मस्त है । जन्म-मरण, हानि-लाभ तो ऊपर वाले के हाथ में है । भाग्य का लिखा टलता नहीं और समय से पहले व भाग्य से ज्यादा मिलता नहीं । सो भाई सबके दाता राम ।  वाट्सेप से फेक न्यूज के जरिए सिस्टम के हाथ मजबूत कर देश सेवा करना छोटा काम नहीं है । हर नौजवान को डेढ़ जीबी डाटा में लगाए रखने की मंशा पक्षधर पार्टी की है ।
एक दिन पक्षधर पार्टी ने आदेश निकाला कि सब लोग हर हाल में सफाई रखें । यानी जो आधा पेट खा रहे हैं वे भी सफाई पूरी रखें । दुनिया भर के लोग अभी भी हमारे यहाँ की गरीबी देखने में रुचि रखते हैं । पर्यटकों को पुरातन गरीबी होना लेकिन स्वच्छता के साथ । देश तेजी से विकसित हो रहा है और गरीब अगर साफ सुथरे होंगे तो पर्यटन उद्योग में बूम आएगा । इसलिए खुले में शौच नहीं जाएँ क्योंकि खुले के नाम पर अब सड़कें, गार्डन, स्कूल और धार्मिक स्थलों के परिसर ही बचे हैं । बच्चे ज्यादा पैदा करें ताकि देश गरीबी तथा  ईमानदारी के मामले में आत्मनिर्भर बना रहे और लोकतन्त्र को भी लंबी उम्र मिल सके । सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएँ और राष्ट्रभाषा का गौरव बढ़ाएँ । अंग्रेजी गुलामी की भाषा है लेकिन हमारे गरीब गुलामी के लिए इसके मोहताज नहीं हैं । दुनिया जानती है कि हमारी आदर्श व्यवस्था हमेशा गरीबों के साथ बैठी है । बावजूद इसके यह भी याद रखें जिसका कोई नहीं होता है उसका भगवान होता है, इसलिए मंदिर भी बनाएँगे । एक बड़ा कदम उठाते हुए बिना किसी पैसे के बैंकों में खाता भी खुलवा दिया गया  है । अमीरों की तरह अब गरीब भी सेम टू सेम पासबुक वाले हो गए हैं । इसे आप लोग ईमानदारी कि पासबुक कह सकते हैं । बेलेन्स ज़ीरो के बावजूद आपको अभूतपूर्व गर्व की अनुभूति होगी । किसी जमाने में हवेलियों के आगे बंधे हाथी से उतना गर्व नहीं होता था जितना गर्व गरीब के घर पिंजरे में बंद दूध रोटी बोलने वाले तोते से हो सकता है । पासबुक यही तोता है ।
बहुत से राजनीति प्रेरित लोग शराब के पीछे पड़े हैं । जिन्होंने शराब बंदी की है उन्हें पछताना पड़ेगा । सामाजिक समरसता के लिए यह एक बहुत जरूरी चीज है । कहते हैं शराब पैसे वाले को ऊपर उठती है और गरीब को नीचे ले जाती है । तो साफ है कि दोनों के बीच पर्याप्त दूरी बढ़ती है और वर्ग संघर्ष की संभावना समाप्त हो जाती है । आपको याद होगा कि मार्क्स ने वर्ग संघर्ष को अनिवार्य कहा है लेकिन हमारे पक्षधर उनसे बड़े विचारक हैं । आगे बढ़ाने के लिए आपसी संघर्ष नहीं शांति चाहिए । लोग क्रिकेट देखें और शराब पीएं, शराब पीएं और क्रिकेट देखें यही शांति का सर्वोच्च है ।
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उत्तरगीता



युद्ध में भारी पराजय के बाद राजा को वैराग्य हो गया । उसे लगा कि संसार मिथ्या है । उसके मन में तरह तरह के सवाल आ रहे थे । जैसे कि मैं लड़ा ही क्यों !? अगर राजा की नियति लड़ना है तो राजा हुआ ही क्यों ! यदि राजकुल में पैदा होना इसका कारण है तो उफ़्फ़, इस वक्त मुझसे बड़ा अभागा कौन ! उसे दुख इस बात का है कि अभी भी शेष रह गए सूरमा अस्तबल में अपने घोड़ों कि खुर्रा मालिश में क्यों व्यस्त हैं ! राजा को अब समझ में आय कि वह अकेला युद्ध लड़ रहा था । पराजय के बाद पता नहीं क्यों उसे इस विचार से राहत मिली । किताबों में अकेले लड़ने वालों को बड़े सम्मान से याद किया जाता है, भले ही वो पराजित हुए हों । उसे दरबारी कवि की याद आ गई । काश कि इस मौके पर वह कुछ लिखता जिसे सुन सुना कर वे सहानुभूति जुटा पाते । जैसे – “लेकर कारवां चला था जनिबे मंजिल मगर, लोग छुटते चले गए, अकेला मैं रह गया । “  उसके मन ने कहा युद्ध से पहले अर्जुन को बहकने वाले की तरह काश कोई आ जाए ।
रात गहरा गई थी, टीवी का सारा ब्रेकिंग टूट कर बिखर चुका था । राजा दफ्तर में अपनी बहुत बड़ी सी पीएम नुमा कुर्सी पर निढाल पड़ा था । उसका मन हो रहा था कि काश वह कुछ देर के लिए अचेत हो जाए ताकि इसी बहाने कुछ सो ले । लेकिन जब ऊपर वाले ने मनोकामना पूरी नहीं करने की ठान रखी हो तो कोई क्या कर सकता है । अचानक राजा को लगा कि यह पराजय ईश्वर की है ! ईश्वर लोकतन्त्र का रक्षक भले ही न हो भक्तों का रक्षक तो है ही । जरा सा विवेक पैदा कर देते लोगों में तो बहत्तर हजार किसने बाप के थे ! लेकिन ईश्वर भी क्या करता । दूघ के जलों को छाछ पर भरोसा नहीं हुआ । सामने सोफ़े पर नब्बे बरस के स्पाइडर मेन ऊँघते ऊँघते अधलेटायमन हो चले थे । राजा की दादी ने इन्हें अपनी अलमारी में जगह दी थी, पापा ने पढ़ा और अब वही पुरानी कमिक्स उसके माथे पड़ी है । कई बार सोचा रद्दी में निकाल दें लेकिन कार्यालय पुराना और बड़ा है । जगह कि कोई कमी नहीं है इसलिए पटक रखा है कि कभी भांजा भांजी के काम आ सकते हैं ।
रौशनदान विहीन दफ्तर में आकाश दृश्यमान नहीं था इसलिए पाँच एसी में से किसी एक से आवाज आई – “राजन , पराजय एक भ्रम है , मूल बात है युद्ध लड़ना । लड़ना तुम्हारा कर्तव्य था जो तुमने पूरा किया । तुम इससे अधिक कुछ नहीं कर सकते थे । ....”
“अरे प्रभु तुम !! ... ये क्या सुना रहे हो मुझे ! “
“हे वीर, ये उत्तरगीता है । पराजय के बाद इसका श्रवण वैराग्य को सरल बनाता है । तुम पद छोड़ रहे हो ना ?”
“ हे मधुसूदन, पराजय की ज़िम्मेदारी मेरी है लेकिन नहीं भी है । मैं पद छोड़ रहा हूँ लेकिन नहीं भी छोड़ रहा हूँ । अब मुझे किसी पर विश्वास नहीं है पर रखना तो पड़ेगा । जो कर्मठ हैं उनकी जरूरत है लेकिन उन्हें बुलाऊँगा नहीं । मैं पद उसको देना चाहता हूँ जो सदा पद में शोभित रहे । “
“ हे बाहुबली, तुम राजनीति में पारंगत हो । शिखंडी की ओट से अर्जुन ने गंगापुत्र भीष्म को मारा था । तुम्हारा प्रयास अच्छा है । सफलता कितनी मिलेगी, यह समय बताएगा । “
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मंगलवार, 21 मई 2019

पछताइये कि इंसान हैं आप


पछताना मनुष्य होने का प्रमाण है । यह बात मुझे बचपन में तब पता चली जब पिताश्री ने किसी मसले पर पहले हाथ साफ किये और बाद में गला । बोले –“ तुम्हें अपने किये पर जरा भी पछतावा नहीं है !! तुम इंसान हो या ढोर !?” यहाँ नये जमाने वालों को बता दूँ कि चौपाये और प्रायः पूंछवान प्राणियों को ढ़ोर कहा जाता है । कहीं कहीं ढोर के साथ डांगर बोलने का विवेकपूर्ण चलन भी दिखाई देता है ।  ढोर-डांगर एक साथ बोलने से अगले को साफ हो जाता है कि बात वाकई चौपायों के बारे में है । सभ्य समूह में सिर्फ ढोर कहने से सन्देश जाता है कि बात किसी दोपाये की हो रही है जो इस समय यहाँ अनुपस्थित है ।  खैर, ठुकाई-पिटाई से किसी प्रतिभाशाली बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होती है, मुझे भी नहीं हुई थी । लेकिन प्रतिदिन ढोर घोषित होना उसका ही नहीं ईश्वर का भी अपमान है । वह भी सिर्फ इसलिए कि वह पछताया नहीं !! देश की भावी पीढ़ी को मवेशी दर्ज किया जाने लगेगा तो चारा खाना मौलिक अधिकार हो जायेगा ! यह सोचा है किसी ने कि इससे कानून व्यवस्था को कितनी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा !!

लेकिन ज़माने का क्या करो, उसे तो अपने दस्तूर की पड़ी है । लिहाज़ा पछताना इंसानीसिफ़त के लिए जरुरी फ़र्ज हुआ । आदमी घोषित रूप से गलतियों का पुतला हो और पछताए नहीं ! ये कैसे हो सकता है । ऊपर वाले ने आला दिमाग दिया है तो इसलिए कि वक्त जरुरत इस्तेमाल कर लिया जाये ।  अच्छी बात ये है कि इस पर जीएसटी भी नहीं लगता है, और क्या चाहिए भाइयो-बहनों । पछताता हुआ आदमी हर किसी को अच्छा लगता है । देवालय में जा कर बन्दा धुटने टेक ठीक से पछता ले तो ईश्वर भी उसकी कोई फ़ाइल पेंडिंग न रखे । नादां आदमी के हाथ में जाम हो तो उसे जन्नत की फ़िक्र और जब जन्नत की तलबगारी सर चढ़े तो जाम की कसक जोर मारे ।  इस बहाली में एक पछतावा ही है जो आदमी को इन्सान बनता है । किसी शायर ने कहा है- “रात को पी, सुबह तौबा कर ली ।  रिंद के रिंद रहे, जन्नत भी नहीं गई । ”

लेकिन हर किसीको जन्नत-पकड़ तौबा की जरुरत नहीं है । मध्यवर्गीय, संस्कारवान और भले किस्म के दोपाये दर्जनभर केले या एक किलो लौकी ले कर भी अच्छी तरह पछता सकते हैं कि मंहगी ले ली । आप यों मानिये कि पछताना एक किस्म का पैदाइशी हुनर है । लेखकों की पत्नियाँ अक्सर सूर्योदय तक किसी भी बात पर माथा ठोंक कर कह देतीं हैं कि “मेरी किस्मत फूटी थी कि .....” . बस ! अब दिन भर के लिए वे इंसान हैं और लेखक बेचारा खांमखां जानवर । वो कवि, छिपकली को देख कर भी सौन्दर्यबोध जगा लेने वाला, दिन भर सोचता रहता है कि आखिर पछताए तो किस बात पर!!

निराश होने से पहले आप चाहें तो लोकतंत्र की सराहना कर सकते हैं । जो व्यवस्था पछताने के अधिक अवसर देती है । लोग वोट किसे भी दें पछताते जरूर हैं । सुनते आ रहे हैं कि देश में सवा सौ करोड़ भाई-बहन हैं । इस समय सारे इस या उस कारण से पछता कर दोहरे हुए जा रहे हैं । गिनिस बुक वालों के पास अवसर है, वे चाहें तो एक साथ सवा सौ लोगों के पछताने का वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज कर सकते हैं ।
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सोमवार, 22 अप्रैल 2019

घोड़े घास से दोस्ती नहीं करते



रामदास चारघोड़े आते ही भड़के-  “भाऊ तुम तो कहते थे कि सबके वोट की कीमत बरोबर होती है ! पर देखो इधर क्या चल रहा है ! कोई पाँच सौ दे रहा है कोई हजार नगद । किसी को साड़ी कंबल किसी को दारू चिकन । ...लेकिन अपन को क्या समझते हैं ये लोग ! अपना वोट मंडी का फोकट माल है क्या ?! अपने सामने पार्टी के लोग आते हैं और हाथ हिला के चले जाते हैं । कभी अपन को भी देखना चाहिए कि इस टाटा में कितना घाटा है ।“
दरअसल हुआ यह कि रामदास चारघोड़े की महरी ने आज सुबह ही मिसेस शिखा चारघोड़े को कहा कि वो अब अक्खा दो दिन छुट्टी मारेगी । कायकू पूछने पर बोली - “पारटी वाले आके बोले कि दारू चिक्कन बाँटेंगे सबकू, घर पेई रेने का । मरद लोगू को बाटली बी दे के जाएंगे बोलते । बच्चों को मिठाई के वास्ते नोट बी देंगे बोले, करारे कड़क । गए चुनाव में कुक्कर मिला सबको, मईने चालीस नंबर वाली सुकला बाई को बेचा आदी किम्मत में । बाई सीजन का टेम है, करनाईच पड़ता है । चुनाव रोज रोज तो होते नई ना ... दो दिन तुम फटका बर्तन कर लोगी तो तुमरा बी हात पेर खुल जाएगा । वैसे बी बदन थोड़ा हल्का हो जाए तो बिलकुल करीना लगती तुम । ......  हय कि नई । “
जिस दिन महरी छुट्टी पर हो उस दिन हर मालकिन बारूद का चलता फिरता ढेर होती है । उस पर मामला दूसरे के वोट की कीमत का हो तो आग लगना ही है । पहले भभके में रामदास झुलस गए । नॉटकरणी ठंडा पानी लाएँ इसके पहले वे फिर बोले- “ सर्विस क्लास होना पाप हो गया भाऊ ! सारी जिंदगी इलेकशन ड्यूटी कर-कर के निकल गई । सोचा कि चलो देश सेवा है कर लो और नौकरी भी बचा लो । कलेक्टर लोग को पवार भी इतने होते हैं कि जान निकलती थी । .... चलो हो गया, पर पार्टियों को तो सोचना चाहिए कि नहीं । उधर सस्ता अनाज, सस्ता घासलेट, सस्ती बिजली, सस्ता इलाज, भोजन भंडारे । बेटी की पैदाइश और शादी का मुआवजा अलग से । अब वोट के लिए दारू चिकन और पाँच सौ का नोट भी ।      उधर लोकतंत्र उत्सव और इधर लोकतंत्र ड्यूटी । ये कैसे चलेगा !”
“तुमको सरकारी पक्की नौकरी भी तो थी भाऊ । तनखा और महंगाई-भत्ता अलग से मिला, बंगला-गाड़ी सब बनाया कि नहीं दस से पाँच में ? बैठो शांति से .... पहले ठंडा पानी पियो ।  नॉटकरणी  ने कहा ।
पानी पी कर बोले-  “चाय में शकर कम डलवाना और भाभी जी को कहना कि बिस्किट दो ही लूँगा । ज्यादा मत निकालना, सील जाते हैं ।“ चारघोड़े जी ने अपने चारे का इंतजाम किया ।  
“चुनाव के दौरान कुछ भी बाँटना गैरकानूनी है । तुम अफवाहों पर ध्यान मत दिया करो ।“ नॉटकरणी ने समझाया ।
“क्या बात करते हो !  हमारी रामरती बाई से पूछ लो । हर चुनाव में उन लोगों को रुपये मिलते हैं ।“
“ये देखना प्रशासन का काम है  ... और फिर हम लोग पार्टियों से पैसा मांगेंगे तो अच्छा लगेगा क्या ?”
“इसमें अच्छे बुरे का सवाल क्या  है ? चुनाव में ऊपर से नीचे तक कितना अच्छा बुरा हो रहा है यह किसी से छुपा है ? सुना है उम्मीदवार घसीटासिंग ने एक ट्रक बकरों का आर्डर दिया है !! हम बेवकूफ केटेगीरी वाले चुनावी बहस करते रहें और उधर बकरे-मुर्गे सरकार बनवा दें !! हम शिक्षित समझदार हैं तो क्या सिर्फ आयकर का फार्म नंबर सोला भरने और टीडीएस कटवाने के लिए ! ..... ये नहीं चलेगा, अपन को आवाज तो उठानी पड़ेगी । घोड़े घास से दोस्ती नहीं करते । “

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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

चुनावी चुल - बुल और गरीबी हटाओ -3



पिछले दिनों दबंग -3 की शूटिंग देखने के चक्कर में पचिसों धक्के और दो दो डंडे खा कर लौटे चुल और बुल उदास बैठे थे और सलमान को बीड़ी पीते हुए रिजेक्ट कर रहे थे ।  तभी कुछ पार्टीबाज़ हुजूम में आए और उन्हें पर्चे पकड़ा गए । लिखा था गरीबी हटाएँगे । किसी जमाने में दादी ने कहा था, पापा ने भी कहा था, अब ये कह रहे हैं ।

 पर्चा देखते हुए चुल बोला – “चल जाएगी ?” 

बुल ने पूछा- “क्या दबंग -3 ?”

“नहीं रे, गरीबी हटाओ -3 । “

“काठ की हांडी कितनी ही मजबूत क्यों न हो तीसरी बार नहीं चढ़ती है । “ बुल ने मुहावरा जड़ा जो चुल को समझ में नहीं आया, बोला – “किसको वोट दें समझ में नहीं आ रहा है ! “

“अरे इसमे दिक्कत क्या है !! जो चुनाव में खड़े हैं उनमें से किसी एक को दे मरो । “

“बहुत कंफूजन है यार ! जो खड़े हैं उनके लिए कोई वोट मांग नहीं रहा है । कहते हैं वोट भले ही इनको दो वो जाएगा ऊपर ही । “ चुल ने पर्चे को गौर से देखते हुये कहा ।

“तो जाने दे ऊपर । कितनी बार वोट दिये हैं कुछ पता चला उनका क्या हुआ ! अपने हाथ से एक बार निकला वोट किधर जाता है इससे अपने को क्या ?”

“ है क्यों नहीं !? गरीबी हटाने की कै रहे हैं । अगर हट गई तो हमारे भी सुख चैन के दिन आ सकते हैं कि नहीं । दद्दा मर गए सपना देखते देखते । पता नहीं अब भी सपना देख रहे हों कहीं पैदा हो के । हम सोचते हैं कि अबकी सही जगो पे वोट दे दें तो क्या पता गरीबी जो है दारी हट ही जाए । बहुत परेसान कर लिया । “ चुल उम्मीद से भरने लगा ।

“अबे पागल है क्या ! गरीबी कोई सब्जी मंडी का अतिक्रमण है जो कि सरकार के कहे से पुलिस डांडा ले के हाँक देगी और वो हट जाएगी !” बुल नहीं माना ।

“देख ले ! बहत्तर हजार देने का बोले हैं । सबको मिलेगा । सस्ता अनाज, सस्ता अस्पताल, सस्ता स्कूल, सस्ता घर सब देंगे तो कहाँ रहेगी गरीबी । मैं तो काम वाम छोड़ दूंगा । मजे में बैठ के खाऊँगा सुबे शाम पऊवा लगा के । और क्या चाहिए अपने को । नेता नहीं राजा महाराजा हैं ये लोग ।“ पर्चे में लिखी घोषणाएँ दिखा कर चुल बोला ।

“राजा महाराजा नहीं रे मूरख, राजनीति में भी चुलबुल पांडे होते हैं बड़े वाले । हाथ हिलाते निकल जाएंगे और आखरी में जब पिक्चर खतम होगी तो हमारे हाथ में आधा फटा हुआ टिकिट  रह जाएगा बस । उसी से मिटा लेना अपनी गरीबी । .... देख कचरा गाड़ी आ रही है, पूछ लेना इस पर्चे को गीले में डालना है या सूखे में । “
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बुधवार, 10 अप्रैल 2019

दोनों कान का इस्तेमाल सीखो



क्षेत्रीय दल के प्रधान थाने के सामने हुजूम के साथ मौजूद थे । उनकी शिकायत यह कि केंद्र सरकार ने पिछली बार तमाम वादे किए थे लेकिन उनमें से ज़्यादातर पूरे नहीं किए । इसलिए चार-बीस का केस दर्ज कीजिये फटाफट । थानेदार पुराना था और चोरी बलात्कार जैसी घटनाओं की शिकायत भी नहीं लिखने के लिए मशहूर था । उसका मानना था कि सरकार उसे रिपोर्ट नहीं लिखने का वेतन देती है । थानों पर रिपोर्ट लिखवाने की मंशा होती तो सरकार थानों में कागज-कार्बन, पेन और पढेलिखे स्टाफ की भी नियुक्ति करती । थानों की व्यवस्था और पैमाने अलग हैं । प्रथम श्रेणी थानेदार वही होता है जो एक मिनिट में कम से कम साठ गलियाँ दे सके । जब हाथ उठाए तो पहले कमर पर रखे और इससे काम नहीं चले तो डंडे का इस्तेमाल करने का उसे बाकायदा संवैधानिक अधिकार है । पुलिस पहले पुलिस होती है बाद में आदमी । थानेदार ने साफ माना कर दिया कि इस तरह का केस दर्ज नहीं हो सकता । चुनाव के बाज़ार में वादों के सिक्के उसी तरह चलते हैं जिस तरह वाट्सएप में बधाइयों के साथ केक और मिठाई की प्लेटें चलती हैं । कोई थाने में यह रिपोर्ट लिखने आ जाए कि मुझे आभासी मिठाई दे कर चीट किया गया है तो थानेदार बोलेगा भईया खा मत, डिलीट कर दे अगर पसंद नहीं आ रही है तो । लोकतन्त्र को पौन सदी हो रहा है और बच्चा बच्चा जानता है कि चुनावी वादा दरअसल वादा होता ही नहीं है । वादा अलग चीज है और चुनावी वादा अलग । जैसे लोग संत महात्माओं के प्रवचन सुनते हैं, ईमानदारी, सच्चाई, दया और प्रेम की तमाम बातें होती हैं, लेकिन भक्त एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं । कोई गांठ बांध के घर ले आए तो गलती किसकी ? केस किसपे दर्ज करना चाहिए ? इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में लोग अभी लोकतन्त्र के लिए परिपक्व नहीं हैं । ऐसे लोगों को क्या कहा जाए जो चुनावी वादों पर तो लपक पड़ते हैं लेकिन सरकार ने पाँच साल तक क्या किया इस पर ध्यान नहीं देते । जो मछली चारा देखा कर फंस जाए उसे समझदार मछली कौन कहेगा । अच्छे नागरिक बनाना है तो दोनों कान का इस्तेमाल सीखो ।
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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

कबीरा झूठा सब संसार, कोऊ न अपना मीत




कहा जाता है कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं । लेकिन इन्टरनेट के जमाने में अब पाँव से चलता कौन है ! झूठ मुआ स्मार्ट हो गया है । डेढ़ जीबी डाटा में झूठ दिन भर ऐसे छाती ठोक के आता जाता है जैसे सच का बाप हो । चुनाव का मौसम है और विशेषज्ञ बिना किसी झिझक के मानते हैं कि झूठ का मौसम है । दिल्ली झूठ की राष्ट्रीय मंडी है । पुराने दिल्लीबाज़ कभी किसी पर विश्वास नहीं करते हैं । उनका तजुरबा है कि जो जितनी लंबी लंबी छोड़ता होता है उसकी पतंग उतनी ऊंची ऊंची उड़ती है । कहते हैं झूठ हजार बार बोला जाए तो उसका सिक्का सच की तरह चलता है । तकनीकी विकास ने झूठ के बाज़ार को पंख लगा दिये हैं । इधर से झूठ का आलू डालो और उधर से सच का सोना निकालो । हर हाथ में फेक्ट्री है और हुनर तो दे ही रखा है उप्पर वाले ने । एक झूठ पंद्रह मिनिट में सच की फसल हो जाता है । आज की जनता जिसके अंदर रियाया होने जींस अभी भी बल खा रहे हैं, मानती है कि महाराज पीढ़ी दर पीढ़ी ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । मतलब बावजूद जनतंत्र के महाराज की ही जय हो । देने वाला श्री भगवान होता है, चाहे वो देने का वादा करे और न भी दे । संत कह गए हैं कि जगत मिथ्या है तो राजपाठ भी मिथ्या है, वोट भी मिथ्या है । जीवन चार दिनों का, वह भी समझो भ्रम है । गालिब ने कहा है कि दो आरजू में कट गए दो इंतजार में, हासिल कुछ भी नहीं हुआ । जब गालिब को नहीं हुआ तो बाकियों को क्या होगा ।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ; मैं बपुरा बूरन डरा, रहा किनारे बैठ । तो फिर खोजें  सत्य क्या है !? आवाज आई बच्चा राम नाम सत्य है, बड़ा सत्य परलोक है । शरीर झूठा है आत्मा सच्ची, जब मौका मिले निकल्ले । सपनों से बड़ा कोई सुख नहीं और जो सुखदाई है वही सच है । सपना चाहे जन्नत में बहत्तर हूरों का हो या बहत्तर हजार रुपए सालाना मुफ्त खाते में आने का हो, सुखदाई है । झूठ के व्यापार की जमीन हमेशा हरी होती है । गधे आँखें बंद करके इस इरादे से चरते हैं कि सारी की सारी मैं ही चर लूँगा । और आश्चर्य की बात यह कि बिना चारा वे मोटे भी होते रहते हैं । इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । किसी का ये खतरे में है तो किसी का वो खतरे में है । लेकिन खतरे का सच यह है कि कोई खतरे में नहीं है । हर पार्टी डर और विश्वास के बीच अपना अपना इंसुलीन बेच रही है । वह माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ।

 लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक लीडर चुग जाएगा खेत । बस आप खामोश रहिए । जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड़ है लेकिन यह सच नहीं है । गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी सच नहीं है । हत्या और बलात्कार भी सच नहीं हैं । बेईमानी, भ्रष्टाचार तो कतई सच नहीं हैं । रेडियो पर कोई गा रहा है  “कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो ।  क्या कहना है, क्या सुनना है । मुझको पता है, तुमको पता है । समय का ये पल, थम सा गया है और इस पल में कोई नहीं है बस एक मैं हूँ । बस एक तुम हो

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

फर्जी सब संसार



तकनीकी रूप से जैसे जैसे समाज तरक्की कर रहा है वैसे वैसे फर्जी सूचनाओं का बाज़ार गर्म हो रहा है । चुनाव के इस माहौल में अनेक फर्जी चुनाव विशेषज्ञ मीडिया के कप में मक्खी की तरह तैर रहे हैं । आँख खुली हो तब प्रश्न पैदा हो कि आँखों देखी मक्खी कोई निगले या नहीं निगले । पर इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । पार्टियां माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । इसी चक्कर में सूचनाओं का फर्जीवाड़ा अपनी दुकान चलाने में कामयाब होता नजर आ रहा है । खबर है कि फेसबुक ने हाल ही में ग्यारह सौ से अधिक फर्जी सामग्री वाले पेज बंद किए जिसमें लगभग सात सौ पेज कांग्रेस के थे । इस तरह की फर्जी दुकान के लिए फर्जी अकाउंट बनाना पड़ते हैं । किसी ने कहा कि फर्जी अकाउंट बनाना और फर्जी सामग्री प्रसारित करना गैरकानूनी है । लेकिन जिम्मेदार मानते हैं कि चुनाव कानून से ऊपर होते हैं । जंग, मोहब्बत और चुनाव में सब जायज होता हैं । अगर ऐसा नहीं होता तो ट्रंफ आज अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता । जो चीज अमेरिका में जायज है वो यहाँ भी है । रहा सवाल दूसरी पार्टियों का तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है । लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक चिड़िया चुग जाएगी खेत ।

जो लोग बेरोजगारी जैसी समस्याओं को लेकर छाती कूटते हैं उन्हें देखना चाहिए कि फर्जी सूचनाओं के व्यवसाय में कितनी मांग है प्रतिभाशाली लोगों की । कुछ स्वच्छतावादी फर्जी सामग्री बनाने वाले कलाकारों को असामाजिक तत्व कहते हैं तो घ्यान न दें । सच्चा कलाकार वही होता है जो जमाने की कहा सुनी पर कान नहीं दे और अपने काम में लगा रहे । महात्माओं ने संसार को मिथ्या बहुत सोच समझ कर कहा है तो मन में किसी प्रकार का अपराधबोध रखने कि जरूरत नहीं है । घर बैठे फर्जी का फर्ज पूरा करो मजे में और दाम ले जाओ हाथों हाथ । जनता की चिंता करने कि जरूरत नहीं है । उसका ट्रेक रेकार्ड है कि वह फर्जी बातों पर हजारों साल से भरोसा करती आई है और आगे भी करती रहेगी । हमारे यहाँ कोई कानून भी नहीं है जो फर्जी सामग्री बनाने के मामले किसी को अपराधी बनाए । किसी की मानहानि पर जरूर कानूनी अड़चन आती है लेकिन देखिये कि लोकतन्त्र में चुनाव का समय कीचड़ उछलने का समय होता है । जो दो एक दूसरे की बेइज्जती में चूकते नहीं है वे चुनाव के बाद सब भूल कर गले मिल लेते हैं । ऐसे मौकों पर कानून थैंक्यू के अलावा और क्या कह सकता हैं !!
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शुक्रवार, 29 मार्च 2019

सांभा के सवाल



सब जानते हैं कि सांभा सरदार का मुंहलगा है । कहते हैं कि उससे पूछे बगैर सरदार कोई काम नहीं करता है । सरदार का चलता फिरता गूगल है सांभा । नई फिल्म गोले में सांभा का नाम शैम है । जो श को स बोलते हैं वे उसे सैम भी कहते हैं । तो बात ये हैं कि शैम को अचानक बयान देने की सूझी । उसने पिछले अखबार उठाए और मीडिया पर एक बयान दाग दिया । बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक पर सवाल उठा दिये कि स्ट्राइक की भी या नहीं ? अगर की तो मारे क्या ? मारे तो कितने मारे ? अगर मारे तो क्यों मारे ? कुछ लोगों की छोटी सी हरकत की सजा बेचारे पूरे देश को क्यों देना चाहिए ? वो नादान लोग तो आदतन अपराधी हैं । कोई अनोखी बात नहीं हुई है । वे सीमा में घुसते रहे हैं, चालीस पचास लोगों को मारते रहे हैं और शांति से चले जाते रहे हैं । इससे हमें कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता है । हमारे इस महान देश में पैंतीस बच्चे हर मिनिट और प्रतिदिन पचास हजार बच्चे पैदा होते हैं । आतंकवादियों को देश की कर्मठ जनता रचनात्मक तरीके से करारा जवाब दे रही है । थोड़े से बाल तोड़ने से रीछ के बदन पर बालों का टोटा होता है क्या !? लेकिन सरकार जनता की इस अपूर्व अहिंसात्मक क्षमता और सामर्थ्य की उपेक्षा कर रही है ।  हम लोग गांधीवादी हैं, देश गांधी का मुल्क हैं । अहिंसा हमारा सबसे बड़ा हथियार है । गोले बरसाना हमारी संस्कृति नहीं है और न ही नीति रही है । जब मुंबई पर 26/11 को हमला हुआ था तब भी सेना तैयार थी लेकिन सरकार ने गांधीवाद की रक्षा का बड़ा निर्णय लिया । नजरिया साफ होना चाहिए । अगर उनके देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या होगी तो वे अपने तरीके से हल करेंगे । हमें उनके फटे में गोले फोड़ने की क्या जरूरत है  ! अगर कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर देना हमारी रक्षा नीति में शामिल है ।  वो चालीस मर कर गए .... तो आगे क्या आप समझ गए होंगे ।
बयान दे कर असर देखने के लिए शैम टीवी खोल कर बैठ गया । सोचा सरदार देखेगा तो खुस्स होगा, सब्बासी देगा । पहली चपेट में सरदार खुश हुआ भी । लेकिन पता चला कि राजनीति के बाज़ार में मचमच मचने लगी है । ऐन चुनाव के पहले अगर देश थू-थू करने लगे तो पार्टी उस थुक्के में ही डूब सकती है । खतरे को भाँप फौरन से पेश्तर यू टर्न मार के सरदार ने खुद ही आक थू कर दिया । कहा कि ये बयान शैम का निजी विचार है और पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं है । किसी एक आदमी के बयान की सजा पूरी पार्टी को नहीं दी जा सकती है । राजनीति में ऊलजूलूल बकने की स्वस्थ परंपरा रही है । शैम शैम के बयान को भी इस परंपरा का हिस्सा समझा जाना चाहिए । जैसे कभी एक बयान के बाद बड़े नोट कागज का टुकड़ा रह गए थे उसी तरह देश के सामने शैम नाम के ही पितर रह गए थे । शैम ने सफाई देते हुये साफ किया कि मैंने तो एक नागरिक के तौर पर सवाल किया था । सवाल करना हर नगरिक का अधिकार है और जरूरी नहीं कि वैज्ञानिक होने के बावजूद किसी का हर सवाल बुद्धिमत्ता पूर्ण ही हो ।
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मंगलवार, 19 मार्च 2019

पशुबंदी और एटीएम से गोबर




किसी जमाने में वे अबे ओ बच्चा थे, फिर बच्चा बाबू कहलाये. सरकार में आ गए तो श्रीमंत बच्चा बाबू हो गए, स्मार्ट सिटी बनाने का हल्ला हुआ तो अब सर बी.बी. हैं. स्मार्ट सिटी बनाने की जिम्मेदारी सर बी.बी. पर भी है सो होली के ठीक पन्द्रह दिन पहले उन्होंने प्रजा के लिए दो आदेश निकाले कि  रात बारह बजे के बाद से नगर में पशुबंदी लागू की जा रही है, चौपाये पशुओं को नगर में रखना गैरकानूनी माना जायेगा, सारे चौपाये पशु तुरंत बाहर किये जायें. नगर चोर-उचक्कों, गुंडे-बदमाशों, हत्यारों-लुटेरों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, झूटे-बेईमानों, लम्पट-पाखंडियों आदि दो-पाये पशुओं के रहने की जगह है. चौपाये अक्सर उनके काम में बाधा बनते हैं और यहाँ वहाँ गंदा करते रहते  हैं, इनसे नगर की शोभा प्रभावित होती है. बहुत सारे लोग सरकार की कल्याण योजनाओं का लाभ लेते हैं और पशुओं को चारा खिला कर श्रेय उनको दिया करते हैं ! इस पर तुरंत रोक लगाने का निर्णय लिया गया है. लेकिन उन नस्ली और पालतू कुत्तों को पशुबंदी से छूट रहेगी जिनके आधार कार्ड बनें होंगे. उन कुत्तों को भी छूट का लाभ मिलेगा जो भवन या प्लाट के मालिक हैं और अग्रिम संपत्ति कर जमा कर रहे हैं. उन सभी  गधों को भी स्मार्ट सिटी में रहने की छूट रहेगी जिनके नाम वोटर लिस्ट में आलरेडी दर्ज हैं  और जो  हर चुनाव में सरकार के हाथ मजबूत करते आये हैं.
दूसरा आदेश यह कि सारे लोग गोबर के कन्डो से होली बनाएंगे, कोई लकड़ी नहीं जलाएगा. कंडे बनाने के लिए केवल चौपाये पशुओं के गोबर का उपयोग किया जायेगा. इस मामले में कोई समझौता या छूट नहीं दी जायेगी. जिनके पास पुराने कंडे जमा हैं वे सक्षम अधिकारी के समक्ष घोषणा पत्र भर कर होली बना सकते हैं. बिना घोषणा वाले काले-कंडों से होली बनाना और जलाना गैरकानूनी होगा. कुछ आदेश प्रशासन को भी दिए कि वो काले-कंडों के मामले में सतर्क रहें और देखें  कि कौन लोग काले-कंडों से होली बना रहे हैं. इस बात की निगरानी रखें कि जब उनके पास चौपाये पशु नहीं हैं तो कंडे किसके गोबर से बनाये गए हैं ! गोबर में किसी और गोबर की मिलावट वाले कंडों पर सख्त कार्रवाई की जाये. प्रजा यदि गोबर के उदगम का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाये तो उस पर गोबर तस्करी और मिलावट का केस बनाएँ.
जो सभ्य और सुसंस्कृत लोग गोबर से होली खेलते आये हैं उनके लिए प्रशासन जल्द से जल्द हर मोहल्ले में गोबर-एटीएम की व्यवस्था करे ताकि प्रजा अपने उपयोग के लिए मान्य-गोबर प्राप्त कर सके. इस बार की होली के लिए एटीएम से सीमित मात्र में गोबर निकाला जा सकेगा. भविष्य में जैसे जैसे गोबर की व्यवस्था होती जायेगी एटीएम चौबीस घंटे काम करने लगेंगे और भरपूर गोबर देने लगेंगे. इसी के साथ सर बी.बी. ने प्रजा को होली और स्मार्ट सिटी की बधाई दी.
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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

नई सरकार प्याज ज्यादा खाती है



राजनीति जिनकी बोटी-रोटी है उनके लिए एक एक पल काटना कितना मुश्किल होता है ये
चवन्नी कार्यकर्ता भी अच्छी तरह जनता है। हमारा तो फिर भी ठीक है भिया, हाई कमान का सोचो, उनपे क्या बीतती रही होगी। अपनी बेरोजगारी छुपते हुए दूसरों की बेरोजगारी का मुद्दा उठाना कितना मुश्किल काम है। कोई पलट के पूछ लेता कि भिया इधर से ये डालो और उधर वो निकाल लो तो क्या जवाब देते ! कहते हैं बिन गृहणी घर भूत का डेरा। जिसे रोज रात भूतों के बीच बिताना पड़े उस ऊँघते भले आदमी से दिन में कोई क्या उम्मीद कर सकता है। बोलने जाते हैं कुछ और मुंह से निकलता है छुक !! घर में कोई देसी बुजुर्ग होता तो चाल देख कर हाल समझ लेता। लेकिन बालहठ है - मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं !  मईया ने बहुत समझाया कि --चंदा ते अति सुंदर तोहि, नवल दुलहिया ब्यैहौं ॥   इधर कुर्सी कुर्सी ना हुई चन्द्र खिलौना हो गई। यशोदा ने तो थाली में चाँद दिखा कर भोले लल्ला को समझा लिया था । अब टीवी पर कुर्सी देख कर भूला लल्ला और मचलता है।

देखो भिया ऐसा है कि लोग किसी को थाली में रखके सत्ता नहीं देते हैं।  जनता की परख, जनता की समझ और जनता की राय लोकतंत्र में सबसे ऊपर होती है। यही सबसे बड़ा फच्चर है सिस्टम में, वरना इतिहास गवाह है बच्चों तक को तख्त नसीब होते रहे हैं । अपन ठहरे पीवर जनता, वोट डालने का 30 साल का तजुर्बा है अपने पास। नेता की शक्ल देख के ताड़ लें कि लेने आया है या देने। चुनावों में हर पार्टी घूँघट हटा के और घुंघरू बांध के मंच पर आती है। जनता ना कहे तो भी छम छम और दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए। जिन्हें कभी फूटी आँख नहीं देखा वे तक नूर-ए-चश्म हो जाते हैं। हाथ में वोट दबाए बैठे अद्दा भाई, पिद्दा भाई बिना राज और राजवाड़े के महाराज हैं । एक फीलिंग होती है, ऐसी कि मूंछमुंडे भी अंदर दबी मूछों पर ताव देने लगते हैं। लोकतंत्र में राजे महाराजे भी मात्र एक फीलिंग ही हैं । लाल बत्ती हो जाए तो सिपाही के सामने कार उन्हें भी रोकना पड़ती है । सिपाही नहीं हो तब तो सभी बाश्या हैं ।

खैर छोड़ो उनको अपन बात दूसरी कर रहे थे सरकार की।  तो समझ लीजिए कि सरकारें गन्ने की तरह पेलने लायक होती हैं । इनको एक दो बार से ज्यादा पेल नहीं सकते । मतलब यह कि जितना निचोड़ सकते हैं उतना निचोड़ लिया । उसके बाद बचा क्या फोथरा फोथरा । इसलिए अपुन को नई सरकार होना । नई सरकार हमेशा प्याज ज्यादा खाती है । देख लो आते ही किसानों का लिया फट से दिया कर दिया । पैसा दे कर वोट लेने की होड़ मची है । वो दिन दूर नहीं जब बोलियों से नीलम होंगे वोट । कानून इजाजत नहीं देगा तो कल्याण योजना बनायेंगे, पर बोली लगाएंगे । बस खरीदने वाले की छाती चौड़ी होना चाहिए । दुनिया में हर चीज है बिकती है, सांसद, विधायक, मंत्री-संतरी सब । बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ?
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सोते हुए जागता देश !



नए वर्ष में मैंने संकल्प लिया कि सुबह देर तक सोया करूंगा । इसके दो कारण हैं ,पहला तो यह कि मैं गैर राजनीतिक आदमी हूँ सो अपने लिए संकल्प वही करना चाहता हूँ जिसे पूरा कर पाऊँ । सुना है प्रधान मंत्री जी मात्र चार घंटे की नींद लेते हैं और बीस घंटे काम में लगे रहते हैं !! बताइये ! कौन समझदार आदमी इनसे प्रेरणा ले कर मुसीबत मोल लेगा ? सरकारी महकमों तक में अगर छापामारी की जाए तो पता चलेगा कि ज़्यादातर लोग चार घंटे से अधिक काम करना बड़े संघर्ष से प्राप्त हुई भारत की आज़ादी का अपमान समझते हैं । लोकतन्त्र है भई, वोट दिया है खनकता हुआ, क्या कहते हैं मंहगा वाला यानी मूल्यवान । ऐसे में मनमर्जी की नींद लेने का अधिकार तो बनता ही है । सरकारें जब कर्जा माफ कर रही हैं, मुफ्त इलाज करवा रही हैं, खाना-दाना दे रही हैं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और ब्याह शादी तक करवा रही हैं, बैंके जबरिया लोन दे रहीं हैं पकड़ पकड़ के तो रोना किस बात का ! और भला कोई जागे भी तो क्यों !? जनता सोई रहे पालने में तो लोरियों का टोटा है क्या ?  प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है, एक कुंभकरण योजना देता है तो दूसरा महा कुंभकरण योजना का वादा करता है । पाठ्यक्रम में बच्चे पढ़ेंगे आलू से सोना बनाओ । अगर लोग सोएँगे नहीं तो सपने कैसे देखेंगे ? सपनों का ऐसा है कि देखने वालों का भविष्य तय करें न करें पर दिखने वालों का अवश्य तय करते हैं । मैं एक सच्चा नागरिक, हवा का रुख समझता हूँ तो बुरा क्या है अगर देर तक सोते रहने का संकल्प ले लूँ !
दूसरा कारण कबीर हैं, कह गए हैं  सुखिया सब संसार, खाबै और सोवै । दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै । आप बताइये, रोने की शर्त पर जागना कौन चाहेगा । जागना जोखिम भरा है, जागने में डर बहुत है, माँ बच्चों को कहती है, सो जा नहीं तो गब्बरसिंग आ जाएगा  और समझदार बच्चा सो जाता है, माँ भी सो जाती है, दोनों को सोता देख मरद बेफिक्री से पड़ौस में कहीं निकाल जाता है । आज़ादी समझो कि मुकम्मल हो जाती है । मरदों की जिम्मेदारिया बड़ी होती हैं इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है । कर्मयोगी केवल कर्म करते हैं और प्रायः फल का संज्ञान नहीं लेते हैं । लेकिन दुनिया का क्या करोगे भाई ! दूसरे के गिरेबान में झाँकने का चलन जो है ।
चचा जल्दी उठ गए, सोचा सुबह की हवाखोरी कर लें । जाते हुये साल ने बताया कि चीन में बीते साल में पचपन लाख बच्चे पैदा हुए । चचा ने सुना तो मुंह में भरा पान मसाला जिसमें महकती बुड्ढा तंबाकू भी थी, फ़चाक  से थूक दी । बोले – इन चीनियों ने तो पूरा मार्केट कवर कर रखा है । पता नहीं बच्चे भी फेक्टरी प्रोडक्ट हैं या इंसानी !! पचपन लाख बच्चे !! शरम नहीं आई कमबख्तों को !! आबादी में नंबर वन हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया पर रहम न करने की छूट है इनको । नामाकूल, नामुराद, जाहिल कहीं के । दुनिया कहाँ जा रही है और ये बेशऊर कहाँ जा रहे हैं !!
फटकार सुन जाता हुआ साल सहम गया । धीरे से बोला भारत में भी हुई है बच्चों की आमद । हकबकाए चचा जरा देर के लिए गफला गए, बोले– बको । जाता साल बोला– भारत में बीते साल एक करोड़ पैंतालीस लाख बच्चे पैदा हुए हैं ।
चचा के मुंह में थूकने के लिए कुछ नहीं था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि देश सो रहा है या कि जाग रहा है !
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पाण्डुलिपि बढ़िया होना चाहिए !



हिन्दी का प्रकाशन जगत वह जगह है जहां खाद-पानी से पौधे नहीं गमले फलते फूलते हैं । इसलिए पौधों के लिए जरूरी है कि वे अपनी खुराक हवा से प्राप्त करें, यदि वे वाकई पौधे हैं । वरना वे प्लास्टिक हो जाएँ, लगे कि पौधे हैं, लगे कि हरे हैं, लगे कि लदे हैं फूलों से भी, लगे कि सदाबहार हैं । साहित्य अब ड्राइंग रूम में सजाने दिखाने की चीज है । जैसे अक्सर  रायबहादुरों की दीवारों पर टंगी होती हैं बारहसिघों की गरदनें बंदूकों के साथ । लेकिन छोड़िए, अपन चलते हैं प्रकाशक के दफ्तर में ।
“पाण्डुलिपि बहुत अच्छी है आपकी ।“ प्रकाशक ने पन्ने पलटते हुए कहा तो भानु भोले के अंदर लड़खड़ा रहा आत्मविश्वास अचनक सीधा खड़ा हो गया । बोले– जी, मुझे भरोसा था कि आपको पसंद आएगी ।
“टायपिंग अच्छी है, और कागज भी आपने अच्छा इस्तेमाल किया है ।“
“जी, आपका इतना बड़ा प्रकाशन है, इतना नाम है आपका तो कागज बढ़िया लेना ही था । आप देखिये हर पन्ने पर गोल्डन बार्डर भी प्रिंट करवाया है मैंने । ऐसी पाण्डुलिपि पहले कभी नहीं आई होगी आपके पास । “ भोले के आत्मविश्वास ने सिर उठाया ।
“बार्डर तो बढ़िया है लेकिन ..... मैटर हल्का है । “
“मैटर !! आपका मतलब कविताओं से है क्या ?!”
“अभी कवितायें कहाँ ..... सब मैटर है । पाण्डुलिपि भर शब्द । मुश्किल है हमारे लिए । किसी और को दिखा लीजिये । “
“अरे सर ऐसा क्या !! किताबें तो आपके प्रकाशन के नाम से बिकती हैं । लोग मान कर चलते हैं कि आपने छापी हैं तो अच्छी ही होंगी । जहाँ दूसरी बीस किताबें सप्लाय करते हैं उन्हीं के बीच एक यह भी निकाल जाएगी । फिर लागत तो मैं आपको दे ही रहा हूँ, चालीस हजार । अगर मैटर की दिक्कत आ रही हो तो पाँच और बढ़ा लीजिये पर छपना तो आपको ही पड़ेगी । “ भानु भोले व्यावहारिक भाला फ़ैका ।
“ठीक है, पाँच और ले लूँगा । लेकिन मैटर की दिक्कत बड़ी है । लेन-देन हमारा आपस का मामला है लेकिन पाठक के पास तो किताब जाती है । “
“पाठक हैं कहाँ अब, आप ही कहते हैं कि किताबें बिकती ही नहीं हैं । मुफ्त दे दो तो सजावट के काम आती हैं । कवर बढ़िया होना चाहिए बस । “
“ऐसा नहीं होता है भानु भोले जी । थोक खरीदी में जाती हैं किताबें । अधिकारी एक दूसरे की टांग भी खींचते हैं । मैटर ठीक नहीं हो तो कभी कभी पूरा लाट चेक हो जाता है । और बड़ी दिक्कत आपके लिए भी है । अक्सर लेखकों का मूल्यांकन उनके मरने के बाद होता है । शोकसभा में किसी ने कह दिया कि किताबें तो सात हैं लेकिन लेखन कूड़ा है तो सोचिए क्या होगा । फोटो पर चढ़ी मालाएँ फट्ट से सूख नहीं जाएंगी !?
“ !!! ... आप कुछ तो कीजिये ना । “   
“ कवितायें बनवाना पड़ेंगी । कुछ लोग बनाते है, यू नो राजधानी में सब काम होता है । चार्ज लगेगा लेकिन मैटर ठीक हो जाएगा । “
“तो क्या उसका नाम भी जाएगा किताब पर !?”
“उसका नाम क्यों जाएगा !? जिल्द बनाने वाले का जाता हैं क्या ? दूसरे किसी लेबर का जाता है क्या ? आप निश्चिंत रहिए । नाम सिर्फ आपका जाएगा, पैसा तो आप दे रहे हैं । “
“फिर ठीक है । “
“कैश लाये है ना , जमा करवा दीजिये । और लोकार्पण की तैयारी कीजिये, महीने भर में किताब मिल जाएगी । ... पाण्डुलिपि चाहें तो ले जाइए, अच्छी बनी है ।“
भानु भोले ने पाण्डुलिपि रख ली, सोचा अगली किताब बनवाने के काम आएगी ।
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शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

सोते हुए जागता देश !



नए वर्ष में मैंने संकल्प लिया कि सुबह देर तक सोया करूंगा । इसके दो कारण हैं ,पहला तो यह कि मैं गैर राजनीतिक आदमी हूँ सो अपने लिए संकल्प वही करना चाहता हूँ जिसे पूरा कर पाऊँ । सुना है प्रधान मंत्री जी मात्र चार घंटे की नींद लेते हैं और बीस घंटे काम में लगे रहते हैं !! बताइये ! कौन समझदार आदमी इनसे प्रेरणा ले कर मुसीबत मोल लेगा ? सरकारी महकमों तक में अगर छापामारी की जाए तो पता चलेगा कि ज़्यादातर लोग चार घंटे से अधिक काम करना बड़े संघर्ष से प्राप्त हुई भारत की आज़ादी का अपमान समझते हैं । लोकतन्त्र है भई, वोट दिया है खनकता हुआ, क्या कहते हैं मंहगा वाला यानी मूल्यवान । ऐसे में मनमर्जी की नींद लेने का अधिकार तो बनता ही है । सरकारें जब कर्जा माफ कर रही हैं, मुफ्त इलाज करवा रही हैं, खाना-दाना दे रही हैं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और ब्याह शादी तक करवा रही हैं, बैंके जबरिया लोन दे रहीं हैं पकड़ पकड़ के तो रोना किस बात का ! और भला कोई जागे भी तो क्यों !? जनता सोई रहे पालने में तो लोरियों का टोटा है क्या ?  प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है, एक कुंभकरण योजना देता है तो दूसरा महा कुंभकरण योजना का वादा करता है । पाठ्यक्रम में बच्चे पढ़ेंगे आलू से सोना बनाओ । अगर लोग सोएँगे नहीं तो सपने कैसे देखेंगे ? सपनों का ऐसा है कि देखने वालों का भविष्य तय करें न करें पर दिखने वालों का अवश्य तय करते हैं । मैं एक सच्चा नागरिक, हवा का रुख समझता हूँ तो बुरा क्या है अगर देर तक सोते रहने का संकल्प ले लूँ !
दूसरा कारण कबीर हैं, कह गए हैं  सुखिया सब संसार, खाबै और सोवै । दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै । आप बताइये, रोने की शर्त पर जागना कौन चाहेगा । जागना जोखिम भरा है, जागने में डर बहुत है, माँ बच्चों को कहती है, सो जा नहीं तो गब्बरसिंग आ जाएगा  और समझदार बच्चा सो जाता है, माँ भी सो जाती है, दोनों को सोता देख मरद बेफिक्री से पड़ौस में कहीं निकाल जाता है । आज़ादी समझो कि मुकम्मल हो जाती है । मरदों की जिम्मेदारिया बड़ी होती हैं इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है । कर्मयोगी केवल कर्म करते हैं और प्रायः फल का संज्ञान नहीं लेते हैं । लेकिन दुनिया का क्या करोगे भाई ! दूसरे के गिरेबान में झाँकने का चलन जो है ।
चचा जल्दी उठ गए, सोचा सुबह की हवाखोरी कर लें । जाते हुये साल ने बताया कि चीन में बीते साल में पचपन लाख बच्चे पैदा हुए । चचा ने सुना तो मुंह में भरा पान मसाला जिसमें महकती बुड्ढा तंबाकू भी थी, फ़चाक  से थूक दी । बोले – इन चीनियों ने तो पूरा मार्केट कवर कर रखा है । पता नहीं बच्चे भी फेक्टरी प्रोडक्ट हैं या इंसानी !! पचपन लाख बच्चे !! शरम नहीं आई कमबख्तों को !! आबादी में नंबर वन हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया पर रहम न करने की छूट है इनको । नामाकूल, नामुराद, जाहिल कहीं के । दुनिया कहाँ जा रही है और ये बेशऊर कहाँ जा रहे हैं !!
फटकार सुन जाता हुआ साल सहम गया । धीरे से बोला भारत में भी हुई है बच्चों की आमद । हकबकाए चचा जरा देर के लिए गफला गए, बोले– बको । जाता साल बोला– भारत में बीते साल एक करोड़ पैंतालीस लाख बच्चे पैदा हुए हैं ।
चचा के मुंह में थूकने के लिए कुछ नहीं था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि देश सो रहा है या कि जाग रहा है !
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