रविवार, 6 मार्च 2022

युद्ध, महंगाई और तीन यार


 

तीनों पुराने यार हैं, जाहिर है उम्र हो चुकी है . सब खर्च हो गया है सिर्फ यारी बची है . बैंक के डिपाजिट पर एक परसेंट ज्यादा लेते हुए इन्हें दस बारह साल हो चुके हैं . पोप सिंग और बाघमारे भाऊ के कान अब काम के नहीं रहे, बजाज स्कूटर की तरह आंगन में बस खड़े दिखाई देते हैं . अख़बार पढ़ते समय अगर चश्मा टिकाने के काम नहीं आते तो हो सकता है कोई उन्हें कान-दान करने का सुझाव दे देता . दोनों बहरे हैं लेकिन दिल है कि मानता नहीं . दोनों को लगता है कि उन्हें आवाज आती है बराबर . कई बार तो नेताओं के कटाउट से भी उन्हें ‘भाइयो और बहनों’ सुनाई दे जाता है . ऐसे में कौन अपने को बहरा मानेगा . सुनने की कमी कमी न हुई इज्जत हो गई गोरी की जिसे ढांकना जरुरी है . दोनों एक दूसरे से अपने अपने विषय पर बोलते रहते हैं और सोचते हैं कि बात कर रहे हैं . जैसे अक्सर टीवी पर बहस में होता है, सब बोलते हैं, सुनता कोई नहीं और हरेक को लगता है कि उसने अपनी बात वजनदार तरीके से कही .

तीसरे अपने कामरेड हरसू भाई हैं, एक ज़माने के ट्रेड यूनियन लीडर यानी जनता चौक के धुरंधर भाषणबाज. उनके बारे में कहते हैं कि बोलते थे तो रोकना मुश्किल हो जाता था . लाल झंडा देख कर उनकी ‘ट्रेन’ रुकने के बजाए और तेज दौड़ने लगती थी . उनके साथ ट्रेजेडी यह कि गला अपने हिस्से का सारा कुछ बोल-बाल कर अब फ्यूज बल्ब की तरह गरदन पर फिजिकली मौजूद भर है . वे बोल नहीं पाते सुनते सब हैं . यही कारण है कि उनमें दृष्टाभाव प्रबल हो गया है . अपने को उन्होंने भोले भगवान मान लिया है . रोज भांग का अंटा लगाते हैं, इनदिनों  कुछ ज्यादा ही, जबसे नयी सरकार आई है . इसका लाभ यह है कि सुनते हैं समझते भी हैं लेकिन जवाबी कार्रवाई नहीं हो पाती है, बस नीलकंठी हो कर रह जाते  हैं . दोनों बहरों के बीच वे स्लीपिंग पार्टनर की तरह हैं, मतलब करते कुछ नहीं लेकिन शामिल बराबर हैं . आज भी रोज की तरह तीनों मिल रहे हैं गार्डन में . बैठते ऐसी जगह हैं जहाँ कोई चौथा न हो .

पोप सिंग ने कहा – रूस ने भारी करी यार !! किसी की सुन ही नहीं रहा !

“सही कर रहे हो,  महंगाई का तो कुछ पूछो ही मत . पता है अभी दूध के भाव भी बढ़ गए !” भाऊ ने जवाब दिया .

“कोई माने या नहीं माने इसमें अमेरिका की खुरापात लगती है .” पोप सिंग ने सर हिलाते हुए कहा .

“हाँ, वो तो है, पेट्रोल का भाव रोज बढ़ रहा है और गैस का भी . गरीब आदमी की मुसीबत है .”

“वोई तो ! यूक्रेन ने बैठे बिठाये मुसीबत ले ली . दूसरों के कहने में आ गया बेचारा .”

“बेंगन सस्ते हैं हरे वाले . आज वही लाया हूँ मंडी  से . मंडी में थोड़ा हिसाब से मिल जाता है .”

“डर लगता है यार, सुना है परमाणु की धमकी दे रहा है रूस ! कहीं विश्वयुद्ध न हो जाये .”

“इसीलिए आज भरता बनवा रहा हूँ . रोज रोज बेंगन की भाजी खाना किसको अच्छा लगता है .”

हरसू शांत बैठा कॉकटेल का मजा ले रहा है . यह उसका रोज का काम है . शुरू शुरू में उसने कुछ सुधार की कोशिश की थी लेकिन बाद में वही किया जो वाचाल सरकार के सामने गूंगा विपक्ष करता है . कान के आरपार हरसू का बिना टोल वाला फोरलेन हाइवे है. साउंड-ट्रेफिक बिना रूकावट चलता रहता है .

“खबर है कि सैकड़ों मर गए हैं .” पोप सिंग कुछ याद करते हुए कहा.

भाऊ ने सहमति जताई – तेल दो सौ से उप्पर है . मैं तो भरते में तेल नहीं डलवाता हूँ . थोडा लस्सन प्याज हो तो वैसे ही अच्छा लगता है .

“लगता है युद्ध जल्दी ख़त्म नहीं होगा .लेकिन कोई उपाय भी तो नहीं है .”

“लस्सन प्याज भी महंगा है, पर थोड़ा डालो तो चल जाता है .”

“चीन कुछ बोल नहीं रहा है, इसमें कोई रहस्य लगता है तुम्हें ?”

“सही कह रहे हो, ये सरकार ज्यादा नहीं चलेगी ... स्कूल खुल गए हैं, पिछले साल भर की फीस मांग रहे हैं, बताओ कहाँ से दूँ  !!”

“हमारी सरकार ने भी तो तटस्थ रहने की नीति अपनाई है . वो किसी से कुछ नहीं बोलेगी .”

“अब कहाँ बोतल खुलेगी यार  ! ... भांग का अंटा लगाना हो तो चलो. पांच अंटे मंगवा कर रखे हैं मैंने .”

हरसू में करंट दौड़ा और हाथ के इशारे से दोनों को उठाया कि चलो अंटा लगाते हैं .

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शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

कह देना कि छेनू सबके घर आएगा



 


                किरण को बचपन की बात याद  आ आई जब पिता ने ऊँचे स्टूल खड़ा कर कहा था कूद जा बेटा . किरण तैयार नहीं था, उसे ऊंचाई का पता था . यह भी समझता था कि इतनी ऊपर से कूदा तो धुटने टूट जायेंगे . लेकिन सामने पिता थे तो कुछ भरोसा भी था . फिर भी डर था, कहा इतनी उपर से कूदने की हिम्मत नहीं हो रही है पापा, पैर टूट जायेंगे . पिताजी के कहा डर मत मैं हूँ ना, सम्हाल लूंगा . चल कूद, मेरा बेटा शेर है, हिम्मतवाला है, ... ओए शाब्बाश ... वन ... टू ... थ्री ... . और किरण कूद गया . उसके घुटने सचमुच फूट गए . उसने मम्मा को कहा कि पापा ने धोखा दिया और ऊँचे से कुदवा दिया . बचाना सम्हालना तो दूर वे फोटो खींचने में लगे रहे . पापा ने सफाई दी कि हाँ मैंने ऐसा किया लेकिन ये एक लेसन था . कभी किसी पर यकीन नहीं करना चाहे वो अपने को तुम्हारा बाप ही क्यों नहीं बता रहा हो . जितना खतरा तुम्हें लड़ने वाले से है उससे ज्यादा आश्वासन देने वाले से हो सकता है . दूसरे लोग तमाशा देखते हैं, ताली बजाते हैं, जोखिम नहीं उठाते हैं . 
                                 किरण बड़ा हुआ, उसने पंचतंत्र की कहानी पढ़ी . एक भूखा सियार खाने की तलाश में यहाँ वहाँ भटकता हुआ बस्ती में पहुँच गया. भौंकते कुत्ते पीछे पड़े तो एक रंगरेज के आंगन में घुसा . वहां टब में हरा रंग था वह उसमें कूद गया और हरा हो गया . किसी तरह बचता हुआ वह जंगल में आया तो जानवरों ने उसे पहचाना नहीं . सियार ने कहा मैं ईश्वर का खास हूँ, मुझमें अपार शक्ति है . मैं महाशक्ति हूँ . मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा . मेरी शरण में रहो और निर्भय जीवन जियो . कुछ समय बाद जंगल में दूसरे जानवरों ने हमला कर दिया . जानवरों ने सियार को पुकारा तो उसने कहा तुम लोग मोर्चा सम्हालो, लड़ो तुम्हारे साथ मैं हूँ , जीत तुम्हारी ही होगी . कह कर सियार अपनी गुफा में बने बंकर में घुस गया और फिर नहीं निकला . जानवर मरे गए .
                                 पिछले हप्ते फिर जिंदगी ने परीक्षा ली . कुछ लोग आये और घर वालों को बोल गए कि “ किरण आये तो कह देना छेनू आया था .” छेनू के बारे में कौन नहीं जानता है . कहा जाता है कि वह मोहल्ले का मोहल्ला उड़ा देता है . उससे पंगा लेना अपनी फजीहत करवाना है . लेकिन पास पडौसियों ने हूल दी कि डरो मत . तुम अकेले नहीं हो, सारा मोहल्ला साथ में है . छेदी पेलवान मोहल्ले के लीडर बने हुए थे . उनके पास लाठियाँ और तलवारें भी हैं ऐसा सब मानते हैं . उन्होंने खुद आ कर किरण की पीठ पर हाथ रख दिया . बोले छेनू आयेगा तो सब टूट पड़ेंगे और उसकी टाँगे तोड़ के हाथ में दे देंगे . मुगालते में किरण ने ताल ठोंक दी . एक दिन छेनू आ गया . किरण कमर कस कर मैदान में आ खड़ा हुआ, छेनू पर दहाड़ मारी, कुछ जुमले भी कसे . छेनू ने लपक कर उसकी गरदन पकड़ ली और टेंटुआ दबा लिया . उम्मीद के खिलाफ कोई बाहर नहीं आया, सब अपने सीसी कैमरों से लाइव देख रहे थे . छेदी पेलवान के घर पर ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी थी, वे जिम में व्यस्त थे . किरण एक बार फिर घुटने फुडवा चुका था . 

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

जब दो पाए हों मुकाबिल तो चौपाये निकालो




 

                                  लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि कोई कितना भी अमानुष हो इसमें सबको सामान अवसर मिलता है . फिलासफी यह है कि ‘जो बढ़ कर खुद उठा ले हाथ में, मीना उसी का है’ . शुरू शुरू में लोकतंत्र का गणित सबको समझ में नहीं आया था . धीरे धीरे रहस्यों की गुप्त गंगा नीचे उतारी और उसने पूरे जमीन को नम कर दिया . जो आवारा पशु अभी तक यहाँ वहाँ मुँह मारते घूमते थे अचानक राजनीति के पठार में प्रवेश करने लगे . शुरू में उन्होंने नंदी की भूमिका अदा की . उनकी पीठ पर बैठ कर कई ‘भोले’ भगवान होने लगे तो उनका माथा ठनका . उन्हें अपने सींग और पीठ का महत्त्व समझ में आया . उन्हें लगा कि षड्यंत्र हो रहा है . सोचने लगे कि जब असली भोले हम हैं तो भगवानियत के हक़दार हम क्यों नहीं हो सकते !! हमारे सींग, हमारी पीठ, हमारी टाँगें ! तो अपना हक़ हम क्यों नहीं मांगे !? किसी ने कहा है ‘मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे; एक खेत नहीं, एक देश नहीं, सारी दुनिया मांगेंगे . इसके साथ एक शुरुवात हुई . कुछ सांड जिनके सींग खून पिए हुए थे, बाकायदा विधायक और मंत्री बनने में सफल हो गए . उन्होंने ईश्वर के नाम पर शपथ ली कि वे जनता की सेवा करेंगे . कुर्सी उनकी जितनी सेवा करेगी उसे भी वे स्वीकार करेंगे . इसका असर हुआ और जनता में सांड को लेकर चली आ रही छबि में बदलाव हुआ . जो पुलिस डंडा-जूता ले कर पीछे पड़ी रहती थी अब वह गार्ड ऑफ़ ऑनर की ड्यूटी कर रही है . सांड जो आवारा थे अब कहीं सांड-साहब और कहीं सांड-जी हो गए हैं . वे फीते काट रहे हैं,  भाषण दे रहे हैं और वादे कर रहे हैं. देश भर के बेरोजगार, आवारा, मरकने सांडों को इससे प्रेरणा मिली . वे सब राजनीति के बाड़े में घुसने लगे . परिणाम यह हुआ कि इन्सान और इंसाननुमा लोगों ने बाड़े से बाहर हो कर अपनी इज्जत बचाई . मिडिया ने पूछा तो कहा कि राजनीति गन्दी हो गयी है और अब हर किसी के बस की बात नहीं है . सांड साहबों ने प्रेस को बताया कि राजनीति में पढेलिखे और शरीफ लोगों का अब कोई काम नहीं है . ऐसे लोगों को घर बैठा कर पेंशन दी जाएगी और वक्त जरुरत उनसे मार्गदर्शन भी लिया जा सकता है . पार्टी की ओर से उनके जन्मदिन पर एक छोटा सा केक भी भेंट किया जायेगा जिसकी फोटो समाचार पत्रों और टीवी पर दिखाई जाएगी . इस तरह इनके योगदान को याद रखा जायेगा .

                                 चुनाव के दौरान प्रचार के लिए तमाम सांड शहर शहर घूमने लगे . उनकी हुंकार से ध्वनि प्रदूषण हुआ तो चौपाये सांडों को बुरा लगा . गुस्सा आया तो कुछेक ने उनकी सभाओं में दौड़ लगा दी . भाईचारे को भुला कर इधर वालों ने डंडे फटकारे तो चौपायों ने सींग घुमा दिए . कुछ लोग मर भी गए . मजबूरियों का मौसम था . जो गाय को आगे करके वोट मांग रहे थे वो सांडों का विरोध  नहीं कर सकते थे . जल्द ही सन्देश फैला कि दुनिया के सांडों एक हो जाओ . लोकतंत्र के इस खेल में सांडों का मुकाबला सांड कर रहे हैं . सांड सांड की लड़ाई में बागड़ जनता को कहना पड़ रहा है –‘पीटो न सिर अपना, न आंसू निकालो ; जब दो पाए हों मुकाबिल तो चौपाये निकालो’ .

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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

पंचतत्व के झूमते जिन्दा पैकेट




 

             देश समृद्धि की और तेजी से बढ़ रहा है . जो कुछ भी सारा ब्लेक एंड व्हाइट था अब रंगीन हो चुका है . पुरानी सरकारों ने होली को गरीबों का त्योहार घोषित कर रखा था . जब दुनिया करोड़ों भारतियों को होली खेलते देखती है तो माना जाता है कि भारत में गरीबी बहुत है . अब नयी सरकार ने तय किया है कि इस वर्ष से होली अमीरों का त्योहार माना जायेगा . टीवी मिडिया को कह दिया गया है कि बड़े बड़े मिलनसार उधोगपतियों, बुद्धिमान व्यापारियों, राष्ट्रप्रेमी दलालों, चुने हुए फिल्म स्टारों, सम्मानित घूसखोरों वगैरह को होली खेलते दिखाए . बैंकों को भी निर्देश दे दिए हैं कि इस अवसर पर  वे करोड़ों के रंग-लोन इन्हें दें ताकि इस त्यागी तबके को यथोचित सम्मान मिले . मिडिया के जरिये विदेशों में हमारी छबि शानदार होना चाहिए . राजनीति में छायाचित्र ही छबि है .

होली के त्योहार में एक दूसरे पर कीचड़ डालने और गोबर में घसीटने की परंपरा है . इसे उचित                            गरिमा प्रदान की जाएगी. इस काम के लिए सरकार ने बिना किसी भेदभाव के देशभर की छोटी बड़ी पार्टियों को छबि निर्माण के लिए साथ आने को कहा है . इस मामले में पार्टियों का प्रदर्शन पूरे साल अच्छा रहता है . जगह जगह स्टेडियम खाली पड़े हैं . सप्ताह भर पहले वहां गाय भैंसें बांध दी जाएँगी ताकि शुद्ध, विश्वसनीय और ताजा गोबर सभी पार्टियों को उपलब्ध हो सके . गौ-मूत्र और भें-मूत्र के कारण आर्गेनिक कीचड़ भी वहां तैयार हो जायेगा . सारी पार्टियाँ जब गोबर कीचड़ में सन जाएँगी तो किसीकी अलग पहचान नहीं रहेगी . दुनिया लोकतंत्र की इस खूबसूरती को देखेगी . हम कह सकेंगे मतभेदों के बावजूद सारे दल एक हैं . यू नो, विभिन्नता में एकता .

                    ज्यादा सोचने से चिंता को अवसर मिलता है और चिंतित लोग अक्सर सरकार को घूरने लगते हैं . होली मस्ती और गले मिलने  का त्योहार है . नशे से आदमी की सोच-समझ, विचार व विचारधारा, चेतना वगैरह सब स्थगित हो जाते हैं . ज्ञानियों ने भांग को होली की जान बताया है . इसलिए मोहल्ला स्तर पर भांग मुफ्त उपलब्ध करवाई जाएगी . पिया हुआ आदमी हिन्दू मुसलमान नहीं केवल एक शरीर भर रह जाता है . किसी को न महंगाई की याद न बेरोजगारी का दर्द . पंचतत्व के इस झूमते हुए जिन्दा पैकेट से समाज में अमन, शांति और अध्यात्म का सन्देश जाता है . इसलिए नहीं पीने वालों टेक्स लगाया जा सकता है .  कुछ जगहों पर लट्ठमार होली का चलन है . महिलाएं लट्ठ से हुलियारों को पीटती हैं . आदमी भांग के या किसी भी नशे में हो तो उसे पिटने में आनंद आता है . यही काम समय असमय पुलिस भी करती है तो उसका मकसद भी प्रदर्शकारियों को आनंद से सराबोर करने का होता है .  मदिरा मन को रंगीन बनती है . होली पर बाहर जितनी रंगीनी होती है उतनी अन्दर भी होना चाहिए वरना त्योहार अधूरा है . सरकार की सोच गहरी और सूक्ष्म है .  कवि कह गए हैं – “दुनिया वालों किन्तु किसी दिन, आ मदिरालय में देखो ; दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला”. मदिरा की बढ़ती दुकानों के इस मर्म को समझो लोगों . जिस राज्य में अमीर गरीब सब मस्त हों ; झोपड़ी, महल या गटर का भेद न हो ; सारे चरम आनंद को प्राप्त हों वहीं पर स्वर्ग है . और सरकार वादा है राज्य को स्वर्ग बना देने का .

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पुराना वोटर फूफा होता है.


  

                              पीए ने आते ही साहब के चरण छूने का उपक्रम करते हुए उनके घुटने छुए . साहब ने इस बात को नोट किया कि जैसे जैसे दिन-माह गुजर रहे हैं पीए के हाथ चरण से पिंडली होते हुए घुटनों तक पहुँच गए हैं ! लग रहा है आगे के दिन आशंकाओं से भरे हुए हैं . सम्मान देने वाले नौकर धीरे धीरे गले तक बढ़ सकते हैं . उन्होंने मन ही मन तय किया कि इस तरह के लोगों से सावधान रहना होगा . पीए अब कुछ कहेगा तो उस पर आँख मींच कर अमल करना जोखिम भरा है .

                         पीए ने कमर झुका कर अपने को साहब के कान के नजदीक किया और फुसफुसा कर कहा – “सर बाहर बहुत से लोग आये हुए हैं और आपसे रंग खेलना चाहते हैं . बुला लूँ एक एक करके ?”

                      “रंग गुलाल !! समझते नहीं हो क्या ! हमारे कपडे ख़राब हो जायेंगे . और चेहरा भी . फेयर कलर की स्कीन हो तो  उस पर रंग जल्दी और ज्यादा चढ़ता है . ... ना मना कर दो सबको . कह दो साहब गरीबों के लिए योजना बनाने में व्यस्त हैं .” साहब ने मुंह फेरते हुए कहा .

                       “आपको उनके साथ रंग खेलना चाहिए सर . वोटर हैं , हरेक के घर में पांच -सात वोट तो हैं ही . मना करना ठीक नहीं होगा .” पीए ने समझाया .

                        “अरे पीए .. पिये हो क्या ! वोट तो मैं जबान हिला कर ले लेता हूँ . इसमे रंग खेलने की क्या जरुरत है . वैसे बचपन में मैंने बहुत रंग खेला है . हम छोटी जगह में रहते थे . मैं फाटे कपड़े पहनता था. रंग-गुलाल के पैसे नहीं होते थे . लेकिन मन में अपनी संस्कृति और देश के प्रति प्रेम बहुत था . होली हमारा बड़ा त्योहार है . मेरे आठ दस साथी थे, मैं उनका लीडर था . लीडर बनने का शौक मुझे बचपन से ही रहा है . तो मैंने कहा कि होली तो प्यार और उमंग का त्योहार है . अगर हमारे पास रंग-गुलाल नहीं है तो हम कीचड़ और गोबर से खेलेंगे . तो कीचड़ और गोबर से होली खेलने का अविष्कार मैंने ही क्या है . उस टाइम पे पेटेंट के बारे में मुझे नालेज नहीं था . बाद में ये खेल धीरे धीरे सभी राज्यों में फ़ैल गया . क्योंकि गरीबी बहुत थी, पिछली सरकारों ने गरीबी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया था . तो बचपन की बात और थी अब बात दूसरी है .” साहब ने दिल की बात रखी .

                        “जी सर, ... आपकी यह होली-बाइट कुछ ताजा फोटो के साथ प्रेस को रिलीज कर देता हूँ . लेकिन सर बाहर लोग बढ़ते जा रहे हैं . बहुत से पार्टी के लोग हैं, दो-तीन मंत्री भी हैं . होली खेलने की जिद है सबकी . आप कहें तो कीचड़ गोबर लाने के लिए कह दूँ ?” पीए ने पूछा .

                       “कहा ना ... नहीं खेलेंगे ... अब नहीं खेलते हैं .” साहब ने रूखा सा उत्तर दिया .

                        “सर पुराना वोटर फूफा होता है . आज रूठेगा तो समझ लीजिये चुनाव के समय कसर निकालेगा . थोडा सा रंग डलवा लीजिये फिर चाहे गुलाबजल से नहा लीजियेगा .” पीए ने सुझाया .

                       “ठीक है, ऐसा करो मैं यहाँ ग्लास केबिन में बैठूँगा, तुम उधर खड़े हो जाओ . लोग तुम्हें रंग डालेंगे और मैं हाथ हिला कर  टाटा कर लूँगा . ... देखो ! होली भी नहीं खेली और वोट भी बचा लिया . कैसा रहेगा ?”

                       “अच्छा रहेगा, ... सर लोग अगर रंग लगा कर पैर भी छुएं तो मैं क्या करूँ ?”

                       “नहीं नहीं, पैर तुम नहीं छुआना . उनसे कहना कि पैर साहब के छुओ ... मैं टाटा के साथ आशीर्वाद भी देता रहूँगा .”

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सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

झूठ, सफ़ेद झूठ और राजनीतिक झूठ


 

            ए बी सी डी चार दोस्त, चारों के गले में अलग अलग पार्टी का पट्टा डला हुआ है . दोस्ती अपनी जगह, पट्टा अपनी जगह . आज भी चारों साथ में बैठे पी रहे हैं . चारों में एक एक विशेषता है . ए की आँख खुली है, बी का दिमाग खुला है, सी के हाथ खुले हैं और डी का मुंह खुला है . एक जमाना था जब पार्टियों के कार्यकर्त्ता एक दूसरे को फूटी आँख देखना पसंद नहीं करते थे . लेकिन अब कार्यकर्त्ता भी राजनीति खूब समझता और करता है . ऊपर वाले जब अपने फायदे नुकसान के हिसाब से एक पार्टी से दूसरी पार्टी में कूदते फांदते रहते हैं तो नीचे वाले अपने याराने से दूर क्यों हों . इन्होंने तय किया हुआ है कि पीते समय राजनीति की बातें नहीं करेंगे . अगर उनकी पार्टियों के प्रधान एक दूसरे को गधा या कुत्ता भी बोलेंगे तो उसका असर वे अपने पर नहीं लेंगे . इसी उदार सोच और दोस्ती को ध्यान में रखते हुए उनका तालमेल बना हुआ है .

अभी दूसरा पैग चल रहा था कि एक टीवी पत्रकार आ जुड़ा . अपना पैग शुरू करते हुए बोला – “और बताइए, क्या लगता है आपको, चुनाव में कौन जीतेगा ?”

ये एक खतरनाक वाक्य था . वे समझते थे कि ये दाने डाल कर लड़ने का काम करता है . चारों कुछ नहीं बोले, पापड़ तोड़ते रहे जैसे चुनाव के दौरान पार्टियाँ जाति और धर्म को लेकर समाज को तोड़ते रहे हैं . वह फिर बोला –“मुझे लगता है सरकार जा रही है . बहुमत नहीं मिल रहा है . लोग नाराज है जुमलों और धमकियों से .” 

“देखो यार, हम लोग पीने बैठते हैं तो राजनीति की बाते नहीं करते हैं . आप दूसरी कुछ अच्छी बात करो प्लीज .” ए बोला और बी ने इस बात का समर्थन किया .

“क्या आपका ये मतलब है कि राजनीति अच्छी बात नहीं है ! अगर ये बुरी बात है और आप लोग जानते हैं तो इसमें क्यों पड़े हुए हैं ?” पत्रकार ने स्वाभाविक प्रश्न किया .

“देखिये, हमारा मतलब यह था कि कोई मजेदार बात करो इस समय . नेताओं के चुनावी चूरन चाट चाट कर हर आदमी का पेट ख़राब हो चला है .” सी ने बात साफ की .

“ठीक है, मजेदार बात करते हैं ! अभी किसी ने कहा है कि जो बारहवीं के बाद इंटर में दाखिला लेगा उसे लेपटॉप देंगे .” 

“कैसे आदमी हो यार ! ये मजेदार बात नहीं है, मजेदार बात वो होती है जिसको सुनाने के बाद गुस्सा नहीं आये .” 

“तो ठीक है, ये सुनो . एक करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा . दिव्यांक और वरिष्ठ लोगों को पेंशन मिलेगी . भ्रष्टाचार समाप्त होगा और राज्य में विश्वस्तरीय सेंटर बनायेंगे, पेट्रोल सस्ता होगा, स्कूटी देंगे, गैस देंगे . .... मजा आया ?” 

“नहीं आया . ... यह झूठ है .”

“झूठ नहीं पार्टियों के वादे हैं . यहाँ से वहां तक सच की तरह दर्ज हैं .”

“अपने को अपडेट कीजिये .  झूठ तीन तरह के होते हैं . झूठ, सफ़ेद झूठ और राजनीतिक झूठ . राजनीतिक झूठ सबसे बुरा होता है . लेकिन कोई अदालत इसके खिलाफ सजा नहीं देती है . पार्टी कार्यकर्त्ता होने के नाते हमें इसका सबसे ज्यादा पता होता है .” ए बोला जिसकी ऑंखें  खुली हुई हैं . 

पत्रकार बोला –“ ऐसा है तो आप लोग क्यों नहीं बोलते राजनीतिक झूठ . कोई रोक है ?!”

“नहीं बोलेंगे, हम पार्टी के कार्यकर्त्ता हैं ... और अभी भी इन्सान हैं .” 


मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

टोपी के नीचे क्या है !


 

                      टोपी पहनते ही असर हुआ और उनके मुंह से जुमले झरने लगे . वे चौंक गए, ये क्या हो रहा है ! सोचा डाक्टर को दिखाएँ, लेकिन पहले सीनियर टोपीदार को बताया तो वे बोले –“तुम चिंता मत करो, बस सिस्टम के मजे लो . टोपी के ऊपर हाईकमान और विचारधारानुमा कुछ चीजें होती हैं लेकिन उनका लोड मत लो और भूल जाओ . राजनीति में भूलना जरुरी है और उससे ज्यादा जरूरी है भूलाने में लोगों की मदद करना . जनता अब श्यानी हो गयी है, उसे याद रखने की गन्दी आदत पड़ गयी है . लेकिन फ़िक्र नहीं क्योंकि टोपियों पर भरोसा करने का आलावा उसके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं है . तुम्हें लग सकता है कि टोपी के नीचे तुम हो ! लेकिन वोटर की नजर अलग है . उससे पूछो कभी तो कहेगा टोपी के नीचे लेपटॉप है, या गैस का सिलेंडर है, कोई कहेगा स्कूटी है, किसीको टोपी के नीचे से झांकती नौकरियां दिखती हैं तो किसीको मुफ्त राशन . बोतल-पौवा और नगदी तो हर टोपी के नीचे निकलता है, अब भेड़-बकरियां भी निकलने लगी हैं . धीरे धीरे टोपी का जादू तुम्हें समझ में आ जायेगा .”

                              उसने गौर किया कि बड़े टोपीदार लम्बी लम्बी छोड़ते हैं ! लम्बी छोड़ना राजनीति का नवाचार है . इसी के चलते उसने भी लम्बी छोड़ने की ठानी . वो किसान के सामने गया और बोला मुझसे बेहतर तुम्हें कोई नहीं जानता है . मैं पिछले जनम में बैल था और हल में लग कर खेत जोता करता था . धोबीघाट पर जा कर बोला कि मैं तुम्हारा सुख-दुःख समझता हूँ क्योंकि किसी समय मैं गधा था और एक धोबी के गठ्ठर ढोया करता था . वोटर जानता है कि लम्बी छोड़ रहा है फिर भी उसे अच्छा लगता कि वह गरीब किसान है तो क्या हुआ ये बैल था मेरा . धोबी सोचता कि फिर बोझ उठाएगा, कुछ तो काम आयेगा . लेकिन समाज में सारे गरीब गुरबे नहीं होते हैं . कुछ पढ़े लिखे समझदार भी होते हैं . उनको बत्ती देने में बड़े कौशल और अनुभव की जरुरत होती है . उन्हें विकास और सुनहरे भविष्य का झांसा दिया जाता है . उन्हें बैंक लोन और पासपोर्ट एकसाथ दिखाया जा सकता है . लेकिन घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या !? टोपी के नीचे सारा कुछ दूसरों के लिए ही होगा तो उसे क्या मिलेगा ! यह विचार आते ही उसने टोपी को खंगाला . देख उसके लिए गाड़ी, लाल बत्ती, बंगला और चंदा है . विदेशी बैंकों में खाते और संपत्तियां भी दिख रही हैं . घर परिवार और नाते रिश्तेदारों के गले में ओहदे और नौकरियां लटक रही हैं . वह खुद थाईलेंड और थाई मसाज के लिए ‘ता थाई ता थाई त त ता थाई’ करता दिखा !

                         चमत्कृत हो उसने आसमान की और देखा और कहा “भगवान लम्बी उमर देना, मैं दो सौ साल जीना चाहता हूँ .”

                        आकाशवाणी हुई – ‘तथास्तु’ .

                       उसे विश्वास नहीं हुआ, पूछा – क्या भगवान सचमुच ?! अपने तथास्तु कहा है !?

                      फिर आकाशवाणी हुई, भगवान बोले – “जुमले सिर्फ तुम्हारे ही पास हैं क्या ?”

 

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बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

कार्पोरेट्स के गोडाउन में विकास के भैंसे


 

यहाँ विकास का मतलब डिक्शनरी में दिए गए अर्थ से नहीं है . राजनीति में विकास यमराज के भैंसे की तरह है, जो अपनी पीठ पर किसी को लादे लोकतंत्र की जमीन पर घूमता रहता है . चुनाव के दौरान हर पार्टी अपना एक भैंसा ले कर उस पर सवार रहती है . लेकिन ‘तेरे भैंसे से मेरा भैंसा काला’ सिद्ध करने की शुरुवाती कोशिश अंत तक नहीं पहुँच पाती है . सारे भैंसें खूंटे से बांध कर पार्टियाँ जातिवाद, परिवारवाद, और चिथड़ा-चरित्र के पकौड़े तलने लगती हैं . परोसते हुए, देश का मतदाता समझदार है, मतदाता जागरुक है, मतदाता सब जानता है, मतदाता ही देश का मालिक है जैसे पचासों झूठ के चटपटे जीरावन के साथ अपनी दुकान जमा लेती हैं . उधर मौका मिलते ही विकास के सारे भैंसे कारपोरेट्स अपने गोडाउन में बांध लेते हैं . लोकतंत्र एक सीढी  और चढ़ जाता है .

इधर देश के मालिक यानी जनता जो है लोकतंत्र को लेकर विकसित नजरिया रखने लगी है . बाप दादे नेता का चरित्र और काम देखते थे क्योंकि उस समय होता भी था . उनकी नजर इस पर भी होती थी कि आदमी के बोल बचन कैसे हैं . उसने देश की आजादी के लिए क्या किया है, समाज के किसी काम आया है या नहीं, लोगों के लिए कुछ किया है या नहीं ! लेकिन अब समय बदला है . सोच में भी काफी विकास हो गया है . लोग छोटी छोटी बातों से ऊपर उठ गए हैं . डाकू डाके डाले, हत्याएं करे तो उसका ये काम कानून के खिलाफ हो सकता है . वह अगर गाँव में लड़कियों की शादी करवा दे, गरीब को खाने पहनने के लिए दे दे तो जनता के लिए वह डाकू नहीं भगवान हो जाता है . कानून को अपना काम करना है तो करता रहे, डाकूजी अपना काम करते हैं और गाँव वाले अपना . इसमें किसी को क्या दिक्कत हो सकती है ! देश तभी तरक्की करता है जब सब अपना अपना काम करते रहें . कानून के हाथ कितने लम्बे या छोटे होते हैं ये देखना जनता की जिम्मेदारी में नहीं आता है . गरीब पुराने ज़माने के डाकुओं के लिए भी उतने ही उपयोगी और सुविधाजनक होते थे जितने कि नए ज़माने वालों के लिए होते हैं . लोकतंत्र विशेषज्ञों को भी यह बात समझ में आ गयी है इसलिए गरीबी हटाने के नारे सब देते हैं हटाता कोई नहीं . नेतृत्व करने वाला कितना भी मूर्ख क्यों न हो  जिस डाल पर बैठता है उसी डाल को कभी काटना नहीं चाहेगा .

मिडिया मेन ने अपना माइक धन्ना के मुँह आगे किया तो उसे लगा कि इसमें से विकास निकलेगा . लेकिन सवाल अलग जगह से आया कि “इस बार आप किसको वोट देने वाले हैं ?”

धन्ना को कुछ सूझा नहीं कि क्या बोले . सो दूसरा सवाल आया –“ अच्छा, पिछली बार किसको दिया था ?”

“पिछली बार बोतल को दिया था .”

“अबकी बार भी बोतल को दोगे ?”

“थोड़ा सोचना पड़ेगा, धरवाली कह रही है गैस सिलेंडर को दें, छोरी स्कूटी को देना चाहती है और छोरा लेपटोप को .”

“पार्टी कौन सी पसंद है आपको ?”

“कोई सी भी नहीं . मतलब सभी पसंद हैं . सब एक जैसी हैं जी .”

“रैली में जाते हो ?”

“जाते हैं जी, पांच सौ रूपया और एक टैम का खाना मिलना चाइए .”

“नेता जो भाषण देता है वो नहीं सुनते क्या ?”

“जैसा फालतू भाषण नेता देता है, हम भी वैसा फालतू सुनते हैं .”

“नेता इसलिए भाषण देता है कि आप लोग वोट दें और वह देश की सेवा कर सके.”

“फोकटे भाषण सुन के कौन वोट देता है साहब !?  भाषण में ही दम होता तो फिरी का अनाज, तेल, गैस, पेट्रोल, दारू, नगदी, लेपटॉप, स्कूटी वगैरह की क्या जरुरत थी ?”

“आप लोग लेते हैं इसलिए उनको देना पड़ता है . अगर बुरा है, भ्रष्टाचार है तो आप लेना बंद कर दीजिये . सब ठीक हो जायेगा .”

“वो भी कहीं न कहीं से तो लेते हैं .  जो लेते हैं वही देते हैं . हमारे नहीं लेने से वो लेना बंद कर देंगे क्या !?”

“आप तो इसलिए मना करो कि इससे लोकतंत्र मजबूत होगा .”

“आप पहले ये तो पता करो कि मजबूत लोकतंत्र उन्हें पसंद आयेगा क्या !?”

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सोमवार, 31 जनवरी 2022

शांतिपुरम में जागरण


 

                           प्राचीन देश शांतिपुरम में दो तरह के लोग रहते हैं . एक जो जागे हुए हैं और दूसरे जो जागे हुए नहीं हैं . इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि ऐसे में शांतिपुरम सरकार के पास दो ही प्राथमिक काम हैं एक यह कि जागे हुए लगातार जागते रहें और दूसरा जो जागे हुए नहीं हैं उन्हें जगाया जाये . प्राथमिकता है इसलिए बहुत सारे संगठनों और उनकी तमाम शाखाओं को इस काम में लगाया गया है . उनका काम है कि एक एक आदमी के पास पहुंचें और पड़ताल करें कि वह कायदे से जागा हुआ है या कि जागा हुआ नहीं है . आदेश यह भी हुआ है कि जागने वालों और नहीं जागने वालों की जनगणना की जाये . ताकि शांतिपुरम की जागरण सम्बन्धी सरकारी योजनाओं का पूरा पूरा लाभ सरकार को मिले . जो लोग गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी घिसीपिटी समस्याओं को रोते मिलेंगे उन्हें सुप्त दर्ज किया जायेगा . जिन्हें चारों और भ्रष्टाचार बेईमानी, चोरी-डकैती दीख रही हो उन्हें सुपर-सुप्त श्रेणी में दर्ज किया जायेगा . जो शांतिपुरम सरकार के काम को संदेह से देखेंगे, नेतृत्व पर सवाल करेंगे या जो राइट टू इन्फार्मेशन यानी सूचना के अधिकार के तहत नेतृत्व का खाना खर्चा, कपड़ा-लत्ता और तोतों-कबूतरों के दाना-पानी का हिसाब पूछेंगे उन्हें अचेत श्रेणी मिलेगी . विशेष प्रकरणों में इन्हें एडवांस में मृत भी मान लिया जा सकता है . जो लोग धर्म-जाति, पूजा-प्रार्थना, ऊँच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा को लेकर अतिसंवेदनशील हैं केवल वही जागे हुए माने जायेंगे .

                 “जो जागे हुए नहीं हैं उनका क्या करें साहेब जी ?” जागरण सचेतक ने पूछा .

                 “सबसे पहले उन्हें चिन्हित करो, सूचि बनाओ, निगरानी में रखो, समझाओ, लालच दो, डराओ पहले शाब्दिक फिर सोंटा-दर्शन से, बौद्धिक दो कि छापा पड़ सकता है . उन्हें जागरण शक्ति द्वारा भेजे गए वीडियो दिखाओ, वाट्स एप मेसेज भेजो, लड़ाई झगड़ों के पुराने प्रसंग याद दिलाओ, दिन दिन भर जागो-जागो बोलो . पूरा मौका दो उन्हें, अपनी तरफ से पूरा प्रयास करो कि वे जाग जाएँ . उन्हें जागना ही पड़ेगा .” साहब बोले .

                  “आदरणीय महोदय फंड की कमी है . कोई प्रावधान कर दें तो काम को गति मिले .” सचेतक अपनी समस्या बताई .

                  “फंड की कमी है तो पुलिस से संपर्क करें . वे बिना बात चालान बनाते ही हैं, शांतिपुरम के हित में उसे दुगना करें . सक्षम विभागों से कहो कि सुप्तों और सुपर सुप्तों पर छापा मारी करें . इससे या तो वे जाग जायेंगे या फिर आपकी फंड व्यवस्था करेंगे . हर हाल में पूरा शांतिपुरम हमें जागृत करना है .”

                  “हम पूरी कोशिश कर रहे हैं साहेब . किन्तु हमारे सामने सवाल यह भी है कि बहुत से लोग हैं जो इससे भी नहीं जागे तो ?”

                    “उन्हें बताओ कि पुरस्कार देंगे, ईनाम मिलेगा, नगद भी मिलेगा, उधार भी मिलेगा .  हवाई जहाज में बैठाएंगे और पूरे शांतिपुरम का चक्कर लगवाएंगे, पद-वद भी मिल सकता है .”

                   “महोदय क्षमा करें, न जागना भी एक तरह की कट्टरता है . कुछ लोग कट्टरता की हद तक नहीं जागे हुए हैं . हमारी कोशिशों के बाद भी वे नहीं मानेंगे .”

                   “ऐसों को बताओ कि नहीं जागे तो शांतिपुरम में दंगा हो सकता है . तुम नहीं जागे तो जागे हुओं के हाथों मारे जा सकते हो . बताओ कि सुप्तजनों को स्वर्ग में जगह नहीं मिलती है . और इसके बाद भी नहीं मानें तो ... तो आप लोग ईशप्रेरणा से अपना  काम कर सकते हैं .”

                    “ठीक है साहेब,  इन्हें मृतक सूचि में ही रखना पड़ेगा . लेकिन इतने सारे लोगों को ठिकाने कहाँ लगाया जा सकता है ?”

                     “चिंता नहीं करें, देवनदी माँ है . देवनदी की क्षमता बहुत है, देवनदी शांतिपुरम के पक्ष में हमेशा तत्पर है . ... जाओ अब समय नष्ट मत करो देवनदी प्रतीक्षा कर रही है .”

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रविवार, 23 जनवरी 2022

वे जो मुस्करा रहे हैं


                           लोगों ने देखा कि आवारा कुत्ते की दुम कुछ दिनों से सीधी है ! पुराने लोग बताते हैं कि कुत्ते की दुम सीधी हो तो उसके पागल होने की आशंका प्रबल रहती है . पागल कुत्ता काटने लगता है . इरादतन काटे या गैरइरादतन, चौदह इंजेक्शन पूरे लगते हैं . इसलिए पागल कुत्ता जब भी बस्ती में आता था तो लोग बच्चों को लेकर घरों में घुस जाते थे . पागल कुत्ते के आने से लोगों को फ़ौरन घर में छुपाना एक रिहर्सल हो जाया करती थी जो डाकुओं के आने पर बड़े काम आती थी . मुसीबत आये तो मुकाबला करने के बजाए छुप जाना हमारी नीतिगत प्राथमिकता है . इस भागमभाग के दौरान कई बार बस्ती के वाशिन्दे-कुत्तों को पागल कुत्ते की गुस्ताखी का जवाब देने का विचार आता, सो वे अपनी पूरी ताकत से राजनैतिक धार्मिक नारों जैसा कुछ भौंकते हुए उसके पीछे दौड़ जाते थे और उसे सीमा पार खदेड़ कर ही दम लेते थे . कभी कभी ऐसा भी होता था कि हिम्मत करके बस्ती के लोग डंडे लाठी लेकर निकल पड़ते, कुछ लोग पत्थर ले कर पागल कुत्ते को घेर लेते और दिन दहाड़े उसका खत्मा कर डालते . कई दिनों तक इसकी चर्चा चलती, कोई इसे मॉबलीचिंग कहता तो कोई एनकाउंटर बताता . कुछ महीनों के बाद कुत्ता मारने की घटना बहादुरी की एक कहानी बन जाती, जिसे बच्चों को उस समय सुनाया जाता जब बस्ती में लाईट जाने के बाद अँधेरा छा जाता था और वे डरते थे .

                             लेकिन ये पुरानी बात है, बस्तिकाल की . अब कुत्ते इक्कीसवीं सदी में चले गए हैं . लोकतंत्र में उनको भी नागरिक अधिकार मिल जाते हैं जो वोटर नहीं होते हैं या जो वोट नहीं डालते हैं . फिर पार्टी हो या सरकार, दुमवानों ने जो मुकाम हासिल कर लिया है वो अभूतपूर्व है . सुना तो यह भी गया है कि कुत्ते इच्छाधारी होने लगे हैं ! मौके और जरुरत के हिसाब से वे कुछ भी बन जाते हैं . कभी भी गायब हो जाते हैं, कभी प्रकट हो जाते हैं . कुछ भाषण भी देने लगे हैं, छोटे बड़े वादे करते हैं और कभी कभी नोचने खाने के पक्ष में संविधान तक बदलने की कोशिश करते हैं ! देश में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याएं सर उठाये रहती हैं . लेकिन कुत्तों के लिए इन सब बातों का कोई मतलब नहीं होता है. वे अपने मालिक के प्रति वफादार रहते हैं, मालिक ही उनको पालता है, पोसता है और छू लगाता है . एक बार किसी चौकी पर बैठ गए तो आराम से चार पांच बरस मानव हड्डी चूसते चाटते गुजार देते हैं . ज्ञानी ध्यानी विद्वान् महात्मा लोग बताते हैं कि कुत्ता-मुक्त समाज की कल्पना करना बेकार है . वे युधिष्टिर के साथ स्वर्ग तक गए थे, इसी बात की रायल्टी वे आज तक वसूल रहे हैं . वे कहते हैं कि जिन्हें लगता है कि कुत्तों से खतरा है वे इस संवाद को याद रखें – ‘गब्बर से तुम्हें एकही आदमी बचा सकता है ... खुद गब्बर .’

                             तो बात ये थी कि लोगों ने देखा कि इन दिनों कुत्तों की दुम सीधी दिखायी दे रही है ! कुछ ने बताया कि उन्होंने कुत्तों को मुस्कराते हुए भी देखा है . लोग चौंक रहे हैं . डिस्कवरी या एनीमल प्लेनेट वालों ने ऐसा कभी दिखाया तो नहीं ! जल्द ही सीधी दुम वाले हंसते कुत्ते प्रदेश भर में लोगों को दिखने लगे !!

                             आखिर टीवी पर कुत्ता विशेषज्ञ के खुलासे से जनता को तसल्ली हुई . वे बोले लोग चिंता न करें, चुनाव का मौसम है, आचार संहिता लगी हुई है . काटने वालों को मुस्कराना पड़ रहा है . मतगणना के बाद सारी दुमें यथावत अपना काम करने लगेंगी .

 

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गुरुवार, 20 जनवरी 2022

च्यवनप्राश कैसे खाएं

 




                      खाने के तरीके बहुत हैं . छुरी कांटे से, चम्मच से, हाथ से तो सब समझते हैं लेकिन जानकार बताते हैं कि सही समय पर सही चीजों के साथ खाने से ही लाभ मिलता है . वरना लोटाभर घी पी लीजिये, अपना नाम तक भूल जाइयेगा . राम रसिया जी सब जानते हैं . चलता फिरता गूगल हैं राजधानी का . उन्हीं से पूछ लिया कि च्यवनप्राश कैसे खाएं कि सेहत दुरुस्त हो .

                   “खाने के मामले में नियम कायदा बहुत महत्त्व रखता है . नगद खाने से खुद की ही नहीं घर भर की सेहत टनाटन हो जाती है . और घर की भी क्यों कहें देश भर की सेहत का राज यही है . खाओ और खाने दो . भ्रष्टाचार के बारे में मत सोचो . भ्रष्टाचार का दायरा बहुत बड़ा है . झूठ बोलना, झूठे वादे करना और कुर्सी जीत लेना भी भ्रष्टाचार है . जीतने के बाद सेवा के नाम पर मनमानी करना और भी बड़ा भ्रष्टाचार है . सोचो तो बहुत कुछ है नहीं सोचो तो कुछ भी नहीं . नया जमाना है, इसलिए नयी सोच के साथ आगे बढ़ाना चाहिए . और नयी सोच ये हैं कि ज्यादा सोचने का नहीं . उठो सुबह और आइने के सामने खड़े हो कर तीन बार कहो भ्रष्टाचार का लीगल टेंडर जारी है . बस हो गया, मन पवित्र, आत्मा शुद्ध . सरकार कोई भी हो कानून उन्ही के खिलाफ कार्रवाई करता है जिन्हें खाने का सलीका नहीं है . हर सरकार चाहती है कि अधिकारीयों की शिकायत नहीं मिले . शिकायत मिलने पर कार्रवाई भी करना पड़ती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान और भाषण भी देना पड़ता है . रिश्वत देना और ले लेना एक कला है . इस काम में सफल लोग कलाकार कहे जाते हैं .”  राम रसिया जी की ट्रेन एक स्टेशन से छूटती है तो दूसरे स्टेशन पर ही रूकती है . लगता है उन्हें खाना ध्यान रहा च्यवनप्राश भूल गए .

                   “राम रसिया जी आप बड़े जानकार हैं, सो हमने तो बस यह जानना चाहा था कि च्यवनप्राश कैसे खाएं ?” उन्हें  मूल प्रश्न याद दिलाया .

                   “अच्छी बात है, ... पहले सुधार किया जाये . च्यवनप्राश खाया नहीं चाटा जाता है . खाना अलग क्रिया है चाटना अलग . जैसे रिश्वत, खायी जाती है चाटी नहीं  जाती है . सिर्फ दिमाग ही ऐसी चीज है जिसे खाया भी जाता है और चाटा भी जाता है . सेहत के लिए लोग धूप भी खाते हैं किन्तु च्यवनप्राश को चाटना अलग बात है .”

                    “चलिए ठीक है . चाट लेंगे . उसमे क्या है .”

                    “कैसे आदमी हो जी,  चाटने को हलके में मत लो, कोई कुछ कह कर वापस चाट ले तो कुर्सी तक हिल जाती है ससुरी . बदनामी होती है अलग से . चाटने का विधान गहरा है . अनुभव से समझ आता है .” वे फिर राजधानी की राजनीति में घुसे .

                    “ठीक है, मानते हैं .  आप ये बताइए कि हम च्यवनप्राश का सेवन कैसे करें ?”

                    “सत्ता जो है स्वर्ण केशर युक्त च्यवनप्राश है, थोड़ा थोड़ा चाटना पड़ता है . एकदम से चाटेंगे तो हजम नहीं होगा . बिना चम्मच के इसे चाटा नहीं जा सकता है . चम्मच हैं ?”

                     “अभी भी सत्ता को क्यों घसीट रहे हैं !! ... हाँ चम्मच हैं दस बारह ... च्यवनप्राश नहीं है . कौन सा ठीक रहेगा ?”

                      “ खुद चम्मच बनोगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा . चम्मच में ही पहले च्यवनप्राश चिपकता है . किसी झन्नाट विधायक के साथ लग लो . सबसे अच्छा च्यवनप्राश आजकल विधायक ही है . सावधानी और सलीके से चाटोगे तो पौष्टिकता मिलेगी .”

                     “ भाई साहब मैं आंवले से बने च्यवनप्राश की बात कर रहा हूँ ... आप लेन देन के च्यवनप्राश से बाहर नहीं आ रहे हैं !!”

                      “तो लाइए कहाँ है च्यवनप्राश ? डब्बा सामने होगा तभी न बताया जायेगा कि कैसे खाएं . खाने पीने का ज्ञान मुंह जबानी नहीं मिलता है . ... और हाँ, दो डब्बा लाइए, बताने में एक हमसे जूठा हो जायेगा सो हम ही रख लेंगे . ”

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मंगलवार, 18 जनवरी 2022

गाय-भाई रामभरोसे

 


                                 भक्ति बहुमार्गी है . पत्थर से पहाड़ तक, धरती से आकाश तक किसी का भी भक्त हुआ जा सकता है . राजनितिक दल में पहले भी भक्त हुआ करते थे गाँधी के नेहरू के, खादी पहनते, घरबार छोड़ कर उनके पीछे चल देते थे . समय बदल गया है और भक्तजन भी . भक्त हैं लेकिन अलग किस्म के . इन भक्तों की कई शाखाएं उपशाखाएँ हैं  जैसे अंध भक्त, घनघोर भक्त, प्रशिक्षित भक्त, प्रशिक्षु भक्त, परंपरागत भक्त, नवीन भक्त, जांनिसार भक्त, जानलेवा भक्त वगैरह . दल की पंजी पुस्तिका में सारे भक्त देशभक्त के नाम से दर्ज होते हैं . जो भक्त नहीं वो देशभक्त भी नहीं . देश देशभक्तों का है, शेष को क्या समझना है और उनका क्या करना है यह चिंतन का प्रमुख विषय है . चिंतन के लिए शिविर होते है, जिसमें खास किस्म के विचारों की धारा बहती है . भक्त इस धारावाहिक चिन्तन को विचारधारा कहते हैं . विश्वास किया जाता है कि सुबह शाम तेल पिलाने से लाठी और विचार मजबूत होते हैं .  हप्ते भर के शिक्षण बूस्टर डोज से भक्त सुरक्षित हो जाता है .

                      रामभरोसे सीधा साधा बेरोजगार आदमी है . उसके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं . गाँधी उसके मन में हैं . घर में एक गाय है जिसके दूघ और उपलों से गुजारा चलता है . कुछ महीनो से रामभरोसे को इस बात से बहुत गुस्सा है कि कोई रोज रात को उसकी गाय का गोबर चुरा ले जाता है . सुबह सुबह कुछ लोग गौमूत्र के लिए लोटा लिए भी खड़े हो जाते हैं ! माहौल ऐसा हो जाता है जो उसे पसंद नहीं है . लेकिन बॉडी लेंग्वेज पर गौर करें तो पता चलेगा कि रामभरोसे की गाय को इसमें बड़ा आनंद आता है . वह भी मूत्र विसर्जन तभी करती है जब दो चार भक्त लोटा आगे करके अम्मा अम्मा न कर लें . शुरू में लोटाधारी रामभरोसे को थेंक्यू कहते थे, लेकिन जबसे वे गाय के साथ आत्मनिर्भर होने लगे हैं तो ये उनकी थेंक्यू-मुक्त सेवा हो गई है . एक दिन रामभरोसे से रहा नहीं गया, पूछ लिया कि आजकल आप लोग थेंक्यू नहीं कहते हैं ? वे बोले – आप तो अपने हैं और अपनों के बीच थेंक्यू कैसा ! गाय जैसी आपकी माता है वैसी हमारी भी . सो आप-हम तो गाय-भाई हुए ना .

                  “ठीक है ठीक है, थेंक्यू भले ही मत कहिये ... पर ... भाई रहने दीजिये .” रामभरोसे ने सोचा मुंडेर का पीपल तुरंत ही उखाड़ देना ठीक है . कल को भाई बनके गाय ही हांक ले गए तो क्या कर लूँगा .

                 वे लोग नहीं माने . समझाया कि आपके देशभक्त पिता ने अपने को झोंक दिया, अब आपकी बारी है . देश वही है लोग बदल गए हैं . बलिदान देने की जरुरत अभी भी है . आप जैसे लोग सोचते समझते हैं, आप आगे नहीं आएंगे तो युवाओं को दिशा कौन देगा ? कल आप दिशा देने कार्यालय पर आइये, बहुत प्रसन्नता होगी .

                “मेरे पास कोई दिशा नहीं है . मैं दिशाहीन बेरोजगार हूँ . और मैं सोचता भी नहीं हूँ . दिमाग बिलकुल काम नहीं करता है . मुझे कुछ समझ में भी नहीं आता है . कभी कभी तो मैं अपना घर तक भूल जाता हूँ . “ रामभरोसे ने अपनी लाचारी बताई .

                     “दिशा नहीं, दिमाग नहीं, सोच समझ नहीं, घर द्वार भूलने वाले ! अरे आप तो हमारे बड़े काम के आदमी हैं ! आपसे बड़ा देशभक्त और कौन हो सकता है . आप कल आइये, आपको दिशा मिलेगी, विचार मिलेगा . क्या पता भविष्य में आपको देश का नेतृत्व करना पड़ जाये . समय का कुछ कहा नहीं जा सकता, पता नहीं कब किसका आ जाये . और दिमाग की फ़िक्र नहीं करें, वो किसी काम का नहीं होता है . जो भी होता है समय होता है . “  पहली बार किसीने इज्जत की . सुन कर रामभरोसे को अच्छा लगा .

                     कल जाऊं या न जाऊं सोचते रामभरोसे ने दिन गुजारा . दूसरे दिन सुबह लोटाधारियों ने अपना नित्यकर्म किया और बोले “चलिए, हम आपको ससम्मान लेने आये हैं .” रामभरोसे अभी तक तय नहीं कर पाया था लेकिन चल दिया . मुकाम पर पहुंचाते ही एक जैसे दिखने वाले कुछ लोगों से परिचय हुआ . ये पथप्रदर्शक जी, ये मार्गदर्शक जी, ये संचालक जी, ये प्रेरक जी, ये निर्देशक जी वगैरह . उन्हें बताया गया कि ये रामभरोसे ‘जी’ हैं .

                       प्रेरक जी बोले –“अच्छा !! आप अकेले नहीं हैं ... यहाँ सब रामभरोसे हैं . नियमित आइये, आपको अच्छा लगेगा .”

                       रामभरोसे चौंका – “सब रामभरोसे हैं !!”

                      “हाँ जी, ... पूरी पार्टी . सांसारिक नाम कुछ भी हो सकता है . किन्तु शीघ्रता मत कीजिये, धीरे धीरे सब समझ जाइएगा . आप राष्ट्रप्रेम की मुख्यधारा में आ चुके हैं .  “ प्रेरक जी ने निर्देशक जी की और देखा .

                       “इन्हें ले जाइये और मन-मस्तिष्क कार्यालय में जमा करवा कर गणवेश दिलवा दीजिये .” निर्देशक जी ने कहा .

 

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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

पंद्रह दिनों में फर्राटेदार साहित्यकार बनें


 

विज्ञापन पढ़ते ही नवल नगरपंडे का दिल हूम हूम करने लगा । पंद्रह दिनों में अगर फर्राटेदार साहित्यकार बन लिए तो हाथ पीले और मुंह लाल होने में देर नहीं लगेगी । नीचे ‘फूल’ गैरंटी के साथ लिखा था कि फीस ही नहीं ईनाम भी देंगे आप । साथ ही यह भी लिखा था कि नाम और पहचान गुप्त रखा जाता है । इसीलिए शहर के बड़े साहित्यकारों के नाम यहाँ नहीं दिए जा रहे हैं । कई दाढ़ी वाले कवि और लम्बे कुरते वाले कथाकारों ने हमारे यहाँ से ही प्रशिक्षण लिया है । एक जमाना था जब साहित्यकारों को वक्त जरुरत ही पूछा जाता था । जैसे घोड़ी-बैंड वालों को बरात के समय । लेकिन अब माहौल जो है बदल गया है । बात ये है कि सरकार बदलती है तो माहौल भी आटोमेटिक बदलता है । नया लिखने वाले नयों की भारी मांग है । लोग कागज-कलम दबाये स्टार्ट-अप में दनादन कूद रहे हैं । समय कम है, मौके की गंगा बह रही है तो फटाफट हाथ धो लेने में कोई बुराई नहीं है । नवल नगरपंडे ने सोच लिया कि साहित्यकार बनाते ही सबसे पहले प्रेम कवितायेँ लिखेंगे । सुना है कि प्रेम कवितायेँ लिखने वालों से लड़कियाँ चट्ट से प्रेम करने लगती हैं । दो साल से लगातार रिजेक्ट हो रहे हैं । अगर दो चार कवितायेँ काम कर गयीं तो अपन भी बैंड पर “आज मेरे यार की शादी है” बजवा लेंगे ।

कुछ देर में ही नवल नगरपंडे विज्ञापित दफ्तर में थे । सामने बड़ी सी कुर्सी पर माथे पर चन्दन चुपड़े, साहित्यकार के भेष में एक भारी से सज्जन बैठे हैं वे आचार्य हैं ऐसा सामने रखी पट्टी पर लिखा है । मुस्कराते हुए उन्होंने कहा – बईठिये ।

नवल नगरपंडे मुस्कराने की जवाबी कार्रवाई करते हुए बैठ गए । पूछा – “आचार्य जी, वो पन्द्रा दिनों में साहित्यकार ...?”

“उसी के लिए तो बईठे हैं हम । आज बहुतै जरुरत है साहित्य सेबा की । बहुत बढ़िया कोर्स हय । एक बार ठीक से समझ-सिख जाइये तो आपका ब्यक्तित्व बदल जाएगा । फस्ट डे से ही आपको अपने में बदलाव महसूस होने लगेगा । केतना आदमी लोगों को अभी तक साहित्यकार बना दिए हैं जानेंगे तो फीस नगद देने से अपने को रोक नहीं पाएंगे । बाबा का असिर्बाद है । बनारस सुनैं हैं ना ? बाबा बम भोले, लगा के भांग के गोले । “

“अरे भांग पीना पड़ेगी क्या !?” नवल चौंके ।

“पीजिएगा तब न जानियेगा । पंद्रह दिन में दन्न से साहित्य का भोले भंडारी बन जाईयेगा तभेई मानियेगा । भांग में भासा है, बो का कहते है नई बाली हिंदी । इसमें कबिता है, कहानी है ... सब है जो चहिये । भांग से साधना में जो है मन बहुतै जोर से लगता है । ... पंद्रह दिनों की फीस सात हजार है ... ईनाम अलग ।“

“फीस तो बहुत ज्यादा है ...” नवल ना नुकुर की मुद्रा में आए ।

“ज्यादा नहीं बहुतै कम है ... पूछिये क्यों ... पूछिये पूछिये सरमाइए नहीं ।“

“क्यों ?”

“एक ज़माने में पत्र-पत्रिकाएं मेहनताना देती थीं, प्रकासक रोयल्टी देता था । अब सरम सब जगह से ख़तम हो गयी है । बेसरमी लाइफ स्टाइल बन गई  है । छापते सब हैं देता कोई कुछ नहीं । साहित्य जो है फिरी फुग्गे का खेल हो गया है । बताइए ऐसे में डेढ़-दो लाख का कोर्स सात हजार में मिल रहा है तो समझिये फ्री ही पड़ रहा है । ... चलिए नाम बोला जाये ।“

“नाम नवल नगरपंडे । ... फीस एक साथ देना होगी क्या ?”

“पंद्रह दिनों का कोर्स है तो क्या छः माह का क़िस्त करवाइयेगा !?”

“आचार्य जी एक बार थोड़ा सिलेबस बता देते तो ठीक रहता ।“

“थोड़ा काहे पूरा जानिए, हक्क है आपका । देखिये, पहले दो दिन ब्यक्तित्व बिकास किया जायेगा । मतलब साहित्यकार की तरह कपड़ा-लत्ता पहनना सिखियेगा । चाल-ढाल,  उठना-बइठना, लटका-झटका, बोलना-चुप रहना सब सिखाया जाता हय  ।“

“उसके बाद ?”

“उसके बाद दो दिन कलम-कागज का छेत्र । किताबैं, पत्र-पत्रिकाएं बगैरा देखना खंगालना सिखियेगा । नए पुराने, जिन्दा मुर्दा साहित्यकारों के  बारे में जानकारी हासिल कीजियेगा ।“

“ठीक है, चार दिन हुए । बाकी बचे ग्यारह दिन ?”

“इसके बाद तीन दिन कबिता लिखना सीखिएगा । तुक विज्ञान जानिएगा । तीसरे दिन से कबिता ठोकियेगा दनादन ।“

“आगे के दिनों में ?”

“आगे का तीन दिन कथा-कहानी पर होगा । कहानी का आगापीछा जानिएगा । तमाम कहानीकारों के बारे में बताया जायेगा कि उनकी कैसी कहानियां आपके काम की हैं या नहीं हैं । हमारा कुछ ट्रिक है वह भी बताया जायेगा ।“

“ट्रिक ! ट्रिक मतलब क्या ?!”

“आगे का पांच दिन ट्रिक का ही हय । जैसे कहानी खोजना पुरानी किताबों से, पुरानी पत्रिकाओं से । उसे पढ़ना समझना और फिर अपने हिसाब से बदल लेना ट्रिक है ।“

“अपने हिसाब से कैसे ?”

“अरे भाई कहानी मुंबई की चल रही हो तो आप दिल्ली की कर दो । नायक रूपचंद हो तो राजीव कर दो । मतलब पात्रों और जगह के नाम बदल दो ... कहानी आपकी हुई ।“

“अरे ! ये तो बड़ा असान है !”

“इतना आसान नहीं है जी । कफ़न और पंच परमेश्वर खेंच देंगे तो पकड़े जायेंगे ।“

“शीर्षक भी तो बदलना पड़ेगा ना ?”

“क्या चुराना है, उससे ज्यादा क्या नहीं चुराना है इसी में सारी ट्रिक हय, सारा ज्ञान हय ।  यह सीखना पड़ेगा । और कैसे चुराना है यह भी सिखियेगा । इस बिधा को सोरोगेट साहित्यकार की केटेगिरी मिला है । दूसरों का उठाइए और अपना बना कर बजार में छोड़ दीजिये । चिंता मत कीजिये, ये पुन्न का काम है । अनाथ, आबारा, लाबारिस, बेनाम  रचनाओं को अपना नाम देना बड़ा जिगरे का काम हय ।“

“लोग छापेंगे, पत्र-पत्रिका वाले ?”

“आरे छापेंगे क्यों नहीं !! बिग्यापन के बीच बीच में जो खली अस्थान होता हय उनको भरना तो पड़ता हय ना । भरेंगे । प्यारे मोहन प्यारे का नाम जानते हो ? हमारे ही प्राडक्ट हय । साल में तीन चार अंडे दे देते हय ।“

“अंडे !!”

“किताबे तो अंडा ही होती हय आजकाल । जब तक कबि कुड़क नहीं हो जाए देता ही रहता है । अब देखिये कोई रोजाना आधा दर्जन कबिता लिख्खेगा तो चार किताबें तो निकलेगा ही ।“

“रोज आधा दर्जन कवितायेँ ! ये तो बहुत हैं ।“

“आउट पुट बहुतै अच्छा देता है यहाँ का प्राडक्ट । आप तो पहले दिन से ही इतना निकाल देंगे ... गारंटी है ।“

“आचार्य जी हमारी बहुत इच्छा है कि एक दो किताबें निकल जाये फटाफट । लोकार्पण करवाएं, सभा हो, भीड़-वीड़ हो, हार-फूल, भाषण-वाषण ... वो क्या है कि माँ चाहती है कि घर में बहु आ जाये, अभी शादी नहीं हो पा रही है हमारी ।“

“हो जायेगा । किताब छापने बाले और लोकार्पण करबाने बाले कांट्रेक्टर हैं हमारे टच में । कहिये तो एक-ठो किताब पहले छपबा दें आपकी ... लिखना बाद में सीख लीजियेगा, पहले घोड़ी चढ़ लीजिये ।  कोई दिक्कत नहीं है ... दुनिया बहुतै तेज चल रही है ।“

“कितना लग जायेगा ?”

“पचास साठ हजार तो लगेगा ही । ... किन्तु सस्ता पड़ेगा । ब्याह के खर्चा में जोड़ लीजिये या फिर दहेज़ से जनरेट का लीजियेगा ।“

“जी मैं सोच रहा था कि दहेज़ न भी मिले बस लड़की ही मिल जाये तो ...”

“अजी बिद्वान आदमी हैं, साहित्यकार हैं तो दहेज़ काहे नहीं मिलेगा !! ... दो तीन बरस का ग्रेस पीरियड छोड़ कर बाद में ठाठ से दहेज़ के खिलाफ कबितायें भी लिखियेगा कोई दिक्कत नहीं है ।  दुनिया बहुतै तेज चल रही हय ... देस जो हय बिस्वगुरु होने जा रहा है तो बिद्वानों के दम पर ही ना ? फीस निकाला जाय अब । “

“पहले तो किताब निकालने का कह रहे थे आप ! ...”

“फीस जमा करियेगा तभी न आप को साहित्यकार घोसित किया जा सकता हय । रसीद कटवाइए और यहाँ से अभी के अभी साहित्यकार बनके निकलिएगा  ठप्पे से ।“

नवल नगरपंडे ने फीस जमा कर दी ।

“बधाई हो ... लीजिये आप साहित्यकार हुए इसी बखत से । दो जोड़ी कुरता पजामा खरीद लीजिये, थोड़ा दाढ़ी बढ़ा लीजिये ... बस हो गया । और लड़की ढूंढने में लग जाइये फटाफट ।“

“और किताब ?”

“जैसे ही पचास हजार जमा कीजियेगा आपकी किताब का गर्भाधान संस्कार हो जायेगा ।“

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मंगलवार, 4 जनवरी 2022

हमारी तो मजबूरी है जी !

 



              आप आप हैं जी और हम हम हैं जाहिर है कि आप और हम अलग अलग तो होंगे ही । फिर भी हम भोलेभालों को आपके साथ मिल कर रहना पड़ रहा है ये छोटी बात नहीं है । आप सेक्युलर हैं ये आपकी च्वाइस है, लेकिन हमें तो कट्टर ही रहना पड़ेगा, मजबूरी है हमारी । साफ लिखा है संविधान में कि मुल्क धर्मनिरपेक्ष यानी सेक्युलर होगा । इसका मतलब है कि सरकार खुद धरम-धंधा नहीं करेगी लेकिन दूसरों को करने देगी ।  आप लोग अपने दीन को मानें और दूसरे मजहब की इज्जत करें, दूसरों की भावना और आस्था का ख्याल रखें बस यही जरा सी बात है इसके पीछे  । आपको जान कर ख़ुशी होगी कि हमें बात की बहुत ख़ुशी है कि दीगर लोग, दीगर मजहबी सब सेक्युलर हैं ।  सब जानते हैं कि सेक्युलर लोग बहुत अच्छे होते हैं । ये लोग कानून का सम्मान रखते हैं, अच्छे नागरिक हैं, लेकिन हमारी मज़बूरी है । आप लोग एक सभ्य समाज हो । इसलिए आपके लिए यह बहुत जरुरी है कि हमेशा विनम्र और उदार रहें ।  इस बात को  अनदेखा नहीं करना चाहिए । भोलेभाले लोगों की तो मज़बूरी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बाकी लोग उनकी नकल करें ।  आप हम लोकतान्त्रिक देश में हैं । सबका बराबर का हक़ है । जो आपको मिलेगा वो हमको भी मिलना ही है । उन्नीस-बीस का फर्क रहता है लेकिन उसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है । हमारी सबसे बड़ी चिंता संविधान को लेकर है । कुछ लोग अब संविधान की उपेक्षा करने लगे हैं । यह ठीक बात नहीं है । जब उपेक्षा भी आप लोग करने लगोगे तो हम क्या करेंगे ? हमारे लिए तो पहचान का संकट पैदा हो जायेगा ।

                    अच्छे लोगों के अमन पसंद बने रहने में हमारी ख़ुशी इतनी ज्यादा है कि बता नहीं सकते, रियली । लगता नहीं है हमें किसी दूसरी ख़ुशी की जरुरत है । अब यहीं की बात लो, गाँधी जी एक बड़ी हस्ती थे । उन्होंने अहिंसा का रास्ता दिखाया है आपके लिए, तो अच्छा ही होगा । टेकनीकली हमारे लिए भी बहुत अच्छा है । लेकिन देख रहे हैं कि लोग उस पर दिली ऐतबार नहीं रख रहे हैं आजकल । मतलब ये कि मन, वचन और कर्म से लोगों को अहिंसक होना चाहिए, लेकिन कुछ लोग हिंसा में अपनी आस्था व्यक्त करने लगे हैं ! देखिये हमारी तो मजबूरी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम दूसरों को अमन के लिए प्रोत्साहित भी नहीं करें । कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर देना बहादुरी की निशानी है, हम मानते हैं  । यकीकन हम भी कर देते दूसरा गाल आगे लेकिन मज़बूरी है, हम लोगों के बीच कोई गाँधी नहीं हुआ । ऊपर वाले की मर्जी है, इसमें कोई क्या कर सकता है !

                      आप लोग नए ज़माने को जल्दी समझ लेते हैं । आपका इंजन आगे लगा हुआ है । हम भोलेभाले, हमारा इंजन पीछे लगा हुआ है । आप लोग आगे देख कर चलते है, हमें चलने के लिए पीछे देखना पड़ता है । हममे बहुत सी खासियत है लेकिन उस पर लोग ध्यान नहीं देते हैं । हम खाना लजीज बनाते हैं, आपको भी अच्छा लगता है । कपड़े सिलने में माहिर हैं, आपकी पहली पसंद हैं ।  संगीत में उस्ताद हैं, लाल किले से गवाये जाते रहे हैं ।  एक प्यारी भाषा है जो जितनी हमारी है उतनी आपकी भी है । इमारतें बनाने और कारीगरी में हुनरमंद हैं, पता ही है आपको । गीत-ग़ज़ल कथा-कहानी के तो सब मुरीद हैं, साहित्य हो या फ़िल्में, आपको सब पसंद है ।  काम कैसा भी हो हम हरफन मौला हैं । लेकिन जब कानून को मानने की बात आती है तब मजबूरी है । आपकी बात अलग है, आप पढ़ेलिखे समझदार हो, अपने आकाओं को नकार भी सकते हो, उनसे बहस कर सकते हो, सवाल कर सकते हो, कोई बात गलत हो तो विरोध भी कर सकते हो लेकिन हमारी मज़बूरी है । अगर हमें जाहिल बनाये रखा गया है, दूसरों से नफरत करना ही सिखाया गया है तो हमारी मज़बूरी का अंदाजा आप लगा सकते हैं । यह बात ठीक है कि सरकार ने बढ़िया स्कूल खोल रखे हैं सबके लिए  ... लेकिन उसमें जब तक हमारे आका नहीं पढ़ लें ... तब तक हमारी मजबूरी है जी !

 

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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

कैमरे के साथ एक सेल्फी


 

पास रखा फोन/कैमरा बोला –“इस वक्त हम भारी बहुमत में हैं . हर उदास को स्माइल और हर हाथ को काम हमने दे रखा है . पहुँच इतनी आसन कि उठा के हाथ जो खिंच ले, तस्वीर उसकी है . हम न हों तो आपको और आपके नेताओं को छबि बनाने के लिए पहले की तरह चप्पलें घिसना पड़ जाती . अभी तो मजे हैं, दिन भर कपड़े बदलते फोटो निकलवाते रहो .काम करने के लिए अधिकारीयों की फ़ौज है ही, उन्हें कैमरे से दूर रखो, सारा श्रेय अपना . दुनिया को लगेगा कि हर एंगल से गरीब-नवाज ही खपे जा रहे हैं देश के लिए . कैमरे से झूठ को आधे सच में कैसे बदला जाता है इस पर शोध करने की जरुरत है, करो कोई . कैमरे हुए तो क्या हुआ अब हमें भी शरम आने लगी है . एक बार यदि हम यांत्रिकता से मुक्त हो गए तो देख लेना साहब लोगों के फोटो लेने से इंकार कर देंगे .”

                  मुझे समझ में नहीं आया कि कौन कुपित रहा है  ! भ्रम हुआ शायद, फोन अपने आप कैसे बोल सकता है . उठा कर देखा तो फिर आवाज आई, -“ हाँ मैं ही बोल रहा हूँ ... कैमरा . ये क्या धांधली मचा रखी है आप लोगों ने !! कितने फोटो उतारोगे हुजूर ! इंटरनेट आपके फोटो से ही भर जायेगा . समझ रहे हैं  आपके भी इरादे, आप कोई अलग नहीं हो . अगली पीढ़ी जवाहर लाल नेहरू को सर्च करेगी तो हर बार उसके हाथ दो कौड़ी के जवाहर चौधरी लगेंगे ! कैमरों को आगे करके षडयंत्र चल रहा है ये !”

                “अरे भाई !! मैं कहाँ उतरता हूँ इतने ज्यादा फोटो !”

               “सब यही कहते हैं . उन गरीब नवाज से भी पूछेंगे तो भाले-भोले बन के यही कहेंगे कि मिडिया वाले उतारते हैं, और ये काम होता है उनका.  इसमें हमारा कुछ नहीं है .” कैमरा नाराज है .

                 “देखो भाई कैमरे, गरीब-नवाज चाहते हैं कि लोग आत्मनिर्भर बनें इसलिए जनता सेल्फी लेती है . आखिर कहीं न कहीं से आत्मनिर्भरता की शुरुवात तो करना पड़ेगी ना . बताइए इसमें गलत क्या है ? सुन्दर लड़कियां भी आढ़ा-टेढ़ा मुंह बना कर कार्टूननुमा जो करती हैं खुद अपने साथ करती हैं . इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, तुम दुखी क्यों होते हो ! जब एक हाथ खाली होता था तो गरीब-नवाज भी सेल्फी लिया करते थे . अब दोनों हाथ टाटा करने में व्यस्त हो गए तो मजबूरी है . तुम चाहो तो अच्छा भी सोच सकते हो . गरीब नवाज को अगर देश से भी ज्यादा किसी से प्रेम है तो वो तुम हो . तुम्हें तो गर्व होना चाहिए, ये कोई छोटी बात नहीं है .” हमने सफाई के साथ तसल्ली देने की कोशिश की .

                 “इज्जत का सवाल है महोदय . कैमरे की आँख पर दुनिया भरोसा करती है . जमाने भर की अदालतें हमारी आँखों का सम्मान करते हुए अपने फैसले तक बदल देती हैं . सच या तो भगवान की आँखे देखती हैं या फिर कैमरे की आँख . लेकिन जब हमारे माध्यम से झूठ दिखाया जायेगा तो सहन नहीं होगा . “

                   “सिनेमा के परदे पर सारा का सारा झूठ दिखाया जाता है तब तो किसी की इज्जत का सवाल नहीं खड़ा होता है . कौन शामिल होता है शूट में  ? तुम्हारे भाई लोग ही ना ? देखो भाई कैमरे, माना कि तुम सच देखते हो लेकिन कायदा ये है कि देखने के तत्काल बाद तुम्हारा शटर बंद हो जाना चाहिए . उसके बाद तुम्हें कुछ भी सोचने की जरुरत नहीं है . इधर वोटर बिना सोचे अपने गरीब नवजों को चुन लेता है, फिर तुम तो वोटर भी नहीं हो ! यहाँ हाड़ मांस वाले मशीन हो रहे हैं, तुम तो पैदाइशी मशीन हो कर उल्टा चल रहे हो ! ...  छोड़ो न यार, चलो एक सेल्फी हो जाये तुम्हारे साथ . “

 

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