सोमवार, 19 सितंबर 2022

गुड़ गोबर


 




“अजी सुनते हो ! ये क्या उठा लाये ! गुड़ लाने को कहा था ना ? कोई काम ध्यान से नहीं करते हैं !” सामान का झोला उलटते हुए शांतिदेवी ने पति पर पहली घुड़की मारी ।

“गुड़ ही तो है भागवान, ये देखो बिल, पचास रुपये किलो के दाम भी दिये हैं ।“ ददातादीन ने कागज आगे करते हुए सफाई दी ।

“बिल का कोई मतलब नहीं है, इतना समाचार सुनते हो लेकिन किसान आन्दोलन को भूल गए । कल को सुनार के यहाँ का बिल होगा तो क्या राई-जीरा सोने का हो जायेगा ? जब से रिटायर हुए हो एक काम ठीक से नहीं करते हो ।“ देवी ने कमर पर हाथ भी रख लिया ।

“काम ठीक से कर सकता तो सरकार रिटायर क्यों करती ? जैसा हूँ काम चलाओ, कुकर भी तो तुम ढीले हेंडल वाला वापर रही हो ।“ दातादीन बोले ।

“कुकर की बात अलग है, वो ठीक टाइम पर सिटी मारता है । तुम्हारी तरह नहीं कि गुड़ लाने को कहो तो गोबर उठा लाये और पचास रुपये फैंक आये सो अलग ।“

“गोबर !! गोबर है क्या ?! ठीक से देखा तुमने ?”

“हाँ गोबर है, ये देखो ।“

“गोबर तो पचहत्तर रुपये किलो है ! पच्चीस का फायदा हो गया ।“

“पच्चीस का फायदा हो गया है तो दिमाग में भर लो इसे । कम से कम खाली तो नहीं रहेगा । यों भी खाली दिमाग शैतान का घर होता है । दिनभर उल्टेसीधे काम करते रहते हो ।“

“भागवान, समय को पहचानो । गुड़ का नहीं ये गोबर का समय चल रहा है । गाय का गोबर अब मिलता कहाँ है । अरे जब गाय ही नहीं मिलती तो गोबर कहाँ से मिलेगा । नेट पर गाय सर्च करो तो बीफ दिखाता है । कमबख्त सेलिब्रिटी बीफ खाते हैं और विक्ट्री साईन के साथ मिडिया को भी बताते हैं । एक दिन सारी गाय खा जायेंगे ये लोग तब देखना म्यूजियम में रखा मिलेगा गोबर । मैं तो कहता हूँ अच्छी तरह सुखा कर पैक करके रख लो, हमारी अगली पीढ़ी जानेगी तो सही कि ये गाय का गोबर होता था ।“

“हे भगवान ... सरकार ने तो चलता करके छुट्टी पाई, लेकिन मैं क्या करूँ !”

“तुम करवा चौथ का व्रत रखती तो हो, अब और कुछ करने की जरुरत नहीं है । भगवान इतने में ही सुन लेगा ।“

“व्रत तब रखती थी जब नौकरी में थे और गुड़ कहो तो गुड़ ही लाते थे । मुझे क्या पता था कि अपना ही गुड़ एक दिन गोबर हो जायेगा ।“ देवी का गुस्सा कम नहीं हुआ ।

“देखो, गोबर को तुम बहुत हलके में ले रही हो । और ज्यादा चिल्लाचिल्ली मत करो, बाहर गोबर समर्थकों ने सुन लिया तो दिक्कत हो जाएगी ।“

“क्या दिक्कत हो जाएगी !! हद है अब औरते क्या अपने पति को हड़का भी नहीं सकती हैं ! अगर ऐसा है तो पति रखने मतलब क्या रह जायेगा ।“

“समय को पहचानो शांतिदेवी । सिस्टम बदल रहा है और हर तरह का पति परमेश्वर होने जा रहा है । अपने को श्रद्धा भक्ति के साथ तैयार करो और उसके लाये गोबर को गुड़ मानों । समय के साथ चलो, अभी हमें अगले छः जनम और साथ रहना है ।“

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शनिवार, 17 सितंबर 2022

करम ऊपर गये, फोटो नीचे रह गया


 


             इनदिनों अपनी फोटो पर मेरा ध्यान बार बार जाता है । हर किसी के हाथ में कैमरे वाला फोन है और फोटो ऐसे धड़धड़ खेंचे जाते हैं मानों पीछे डंडा ले कर पुलिस खड़ी हो कि खींच अपनी फोटो । इसी तुकतान में सेल्फियाए रहते हैं कि कोई फोटो ऐसी आ जाये जो उनकी हो लेकिन उनके जैसी न हो । रोज अख़बार में फोटो हो चुके लोगों की सूचना मिलती है । कुछ के यहाँ जाना भी पड़ता है । देखते हैं कि फोटो बढ़िया है । आजकल तकनिकी का जमाना है । आदमी से बेहतर उसकी फोटो होती है । पहले स्टूडियो और फोटो आर्टिस्ट होते थे । मेरे माथे पर चेचक और चोट के दो निशान हैं । गलों पर भी मुंहासों के छूटे हुए निशान हैं काफी सारे । जब भी फोटो खिंचवाई आर्टिस्ट ने तमाम निशान गायब कर दिए । इससे पहचान का संकट तो  बना पर अच्छा लगा । एक बार फोटो इतना साफ सुथरा बना कि मुझे जरुरी लगा कि नीचे अपना नाम भी लिख दूँ । लेकिन आज भी मेरी पसंदीदा फोटो वही है ।  

              कालेज के दिनों में फोटो को लेकर दिल कुछ ज्यादा ही हूम हूम करता है । एक ऐसी घटना हुई जो भूलती नहीं है । आइडेंटिटी-कार्ड यानी परिचय-पत्र पर फोटो लगता है । फोटो चिपका कर प्रिंसिपाल के पास हस्ताक्षर के लिए पहुंचे तो उनका सवाल था कि ये कौन है !? बताया कि मेरी ही है सर । वे बोले जैसी शकल है वैसी फोटो लाओ । इसमें तुम्हें कौन पहचानेगा, आई.एस. जौहर लग रहे हो । मजबूरन एक ख़राब फोटो लगाना पड़ी । इसके बाद जब भी परिचय-पत्र दिखाना पड़ा ऐसे दिखा कर तुरंत छुपाया जैसे आठवीं-फेल की मार्कशीट हो ।

             अब जरा उम्र हो गयी है और बीमार भी रहने लगे हैं तो बीमारी से ज्यादा फोटो को लेकर चिंता होती है । शक्ल खुद पहचान से मुकरने लगी है । आइने के सामने जाओ तो लगता है जाने कौन है ! खुद को जानते हैं लेकिन पहचानने का मन नहीं करता है । काश कि जवानी में शकल देख के बैंकें लोन देती, कुछ तो फायदा होता बदशक्ली का । आधार-कार्ड और वोटर-कार्ड पर भी ऐसी फोटो होती है जिसे कह सकते हैं रियल जानलेवा । कर सकता हो तो आदमी खुद अपने को रिजेक्ट कर दे । गलती से पहले आधार दिखा दो तो लड़का लड़की बेचारों की शादी ही न हो । आप समझ सकते हैं इस चिंता को । छुप छुप कर सेल्फी लेते हैं तमाम पुराने निशानों के साथ झुर्रियां ब्रेक डांस करती दिखाई देती हैं । ऐसी हालत में मर जाने का मन भी नहीं करता है । अगर अंतिम दर्शन ऐसे हैं तो लोग क्या सोचेंगे । कुछ दिनों बाद आखिर भगवान ने सुन ली । किसी दावा का रिएक्शन हुआ और चेहरे पर सूजन आ गयी । डाक्टर को थेंक्यू कहा तो मायूस हो गए, उन्हें लगा कि व्यंग्य कर रहा हूँ । बोले सूजन दो तीन दिन में अपने आप उतर जाएगी, या कहो तो इंजेक्शन दे दूँ । अन्दर की ख़ुशी का क्या कहें, सूजन नहीं थी सौगात थी । बूढ़े शरीर पर जवान चेहरा किसे अच्छा नहीं लगेगा । दनादन सेल्फी भरी फोन में । अच्छा किया, सूजन कमबख्त दो दिन में ही फ़ना हो गयी, लेकिन तमाम फोटो पीछे छोड़ा गयी । कुछ को फ्रेम करवा कर सामने दीवार पर टांग  दिया है । अब आगंतुकों की प्रतिक्रिया नयी जरुरत बन गयी है । आप कभी आयें ... कभी क्यों एक बार जरुर आयें, स्वागत है आपका ।

             एक ढंग की मन पसंद फोटो हो जो अख़बार में छपे तो लगे कि आदमी कितना अच्छा था । देखते ही लोगों के मन में अच्छी भावनाए आयें । कबीर के ज़माने में फोटो नहीं होते थे सो वे लिख गए कि ‘ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये’ । अब करनी का क्या कहें ! सबकी एक जैसी है । लगता है ईश्वर ने सबको पाप करने के लिए ही भेजा है । करम तो अब छुपाने की चीज हो गए हैं । वो तो अच्छा है कि जाने वाले के बारे में बुरा नहीं बोलने की परंपरा है । हो भी क्यों नहीं,  किसी का बुरा देखो तो वह अपना ही लगने लगता है । अच्छी फोटो सामने हो, आदमी फूल चढ़ा दे बस । आदमी करम ऊपर ले जाता है, फोटो नीचे छोड़ जाता है ।

            अचानक उस फोटोग्राफर की याद आई जिसने कभी मुझे आई.एस. जौहर बना दिया था । देखा कि माला और फ्रेम के बीच फंसे मुस्करा रहे हैं । लडके से पूछा – “आखरी तक ऐसे ही दीखते थे क्या ?” लड़का बोला – “दिखने से क्या होता है, पासबुक में निल बटा सन्नाटा थे “। उसे समझाते हुए कहा - बेटा सिकंदर गया तब उसके दोनों हाथ खाली थे । उसने गौर से देखा, जिसे करीब करीब घूरना भी कहा जा सकता है । बोला – हाथ सबके खाली ही रहते हैं, लेकिन पासबुक (खजाना) में तो कुछ होना चाहिए ना । पीछे जो रह जाते हैं उनका काम सिर्फ फोटो से चलता है क्या ?

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शनिवार, 10 सितंबर 2022

पैदल आदमी का चालान


 

        “एई ... रुको ... इधर आओ ...किनारे की तरफ । हाँ ... बेल्ट क्यों नहीं पहना है ? “ ड्यूटी-पुलिस ने पूछा ।

        “पजामा पहना है साहब ... नाडा बंधा हुआ है ।“ पैदल आदमी बोला ।

         “पजामा हो या लुंगी बेल्ट लगाना अनिवार्य है । चालान बनेगा । “  ड्यूटी पुलिस ने डायरी निकलते हुए निर्णय सुनाया ।

        “लेकिन मैं तो पैदल हूँ ! मेरा चालान कैसे !?”

        “पैदल ही सही, सड़क पर तो हो । जो भी सड़क पर आता है यातायात कानून के दायरे में आता है । चलिए दो सौ रुपये निकालिए । “

        “दो सौ रुपये !! किस बात के साहब ? मैं पैदल हूँ, मेरी गलती क्या है ?”

         “बहुत सी गलतियाँ हैं ... पहली तो यही कि रांग साइड हो ।“

          “रंग साईड कैसे ! बाएं हाथ चल रहा हूँ, बाएं चलने का नियम है ।”

           “पैदल आदमी को दाएँ हाथ चलने का नियम है । उसके लिए बाएं चलना रंग सईड है ।“

           “दाहिने हाथ कौन चलता है सर ... सब बाएं से चलते हैं । और पैदल के लिए दायें-बाएं का क्या मतलब है !”

           “यातायात के नियमों की जानकारी नहीं होना दूसरी गलती है ... दो सौ पचास निकालिए ।“

           “आप टारगेट पूरा कर रहे हो और कुछ नहीं है । देखिये साहब यातायात पुलिस पैदल का चालान नहीं बना सकती इतना तो मैं भी जानता हूँ । “

           “एक और गलत जानकारी । सड़क पर जो भी आयेगा, नियमों का पालन नहीं करेगा तो उसका चालान बनेगा । ... अभी तुमने लाल बत्ती होने के बावजूद चौराहा पार किया । बताओ किया या नहीं किया ?  “ ड्यूटी पुलिस ने आवाज सख्त की ।

           “किया है सर ... लेकिन मैं तो पैदल हूँ ।“

           “तो क्या ट्रेफिक के नियमों से ऊपर है ! “

           “वोट देता हूँ, सरकार बनाता हूँ, मालिक हूँ देश का तो क्या लाल बत्ती भी क्रास नहीं कर सकता हूँ !?”

           “मालिक !! ... तीन सौ निकाल ।“

           “अरे बात को समझो सर ... मैं मुख्यमंत्री का जीजा हूँ ...”

           “तुम मुख्यमंत्री के जीजा कैसे हो !?”

           “मेरे बच्चे उनके भांजा-भांजी हैं तो मैं जीजा हुआ या नहीं ? अब जान गए तो रिश्तों की लाज रखो प्लीज । ”

          “अपना आधार कार्ड बताओ ।“

          “आधार कार्ड तो नहीं है इस वक्त, घर पर रखा है ।“

          “सड़क पर निकल आये और पेपर भी नहीं है ! तीन सौ पचास निकालिए ।“

          “पैदल चलने का भी लायसेंस बनता है क्या !? कमाल करते हो आप तो ! “

          “बीमा दिखाओ, बीमा तो होगा ?”

          “इतनी महंगाई में कौन बीमा करवाता है साहब । आप तो अपना प्रीमियम ‘रांग-साइड’ से भर देते होगे, हम कहाँ से लायें !”

          “उधर देखो ... वो साहब खड़े हैं कमर पर हाथ रखे । ... दिखे ?”

          “नहीं दिखे ... दूर की नजर कमजोर है ।“

           “तो चश्मा क्यों नहीं पहना ? जब साहब नहीं दिख रहे हैं तो सामने से आ रही गाड़ी कैसे देखोगे ! चलो टोटल चार सौ रुपये निकालो  ।“

            “अरे आप तो रकम बढ़ाते ही जा रहे हो !! मैं कम्प्लेन करूँगा आपकी ।“

            “कर देना । हार्न है ?”

            “पैदल आदमी में हार्न कहाँ होता है !?”

            “ब्रेक भी नहीं होंगे ?”

             “हाँ नहीं हैं ।“

             “हेड लाईट ?”

             “नहीं है ।“

              “ हूँ ... पांच सौ निकालो ।“

              “नहीं हैं ... और नहीं दूंगा । जब्त कर ले मुझे ।“

               “इतना टाइम ख़राब करा ... चल छोड़ ... पचास दे दे और भाग जा ।“

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शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

राजा का जन्मदिन


 



             बात बहुत पुरानी है । सच बात यह है जब आपको बहुत ताजा बात भी कहना हो तो उसे पुरानी बताते हुए कहना अच्छा होता है । जो समझते हैं वो समझ जाते हैं कि नयी है और जो नहीं समझते हैं वो समझते हैं कि पुरानी है । इस तरह नयी में पुरानी और पुरानी में नयी का आभास से संदेह अलंकर पैदा होता है । वो दोहा तो सुना ही होगा आपने – ‘सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ; नारी ही की सारी है कि सारी ही की नारी है ‘ । मतलब ये कि बात ... बहुत पुरानी है ।

               बात ये है कि राजा का जन्मदिन आ रहा था । यों तो जन्मदिन सबका आया करता है लेकिन उससे क्या ! खेत में फसल उतरती है उसी तरह जनता पैदा होती है । सुना है किसी देश में रोज एक लाख बच्चे पैदा होते हैं । हर सेकेण्ड में एक तो समझ ही लीजिये । ऐसे में आप बताइए इनका पैदा होना भी कुछ होना है ! असल पैदा होना राजा का होता है । बड़ी मुश्किल से, बड़ी मन्नतों और होम-हवन के बाद । यही वजह है कि दो हप्ते पहले से जन्मदिन की अग्रिम खुशियाँ मनाई जा रहीं हैं । आसपास लगे रहने वालों के पेट और जेब दोनों भर गए हैं लेकिन मन नहीं भर रहा है । मन तो राजा का भी नहीं भरा है किसी बात से । दिन में पांच वक्त बदलने के लिए तमाम शेरवानियाँ वस्त्रागार में टंगी हैं । जूतियों की नक्काशीदार जोड़ियों से जूताखाना भरा हुआ है । चिरागों की संख्या दुगनी कर दी गयी है । महल विशेष दमक रहा है । रनिवास से इत्र-फुलेल के भभके उठ रहे हैं । महल जैसे स्वर्ग का आउट हाउस है ।

               रात हुई राजा अपने कुछ मुँहलगे मंत्रियों के साथ खुले आकाश के नीचे एकांत का आनंद ले रहा था  । अचानक राजा ने कहा – मुझे ये चाँद उदास लग रहा है !!

              मंत्रियों ने एक स्वर में कहा – आप ठीक कह रहे हैं राजन, चाँद उदास लग रहा है ।

              “इसे प्रसन्न होना चाहिए । हमारा जन्मदिन आने वाला है ।“ कहते हुए उन्होंने पर्यावरण मंत्री की और देखा ।  

           “जी राजन, कल चाँद को खुश रहने के लिए कह दिया जायेगा ।“

            “महल के बाग में मोर और बत्तखें थीं ! वो कहाँ दुबकी हैं ?”  

              “राजन, मोरों को कल दरबार में नृत्य के आदेश दिए जा चुके हैं, बत्तखों को भी समूह नृत्य के लिए कहा जा चुका है । जो नहीं आयेंगी वो कल शाम को परोसी जाएँगी । “

               “हमें लगता है हमारी सेना भी अन्दर से प्रसन्न नहीं है । क्या सेना को हमारे जन्मदिन की ख़ुशी नहीं है ?” कुछ देर सोचते हुए राजा ने रक्षामंत्री से सवाल किया ।

               “राजन सेना में ऐसा कोई नहीं जिसे आपके जन्मदिन की ख़ुशी नहीं हो । लेकिन महंगाई के कारण उनकी ख़ुशी कमजोर पड़ रही है । किन्तु आप चिंता न करें कल से जन्मदिन तक सारे सैनिक बाकायदा प्रसन्न रहेंगे । यदि कोई उदास रहा तो बर्खास्त किया जायेगा ।“

                “रियाया में भी उत्साह नहीं है ! उसे भी प्रसन्न रहना चाहिए । नाचें-कूदें, गायें-बजाएं, अच्छे परिधान पहनें,तरह तरह के उपहार ले कर आयें और अपनी भावना व्यक्त करें । क्या उन्हें पता नहीं कि राजा का जन्मदिन है ! ... गृहमंत्री, आपका खुपिया विभाग क्या कर रहा है ?”

                 गृहमंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा – “राजन बेहतर होगा कि जन्मोत्सव महल की सीमा में ही संपन्न किया जाये । जनता महंगाई, बेरोजगारी, संस्थाओं पर अपराधियों के कब्जे से बहुत दुखी और क्रोधित भी है । लोग न्याय व्यवस्था को भी संदेह से देखने लगे हैं  । आय कम और कर बहुत ज्यादा हो गए हैं ऐसे में उन्हें तीन दिनों तक खुश रहने का आदेश देना जोखिम भरा है ।“

                 “चुनौतियाँ और विपरीत परिस्थितियां तो हर समय आती रहती हैं । ... क्या अपने अब तक कुछ नहीं किया !? आपको गृहमंत्री इसलिए बनाया था कि अपने हो और पुराना रिकॉर्ड भी जोरदार है !” राजा ने ऑंखें चौड़ी करते हुए कहा ।

                  “सारे नौकरीपेशा खुश रहे आदेश जारी कर दिए हैं । हर कर्मचारी को अपने विभाग प्रमुख से अपनी प्रसन्नता प्रमाणित करवा कर गृह मंत्रालय को भेजने के लिए निर्देशित किया गया है । विभाग प्रमुख अपनी प्रसन्नता स्वयं सत्यापित कर मंत्रालय को भेजेंगे । दिक्कत व्यापारियों, छोटा मोटा धंधा करने वालों, पकौड़ा बनाने वालों, फेरी वालों से है । खादी पहनने वाले मानेंगे नहीं, उस दिन सुबह से उपवास रखने वाले हैं ।“ हाथ जोड़ते हुए गृह मंत्री ने निवेदन किया ।

                सामने खड़े धन मंत्री की और राजा ने देखा ... कहा कुछ नहीं । धन मंत्री ने राजा की आँखों में झाँका और समझ गया ... कहा कुछ नहीं । रात गहरा चुकी थी । आसपास से उल्लुओं की आवाजें आने लगी । सुनते ही राजा प्रसन्न हुआ । बोला – चलो तुम लोगों के आलावा कोई तो है जो खुश हो रहा है ।

               मंत्री एक स्वर में चहके – साक्षात् लक्ष्मी के वाहन हैं राजन ... शुभ है ... मंगल है ... मुबारक हो जन्मदिन ... हुजूर सलामत रहें और जन्म जन्मान्तर तक सिंहासन पर बने रहें ।

               दूसरे दिन पेट्रोल का दाम बीस पैसे कम कर दिया गया । जनता खुश हो गयी । सरकार को पता है कि बीस पैसे की ये ख़ुशी तीन दिन तो आराम से टिक जाएगी ।

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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

पकोड़ा कढ़ी की रेसिपी


 



                    कवि कमाल कलम थामे कविता से संघर्ष कर रहे थे । चार पंक्तियों की आमद हो चुकी थी । पांचवी को मना रहे थे लेकिन वह मान नहीं रही थी । ऐसा अक्सर होता है उनके साथ । बिना मान मनौवल के उनका कोई काम नहीं होता है । वे जिसे भी मानाने का प्रयास करते हैं वह उतना ढीठ हो जाता है । डाकिये तक को मनाते हैं तब कहीं जा कर हप्ते में एक-दो चिट्ठियां देता है । लेकिन कविता के मामले में रस्साकशी कुछ ज्यादा ही हो जाती है । आज भाग्य से कविता का हाथ पकड़ में आ गया है । जोराजोरी में लगे हुए हैं, सोच रहे हैं खेंच लेंगे पूरी ।

तभी मिसेस कमाल पास आ कर सोफे पर बैठ गयीं । किताबों से लगाकर गूगल तक, सबको पता है कि कवि-पतियों से उनकी पत्नियाँ कितनी खुश रहती हैं । जब वो कहती हैं कि ‘ये’ किसी काम के नहीं हैं तो आवाज कई कोनों से इको होती है । कवि चाहते हैं कि धक्का दे दें लेकिन जानते हैं कि ये आसान काम नहीं है । इसलिए अपने काम में लगे रहने की कोशिश करने लगे । अचानक वे चहकीं – “मिल गयी ! ... ये देखो मुझे मिल गयी !”

कवि पंक्तियों में उलझे थे, बोले – “घंटाभर हो गया मुझे नहीं मिली, तुम्हें कैसे मिल गयी !”

“पकौड़ा-कढ़ी की रेसिपी मिल गयी” । उन्होंने फोन दिखाते हुए कहा । 

“तुम्हें पता है इस समय मैं कविता खेंच रहा हूँ ! और तुम मेरी तपस्या भंग कर रही हो ! पकौड़ा-कढ़ी की रेसिपी से मुझे क्या ?”

“जिसे मजा लेना हो वो रेसिपी पढ़ा कर भी मजा ले सकता है । पता है ये खास है, इसे सत्रह सौ लाईक मिले हैं । गुजरात के जानेमाने शैफ की रेसिपी है ।“

“कढ़ी तो कढ़ी है, इसमें क्या खास है ?” कवि ने मुंह बनाया ।

“इसमें पकौड़ा होता है जो कि नहीं होता है ।“

“पकौड़ा-कढ़ी में पकौड़ा नहीं तो और क्या होगा !?  तुम बनती रही हो उसमें भी तो पकौड़ा होता है ?”

“मेरी कढ़ी का मत पूछो । इस रेसिपी वाली में पकौड़े नहीं पत्थर होते हैं, जो कढ़ी बनाने के बाद निकाल लिए जाते हैं ।“

“पकौड़े की जगह पत्थर !!”

“गुजरात की कढ़ी है । कुछ राज्य हैं जो समस्या देते हैं तो समाधान भी देते हैं । महंगाई का पता है कहाँ पहुँच गयी है !!  तुम्हारी कविता से एक समय की दाल भी नहीं बनती है । इधर  सोशल मिडिया पर देखो कवि पकौड़ों की तरह घान के घान उतर रहे हैं । देख कर लगता है पकौड़े कविता कर रहे हैं !“

 “कवि पकौड़े ! पकौड़े-कवि ! कहना क्या चाहती हो ! हम पकौड़ा है ! देश में पकौड़े इसलिए ज्यादा दिख रहे हैं क्योंकि बेरोजगार पकौड़े तलने लगे हैं । ”

“जब सारे पकौड़ा बनायेंगे तो खरीदेगा कौन ? बेरोजगार बन्दे कविता करने में लगे हैं ... आदमी खाली बैठे बैठे खुद पकौड़ा नहीं हो जायेगा ।“ देवी कुपित हुईं ।

“चलो ठीक है ज्यादा बेइज्जती मत करो । अभी हम कविता में उलझे हुए हैं ।“

“इसमें बेइज्जती की क्या बात है ! पकौड़ा कवि से आल टाइम बेहतर है । सस्ता है, स्वादिष्ट होता है, भूख मिटाता है, सत्कार के काम आता है, सामने रख दो तो मेहमान खुश हो जाता है । और कवि ...! अब मुंह मत खुलवाओ मेरा ।“

“मुंह है कहाँ ... इण्डिया गेट है । कभी बंद हो सकता है क्या ! यही हाल रहे तो पीएम बन जाओगी किसी दिन । ...  देखो मुझे पांचवी पंक्ति नहीं मिल रही है ऐसे में तुम दिमाग का पकौड़ा-कढ़ी मत करो । बनाओ जा कर । ”

“ओ मिस्टर, पकौड़ा-कढ़ी के लिए सामान लगता है । मैं सिर्फ रेसिपी दिखा रही थी । रेसिपी देखो और मजे लो । “

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गुरुवार, 11 अगस्त 2022

फीता ऐसे काटें ।


 

“देखो प्यारे, हम तुम्हारे मामा हैं । और तुम ये ठीक से समझ लो और गांठ बांध लो कि मामा तो मामा ही होता है । तुमसे आगे हैं और हमेशा रहेंगे । इसमे कोई शंका कुशंका हो तो अभी बोल दो समझा देंगे । बाद में न कहना कि मामा ने ठीक से समझया नहीं इसलिए गलती कर गए । है कोई आशंका ? ... नहीं है ना ... तो बात सुनो हमारी । जैसा कहते रहेंगे तुमको वैसा ही करते रहना है । मंत्री बना दिया है मजे करो और फीता काटते रहो । बस यही काम है तुम्हारा ... फीता काटो । ध्यान लगा के फीता काटना सीख लो पहले ।“ नए मंत्री बने भांजे से मामा ने कहा ।

“फीता काटने में क्या सीखना है !? मामा जी कमाल करते है आप भी ! अरे कैंची उठा कर फीता काटना है इसमे कौन सी फिजिक्स पढ़ना होती है !” भांजे ने कुछ चिढ़ते हुए कहा ।

मामा को इसी उत्तर की उम्मीद थी । बोले - “बेटा ‘फीता-कटर’ होने और फीता काटने में बहुत अंतर होता है । कैंची उठा कर ही फीता काटना है तो काटते रहिये घर में बैठ कर दरजी की तरह । राजनीति में फीता काटना टेक्नीकल भी है और आर्ट भी है । इसमें फिजिक्स नहीं  केमिस्ट्री का सही होना जरुरी है । राजनीति केमिस्ट्री से चलती है । एचटू-ओ का फार्मूला इधर भी है पर इससे पानी नहीं पैसा  बनता है ।“

“एचटू-ओ !! कुछ समझे नहीं इधर एचटू-ओ कहाँ है ?!”

“एचटू मतलब हिस्सा दो और ओ का मतलब है आर्डर लो ।  हिस्सा दो आर्डर लो । यही केमिस्ट्री है पॉलिटिक्स की । वो कहावत सुनी होगी ना, ‘घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ?’ यही बात गधों पर भी लागू होती है ।“

“कहना क्या चाहते हैं ! हम गधे हैं !” भांजे ने आपत्ति ली ।

“गांठ बांध लो, राजनीति घोड़ों का काम नहीं है । घोड़े गृहस्थी की गाड़ी खींचने के काम आते हैं । जिसे स्कूल में मास्टर लोग और खुद उसके घर वाले बचपन से ही ‘गधा है, गधा है’ कहते आये हैं वही आगे चल कर राजनीति करता है । एक नहीं सौ उदहारण देख लो ।“  मामा ने समझया ।

“यह समझ में नहीं आया कि फीता काटने से गधे का क्या सम्बन्ध !”

“नहीं समझ में आया तो मान लो कि ठीक रस्ते पर हो । देखो ऐसा नहीं करना है कि किसी ने कहा और पहुँच गए मुस्कराते हुए फोटू खिंचवाने । पहले देखो ठेका कितने का है, हिस्सा कितना होगा । हर प्रोजेक्ट में चार या पांच चेक से पेमेंट होता है तो फीते भी चार-पांच बार कटेंगे ।“

“क्या यार मामा ! एक प्रोजेक्ट में कौन चार-पांच बार फीते कटवाएगा ! लोग बेवकूफ नहीं हैं ।“

“लोग अगर बेवकूफ नहीं होते तो क्या हम तुम कुछ कर पाते ! किसी ने कहा कि मैं रातदिन मेहनत करता हूँ, सभाओं सभाओं चीखता हूँ, जरुरत पड़ने पर दुलत्ती भी झाड़ता रहता हूँ । बस हो गया अपना काम । ... रहा सवाल फीते कटवाने का तो फीता काटने का मतलब हमेशा कैंची से फीता काटना ही नहीं होता है । उदहारण से समझो । माना कि कोई सड़क बनाने का ठेका हुआ है । आप तय करके पहले चेक पर भूमि पूजन कर आइये, दूसरे चेक पर सीमेंट की पहली बोरी को काट आइये, तीसरे पर सड़क का निरीक्षण कीजिये, चौथे पर उद्घाटन और पांचवे पर सड़क का नामकरण कर दीजिये । ये हो गया । फीता ऐसे काटें ।

 

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

हमारी अपनी सरकार


 



            याद कीजिये शुरू शुरू में जब आप ‘सरकार’ से रू-ब-रू हुए तो अन्दर तक गुदगुदा रहे थे । बहुत ज्यादा पसंद थी, इतनी कि आपसे कुछ कहा नहीं जा रहा था । पीले पीले लड्डू फूट रहे थे और मन में अरमानों का सोता बह निकला था । घर द्वार बेहाल था, लगा इसके आने से स्वर्ग बन जायेगा, अम्मा-बाबूजी को गरम रोटी मिलेगी । तभी कांपते हाथों से उसने आपके पैर छू लिए थे । हालाँकि आपकी मंशा नहीं थी पैर छुवाने की लेकिन छू लिए । एक परंपरा है अलिखित, जब भी सरकार सत्ता के करीब आना चाहती है हाथ जोड़ती है, पैर छूती है । उसने पैर छुए और आपको एक जबरदस्त फिलिंग हुई । लगा कि आप महान टाईप और नियर टू ग्रेट हैं । चरण स्पर्श रोकने के बहाने आपने उनके हाथों को सफलतापूर्वक छू लिया था । दिखा तो नहीं पर स्पार्क जैसा कुछ हुआ, करंट भी लगा लेकिन फ्यूज नहीं उड़ा । आप कुछ समझे नहीं, थोड़ी कोशिश करते तो समझ जाते कि बैटरी फुल चार्ज है । कुछ झटके ऐसे होते हैं जो मजा देते हैं । मन तुरत फुरत में ‘दिल ओ जान’ कुरबान कर डालने के लिए मचलने लगा था ।  लेकिन ‘मन थोड़ा धीर धरो’ नाम की पेरासेटामॉल ने मदद की और कुरबानी का बुखार डाउन होने लगा ।

            आखिर वो दिन भी आ गया जिसका इंतजार था । कुछ प्रक्रियाओं के तहत ‘सरकार’ पहले बाएँ बैठी । एकदम आज्ञाकारी रोबोट लग रही थी, लगा अभी कुछ करने को कहेंगे तो फट से कर देगी । आपकी जैसे रीढ़ की हड्डी तन गयी । बड़प्पन की फीलिंग चुपके से आ कर ठहर गयी । लगा था सभापति से लगा कर राष्ट्रपति तक सारे पति आप ही होने जा रहे हैं । ‘सरकार’ ने सर झुकाते हुए धीरे से कहा था कि आप स्वामी हैं और मैं सेवक हूँ आपकी । सुनते ही आपको लगा था कि बदन में हवा जैसा कुछ भर गया । याद करो उन दिनों आप फूले फूले से डोलने लगे थे । पल्ले बंधी नयी ‘सरकार’ दीवाना करे दे रही थी । रोज नए सपने, रोज रोज नए वादे, रोज नए नए सुख ! एक दिन बोली थी ‘सुनिए जी, हमारा बेटा होगा तो उसका नाम विकास रखियेगा’ । आपने कहा अगर बेटी हुई तो ? ‘तो उसका नाम उन्नति रखियेगा’, वो बोलीं । आप विकास और उन्नति के सपनों में इतने खो गए कि जुड़वां की उम्मीद करने लगे । सरकार मोती होती गयी लेकिन विकास नहीं हुआ । जब भी टेस्ट करवाओ रिपोर्ट नेगेटिव आती रही ।

             सरकार को एक बार यह साफ हो जाये कि वो सुरक्षित स्थिति में आ गयी है तब वह शासन करने लगती है । गरमा गरम रोटी, घर को स्वर्ग बनाने की सपने कब कुम्हला कर सूख गए पता नहीं चला । मौका देख कर एक दिन आपने हिम्मत की और पूछ लिया कि ‘सरकार, कभी तुमने कहा था - ‘स्वामी-प्राणनाथ, तुम आगे मैं पीछे साथ साथ ! भूल गयीं क्या ?!’ वो बोलीं ‘जुमले थे, जुमलों का क्या ! इन पर ध्यान मत दो । सरकार तुम्हारी है तुम्हारी ही रहेगी, और ये कोई छोटी बात नहीं है । गर्व करों इस बात पर । तुमने चुना है, तुमको ही पालना है, जितना कमाते हो उतना काफी नहीं है मेरे लिए । कुछ पार्ट टाइम भी किया करो ।‘ सकुचाते हुए आपने पूछ लिया –‘और विकास ? ... अभी तक नहीं हुआ !’

            ‘इसके लिए तुम जिम्मेदार हो ।‘ सरकार ने चिढ़ते हुए कहा ।

            इतना सुनते ही कहीं गुलदान सा कुछ गिर कर टूट गया । सरकार ने आदेश दिया – “झाड़ू उठाओ और साफ करो फटाफट, सावधानी से करना, हाथ में किरच न लगे ।“

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सोमवार, 25 जुलाई 2022

हिंदी के टट्टू अंग्रेजी पर लट्टू


 

               चाय की दुकान पर हिंदी वाले सर डी.डी. अनोखे टकरा गए . ज्यादा समय वे यहाँ मौजूद मिलते हैं, जिस किसी का मन होता है टकराने का तो आ कर इनसे टकरा सकता है . उनसे टकराने का अपना मजा है . कुछ लोग हैं जिन्हें आदत पड़ गयी है टकराने की . बड़ा घंटा जैसे एक बार ठोक देने से बहुत देर तक गूंजता रहता है वैसे ही सही टक्कर लग जाये तो ये भी देर तक गूंजते रहते हैं . अनोखे आज भी गूंज रहे हैं – “देखिये भई हिंदी अपनी जगह है और बच्चों का भविष्य अपनी जगह . हिंदी की व्यवस्था हमारे आपके लिए है . आम आदमी हमेशा आम आदमी होता है यानि पोल्ट्री प्रोडक्ट,  ब्रायलर पब्लिक . देश में हर दिन पचास हजार से ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं . हिंदी के भविष्य से उनका भविष्य जुड़ा  हुआ है . लेकिन ऊँचे लोग, ऊँची पसंद, ऊँचे सपने, ऊँचे काम, ऊँचे मुकाम . जो ऊपर से संस्कृत के हिमायती हैं वो भी अन्दर से अंग्रेजी पर लट्टू हैं . देश में शायद ही कोई नेता मिले जिसके बच्चे हिंदी मीडियम में पढ़ रहे हों . वो देश, वो दुनिया अलग है जहाँ बच्चे सिजेरियन से, अपनी पसंद के मुहूर्त में पैदा होते हैं और माँ के पेट में पहला ‘कट’ अंग्रेजी का लगवा कर बाहर आते हैं . और मजे की बात, इस तरह के बच्चे भी आजकल गोरे पैदा होते हैं. गोरे बच्चे जब अंग्रेजी बोलते हैं तो लगता है दो सौ साल की हुकूमत आंगन में उछलकूद कर रही है . बच्चे हों तो एक्सपोर्ट क्वालिटी के हों वरना क्या फायदा ! फर-फर झर-झर अंग्रेजी उसके बाद सीधे अमेरिका.”

                         ये बात हिंदी के व्याख्याता अनोखे कर रहे हैं जो हिंदी नहीं पढ़ने का छठा वेतनमान ले रहे हैं . उनका संकल्प है कि जिस दिन सातवाँ उनके खाते में आएगा तब पढ़ा देंगे . नाम  उजागर नहीं करने की शर्त पर वे कह देते हैं कि – हिंदी भी कोई पढ़ने की चीज है !! जो भाषा गरीब-गुरबों नंग-धडंग बच्चों तक को आती है उसे क्या पढ़ना और क्यों पढ़ना . पढ़ने पढ़ाने की चीज तो अंग्रेजी है जो अंग्रेजी टीचर को भी ठीक से नहीं आती है .” खुद अनोखे जी ने भी बरसों तक ट्राई किया पर नहीं आई . आखिर विश्वविद्यालय ने हिंदी की डिग्री दे कर इनसे पिंड छुड़ाया . अनोखे भी भागती भाषा की लंगोटी भली यह सोच कर हिंदी से लिपट गए लेकिन अंग्रेजी से प्रेम छुपाए नहीं छुपता है . जैसे गाँव कस्बे वाला अपनी रामप्यारी से फेरे ले तो लेता है लेकिन शहर वाली एनी और लिली को नहीं भूलता है .

                  “आप पढ़ाओगे ही नहीं तो फिर हिंदी मजबूत कैसे होगी सर !” एक ने टोक दिया .

                   अनोखे बोले - “हमारे पढ़ाने से क्या होगा यार ! देश दो भागों में बंटता जा रहा है, अमीर-गरीब, हिन्दू –मुसलमान, राष्ट्रवादी-प्रगतिशील, हिंदी वाले -अंग्रेजी वाले ! जब तक ऊँचे तबके में हिंदी नहीं अपनाई जाएगी तब तक मुश्किल बनी रहेगी . लेकिन हो ये रहा है कि जिन बापों ने अंग्रेजी बोलने पर बच्चों की पीठ ठोकी थी वही बड़े हो कर बाप के हिंदी बोलने पर घूरते हैं ! बहू अपने बच्चों को दादा-दादी के पास इसलिए नहीं छोड़ना चाहती है वे उनकी भाषा बिगाड़ देंगे ! तो हिंदी बेल चलेगी कैसे !?”

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मंगलवार, 19 जुलाई 2022

चल कामरेड ... भजन करेंगे


 


                  जिनके बिना कोई बयान पूरा नहीं होता था, जो हर फैसले का जरुरी हिस्सा रहे आज उनका पता नहीं, मिडिया तक नहीं पूछ रहा है कि मर गए या कि जिन्दा हैं . कभी जो जनता ‘लाल-लाल’ करते थकती नहीं थी वो जय गोविंदा जय गोपाल भज रही है !  लाल को कोई माई का लाल देखता तक नहीं, जिसे भी याद दिलाओ, आँखें लाल करता है ! ऐसे घूरता है जैसे औरंगजेब की याद दिला दी हो ! लाल से गोपाल होने का सफ़र किसी चूक का नतीजा है या फिर नतीजे की चूक है कहा नहीं जा सकता है .

                      रूस चीन जबसे व्यापारी हुए ‘लाल से लाला’ हो गए . देश दुनिया में उन्हें कोई पूछता नहीं, घर में लाल वाली इज्जत रही नहीं . सुबह होती है, शाम होती है ; जिंदगी दाढ़ी खुजाते तमाम हो जाती है . अब लाल को लोरी पसंद है, इधर दूध, दही, आटा, ब्रेड तक पर टेक्स लगा है,  लोग शुक्र मना रहे हैं कि सांसें फ्री हैं . खेंच लो जितनी खेंचते बने . खेंचो-फैंको खेंचो-फैंको, भर लो फेफड़े दबा दबा के, जी लो अपनी जिंदगी इससे पहले कि बोतल बंद हवा जरुरी हो जाये .  वजहें  खुल जाती हैं इसलिए हँसने की इजाजत नहीं है, रोने का मन बहुत करता है पर रुलाई फूटती है तो शरम आती है ! लोग ताना मारते हैं कि कामरेड तुम अगर भगवान की शरण में रहे होते तो ये दिन नहीं देखने पड़ते . दल बदल रहे हैं, दिल बदल रहे हैं, सुबह के भूले शाम तक घर लौट रहे हैं, झुण्ड के झुण्ड इधर से उधर हो रहे हैं लेकिन आपको कोई पूछ नहीं रहा है ! जैसे कि हैं ही नहीं ! जैसे कि कभी थे ही नहीं ! टीवी वाले टिड्डीदल बेआवाज लोगों के मुंह में माइक घुसेड घुसेड कर सरकार पर बुलवा लेते हैं लेकिन इनको जैसे राजनीति का रोहिंगिया मान लिया गया है . अव्वल तो कोई नजर नहीं डालता, कभी पड़ जाये तो मुंह फेर लेते हैं !  देश की राजनीति में जो कभी जवाईं साहब का रुतबा रखते थे अब रामू काका की हैसियत भी नहीं रही ! न देखा जा रहा है, न सहा जा रहा है, न कुछ सूझ रहा है और न ही कुछ करने की गुंजाईश दिख रही है . बच्चे हड़ताल शब्द का मतलब पूछ रहे हैं . इधर लगता है जैसे बेरोजगार अपनी बेरोजगारी को इंज्वाय कर रहा है और गरीब को गरीबी में मजा आ रहा है ! घर जल रहे हैं ! ... रौशनी हो रही है ! कभी डायन कही गयी महंगाई अब उद्योग घरानों की बिटिया और मालिकों की लाडली बहु है . वह घर आँगन में ठुमकती फिरेगी, कोई कुछ नहीं कहेगा .

                   कामरेड गुनगुना रहा है – “रहते थे कभी जिनके दिल में हम कभी जान से भी प्यारों की तरह ; बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनाहगारों की तरह .”

                    दिशाएं बोल उठती हैं, दास केपिटल को भूल बन्दे, सुलगते बैनरों को भोंगली बना . भूख, गरीबी, शोषण को भ्रम बताने की कोशिश कर, जिन्दादिली ही जिंदगी है घोषित कर . आगे बढ़ना है तो ले यू टर्न, पीछे मुड़, गर्व कर . इतिहास नया लिख, नयी सड़क चल . जो बीत गया कल, वो गया . आने वाले कल में जगह बना . संविधान से दूरी रख, विधि के विधान पर विश्वास जमा . अब जो करेंगे हुजूर करेंगे, सजन करेंगे ; चल कामरेड, अपन भजन करेंगे .

गुरुवार, 23 जून 2022

झूठ का सच


 

               

       माँ कसम चारों तरफ अमन चैन है . लगता है प्रभु आँखें बंद किये बांसुरी बजा रहे हैं और प्राणी मंत्रमुग्ध फुर्सत में बैठे हैं . आम आदमी रोने की बात पर भी हँस रहा है . लोग उछल उछल कर फटाफट नए पुराने टेक्स दे रहे हैं . संपत्तियों के ऊँचे दाम मिल रहे हैं. बैंकें पकड़ पकड़ कर बिनदेखे भरभर-के कर्ज दे रही हैं . सायकिल की हैसियत वाले कारों से नीचे पाँव नहीं रख रहे हैं. पेट्रोल पानी की तरह छलक रहा है . पांच छः फुट रस्सी के सहारे लोग उस स्वर्ग में पहुँचे  जा रहे हैं जहाँ रावण सीढी बना कर पहुँचने की मंशा रखता था . मुआवजे की राशि करोड़ से ऊपर पहुँच कर मोहक होने लगी है . लाभार्थियों को बुजुर्गों में झुर्रियों के साथ सम्भावना की लकीरें भी दिखने लगी हैं . गैस सिलेंडर को नए जंवाई की तरह हर बार पहले से ज्यादा मुँह दिखाई मिल रही है . जो दर्द समझे गए अब दवा बनते जा रहे हैं . ... और इधर कुछ नामुराद, मनहूस, शहरी किस्म के जाहिल दीदे बंद किये बैठे  हैं !   ऐसे ही एक अभागे का इलाज होना है . “इनकी आँखें समस्या हो गयी हैं बैधराज जी . जाँच कर बताइए क्या करना है ? इलाज हम करेंगे .” उन्होंने एक अदद मुंडी सामने करते हुए बैध जी से कहा .

              पूछने पर मुंडी ने बताया - “आँखों की समस्या है वैधराज जी . सब साफ साफ दिखने लगा है . जो चीजें, जो बातें लोग छुपाना चाहते हैं वो भी दिखने लगती हैं . झूठ के पीछे का सच झूठ से पहले सामने आ जाता है . कोई साधू का स्वांग रचता है तो शैतान नजर आता है . नौकर चाकर सेवकों को देख कर डर लगता है . पुलिस जनसेवक कहते हुए मुस्कराती है तो खतरनाक लगती है . कुछ कीजिये वैधराज जी कि झूठ सच की तरह दिखे और सच तो दिखना ही बंद हो जाये .” उसने हाथ जोड़ कर वैधराज दयाराम ‘काव्यप्रेमी’ को अपना रोग बताया .

             इनदिनों माहौल बढ़िया है . लोगों में वैधराज जी की साख है कि सभी तरह की पैथी से इलाज करवा चुके निराश रोगी गैरंटी के साथ ठीक किये जाते हैं .  नस नस पर उनकी पकड़ है .  एक बार नब्ज पर हाथ रखते हैं तो अन्दर बैठा रोग काँप जाता है . आधा रोग तो वे अपनी बातों से ही ठीक कर देते हैं, बाकि आधे के लिए पुड़िया देते हैं . कुछ देर आँख बंद कर विचार करने के बाद बोले – “संसार में सच दुःख का कारण है . इसलिए हर आदमी को सच से बचना चाहिए . झूठ में जो आनंद है वो दरअसल स्वर्ग का आनंद है . शिक्षा, समझ और ज्ञान स्वर्ग का आनंद लेने के लिए व्यक्ति को सक्षम बनाते हैं . कुछ लोग शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं और सच देखने की कोशिश करते हैं . यह अच्छी बात नहीं है . खूब टीवी देखा करो, अख़बार भी पढ़ा करो, साधू संतों के प्रवचन सुना करो, योग भी करा करो . धीरे धीरे सच दिखना बंद हो जायेगा . सच बहुत ढीठ किस्म का रोग है . किसी को इसकी आदत पड़ जाये तो उसे ठीक करना बहुत कठिन होता है . समाज में नशामुक्ति केन्द्रों से अधिक सत्यमुक्ति केन्द्रों की आवश्यकता है किन्तु समाजसेवी संस्थाओं का ध्यान इस और नहीं है . सरकारें अपनी तरफ से पूरे प्रयास करती हैं लेकिन बहुत से काम होते हैं जो बिना जनसहयोग के अपेक्षित परिणाम नहीं देते हैं . खैर ... विपक्षी दलों के बहकावे में तो नहीं रहते हो ?” बैध जी ने आँखों में आँखे डालते हुए पूछा .

           “हाँ, उनकी बातें सुनता तो हूँ . वे ऑंखें खोलने और खुली रखने को कहते हैं .”

           “तुम्हारे रोग का यह भी एक कारण है . जनता की सच्ची सेवा तो यह है कि उस तक सुख पहुँचाया जाये. बल्कि बढ़ा चढ़ा कर पहुँचाया जाये . विद्वान् लोग कहा गए हैं कि वो झूठ सच से बड़ा होता है जो व्यक्ति को दुःख से बचाता है . इस समय सारा वातावरण जनता को दुःख से बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है . सबको इसका लाभ लेना चाहिए ... अब कैसा लग रहा ? ...सुखद ? पहले से ठीक है ना ?” वैधराज जी ने पूछा .

            “जी हाँ, पहले से अच्छा लग रहा है . एक उम्मीद सी जाग रही है .”

             “ये कुछ पुड़िया हैं, इन्हें सुबह दूध से, दोपहर को पानी से, और शाम को शहद से लेना . और यह ध्यान रखो कि ईश्वर ने ऑंखें बंद रखने के लिए भी दी हैं . आँखें बंद रखने का अभ्यास नियमित करो . बंद आँखों से ईश्वर के दर्शन होते हैं . ईश्वर से बड़ा कोई सच है ? नहीं ना ? तो जहाँ तक संभव हो आँखें बंद रखो, भक्त बनो. ”

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शुक्रवार, 17 जून 2022

ड्राइंग रूम में कबीर


 



         “आइये बैठिये, ... और .. हाँ, इनसे मिलिए, ग्रेट पोएट कबीर, आवर फॅमिली मेंबर नाव” . सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने किताब के बारे में बताया .

          गौर से देखा, वाकई कबीर ही हैं . सोफे पर खुले हुए, कुछ बिखरे हुए से एसी में पड़े हैं . वे समझ गए, सफाई देते हुए बोले, - “बच्चे बड़े शैतान हैं, खेल रहे थे . इनके लिए कबीर की पिक्चर बुक भी है लेकिन फाड़ फ़ूड दी होगी .”

               “हुसैन नहीं दिख रहे !?” मैंने पूछा . पिछली बार आया था तो उस दीवार पर टंगे थे . तब भी उन्होंने कहा था कि – ‘ दिस इस हुसैन ... द ग्रेट आर्टिस्ट,  अवर फॅमिली मेंबर नाव. यू नो हमारे पास काफी सारे विडिओ और फोटोग्राफ्स भी हैं इनके.’

             इस वक्त अपना कहा शायद वे भूल गए थे, बोले – “हुसैन !! वो क्या है अभी जरा माहौल ठीक नहीं है . ... यू नो ... सोसाइटी है ... सब देखना समझना पड़ता है .  स्टोर रूम में हैं  ... अभी तो कबीर हैं ना, ... नो ऑब्जेक्शन के साथ .”

             “लेकिन कबीर में तो बहुत डांट फटकार और कान खिंचाई है ! ... आप बड़े बिजनेसमेन ! आपको कैसे सूट कर गए ?”

                “देखिये दो बातें हैं, एक तो आजकल पढ़ता ही कौन है ! ऐसे में किसको पता कि कबीर ने फटकारा भी है .  ब्राण्ड वेल्यू होती है हर चीज की . यू नो ब्राण्ड का जमाना है . सोसायटी अब चड्डी बनियान भी ब्रांडेड पसंद करती है . दूसरी बात खुद कबीर ने भी कहा है कि ‘निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय’ तो हमने ‘ड्राइंगरूम शोकेस में सजाय’ कर लिया है” .

               “फिर भी आपको लगता तो होगा कि आपका कामकाज और कबीर में टकराहट हो रही है . वे संत हैं, कहते हैं  ‘कबीर इस संसार का झूठा माया मोह‘ . कैसे बचाते हैं इस टकराहट से अपने आप को ?”

              “टकराहट कैसी !! हमने तो अपने दफ्तर में लिखवा रखा है, ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल में परलय होयेगा, बहुरि करेगा कब’ . इससे मेसेज जाता है कि कबीर ने फेक्ट्री वर्कर्स को फटाफट काम करने के लिए कहा है . इसके आलावा एक और बढ़िया बिजनेस टिप है उनकी – ‘ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय; औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होए’ . इस फार्मूले से क्लाइंट को डील करो तो बिजनेस बढ़ता है . आदमी कोई बुरा नहीं होता  है उसको वापरना आना चाहिए .”

              “फिर भी धंधे में देना-लेना, ऊंच-नीच, अच्छा-बुरा सब करना पड़ता है . कबीर इनके पक्ष में नहीं हैं . इसलिए कहीं न कहीं चुभते होंगे .”

             “जी नहीं, ... उन्होंने कहा है –‘दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ; जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय ‘. इसका मतलब है कि फंसने पर तो सब मुट्ठी गरम करते हैं बिना फंसे जो मुट्ठी नरम करता रहे तो मुट्ठी गरम करने की नौबत ही नहीं आये . दरअसल आप जैसे कच्चे पक्के लोगों ने कबीर को किताबों से बाहर निकलने ही नहीं दिया . उन्हें तो बाज़ार में होना चाहिए था . सुना होगा, ‘कबीर खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर; न कहू से दोस्ती न कहू से बैर’. व्यापारी का न कोई दोस्त होता है न बैरी, बस  वो होता है और ग्राहक होता . –‘ जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाई ; जब गुन को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई ‘. यानी ग्राहक पटाना सबसे बड़ी बात है .” वे बोले .

               “बाज़ार में कुछ वसूली वाले भी तो होते हैं, उनका क्या ? भाइयों को हप्ता देना पड़ता होगा, पुलिस को महीना, किसी को सालाना ! पार्टियों को भी चंदा-वंदा देना पड़ता होगा ?”

                 “हाँ देते है, ... ‘चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय ; दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ‘. यहाँ  क़ानूनी और गैर क़ानूनी दोनों तरह के पाट हैं. सब देते हैं, सबको देते हैं, कोई साबुत नहीं बचता है . ”

               “लगता है कबीर को आपने अपना वकील बना लिया है !”

               “ऐसा नहीं है,  कबीर में सब हमारे काम का तो है नहीं . उन्होंने ही कहा है ‘सार सार को गहि लेय, थोथा देय उड़ाय’ . तो इसमें बुरे क्या है ?”

                “ईश्वर से डर तो लगता ही होगा ?” उठते हुए हमने सवाल किया .

                 “ईश्वर से किसीका आमना सामना कहाँ होता है . सब भ्रम है . वे कह गए हैं – ‘जब मैं था हरि नहीं, अब हरि है मैं नहीं’ . आप अपना बनाओगे तभी कबीर अपने लगेंगे . ‘सैन बैन समझे नहीं, तासों कछु न कैन’, यानी आदमी को इशारा समझना चाहिए, जो नहीं समझे उससे कुछ नहीं कहना.”

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मंगलवार, 14 जून 2022

शांतिपूर्वक तमतमाता देश


 

बयान करोना की तरह फैला . आठ दस दिन में एक के बाद एक कई मुल्क चपेट में आते  गए . संक्रमितों में आरंभिक लक्षण तेजी से उभरे . पता चला कि दिमाग में गरमी और बुखार के चलते हर चपेटित तप रहा है . आँखों के आगे काले के साथ लाल भी छाने लगता है . जिनके पास दिमाग है उनकी नसें चटकने लगी हैं . मन चीखने चिल्लाने का होता है लेकिन मौका नहीं मिल रहा है . रूस और यूक्रेन का युद्ध क्या हुआ तमाम मुल्क सदमें और शांति की लपेट में आ कर दुबक गए लगते हैं . लग रहा है सबने शांति को छाती से बांध कर अपना हिस्सा बना लिया  है . बावजूद इसके लोग तमतमा रहे हैं लेकिन शांतिपूर्वक .

इधर सोशल मिडिया में भारी तमतमाहट मची हुई है . डेढ़-दो जीबी का कोटा है तो जिद भी है रात होने से पहले खर्च करने की . लगता है फोन में लगे रहना ही सच्ची देश सेवा है . दिक्कत ये हैं कि लोगों की सोच नहीं बदल रही है . सोच बदले तो देश आगे बढे . सोचना भी सही दिशा में होना चाहिए . वरना रिस्क ये है कि सोचें इधर वाले और आगे बढ़ जाएँ उधर वाले . दीवारों के कान होते ही थे अब पत्थरों के पांव भी होने लगे हैं . जोखिम हर काम में होता है. देशभक्त होने के नाते मुझे भी लगता है कि मेरे आलावा सब सो रहे हैं . और अगर लोग सोते रहे तो गजब हो जाने वाला है . इस समय सोये हुओ को जगाना एक तरह की क्रांति है . काम असान भी बहुत हो गया है, बस एक बटन दबाया और फट से तमाम लोगों को जगा दिया . बैटरी चार्ज हो और डेढ़ जीबी डाटा हो तो संडास में बैठे बैठे भी जनजागरण किया जा सकता है . देशभक्ति के इससे अच्छे दिन और क्या हो सकते हैं !  

बलदेव बादलवंशी जी कई ग्रुप्स में जुड़े हुए हैं. उनका सारा दिन बरसते हुए बीतता है . शुरू शुरू में कुछ समय शांत भी रहते थे . लेकिन बाद में जैसे जैसे स्कोप दिखा फुल टाइम तमतमाने लगे . सुबह बिस्तर बाद में छोड़ते हैं, तमतमाते पहले हैं . डाक्टर ने कहा इतना तमतमाओगे तो किसी दिन भी लम्बे निकल जाओगे . कोविड काल के बाद से शोकसभा का चलन भी कम हो गया है . महंगाई इतनी ज्यादा है कि अख़बार में फोटो वाला शोक विज्ञापन भी नहीं देते हैं लोग . यह समय लम्बे निकल लेने के लिए ठीक नहीं है . इसलिए सोच समझ के शांति से तमतमाया करो . कठिन काम नहीं है . किसी कवि ने कहा है ‘करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजन;  रसरी आवत जात के सिल पर पड़त निसान ‘ . कोशिश करोगे तो सिख जाओगे, यह भी अनुलोम विलोम जैसा ही है .

बलदेव बदलवंशी जी टीवी, बहस, समाचार और सोशल मिडिया सब पर भिड़े हुए हैं और बीपी की गोली खा खा कर तमतमा रहे हैं . शांतिपूर्वक तमतमाने की कला को साध लिया है उन्होंने . किसीने दंगे का विडिओ भेजा, देखा लोग नारे लगा रहे हैं, पत्थर फैंक रहे हैं, चट से दो घूंट ठंडा पानी पिया  और पट से तमतमा लिए .  किसी ने भड़काऊ भाषण दिया, नेताओं को गरियाया, कोसा, चुनौतियाँ दी, देखा और मुँह से दो चार गाली निकल कर शांतिपूर्वक तमतमा लिए . सारा देश शांतिपूर्वक तमतमा रहा है, उन्होंने मुझे भी तमतमाने के लिए कहा है .उनके कहे से मुख्यधारा में आने के लिए मैं भी अब ज्यादा पानी पीने लगा हूँ .

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गुरुवार, 9 जून 2022

आग उगलखोर



                   वे दोनों एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहे हैं . कुछ खास अवसरों पर जहर भी उगलने से उन्होंने परहेज नहीं किया है . जनता के सामने जब वे दूसरे पर कुपित हो रहे होते हैं तो लोगों को लगता है अंगार पंडवानी गायी जा रही है . लोकतंत्र का मजा ये हैं कि जब भी चुनाव टाईप खास माहौल बनता है आग और जहर उगलने वाले एक्सपर्ट टिड्डियों की तरह प्रकट हो जाते हैं . इंतजार होता है कि कब आचार संहिता लगे और कब एक दूसरे के चरित्र की चिन्दियाँ करने में लग पड़ें . कोई चोर कहे, कोई लुटेरा कहे, धोखेबाज़ या झूठा कहे, कोई दिक्कत नहीं है . नेतागिरी की तो डरना क्या ! मतदान तक नेताओं का कहना कहना नहीं है, और सुनना भी सुनना नहीं है . समाज सेवा के लिए कोई सर पर टोपी नहीं रखता है . सब जानते हैं कि राजनीति और भ्रष्टाचार एक ही चीज है . फर्क टेकनीकल है, जब तक पकड़े नहीं जाओ तब तक राजनीति है, जिस दिन पकड़े गए तो भ्रष्टाचार . मिडिया भी मनी और मजे के लिए दोनों के बयान बारी बारी से चलाता है और बेगराउंड में दो सांडों को लड़ते हुए भी दिखाता है . इससे जनता में सन्देश यह जाता है कि राजनीति को गंभीरता से लेने की जरुरत नहीं है, सांड कोई सा भी हो अपनी वाली पे आ जायेगा तो खेत आपका ही उजड़ना है . बावजूद इसके लोगों को लगता है कि अगर ये दोनों आग उगलखोर किसी दिन आमने सामने पड़ गए तो जूता ले कर भिड़ जायेंगे . और फिर इनके गुंडे यानी समर्थक एक दूसरे का लाठी डंडा सम्मान करेंगे इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है . आपसी लेन देन का सुसंस्कृत माहौल बनेगा, देश आगे बढेगा .

                      इस बीच एक मंत्री के बेटे के विवाह समारोह में दोनों आग उगलखोर आमने सामने हो गए . जैसे ही नजर मिली दोनों एक दूसरे की तरफ लपके . लोगों की साँस थमने का इरादा कर ही रही थीं कि ये क्या !! दोनों गले लग गए, जैसे राजनीति में मेले में बरसों पहले पिछड़े हुए भाई हों ! सबसे पहले हालचाल की ले-दे हुई फिर परिधान प्रशंसा के साथ कन्धा सहलाई . इसके बाद घर परिवार में सब कुशल-मंगल ली गयी और अंत में ‘माता जी को चरणस्पर्श कहना’ से मुलाकात किनारे लगी . जिन्होंने देखा वे समझ नहीं पाए कि क्या देखा ! जाने ये सच है या भ्रम या फिर वो जो होता रहा है सच था या भ्रम !! सोशल मिडिया और टीवी पर यह दृश्य फ़ौरन से पेश्तर दौड़ गया और फिर इस फोन से उस फोन दौड़ता ही रहा . दूसरे दिन अख़बारों में भी राम-भारत मिलाप के फोटो छपे . पक्षधारों ने साफ किया कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या कोई स्थाई शत्रु नहीं होता है . सच तो ये है कि सब मित्र होते हैं . लोकतंत्र की आदर्श परंपरा नूरा कुश्ती से जिन्दा है . भाईचारा जनता में हो न हो, राजनीति के गलियारों में खूब फल फूल रही है . और यह छोटी बात नहीं है .

 

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सोमवार, 30 मई 2022

उड़ी उड़ी जाये बकरी


 

गरमी का मौसम है, गैलरी में कुछ बर्तन रखे हैं मिट्टी के, पानी भर कर . दिनभर चिड़िया पानी पीने आती हैं , नहाती भी हैं . उन्हें ऐसा करते देखना अच्छा लगता है . अभी एक  दिन जब चिड़ियों को देख रहा था कि आसमान में एक बकरी उड़ती दिखाई दी . विश्वास नहीं हुआ कि जो देख रहा हूँ वो सच है ! बकरी कैसे उड़ सकती है भला ! उड़े तो बकरा उड़े, हक़ है उसका, उड़ सकता है . लेकिन बकरी का उड़ना किसे बर्दाश्त हो सकेगा . हो सकता है कि ये बकरा हो . शिनाख्त करने की कोशिश की ही थी कि वह अचानक गैलारी में उतर आई और पानी पी कर फिर उड़ गयी . यक़ीनन बकरी ही थी .

आप सोचये, यह घटना आपकी आँखों के सामने घटित हुई होती तो ?! काफी देर तक कुछ सूझा नहीं . मन स्थिर हुआ तो दौड़ कर किसी को बता देने की इच्छा से एक चिहुंक सी उठी . लेकिन रुक गया, लोग पागल समझेंगे . फिर सोचा आँखों देखा सच तो सबको मानना ही पड़ेगा . लोग अभी इतने मूर्ख नहीं हो पाए हैं कि सच की तरफ से मुंह फेर कर खड़े हो जाएँ . फिर ये मामला महंगाई बेरोजगारी जैसा भी नहीं है कि दुखता सबको है पर रोता कोई नहीं .  जिक्र उड़ती हुई बकरी का है . त्रिवेदी जी को बताया तो उन्होंने मजाक उड़ाया कि ध्यान से देख लो यार, गैलरी में अंडे भी दे गयी होगी . जब उड़ती है अंडे भी जरुर देती होगी . बकरी के अंडे जब दिखाओगे तो मिडिया हाथोहाथ लेगा और फ्रंट पेज पर छ्पोगे . शुक्ला जी डिस्कवरी विशेषज्ञ हैं बोले बड़ी चीलें अपने पंजों में बकरी को ले कर उड़ती हैं . आपने ध्यान से देखा होता तो पता चल जाता कि ये बकरी भी जरुर किसी चील के पंजे में है . लेकिन आपका क्या दोष, जमाना भी बकरी देखता है चील नहीं . चौहान साहब चौपाटी चेम्पियन हैं . उनकी शंका ये कि बकरी जैसा गैस वाला गुब्बारा हो सकता है . हवा में उड़ता चला आया होगा और आपको लगा होगा कि बकरी है .  

हो सकता है और लोगों ने भी बकरी को उड़ते देखा हो लेकिन मजाक बन जाने के डर से चुप्पी लगाये हों . लेकिन ज्यादातर ने नहीं देखा होगा, यानी उन्हीं की बात मानी जाएगी . बहुमत का जमाना है . सत्य बहुमत से ही हारता है . बहुमत के पास जीत होती है, सत्य भी हो यह जरुरी नहीं है .

दूसरे दिन खुद बकरी का बयान आया . उसने कहा कि मेरे प्यारे देशवासियों, बकरियां अब पंख धारण कर रही हैं . बकरियां भी उड़ेंगी खुले आकाश में . उनके पर क़तर दिए जाते थे . लेकिन अब वो जमाना गया . जो बकरियों को सिर्फ शरीर या गोश्त मानते आ रहे थे उन्हें अपनी धारणा बदलनी होगी .  इस सच को जितनी जल्दी स्वीकार करेंगे उतना अच्छा होगा .

देर नहीं हुई और जवाबी बयान और प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गयी . किसी ने कहा कि बकरियों को परदे में नहीं रखने का परिणाम है ये . अब हर जगह उड़ती फिरेंगी . आज एक ने आसमान देख लिया है तो आगे और भी हैं जो देखेंगी . अगर बकरियां असमान में उड़ने लगेंगीं तो असमान की हैसियत क्या रह जाएगी ! बकरियां बाड़े में बंद ही अच्छी लगती हैं . बकरियों का काम बच्चे पैदा करना और मैं-मैं  करते रहना है, वगैरह .

अभी यह सब चल ही रहा था कि ब्रेकिंग न्यूज चमकी – ‘बकरियों के हैसले बुलंद,  शीघ्र ही चाँद पर जाएँगी’ .

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