मंगलवार, 31 जनवरी 2023

करो प्रदर्शन म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार






 

                तय था कि हाथी जिसके गले में माला डाल देगा वही रतनद्वीप का अगला शिक्षा मंत्री होगा । हाथी ने सड़क किनारे बैठी हुई कुतिया के गले में माला डाल दी । हाथी को पता था कि परसाई ने शिक्षा को सड़क किनारे पड़ी कुतिया बताया था जिसे हर कोई लतिया कर चला जाता है । कुतिया रतनद्वीप की शिक्षा मंत्री हो गयी । रतनद्वीप सरकार यों भी दुम पर ज्यादा गौर करती है योग्यता पर कम । लेकिन लात मारने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ना था । उनकी टांगे फड़क रही हैं । जो शिक्षा के बारे में नहीं जानते हैं और नहीं जानते हैं कि वे नहीं जानते हैं, उन्होंने शिक्षा मंत्री के गले में सबसे पहले माला पहनाई और उसे अपने प्रभाव में लिया । दूसरे दिन अख़बार में खबर लगी कि ‘वे’ व्यवस्था का प्रतीक तो पहले से ही थीं अब जिम्मेदारी भी मिल गयी है ।

               विभाग में सबसे पहले भाषा को ले कर उठापटक शुरू हुई । मंत्रालयों में उठापटक को चिंतन कहने की आदर्श परंपरा है । रतनद्वीप में अफसरों की भाषा और आम नागरिक की भाषा अलग अलग है । लोग भाषा के बल पर कट मरते हुए आगे निकल जाते हैं । अंग्रेजी फर्राने वाला वकील देसी जज को हलुवा समझते हुए खा जाता है । बहस के दौरान जज मुद्दों से कम भाषा से अधिक जूझता है । शिक्षा व्यवस्था पर सबसे पहले यही सवाल आया कि भाषा का ये हथियार कैसे जब्त किया जाये । क्योंकि मंत्रालय में भी बड़ी दिक्कत होती है । अफसर भाषा के बल पर अपनी सरकार चलाते हैं । मंत्री बेचारा मात्र सरकारी लेटरपेड बन कर रह जाता है । तो सुझाव आया कि सरकार हिंदी में चले । हालाँकि सवाल ये उछले कि क्या नेताओं को सही हिंदी आती है । जवाब गया कि अफसरों को हिंदी में समझाने लायक तो आती है । सरकार के लिए इतना ही काफी था । अब सारे जरुरी काम हिंदी में होंगे । अंग्रेजी के अख़बार भी हिंदी में छपेंगे । शिक्षा मंत्री ने फरमान जारी किया कि स्कूल कालेजों में पढ़ाई हिंदी में होगी । जो ज्ञान-विज्ञान अंग्रेजी में है उसे फ़िलहाल देशभक्त दीमकों के लिए अलमारियों के हवाले करें ।

                   लोकतान्त्रिक व्यवस्था में युद्ध म्यान से लड़े जाते हैं तलवार से नहीं । कबीर होते तो उन्हें कहना पड़ता ‘प्रदर्शन करो म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार’ । जनता शत्रु नहीं है, यहाँ तलवार का क्या काम । अशिक्षा और गरीबी दो अनमोल रतन हैं रतनद्वीप के । अशिक्षा से गरीबी लिंक है, गरीबी से वोट और वोट से सत्ता । जुमलों में बोल भले ही दें कि हटायेंगे लेकिन जिस डाली पर बैठते हैं उसे कौन हटाता है भला ! अशिक्षा तो डर का घर भी है । जो डर गया वो सरकार का हो गया । कुछ थे जो कभी गरीबों के हक़ की बात किया करते थे । पता नहीं किस नागाभूमि  में जा बसे हैं । वो भी थे जो बाबासाहब  की बातों पर गौर किया करते थे । उनके शिष्य अब बाबाजीओं को झूमते सुन रहे हैं । अन्धविश्वासी और भक्त यूँ ही नहीं हो जाते हैं लोग । चमत्कारों के बिना यह संभव नहीं है । और सत्ता के समर्थन से बड़ा कोई चमत्कार क्या हो सकता है ? ज्ञान-विज्ञान और बाबाओं के बीच सरकार म्यान ले कर खड़ी है । घोषणाओं-भाषणों की म्यान, उद्घाटनों-शिलान्यासों की म्यान, नारों-विज्ञापनों की म्यान । इन हवाओं में म्यानों से पूरा युद्ध लड़ा जाएगा । आप क्या कहेंगे ! क्या कह सकते हैं ! आपको कहना पड़ेगा – ‘विजयी भव’ ।            

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

नेचरल-काल है, कभी भी आ सकता है


 




              अभी तक ये बकवास खबर मिडिया में चल रही है कि एक सभ्य हवाई-यात्री ने चलते विमान में एक इन्सान पर पेशाब कर दिया ! सोचने वाली बात है कि कोई अपनी इच्छा से, जानबूझ के तो करता नहीं । हो गयी तो हो गयी, नेचरल काल है जी कभी भी आ सकता है । इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ! शराब पी कर किसी को होश रह जाये तो काहे की शराब ! एं !? शराब अमीरों का शौक है । चार पैग के बाद तो जमीन पर खड़ा आदमी उड़ने लगता है । जो आदमी आलरेडी उड़ रहा हो उसका तो कहना ही क्या ! डबल उड़ान यानी डबल इंजन । बोले तो पवार शहंशाई, मन आएगा वहां करेगा । पोल्टिक्स और उड़न में कोई खास अंतर नहीं है । नीचे देखो तो सब छोटे लगते हैं, चींटियों के समान । क्या आदमी क्या औरत । समुद्र भी घर का टब नजर आता है । कानून का डर जमीन पर होता है । जो जमीन पर है ही नहीं उसके लिए कौन सा नियम-कानून और कैसी नैतिकता । अभी सुना होगा कि रुपया कमजोर नहीं हुआ, डॉलर मजबूत हुआ । मान लिया था ना सबने ? इसी तरह किसी कुत्ते ने खम्बे पर नहीं मूता, खम्बा ही धार के बीच में आ गया, मान लो । ऐसे में समझदार लेब्राडोर क्या करे बेचारा । समझ रहे हैं ना आप ? कोई सीरियस मैटर नहीं है । बड़े बड़े लोगों के जीवन में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं ।

                        भले आदमियों का भी पक्ष देखना चाहिए मिडिया को । एक तो बेचारा महंगा टिकिट ले कर यात्रा कर रहा था । कुछ पैसा वसूल हो जाये इसलिए पीना पड़ी । मूल रूप से तो वह देश का गौरव बढ़ाने की कोशिश में था कि ये घटना हो गयी । देखिये साहब नागरिक अधिकारों का यह मतलब तो नहीं कि शरीफ आदमी की विवशता के बीच कोई आ जाये और हफ़्तों तक सुर्ख़ियों में बना रहे ! देश इस समय आत्मनिर्भरता के प्रति गंभीर है । जो जहाँ है वहीँ से आत्मनिर्भर हो लेने का अधिकारी है । बस या ट्रेन में हो या फिर प्लेन में ही क्यों न हो उसकी निष्ठा में कोई कमी नहीं आना चाहिए । आपदा में अवसर का मन्त्र है हमारे पास तो फिर सोचना क्या ! बड़े लोगों की बगलगीरी कुछ सावधानियों की मांग करती है । अगले को चाहिए था कि रेनकोट पहन कर बैठे । तरल पदार्थ किसी के भी ऊपर गिरेगा तो कपड़े गीले होंगे ही । हाँ शिकायत यह हो सकती है कि गीले कपड़ों में सफर कैसे करे कोई ! तब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि यात्री को सूखे कपड़े तुरंत मुहैया करवाए । कोर्ट को भी इसका संज्ञान लेना चाहिए और निर्देश देना चाहिए कि हर टिकिट पर वैधानिक चेतावनी लिखवाये कि ‘पड़ौसी के किये पर विमान और शराब कंपनी जिम्मेदारी नहीं होगी’ ।

                            सब जानते हैं ग्राहक भगवान होता है । हवा में उड़ने वाले यानी वायु भ्रमण करने वाले तो होते ही हैं, आज से नहीं अनंतकाल से । रावण साहब को देखिये, सीताहरण के लिए विमान ले कर आये थे । तो जोर जबरदस्ती, अनैतिकता, मनमर्जी कोई नयी बात नहीं है । हाँ, इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि विमान में दारू परोसने से पहले प्रभारी अधिकारी यह सुनिश्चित कर ले कि ग्राहक देव ने डायपर पहना है या नहीं । नहीं पहना हो तो पहले पहना दे । इसके साथ यह भी ध्यान रखे कि ब्लेक डॉग नहीं दे कोई कुत्ता छाप दे ताकि वह भला आदमी पी कर बेहोश पड़ा रहे । जो भी सम्बंधित हो आगे से ध्यान रखना आप लोग । तो गलती आपकी है, चलो सॉरी बोलो फटाफट ।

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शनिवार, 7 जनवरी 2023

इंजिनियर भुट्टे वाला






 


               जो मीठा बोलता है वही मिट्ठू होता है । कहते हैं आदमी नहीं चलता है उसके बोल चलते हैं । मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है । लेकिन अपने लोकतंत्र में ऐसा नहीं है । नेता मीठा भले ही नहीं बोले झूठ बोलने में माहिर होना चाहिए । यह बात अलग है कि झूठ अक्सर मीठा होता है । लेकिन अति सब जगह वर्जित है । झूठ के मामले में भी । शुरुवाती झूठ रंक को राजा बना सकता है लेकिन लगातार झूठ राजा को रंक बना देता है । यह सच है इसलिए यहाँ लिखा जा रहा है किसी होर्डिंग पर नहीं । होर्डिंग पर प्रायः झूठ ही जंचता है । जैसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा झूठ है ‘युवा हृदय-सम्राट’ । अगला न युवा होता है न सम्राट । मिडिया पूछे तो कहता है मैं सेवक हूँ ! असल में वो सेवक भी नहीं होता है । ये झूठ लोकतंत्र की देन है । इसमें असल खेल चमचे कर जाते हैं । उन्हें मालूम है कि भियाजी को ऊपर उठाने के लिए कितने फुग्गे लगते हैं ।

              एक सम्राट छाप कटआउट के नीचे भुट्टे वाला खड़ा है । उसके गले में कार्ड लटका है, परिचय-पत्र की तरह । उस पर लिखा है इंजिनियर भुट्टे वाला । उसके भुट्टों में कुछ जरासे छिले हुए भी हैं । अन्दर से पीले सफ़ेद दाने चमक रहे हैं ।  लग रहा है जैसे भुट्टे दांत दिखाते हंस रहे हैं । बोला – “ले लीजिये सर, बहुत मीठा है । मुंह में घुल जाएगी इसकी मिठास ।“

           “भुट्टा कहाँ इतना मीठा होता है ! सच भी बोला करो जरा ।“

           “झूठ बोल सकते तो क्या भुट्टा बेचते सर  ! कटआउट न हो गए होते । ये देखिये सच, ढो रहे हैं ।“ उसने गले में लटका कार्ड दिखा दिया ।

          “इंजीनियर होकर भुट्टा क्यों बेच रहे हो !?”

           “मजा आ रहा है इसलिए बेच रहे हैं भुट्टा । दुनिया ग्लोबल बाजार है । सब बेचने में लगे हैं । मौका है, आप भी कुछ बेच लो ।“  

           “बाजार में सब बेचने ही निकलते हैं क्या ? मेरे पास बेचने को कुछ भी नहीं है ।“

          “कुछ नहीं है तो ये कटआउट बेच दो । पंछी बीट कर रहे हैं उसके ऊपर ।“

           “ये मेरा नहीं है ... मतलब मैं इसका मालिक नहीं हूँ । न इसे मैंने बनाया है, फिर इसे कैसे बेच सकता हूँ !!”

           “जब तक कोई आपत्ति नहीं लेता आप तो बेच के निकल लो फटाफट झोला दबाके ।“

           “राम नाम जपना, पराया माल अपना ।  ये अपना काम नहीं है इंजीनियर साहब । आखिर ऊपर जा कर भगवान को मुंह दिखाना है ।“

          “ऊपर अब कोई नहीं है । भगवान नीचे आ गए हैं ।“

           “छोड़ो इंजीनियर साहब, आप तो भुट्टा देदो ।“

            “ले जाइये, अमेरिकन है ।“

            “देसी नहीं है ! वो बालों वाला । देसी ... अच्छा होता है ।“

            “जब से नेता दाढ़ी वाले हुए लोग भुट्टा क्लीन शेव्ड पसंद करने लगे हैं । ... किस के काम बढ़िया आता है, ये मीठा भी है । “

            “हम लोग पुराने ज़माने के हैं भाई । हर चीज देसी पसंद करते रहे हैं । आप नए लोग, नया जमाना । हर बात में अमेरिका से नीचे कुछ देखते सोचते नहीं हो ।“

            “तब तो जरुर ले जाइये । आखिर वक्त में ही सही, कुछ तो अमेरिका हो जाएगा जीवन में ।“ कहते हुए उसने दो भुट्टे पकड़ा दिए । बोला –“ अकेले खाइयेगा ? आंटी जी को नहीं दीजियेगा ? आपके लिए एक के साथ एक फ्री । ”

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गुरुवार, 5 जनवरी 2023

बिल्लोरानी ... कहो तो अभी जान ले लूँ !


 



               जंग और मोहब्बत में सब जायज है बिल्लोरानी । जानती हो ना ? देखो, तुम न जानो तो यह तुम्हारा प्राब्लम है, हम तो जानते हैं ... और मानते भी हैं । इतिहास उठा कर देख लो, हमारी जंगों और मोहब्बत की दस्तानों से भरा पड़ा है । पर तुम इतिहास मत देखना, बल्कि मैं तो कहूँगा कुछ भी मत देखना । मोहब्बत अंधी होती है, मतलब मोहब्बत में अंधापन बहुत जरुरी है । देखभाल कर की जाये तो मोहब्बत नहीं सौदा होता है । और साहेबा ... प्यार में सौदा नहीं ।

                मोहब्बत में जान देने वाले अमर हो जाते हैं । तुम्हें अमर प्रेम करना है और देर सबेर अमर होना है । अपनी अम्मा-बापू से पूछ लेना वो बतायेंगे कि आत्मा अमर होती है । पंडित लोग बताते हैं कि उसे किसी शस्त्र से काटा नहीं जा सकता है, न अग्नि उसे जला सकती है, न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है । आत्मा केवल शरीर बदलती है, और शरीर जो है नाशवान है । कोई न भी करे तो भी वह नष्ट होता ही है । लेकिन बिल्लो जान, तुम चिंता नहीं करना । मैं तुम्हारी मदद करूँगा । तुम सच्चा प्रेम करती हो, बार बार जनम लोगी । मिडिया तुम्हें हमेशा याद रखेगा और अपनी टीआरपी बढ़ाएगा । मर के भी किसी का पेट भर सको यह छोटी बात नहीं है ।

               ऐसा वैसा सोचते मत बैठो, आगे भी कुछ सोचना मत । सोचने से खतरों का आभास होता है । डर जाता है सोचने वाला । सुना है ना, ‘आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू , जो भी है बस यही एक पल है’ । और यह एक पल तुम्हारा अपना है बिल्लो डियर । इस पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है । जिंदगी तुम्हारी है । इस पर माँ-बाप का कोई अधिकार नहीं है । अठारह साल से उपर की हो सो कानून भी तुम्हें रोक नहीं सकता है । मैं नहीं हूँ लेकिन तुम तो पढ़ी लिखी हो । तुम्हारे पास डिग्रियां हैं । कमाती हो, अपने पैरों पर खड़ी हो । और क्या चाहिए एक औरत को आज़ाद-औरत होने के लिए !!

             मोहब्बत के मामले में तुम नयी हो । लेकिन मैं हूँ ना, मुझे काफी तजुर्बा है । यह अच्छी बात है । इससे तुम्हारा भरोसा और आत्विश्वास बढ़ना चाहिए । छोटी सी नौकरी में भी एक्सपीरियंस को महत्त्व दिया जाता है । फिर ये तो तुम्हारी जिंदगी का सवाल है । मुझे एक्सपीरियंस है और हम दोनों एक होने जा रहे हैं । दूसरे जब तक ये सीखते हैं कि औरत से प्रेम कैसे करें तब तक हम एक से कर चुकते हैं और दूसरी पर नजर भी रखने लगते  हैं ।  समझदार लोग ज़माने के साथ चलते हैं और तुम्हें तो पता है कि जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है ।

             और तुम्हें मालूम है बिल्लो रानी, बोलने बतलाने से टोक लग जाती है । बनता काम बिगड़ जाता है । इसलिए किसी को कुछ भी बोलना बतलाना मत । चुप रहना और चले आना । हालाँकि चुप रहना कठिन होता है औरत के लिए । लेकिन मेरे साथ रहोगी तो अपने आप सीख जाओगी । कोई दिक्कत होगी तो मैं सिखा दूंगा । तुम बस मोहब्बत करती चलाना । जब तक मोहब्बत चलेगी तभी तक जिंदगी चलेगी । बिना मोहब्बत के जिंदगी का क्या मायना । ठीक है ना बिल्लो ? मैं कुछ गलत तो नहीं बोल रहा हूँ । बड़ी बड़ी बातें हैं, कहने सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं । किताबें तो पढ़ नहीं सका, पिच्चरें देख देख कर सीखी हैं । नालेज कहीं से भी मिले लेना चाहिए ।

               तो क्या तय किया बिल्लो बिंदास ? देखो ना मत कहना वरना ..... मेरी जान निकल जाएगी । तुम्हें पाप लग जायेगा । तुम जानती हो ना कि औरत एक ही बार प्यार करती है ? तो अब तुम किसी और से प्यार कर सकती हो ऐसा सोचना भी मत । तुम्हारी रजामंदी मांग रहा हूँ इससे ज्यादा शराफत का सबूत क्या  हो सकता है । अच्छा ऐसा करते है कि काउंट करते हैं, तुम रजामंदी देना ओके । एक ... दो... तीन ... पर ध्यान रखना बिल्लो, मुझे पैंतीस के आगे गिनती नहीं आती है ।

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बुधवार, 4 जनवरी 2023

मेरे पास भावना माँ है


 




“मेरे पास मुद्दे हैं, सवाल हैं, गवाह हैं, तुम्हारे झूठ हैं, तुम्हारे फर्जी काम हैं । तुम्हारे पास क्या है ? क्या है तुम्हारे पास ?” विजय ने पूछा ।

“मेरे पास भावना माँ  है ।“ रवि ने कहा । “और भाई एक बार भावना माँ आहात हो गयी ना तो तुम अपने मुद्दों को भोंगली बना के कहाँ रखोगे यह भी तुम्हें नहीं सूझेगा ।“

सीन कट हुआ । लोगों ने ताली बजा दी । तमाम रवि खुश हुए । पैसा वसूल ।

अगले सीन में भावना माँ इफ़्तेख़ार साहब के सामने है ।

“अच्छा, तो आप भावना हैं ! ... क्या करती हैं भावना जी ? मतलब कोई काम धंधा ?” साहब ने पूछा ।

“माँ हूँ, माँ के हजार काम होते हैं साहब ।“

“फिर भी, कुछ तो करती होंगी ?” साहब ने सिगार जलाते हुए पूछा ।

“पार्ट टाइम काम है साहब । बेटों से जब इशारा मिलता है आहत हो लेती हूँ । बस ।“ दुखी मन से वह बोली ।

“आहत होना कोई काम तो नहीं है । आप आहत क्यों होती हो !? ”

“माँ हूँ ना, माँ का काम ही आहत होना है । लोगों के चाल-चलन, बोल-बचन, रंग-रूप वगैरह देख कर मुझे आहत होना होता है । यही मेरी ड्यूटी है । वरना तो आप देखिये समाज भावनाहीन होता जा रहा है । प्रेम में भी तीस-पैंतीस टुकड़े कर देते हैं लोग । कोई सड़क पर घायल पड़ा हो, नदी में डूब रहा हो, भावनाहीन लोग वडियो बनाने लगते हैं । अपने बूढ़े माँ-बाप मेले में छोड़ जाते हैं और पलट कर भी नहीं देखते हैं ।“ कुछ पुराने अख़बार टटोलते हुए उसने कहा ।

“तुम क्या सोयी रहती हो ऐसे समय ? तुम्हें जागृत होना चाहिए । तुम अपना काम ठीक से करो तो लोग जाहिलपन से बचे रह सकते हैं । समाज को भावनाप्रधान बनाना तुम्हारी जिम्मेदारी है । लगता है गलती तुम्हारी है भावना माँ । लगता है तुम्हें ही आहत होने में मजा आता है ।“

“बेटों की दया पर जी रही हूँ । भावना का मजे से क्या लेन-देना साहब ! लोगों ने ही सोचना समझना बंद कर दिया है । पता नहीं किसके भक्त हैं ! रोबोट होते जा रहे हैं लोग । उनकी प्रोग्रामिंग कहीं और से होती है । किसी अदृश्य रिमोट से संचालित होते हैं । आप जानते होंगे कि रोबोट में सिर्फ हरकत होती है भावना नहीं ।“

“चलो माना रोबोटों का जीवन प्रोग्रामिंग से होता है भावना से नहीं । लेकिन लोगों को रोबोट मानोगी तो तुम्हारा उनका सम्बन्ध बनेगा कैसे !” समझाइश देते हुए साहब बोले ।

“यही तो दिक्कत है साहब । समाज का रोबोटीकरण होता जा रहा है तो ऐसे में मेरे लिए जगह कहाँ बचती है । आम आदमी संज्ञा शून्य होता जा रहा है, उससे जब चाहो थाली बजवा लो जब चाहो ताली बजवा लो । हर आदमी गुरु बना हुआ है और दूसरों को ज्ञान फॉरवर्ड कर रहा है । किसी और को सुनने देखने की फुरसत किसी के पास नहीं है ! और मैं तो समझो कुछ हूँ ही नहीं । जब चाहा मुझसे खेला, जब चाहा मेरे नाम से खेल किया । बेटों के आगे माँ कितनी लाचार होती है साहब आप शायद नहीं जानते हैं ।“

“फिर भी तुम इंकार कर सकती हो आहत होने से । आखिर तुम भावना माँ हो, अभी भी तुम्हारा सम्मान करने वाले हैं समाज में ।“ साहब ने सांत्वना दी ।

“भावना के लिए विवेक का साथ जरुरी है । रोबोट में विवेक कहाँ होता है साहब । टीवी और सोशल मिडिया ने विवेक को पता नहीं कहाँ फ्लश कर दिया है । घोर भक्ति का दौर है, मुफ्त का राशन खाओ  और भजन करो । ईश्वर ने हाथ दे कर भेजा था कि इज्जत से मेहनत की खायेंगे, लेकिन भीख से ही खुश है जनता ।“ भावना ने शिकायती सुर में कहा ।

“ऐसे कैसे चलेगा भावना, कुछ करो, समझाओ लोगों को । आखिर तुम स्वाभिमान रखने वाली भावना माँ भी तो हो । जनता के बारे में सोचो । कल अगर मुफ्त का राशन बंद हो गया तो क्या एक भिखारी दूसरे भिखारी से भीख मांग सकेगा ! और क्या उसे मिलेगी !?”

“लोग कहते हैं जब सरकार ही उधार ले ले कर घी पी रही है तो हमें नसीहत देने का अधिकार किसी को नहीं है ।“ भावना माँ चिंतित हो चली ।

“फिर भी तुम्हारा मजबूत होना जरुरी है भावना । बताओ मैं क्या मदद कर सकता हूँ तुम्हारी ?” साहब ने सांत्वना देते हुए कहा ।

“रोक सको तो रोको साहब, भावना माँ को अंधभक्तों ने कब्जे में ले लिया है । जिधर देखो भक्त ही भक्त हैं । मैं कमजोर हो गयी हूँ । किसी दिन जिन्दा नहीं रही तो डर ये है कि ये भक्त आपस में लड़ मरेंगे ।“

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रविवार, 1 जनवरी 2023

शांतिपुरम जाग रहा है !


 


              प्राचीन देश शांतिपुरम में दो तरह के लोग रहते हैं ।  एक जो जागे हुए हैं और दूसरे जो जागे हुए नहीं हैं ।  इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि ऐसे में शांतिपुरम सरकार के पास दो ही प्राथमिक काम हैं एक यह कि जागे हुए लगातार जागते रहें और दूसरा जो जागे हुए नहीं हैं उन्हें ‘जागो जागो’ कहते हुए जगाया जाये ।  प्राथमिकता है इसलिए बहुत सारे संगठनों और उनकी तमाम शाखाओं को इस काम में लगाया गया है ।  उनका काम है कि एक एक आदमी के पास पहुंचें और पड़ताल करें कि वह कायदे से जागा हुआ है या कि जागा हुआ नहीं है ।  आदेश यह भी हुआ है कि जागने वालों और नहीं जागने वालों की जनगणना की जाये ।  ताकि शांतिपुरम की जागरण सम्बन्धी सरकारी योजनाओं का पूरा पूरा लाभ सरकार को मिले ।  जो लोग गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी घिसीपिटी समस्याओं को रोते मिलेंगे उन्हें सुप्त दर्ज किया जायेगा ।  जिन्हें चारों और भ्रष्टाचार बेईमानी, चोरी-डकैती दीख रही हो उन्हें सुपर-सुप्त श्रेणी में दर्ज किया जायेगा ।  जो शांतिपुरम सरकार के काम को संदेह से देखेंगे, नेतृत्व पर सवाल करेंगे या जो राइट टू इन्फार्मेशन यानी सूचना के अधिकार के तहत नेतृत्व का खाना खर्चा, कपड़ा-लत्ता और तोतों-कबूतरों के दाना-पानी का हिसाब पूछेंगे उन्हें अचेत श्रेणी मिलेगी ।  विशेष प्रकरणों में इन्हें एडवांस में मृत भी मान लिया जा सकता है ।  जो लोग धर्म-जाति, पूजा-प्रार्थना, ऊँच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा को लेकर अतिसंवेदनशील हैं केवल वही जागे हुए माने जायेंगे ।

“जो जागे हुए नहीं हैं उनका क्या करें साहेब जी?” जागरण सचेतक ने पूछा ।

“सबसे पहले उन्हें चिन्हित करो, सूचि बनाओ, नजर में रखो, समझाओ, लालच दो, डराओ पहले शाब्दिक फिर सोंटा-दर्शन से, बौद्धिक दो कि छापा पड़ सकता है ।  उन्हें जागरण-शक्ति द्वारा भेजे गए वीडियो दिखाओ, वाट्स एप मेसेज भेजो, लड़ाई झगड़ों के पुराने प्रसंग याद दिलाओ, दिन दिन भर ‘जागो-जागो’ बोलो ।  पूरा मौका दो उन्हें, अपनी तरफ से पूरा प्रयास करो कि वे जाग जाएँ ।  उन्हें जागना ही पड़ेगा । ” साहब ‘जी’ बोले।

“आदरणीय महोदय फंड की कमी है ।  कोई प्रावधान कर दें तो काम को गति मिले । ” सचेतक ने अपनी समस्या बताई ।

“फंड की कमी है तो पुलिस से संपर्क करें ।  वे बिना बात चालान बनाते ही हैं, शांतिपुरम के हित में उसे दुगना करें ।  सक्षम विभागों से कहो कि सुप्तों और सुपर सुप्तों पर छापा मारी करें ।  इससे या तो वे जाग जायेंगे या फिर आपकी फंड व्यवस्था करेंगे ।  हर हाल में पूरा शांतिपुरम हमें जागृत करना है । ”

“हम पूरी कोशिश कर रहे हैं साहेब जी ।  किन्तु हमारे सामने सवाल यह भी है कि बहुत से लोग हैं जो इससे भी नहीं जागे तो ?”

“उन्हें बताओ कि पुरस्कार देंगे, ईनाम मिलेगा, नगद भी मिलेगा, उधार भी मिलेगा।   हवाई जहाज में बैठाएंगे और पूरे शांतिपुरम का चक्कर लगवाएंगे, पद-वद भी मिल सकता है । ”

“महोदय क्षमा करें, न जागना भी एक तरह की कट्टरता है ।  कुछ लोग कट्टरता की हद तक नहीं जागे हुए हैं ।  हमारी कोशिशों के बाद भी वे नहीं मानेंगे । ”

“ऐसों को बताओ कि नहीं जागे तो शांतिपुरम में दंगा हो सकता है ।  तुम नहीं जागे तो जागे हुओं के हाथों मारे जा सकते हो ।  बताओ कि सुप्तजनों को स्वर्ग में जगह नहीं मिलती है ।  और इसके बाद भी नहीं मानें तो ...  तो आप लोग ईश प्रेरणा से अपना काम कर सकते हैं । ”

“ठीक है साहेब, इन्हें मृतक सूचि में ही रखना पड़ेगा ।  लेकिन इतने सारे लोगों को ठिकाने कहाँ लगाया जा सकता है ?”

“चिंता नहीं करें, देवनदी माँ है ।  देवनदी की क्षमता बहुत है, देवनदी शांतिपुरम के पक्ष में हमेशा तत्पर है ।  ...  जाओ अब समय नष्ट मत करो देवनदी प्रतीक्षा कर रही है । ”

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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

जन्मकुंडली में पुरस्कार-योग


 

घर अस्त व्यस्त है, अलमारियां उथल पुथल । ना.दा.पंचमुखे यानी नारायण दामोदर पंचमुखे को अपनी जन्मपत्री नहीं मिल रही है । सुबह से परेशान हैं , आखिर कहाँ रख दी ! शादी पर इसकी जरुरत पड़ी थी अब नहीं मिल रही है, हालाँकि बाद में भी बार बार देखना पड़ता ही रहा है कि ग्रह अनुकूल हैं या नहीं ! सुबह तक अनुकूल थे तो शाम को कौन कुत्ता भौंक गया ! भौंक का जमाना है भाई । कुत्ते गली के हों या राजधानी के, खानदानी हों या लावारिस, भौंक कर अपना काम बना ले जाते हैं । पैमाने बदल गए, जिनकी भौंक दमदार होती है वही सफल माने जाते हैं । अब विदेशों में, और अपने देश में भी, कुत्ते को फैमिली मेंबर का दर्जा मिलने लगा है । अभी वे मनुष्यों की फेमिली में शामिल हैं, जैसे जैसे विकास होगा मनुष्य उनकी फेमिली में शामिल हो जायेंगे । कुत्तों के पंजों में कोई रेखा नहीं होती है लेकिन भाग्य में होती है । पिछले दिनों एक विदेशी महिला ने अपने कुत्ते से ईर्ष्या रखने वाले पति से तलाक ले लिया ।क्यों न ले, आखिर कुत्ते के पास वफ़ा और दुम होती है । कुत्ते और पति में इन दिनों खासी प्रतिस्पर्धा चल रही है । दो घर छोड़ कर अग्रवाल साहब रहते हैं । उन्होंने अपने लेब्राडोर की जन्मपत्री बनवा रखी है । पिछली बार बता रहे थे कि पंडितजी का कहना है कि इस कुत्ते के भाग्य में राजयोग है, यह एक दिन दुनिया पर राज करेगा । उन्हें भरोसा है कि ऐसा समय आयेगा जब चौपाये भी चुनाव लड़ सकेंगे और देश की जनता उन्हें भी बिना ज्यादा सोच-विचार, मीनमेख निकाले चुन लेगी ।

खैर, ना.दा.पंचमुखे जी जन्मपत्री की महाखोज में लगे हैं और पूरे घर को अपने चिकने सर पर उठा रखा है । आखिर गृहमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा । बोलीं – “क्या इतने बूढ़े हो गए हो कि जन्म तारीख भी याद नहीं आ रही है !? इसके लिए भी जन्मपत्री चाहिए !’’

ना.दा.पंचमुखे हताश बैठ गए । जब भी गृहमंत्री एक्शन में आती हैं उन्हें हताश बैठने की आदत है । “मुझसे पूछ लेते, मैं बता देती । तुम्हारे राहू-केतु, शनि-शुक्र सब जानती हूँ अच्छे से ।‘’ कहते हुए उन्होंने इस बार कमर पर हाथ भी रख लिया और अपने कान्फिडेंस को व्यक्त किया ।

“अरे मैडम, जन्मपत्री इसलिए चाहिए कि सनातन साहित्य समिति ने पुरस्कार और सम्मान के लिए आवेदन मंगवाए हैं । आखरी तारीख के पहले पहुँचाना जरुरी है ।“

“साहित्यिक पुरस्कार है तो किताब भेजिए ना ! कुंडली क्यों खोज रहे हैं !?” वे बोलीं । 

“पुरस्कार समिति ने इस बार किताब नहीं कुंडली मंगवाई है । जिनके ग्रह अनुकूल होंगे उन्हें दे देंगे, नहीं तो छुट्टी । “

“ कुंडली कम्पेटीशन होगी क्या ! ग्रह अनुकूल होंगे का क्या मतलब !!?

“मतलब गुरु बलवान हो, बुध के साथ युति हो, साढ़ेसाती नहीं चल रही हो, धन-मान प्राप्ति के योग हों, वगैरह वगैरह, तो देंगे ।“ ना.दा.पंचमुखे ने केलेंडर में चौघडिया देखते हुए बताया ।

“कवियों की कुंडली में योग नहीं वियोग होता है । ध्यान नहीं दिया तुमने, ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान’ ।

“सारे कवि वियोगी नहीं होते हैं कुछ योगी भी होते हैं । अच्छा समय आ गया है, अब कुंडली दिखा कर सम्मान प्राप्त किया जा सकता है । साहित्य सेवा के लिए और क्या चाहिए, हमें तो खुश होना चाहिए । लेकिन जन्मपत्री नहीं मिल रही है ! पता नहीं कहाँ रखा गयी !”

“नयी बनवा लो । तारीख तो याद है ही ।“

“अरे !! ये आइडिया मुझे क्यों नहीं आया !” ना.दा.पंचमुखे दौड़े अपनी नयी कुंडली बनवाने ।  पीछे से आवाज आई “थोड़ा आगे पीछे करवा के गुरु-बुध की स्थिति बदल देना और कुंडली पुरस्कार वाली बनवा लेना ।”

ना.दा.पंचमुखे सोच रहे हैं कि ये आइडिया भी मुझे क्यों नहीं आया !

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शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

लोकतंत्र में चीयर-गर्ल्स



देखो भिया आप लोग हो सीधे साधे, निष्पाप, निष्कलंक, शुद्ध साफ गऊ पब्लिक । जिसने जरा पुचकारा, पीठ पर हाथ फेरा कि उसी को दूध, गोबर, मूत्र ही नहीं खाल, मांस, अस्थि-मज्जा तक दे देते हो । यही कारण है कि गाय को माता और आप लोगों को जनार्दन का दर्जा मिला हुआ है । समय समय पर दोनों पूज्य हैं । नयी पीढ़ी रटती है कि ‘मवरा टाइम आएगा’ । लेकिन टाइम यानी समय का कुछ भी फिक्स नहीं है, नहीं आए तो नहीं आए, आना हो तो बिना कहे कभी भी आ सकता है । अच्छी बात है कि अपने यहाँ लोकतंत्र है, समय पांच साल में एक बार जरूर आता है । कहते हैं भक्तों में अगर शक्ति हो तो भगवान उनके सेवक तक हो जाते हैं । आप जनार्दन हो, समझो मौके पड़ जाये तो भगवान ही हो । फूल नहीं फूल की पंखुरी भी मिल जाये प्रेम से तो आप प्रसन्न हो जाते हो और तथास्तु कह देते हो । आपकी इसी खासियत के कारण तमाम दुनिया वाले दुआ करते हैं कि काश हमारे यहाँ भी ऐसी जनता जनार्दन हो जाये ।

यह भी सब जानते हैं कि कोई सच्चे मन से माफ़ी मांग ले तो प्रभु माफ़ भी कर देते हैं । आपमें भी यही माफ़ी वाली आदत है, जो हमारे वाले लोकतंत्र के लिए अच्छी है । आपके भरोसे अनपढ़, गुंडे-बदमाश, रेपची, घोटलची सब चौड़ी छाती किये जनसेवक हो जाते हैं । लोकतंत्र की यह खूबसूरती है कि आप मालिकों को सेवक समझते रहते रह सकते हैं । एक सफल मालिक वही होता है जो इस गलतफहमी को लम्बे समय तक बनाये रखता है । कुछ लोग इसे कला कहते हैं और कुछ राजनीति । कला हमारे यहाँ कई तरह की होती है । लोग जेब काटने को भी कला मानते हैं और झूठ बोलने को भी । जानकर मालिकों को सबसे बड़ा कलाकार कहते हैं । सदी के महानायक की कुर्सी अब खतरे में पड़ती जा रही है ।

संत कहते हैं जीवन दो तरह का होता है । एक वह जो आप शरीर से जिया जाता है और दूसरा वह जो व्यवस्था आपको जीने पर मजबूर करती है । पहले जीवन के लिए हम कमाते हैं, दूसरे जीवन के लिए गवांते  हैं । कमाने और गवांने के बीच जो बच जाता है उसे भाग्य कहते हैं । सब मानते हैं कि भाग्य भगवान भरोसे होता है । इसलिए अच्छी व्यवस्था वही होती है जो भगवान को सेट रखे और पूजास्थलों के निर्माण को प्राथमिकता दे । लोग आत्मनिर्भर बनें, पूजापाठ करते रहें और डायरेक्ट ऊपर वाले भगवान से मांगते रहें । उन्हें मिल जाये तो उनका भाग्य नहीं मिले तो कोई क्या कर सकता है ! यह विश्वास बना रहे बस,  नीचे वाले भगवान को और क्या चाहिए । जीवन-मरण, लाभ-हानि, जस-अपजस सब ईश्वर के हाथ होता है । इतना अगर समझा दिया जाये तो अस्पताल, उद्योग, स्कूल वगैरह बेकार चीजें हो जाती हैं । सारा खेल समझ का है ।  जो लोग समझते थे कि महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी वगैरह रहीं तो जीना मुश्किल हो जायेगा वही लोग अगर इनके साथ ख़ुशी खशी जीने को तैयार हैं तो समझिये खेल बढ़िया और खिलाड़ी भी जोरदार । लेकिन हम पब्लिक हैं, चीयर-गर्ल नहीं हैं ।  

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मंगलवार, 8 नवंबर 2022

ईमानदारी से खतरा


 



           जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ उसने नयी नयी बीमारियाँ खोज लीं । कोशिश करके बहुत सी बिमारियों का इलाज भी ढूंढ लिया । लेकिन केंसर और ईमानदारी ऐसे रोग हैं जिनका ठीक ठीक इलाज आज तक नहीं मिल पाया है । जानकर बताते हैं कि इन दोनों बिमारियों के चलते अनेक परिवार बर्बाद हुए हैं । जो लोग विकास की मुख्यधारा से चिपके हुए हैं वे ही जानते हैं कि ईमानदारी से सिस्टम को कितना जानलेवा खतरा है । अच्छी बात यह है कि दोनों बीमारियाँ छूत की नहीं हैं । थैंक गॉड ! वरना अब तक पूरा देश ईमानदारी की चपेट में आ गया होता ।

            केंसर के बारे में हर कोई जनता है और दूसरों को सुझाने के लिए सबके पास रामबाण नुस्खे भी हैं, लोग कहते हैं कि नुस्खेबाजी भी एक बीमारी है । लेकिन ईमानदारी के बारे में ज्ञान बहुत अल्प है । वाट्सएप विश्वविध्यालय में भी ईमानदारी को लेकर चर्चा नहीं होती है ।  लोकतंत्र में जनमत महत्वपूर्ण हैं । जनता कभी ईमानदार आदमी को वोट नहीं देती । अकसर उसकी जमानत जब्त होती है । व्यावहारिक जीवन में ईमानदारी के रोगी से लोग अक्सर दूरी बना कर रखते हैं । वह एक गैर-जिम्मेदार, गैर-दुनियादर, भीरू और कायर आदमी मान लिया जाता है । वह हर समय ईश्वर से डरता है । यह भी मानता है कि ईश्वर सब देख रहा है, लेकिन यह भी विश्वास करता है कि जो भी होता है सब ईश्वर की मर्जी से होता है । जब वह मर कर ऊपर ईश्वर के सामने जायेगा तो सबसे पहले यही देखा जायेगा कि आदमी ईमानदार था या नहीं । बस इसी डर के कारण वह ईमानदारी के साथ ‘बिन फेरे हम तेरे’ हो लेता है । शिष्टाचार की बात करें तो ईमानदारी का रोगी किसी की चाय भी पीना पसंद नहीं करता चाहे दिसंबर जनवरी की कड़कड़ाती ठण्ड ही क्यों नहीं पड़ रही हो । भूल से कभी उसके सामने गाँधी छपे नोट आ जाये तो वह उन्हें भी रद्दी कागज के टुकडे मानता है । सर्दियों के दिनों में जब ज्यादातर दफ्तरी मुट्ठी या जेबें गरम कर रहे होते हैं वह ईमानदारी और धूप के भरोसे दिन काटता है । ऐसे आदमी का प्रमोशन नहीं होता है । सिस्टम मानता है कि यह ऊपर आया तो सबको जबरन संक्रमित करेगा । सिस्टम को ऐसे आदमी पसंद हैं जिनके दर्जन भर मुंह हों, एक से वह कहे कि न खाऊंगा न खाने दूंगा और बाकि से खाता रहे । जैसे ही मौका मिलता है कार्यालय इस संक्रमित को लूप लाईन में डालने के लिए जी जान लगा देता है । अब यहाँ उसे लम्बे समय तक कोरनटाइन रहना है । बीच बीच में साथी आते रहते हैं और तसल्ली देते हुए उसकी हिम्मत बढाते रहते हैं । कई बार सही डोज मिलने पर मरीज रोग मुक्त भी हो जाया करते हैं ।

           एक श्यामराव लोखंडे थे, वे लम्बे समय तक बीमार रहे । दरअसल ईमानदारी की बीमारी उनके लिए पैत्रक थी । लोग बताते है उनके पिता क्रोनिक ईमानदार थे । लेकिन भाग्य से उन्हें अच्छे और कर्मठ दफ्तरी मिले । धीरे धीरे उनमें इतना सुधार हुआ कि वे दफ्तर में चांदीकर के नाम से जाने गए और जब सेवानिवृत हुए तो श्यामराव सोनार थे । दफ्तर में आज भी उनकी मिसाल दी जाती है । आदमी दृढ़ निश्चय और हौसले से संघर्ष करे तो बीमारी कितनी भी जटिल क्यों न हो उससे मुक्त हो सकता है ।

 

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सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

जो सहमत हैं ... सुखी हैं !


 




कहते है कि लोकतंत्र में बोलने की आजादी होती है । यों तो सब बोलते ही हैं लेकिन आजादी के साथ बोलना आँख में किरकिरी की तरह चुभता है । जिसको बोलना है बोले, खूब बोले, कोई दिक्कत नहीं है । लेकिन आजादी के साथ बोलने वाला कमबख्त सोचता भी है । सोचने से विचार बनता है और विचार से असहमति पैदा होती है । असहमत आदमी खुद तो तनाव में रहता ही है दूसरों को भी तनाव देता हैं । विचार एक संक्रामक रोग है यानी छूत की बीमारी । कविता, कहानी और यहाँ तक कि कार्टून से भी विचार पैदा हो जाते और समाज में फैलते भी हैं । लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि कलम और किताबें उनके तनाव का मुख्य कारण है । अगर हम एक मजबूत और स्वस्थ समाज चाहते हैं तो लोगों को किताब कलम से दूर रहने और हर बात के लिए सहमत रहने के संस्कार देने होंगे । प्रश्न पूछने वालों को, शंका रखने वालों को, सवाल करने वालों को इतना जलील किया जाना चाहिए कि वे दोबारा हिम्मत नहीं करे कुछ भी पूछने की । नशे से घर परिवार बर्बाद होता है लेकिन विचार क्या क्या बर्बाद कर सकता है इसकी कोई सीमा नहीं है  । समाज को नशामुक्ति केन्द्रों से ज्यादा विचारमुक्ति केन्द्रों की जरुरत है । हमारे संत महात्मा और बाबा लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं । उनके भजन, प्रवचन, सीख-शिक्षा लोगों को विचार प्रवृत्ति से दूर रखने में सार्थक योगदान करते हैं । सत्संग में व्यक्ति सहमत होना और सहमत बने रहना सीखता है । वह समझ लेता है कि ‘जब आवै संतोष धन, सब धन धूर सामान’ । यहाँ संतोषी सदा सुखी का मतलब सहमत सदा सुखी ही है । सहमति की आवाज बड़ी शीतल होती है । कबीर ने भी कहा है ‘ऐसी बानी बोलिए, मन का आप खोए ; औरन को सीतल करे आपहु सीतल होए’ । यहाँ इन पंक्तियों का आशय यह है कि आप मन की गहराइयों से सहमति के बोल बोलिए, उससे दूसरे सुखी होंगे और आप भी सुखी रहेंगे ।

हम विश्वगुरु ऐसे नहीं हैं । कहते हैं अमेरिका का आदमी पच्चीस वर्ष में जीतनी फिलासफी सीखता है उतना फिलासफ़र तो हमारे देश का सात साल का बच्चा होता है । स्कूली गुरुजनों को देखिये, वे बच्चों को सवाल पूछना नहीं सहमत होना सिखाते हैं । किसी ज़माने में जो राजाराम हुआ करते थे बाद में राजीराम होकर मजे करते हैं । सरकार चाहे घर की हो या बाहर की, सुखी वही है जो राजी रहता है । वक्त बदल रहा है, जो बात बात पर असहमत हो जाया करते हैं उन्हें अब मार्गदर्शन के लिए भी कोई नहीं पूछ रहा है । जो अपनी तमाम असहमतियों को भोंगली बना कर टांड रखता है वह हर बात में आसानी से राजी हो लेता है । दरअसल राजी रहना एक साधना का विषय है । योग है जो अभ्यास से सिखा जा सकता है । डाक्टरों का कहना है कि आज के समय में तनाव सबसे बड़ी समस्या है । इससे दिक्कत यह है कि लोग अवसाद और हार्ट अटैक जैसी दूसरी बिमारियों की चपेट में आ जाते हैं । तनाव दूसरी बिमारियों के लिए रेड कारपेट है । जो राजी होता है वो गाजी (ताकतवर) होता है । उसे कोई दिक्कत नहीं होती है । तो सहमत बनें, कलम, किताब और विचार से दूर रहें, समाज का विकास करें ।

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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

जूते के बहाने जूता


 


दिवाली की सफाई में जूते निकल आए । जब पसंद किए थे तो देखा कंपनी अच्छी है, डब्बे पर छ्पा घोषणा पत्र भी जोरदार था । लिखा था सोल मजबूत है । इतना कि सारे अवांछितों को कुचल देगा जो आपके पैरों को कुचल देने का इरादा रखते हैं । मेरे जैसा आम आदमी जूते में क्या देखता है ? यही कि सोल बढ़िया होना चाहिए । सोल पर ही जूता टिका  होता है और जूतों पर पैर । सोल जितना पहनने वाले के लिए महत्व का है उतना ही जूते के लिए भी । सुरक्षा की दरकार न हो तो जूतों की जरूरत क्या है ।

कालीन पर तो वैसे भी चरण कमल होते हैं । तकनीकी रूप से देख जाए तो जूता हो या न भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता । जूता उनके लिए केवल शोभा की वस्तु है । सोल भले ही कमजोर हों पर मुलायम होना चाहिए । ताकि उसमें जब चरण डालें तो लगे कि जूते चरणों को चूम रहे हैं । चरणों और कालीन के बीच जूतों की वही भूमिका होती है जो कमीज और कोट के बीच टाई की होती है । उपयोगी नहीं है पर फिर भी जरूरी है । शोध करने वाले इस बात पर ध्यान दे सकते हैं कि जो जूता आम आदमी को काटता है वो अमीरों के सामने चरणदास कैसे हो जाता है ! चरणों की महिमा और जूतों की बेशरमी पर अब देश गौर करना चाहता है ।

खैर, मुझे इससे क्या, और सच पूछो तो आपको भी इससे क्या ? आप हम ठहरे आमजन यानी लोकतंत्र की जान ।  ज्यादा सोचने की न हमारी आदत है और न हमें कोई  जहमत उठाने देता है । बस हवा का एक झोंका आ जाए, कोई लहर सी उठे या मतदान के पहले वाली रात जरा मुंह दिखाई हो जाए तो हम भी तेरे, दिल भी तेरा । जूतों की तरफ देखने की न जरूरत है और न ही फुर्सत । दिल बड़ा हो तो तंग जूतों में भी पाँव डालने में कोई गुरेज नहीं है । बाद में अगर जूतों ने दो चार जगह काट भी लिया तो भी कोई उसे फैंकता थोड़ी है । फिर इस बात की क्या गैरंटी कि दूसरा नया नवैला, जो उपर से नरम नरम सा दिख रहा है चार दिन चल पाएगा । जिसके सोल ही मजबूत दिखाई नहीं दे रहे हैं उसकी मुलायमियत और खूबसूरती किस काम की ! अगर जंगल में रह रहे हो, रास्ते ऊबड़ खाबड़ हों तो सोल मजबूत होना जरूरी हैं ।

“दो साल से टांड़ पर पड़े हैं, अब क्या करोगे इनका !?” श्रीमती जी ने जूतों को  फटकारते शब्दों के साथ मेरे सामने पटका ।

“पहनना तो है नहीं ... तुम कहो तो अटाले वाले को दे दूँ ?  दिवाली कुछ बेकार चीजों से मुक्ति का भी त्योहार है । लेकिन जैसा कि आप जानते ही हैं कि डरा हुआ कर्मचारी अपने अधिकारी से पूछ कर, स्वीकृति मिलने के बाद ही किसी चीज को अटाले में दे पाता है ।  सो पूछ लिया ।

“क्यों !?, मुफ्त में मिले थे क्या ? ... अपनी पसंद से देखभाल के लिया था ना ! ... यही पहनों ।“

“नए थे तब ठीक लग रहे थे, अब ये जूते काटते हैं डीयर । तंग इतने हो गए हैं कि पाँव डालने की हिम्मत नहीं हो रही है ।“

“जूता शुरू शुरू में तो काटता ही है । लगातार पहनोगे तो जहां काट रहा है वहाँ की चमड़ी मोटी  हो जाएगी ।  राष्ट्रवादी बनो, ज्यादा ध्यान मत दो, एक बार फंसा लो, पैर जल्दी सेट हो जाएंगे ।“

“समझो ना,  हिम्मत नहीं हो रही और मन भी नहीं हो रहा है ।“

“हिम्मत करना पड़ती है, मन को मारना पड़ता है । विश्वास और भरोसा बड़ी चीज है । हम औरतों से सीखो । जिस सैंडल में पैर डाल दिया उसी की हो कर रह जाती हैं । काटती हों, चुभती हों, फिर भी फैंकती नहीं हैं । करवा चौथ ऊपर से ! “

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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

सामने वाले की (हवा) बिगाड़ो


 

राजनीति एक सामूहिक हवाबाजी है । जमाना इन्टरनेट का है, जब किसी की हवा चल नहीं रही हो तब सब लोग मिल कर गाने लगें कि चली चली हवा चली .... पार्टी की हवा चलीतो हवा जो है चलने लगती है । हवा को पता है कि चलने से ही वह हवा है । जिस तरह चलती का नाम गाड़ी होता है उसी तरह चलती का नाम हवा भी होता है । चाल और चलन की जितनी अनिवार्यता मनुष्य के जीवन में है उससे ज्यादा हवा के अस्तित्व में हैं । राजनीति में हवा का बड़ा महत्व है, अपनी चल जाए और सामने वाले की बंद हो जाए तो समझो गढ़ जीत लिया । हर चुनाव के समय हवा बनानेकी कोशिश की जाती है । जी, आपने ठीक समझा, हवा बनाई भी जाती है, कक्षा पांच के बच्चे से पूछोगे तो वह बता देगा कि एनटूओटू  से बनती है । राजनीति की हवा जरा अलग होती है । इसको बनाने का कोई आसान फार्मूला नहीं है कि आपको बता दें चट्ट से । आपने देखा ही होगा कि चुनाव के समय लोगों को खूब उल्लू बनाया जाता है । उल्लू बनने के बाद भी लोग देखने में तो आदमीही लगते हैं, उल्लू जैसा तो कोई दिखता नहीं । उसी तरह हवा बनाई जाती है, टाइट की जाती है, बंद होती है, निकल भी जाती है, निकाली जाती है पर किसी को दिखती नहीं है ।

श्वानों और नये नये गुण्डे भाइयों की हवा अपनी गली में ही चलती है, इसके प्रभाव में श्वान अपने को शेर और आदरणीय गुण्डे स्वयं को युवा हृदय-सम्राटतक समझने लगते हैं...... जो कि सही है । जी हां, नोट कर लीजिए कि, सही है, आखिर हमें भी अपने मोहल्ले में रहना है । हालांकि वे कहीं से भी शेर तो क्या शेर के साढूभाई भी नहीं लगते हैं, लेकिन कोई अपने को समझे तो क्या किया जा सकता है ।

लेकिन हवा भले ही गली में चले या वार्ड में, एक बार चल जाए तो समझ लो हवा-हवाई है । कुछ दिनों हवा बनी रहे तो कहा जाता है कि आदमी उड़ने लगा हैं । यों तो वह जमीन पर ही रहता है पर जानकारों की नजर में वो उड़ता है । आपने गर्म हवा के गुब्बारे देखे होंगे, जैसे जैसे गर्म हवा उसमें भरती है वो ऊँचा उड़ता जाता है । संतों का कहना है कि अभिमान की हवा गर्म होती है । वे ये भी कहते हैं कि वक्त की हवा नहीं आंधी चलती है । लोकतंत्र हवा से जिंदा रहता है और आंधियों से उजड़ता है ।

पार्टी ने ठूंस ठूंस के खाया है अपने राज में, लिहाजा हवा इधर भी बन रही है । लगातार खट्टी डकारें भी आ रही हैं । मुंह दबाओ तो पेट फूलता है, और पेट को राहत दो तो लोगों का सांस लेना दूभर होने लगता है । वोट की बात करो तो लोग नाक दबाते हैं । इस बार संस्कृति की हींग भी असर करेगी इसमें संदेह है । याद नहीं रहा था कि चुनाव के समय जनता के बीच जाना होगा । पुराने लोग पुराने चावल थे, दारू-कंबल से हवा बना लेते थे । गरीबी कम नहीं होने दी ताकि हवा सस्ते में बने, पर लोग अब ज्यादा स्याने हो गए हैं । लेपटाप, टीवी या फ्रीज तक मांगने लगे हैं । पार्टी के थिंकटैंक कहे जाने वाले फुसफुसा रहे हैं कि अपनी हवा नहीं बन पा रही है तो सामने वाले की बिगाड़ो यार । एक ही बात है ।

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आत्मनिर्भर मनोहर खोटे !

 



जब से देश में आत्मनिर्भरता की मुहीम चली है अपने मनोहर खोटे प्रेम के मामले में चुपके से आत्मनिर्भर हो लिए हैं । पत्नी शांता खोटे को अभी इस बात की भनक नहीं लगी है । बहुत से मामलों में वह भी आत्मनिर्भर हैं लेकिन साठवें जन्मदिन के बाद अब वे मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को किसी पर हाथ नहीं उठाती हैं । इन तीन दिनों में ‘कंडीशन अप्लाय’ की घोषणा के साथ मनोहर खोटे मन की बात कर डालते हैं । बाकि दिनों में अपनी आत्मा को जबतब ‘सीपीआर’ देते रहते हैं । सरकार के साथ घर वालों ने भी मान लिया है कि मनोहर खोटे अब किसी काम के नहीं हैं । दफ्तर ने घर बैठा दिया है और घर वालों ने कोने में मोल्डेड तख़्त-ए-ताउस पर । जब जब उन्होंने प्रेम के दो बोल बोलना चाहे शांता खोटे ने कपड़ों का ढेर दिखा कर प्रेस करने बैठा दिया । मुक्ति उन्हें तब ही मिली जब दो तीन कपड़े उन्होंने बाकायदा जला दिए । हालाँकि शांता खोटे ने पहले खरीखोटी सुनाई और बाद में गरम प्रेस ले कर लपकी भी लेकिन जाको राखे साईयाँ मार सके न कोय । ऐन वक्त पर उनकी भाभी का विडिओ काल आ गया । सो ज्यादा कुछ नहीं हुआ, सिवा शाम की चाय बंद होने के । और शुक्र रहा कि बोलीं भी नहीं महिना भर तक ।

इधर उपेक्षित मनोहर खोटे को खाली बैठे कुछ पुरानी यादें आती रहीं और जाती भी रहीं । यादों का ऐसा ही है, जब आती हैं तो रोक नहीं सकते और जाती हैं तो पकड़ नहीं सकते । बरसों से डायरी में एक फूल रखा था गुलाब का । फूल क्या था जी ... यादों का सेटटॉप बॉक्स था । तमाम चैनल पकड़ता था रंगबिरंगे और बिना सेंसर ‘रंगीन’ । दुर्भाग्य से फूल एक दिन शांता खोटे के हाथ लग गया । वे समझ गयीं और उन्होंने फूल को चाय के साथ उबाल कर खड़े खड़े पी डाला । मनोहर खोटे उस दिन के बाद ऐसे इडीयट बॉक्स हो गए जिसमें ब्लेक एंड व्हाइट भी बंद हो गया । बहुत समय अकेले काट लेने के बाद अब मनोहर खोटे के पास कोई रास्ता नहीं बचा सिवाय आत्मनिर्भर हो लेने के । किसी ज़माने में गुरूजी ने कहा था कि आदमी को बड़े सपने देखना चाहिए । छोटे सपने देखना अपराध है । इसलिए मनोहर खोटे ने सोच लिया कि जब सपना ही देखना है तो सीधे महानायक को ही कॉम्पिटीशन में रखा जाए । अप्सरा किसी एक की नहीं होती है । वो बस होती है । बिना आधार कार्ड दिखाए कोई भी उससे प्रेम कर सकता है । कानून वानून का भी कोई झंझट नहीं । इसमें अच्छी बात यह है कि आपका प्रेम आपको ही पता होता है । बस बैठे रहिये और प्रेम का मजा लेते रहिये । सबसे अच्छी बात तो यह है कि इसमें जवानी का होना भी जरुरी नहीं है । और तो और अप्सरा का भी सामने होना जरुरी नहीं है । पत्र पत्रिकाओं में छपे उसके फोटो ही काफी होते हैं । प्रेम दिल से किया जाता है । कोई कह गया है ना “दिल के आईने में तस्वीर यार की ; जरा गरदन झुकाई और दीदार कर लिया” । यह एक साधना है, करता रहे आदमी तो सिद्धि प्राप्त हो जाती है । शांता खोटे को पता नहीं है कि मनोहर खोटे एक सिद्ध पुरुष है ।

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मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

जब पत्थर मुस्कराए


 



सुबह सुबह डीएसपी साहब गार्डन में टहल रहे थे कि गिर गए । वैसे देखा जाये तो पहली बार नहीं गिरे थे, जब भी मौका मिला वे गिर लेते थे । सरकारी नौकरी का ऐसा है कि यहाँ बाकायदा गिरने का रिवाज है । कोई न भी गिरना चाहे तो गिराने वाले नहीं मानते हैं । जो जितना गिरता है उतना उठता है । पहले छः महीने में आदमी गिरे नहीं तो महकमे में खुसुर पुसुर शुरू हो जाती है । लोग शक की निगाह से देखने लगते हैं । उन्हें लगता है हमारे बीच कोई हरिराम नाई तो नहीं आ गया है ! वैसे महकमा बड़ा कोआपरेटिव है । डीएसपी साहब जब  नए नए आये थे और गिरने के मामले में बड़े संकोची थे तब उनकी नथ उतारने की रस्म की गयी थी । बाकायदा यानी पूरे विधिविधान, सफाई और सावधानी के साथ उन्हें पहली बार गिराया गया । इसके बाद वो कहते हैं ना ‘उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा’ । बाद में तो ‘प्रेक्टिस’ इतनी चली कि वे दफ्तर बाद में पहुँचते, गिर पहले लेते । इतना सब आपको इसलिए बताना पड़ रहा है कि आप जान लें कि गिरना कितना रेस्पेक्टफुल है महकमें में ।

अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं । बिना गिरे एक एक दिन काटना उनके लिए बड़ा मुश्किल होता है । वो तो शुक्र है आज टहलते हुए ठोकर खा गए और औंधे मुंह गिर लिए । पीछे मोहन पिपलपुरे चले आ रहे थे । उन्होंने दौड़ कर मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया । गिरने के बाद पहली बार खाली हाथ देख कर डीएसपी साहब को झटका लगा । जो आदमी गिरने के बाद हमेशा खुश होता था आज इतना दुखी हुआ कि जमीन फट जाती तो उसमें समा जाना पसंद करता ।

खैर, गिरने पड़ने के बीच यह यह बताना रह गया कि अपने डीएसपी साब वो डीएसपी नहीं हैं जो पुलिस में होते हैं । दरअसल ये देवी सिंग पटोले हैं । लेकिन शुरू से ही देवी सिंग पोटले के नाम से फेमस हुए । धीरे धीरे लोग इस नाम को भी चुनावी जुमलों की तरह भूल गए और नया नाम आया डीएसपी जो पोटले साब को भी पसंद था । अच्छी गुजरी, लेकिन जिंदगी में ऊंच नीच सब देखना पड़ती है । कुछ समय से नयी नयी गिरावटें सामने आ रही हैं । कमबख्त बाल गिरना शुरू हुए तो डॉलर के मुकाबले रुपये का साथ निभाते चले गए । रोज सुबह बाज़ार खुलते ही यानि पहली कंघी में ही खासी गिरावट दर्ज हो जाती है । पिछले महीने दो दांत क्या गिरे बाकी ने भी चलूँ चलूँ की जिद पकड़ ली । मन में घोर क्लासिक बंगाली उदासी छ गयी, जो मन कभी ममता की तरह बमकता था अब छुइमुई हो गया । लोग झूठ कहते हैं कि बुढ़ापे में रूपया काम आता है । क्या खाक काम आता है ! इधर चमड़ी कांग्रेस की तरह ढीली होती जा रही है, आईने के सामने जाओ तो पंचर-टॉय दीखता है । जाने ‘चौकीदार’ लोग क्या खाते हैं, कैसे खाते हैं, जब देखो तक हवा फुल-टाईट भरी दिखती है !

पिपलपुरे जी ने डीएसपी को पास लगी बैंच पर बैठाया । पूछा ठीक लग रहा है आपको ? कोई दिक्कत तो नहीं है ? डीएसपी रुआंसे हो कर बोले – “गिर गए !”

“शुक्र है हड्डी नहीं टूटी ।“ पिपलपुरे जी ने पीठ पर हाथ फेरते हुए तसल्ली दी ।

“दो दांत गिर गए ... वो पड़े हैं पत्थर के पास ।“ डीएसपी बोले ।

पिपलपुरे ने देखा, लगा पत्थर मुस्करा रहा है ।

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