सोमवार, 26 जून 2023

हमारे लाड़ले बेवड़े





 

दुनिया जानती है कि आज की डेट में जितना त्याग पीने वालों ने किया है समाज के लिए उतना किसी ने नहीं । इस बात को नोट किया जाए सर, कि सरकार का खजाना भरने में वे भले ही खुद मामू हो गए लेकिन कभी उप्फ़ नहीं की । शाम को पी तो सुबह थकेला कलेजा ले कर फिर हाजिर । तुमने पुकारा और हम चले आये । पॉइंट टू बी नोटेड अगेन सर, जिम्मेदारी एक आदत होती है, जो सब में नहीं होती है । सेवाभाव खून  में होना चाहिए और नसों में बहना चाहिए । एक जिद की तरह कि समाजसेवा करना है तो करना ही है । अब सर फूटे या माथा मैंने देशसेवा से यारी कर ली । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । कहने वाले कहते रहते हैं कि देश के लिए जान हाजिर है, लेकिन देने की बात आती है तो फूटी कौड़ी नहीं निकलती । और इधर जिगरा देखो, प्रदेश के लिए आल टाईम टुन्न ! जितना कमाते हैं, चखना के लिए रख कर पूरा ख़ुशी ख़ुशी दे आते हैं- लेलो मुल्क के हकिमों तुम भी क्या याद रखोगे जिदारों से पाला पड़ा है । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । पीने वालों का सोच इतना ऊँचा होता है कि अपने नीचे, अपने पीछे कौन कौन है यह तक नहीं देखते हैं । मधु-मानव मानते हैं कि कर्म किये जा, फल की आशा मत कर । हमारे कर्म की महानता देखिये, कर्म हम करते हैं फल सरकार को मिलता है । सरकार साकी है लेकिन बीच में कमबख्त खाकी है । पिलाने वाला दिलदार, पीने वाला जिगरदार बीच डंडा दीखता है थानेदार !!  ये भी चलेगा, लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए ।

आज ड्राय-डे था । कवि करुण ‘कमाल’  को कहीं शराब नहीं मिली । पौउवा वियोग में उससे रोटी भी नहीं खायी गयी । ड्राय जिगर को बहलाने के लिए वह न जाने क्या क्या सोच रहा है । ... विकास महंगा हो गया है । जनता से विकास का वादा था इसलिए मजबूरी थी, शराब के दाम बीस प्रतिशत बढ़ाए कोई दिक्कत नहीं है लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । मजाक देखिये, नहीं पीने वालों ने हायतौबा मचाई लेकिन पीने वालों ने चूं तक नहीं की । इसे कहते हैं जिद्दी देशप्रेम । अगर कहीं पीने वालों ने हाथ ऊँचे कर दिए तो सोचो सरकार क्या होगा । हक़दार तो हम बड़े बड़े सम्मानों के हैं लेकिन देखिये रजिस्टर उठा कर, किसी मधु-मानव को आज तक एक मामूली पद्मश्री भी नहीं मिली ! लेकिन मन में दुर्भावना नहीं है हमारे । जब तक जिगरे में है जान, छलकते रहेंगे जाम । ... सोचते सोचते उसकी नींद लग गयी ।

“प्यारे जीजाओं ... आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है । जब तक आपके बच्चों का ये मामा जिन्दा है आपके लिए किसी बात की कमी नहीं रहेगी । सरकार जल्द ही “लाड़ले बेवड़े योजना” ला रही है । आपके खातों में हर हप्ते हजार रूपये डाल दिए जायेंगे । पियो मजे में, महुए की दे रहे हैं । मुझे मालूम है कि हजार रूपये में हप्ता नहीं कटेगा लेकिन आप चिंता नहीं करें धीरे धीरे बढ़ा कर दो हजार कर देंगे । प्रदेश के लाड़ले बेवडों को सरकार कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी । पहले आप लोग नादान थे । तब एक एक दो दो पौउवे में सरकारें बनवा देते थे । अब महंगाई बहुत है एक दो पौउवे में सरकार नहीं बनेगी हमें पता है । प्यारे लाड़ले बेवड़ों, छोटे बड़े का भेद हम मिटायेंगे । बार-त्यौहार पर हम आपके खाते में पांच हज्जार रूपइया डालेंगे ताकि आप साल में एकाध बार ‘काला कुत्ता’ भी पी सकें । काला कुत्ता सिर्फ बड़े लोग पियें और जीजा लोग टूंगते रह जाएँ यह हमारे लिए शरम की बात है । सरकार आपकी है और आपके कीमती वोट के मर्म को समझती है ।  राजनीति के प्रोफ़ेसर लोग लोकतंत्र की नस बता गए हैं -  “बाय द बोतल, फॉर द बोतल, ऑफ़ द बोतल” । दरद कैसा भी हो, दारू एक कारगर दवा है । आप हम जानते हैं कि देवदास को नहीं मिलती तो कभी का मर जाता और देश चार-पांच अच्छी फिल्मों से वंचित रह जाता । तब अपना बालीवुड  क्या मुंह दिखाता दुनिया को ! ये ऐसी दवा है जिसमें अस्पताल, डाक्टर, केमिस्ट वगैरह का कोई चक्कर नहीं है । मजे में एक क्वाटर दबाओ और लपक के सो जाओ । दूसरे दिन ओवन फ्रेश जीजा वोटिंग लाईन में । .....”

अभी भाषण चल ही रहा था कि बाहर पानी का टेंकर आ गया और हा-हुल्ल मच गयी । शोर ऐसा उठा कि सरकारी जीजा की नींद टूट गयी । ड्राय-डे का दरद याद आ गया । नलों में पानी आने का रिवाज ख़तम चल रहा है इधर । एक बार बोले थे कि जितवाओ, दारू की पाईप लाइन डलवा देंगे, मजे में नल से पीना । अब कहते हैं जितवा दो दारू का टेंकर भेजा करेंगे । झूठे कहीं के, कभी पन्द्रा लाख कभी टेंकर भर दारू । हमको इतना बेवकूफ समझ रखा है क्या कि झांसे में आ जायेंगे, “अरे धत्त” ! लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम ख़त्म होना चाहिए ।"  कवि करुण बोला।

----

 

 


सोमवार, 29 मई 2023

नारद ने वाट्स एप खोला


 



            सुबह आँखे खोलते ही नारद ने वाट्स एप खोला और दनादन मेसेज फॉरवर्ड करना शुरू किये । इधर का उधर, उधर का इधर । मेसेज उछालने में वो मजा आ रहा था जो सतयुग में भी कभी नहीं आया । मन ही मन वे बोले कि ईश्वर ने संसार बनाया पर वाट्स एप नहीं बनाया । काश उन्होंने बनाया होता तो आज एक गुणगान इसी बात पर करने का अवसर मिल जाता ।

अभी वे सोच ही रहे थे कि वाट्स एप की एक पोस्ट में से प्रभु निकल आये । नारद को इस चमत्कार की उम्मीद नहीं थी  । पहले चौंके, फिर लज्जित हुए, बोले - भगवन आप !!

“ये क्या नारद ! किस काम में लगे हुए हो इन दिनों !! कितनी गन्दी गन्दी पोस्ट भेजते हो ! और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्टों पर इतने मेहरबान क्यों रहते हो !? देवभूमि में उत्पात करवाओगे क्या ?” प्रभु ने अपनी नाराजी व्यक्त की ।

“मैं कुछ नहीं करता भगवन, मैंने एक भी पोस्ट खुद नहीं लिखी है । न गन्दी और न ही नफरत वाली ।“

“तो फिर इधर की उधर क्यों करते हो ? रिटायर आदमी के पास यही काम बचा है क्या ?”

“ये तो मेरा पूर्णकालिक काम है प्रभु । पहले भी तो आपको इधर उधर के समाचार देता था भगवन । उस समय तो आपको भी आनंद आता था । यही सोच कर कि अगले को आनंद आएगा, मैं अब भी इधर उधर करता रहता हूँ । इसमें मेरी कोई दुर्भावना नहीं है ।“

“भोजन करते समय निवाला मुंह में डालते हो ना । बिना देखे खा लेते हो ? जो सामने आया, अच्छा-बुरा, खाद्य-अखाद्य सब खा लेते हो क्या ?”

“नहीं भगवन, ऐसा कैसे हो सकता है ! आपने हर मनुष्य को बुद्धि दी है, विवेक दिया है, आँखें दी हैं तो देखभाल कर ही खायेगा ।“

“तुम्हारे रास्ते में कीचड़ हो, मल हो, कांटे हों तो क्या करोगे ?”

“अपने पैर गंदे नहीं करूँगा प्रभु, किसी भी स्थिति में नहीं । बच के निकलूँगा ।“

“फिर गन्दी और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट को लेकर सावधानी क्यों नहीं बरतते ? जानते हो नारद, इस तरह की पोस्ट फ़ैलाने पर चाहे सरकार तुम्हें मौन समर्थन देती रहे लेकिन तुम्हारी छबि इससे बिगड़ती है । तुम एक शिक्षित और बुजुर्ग जीव हो इस तरह की छोटी छोटी गलतियों से तुम्हारा अपरिपक्व होना, अविवेकी होना सिद्ध होता है । मुनि हो, ज्ञानी हो किन्तु अधिकतर लोग तुम्हें मूर्ख समझने लगते हैं । जो तुमने अभी तक हासिल किया उस पर कालिख पुत जाती है । कोई चाहे न बोले लेकिन चार लोगों के बीच तुम आदरणीय नहीं रह जाते हो ।“

“सारी गलती तो उनकी है जो ऐसी पोस्ट बनाते हैं । वो आपके भक्त हैं इसलिए उन्हें आप कुछ नहीं कह रहे हैं !!” नारद को अपने बचाव के लिए कुछ नहीं सूझा ।

“मेरे भक्त निष्कपट और निर्मल-मन होते हैं । वो मेरे अंधभक्त नहीं होते हैं । उन्हें जो विवेक मैंने दिया था उसे उन्होंने किसी के पास रेहान रख दिया है । ये दुष्कर्म जो करते हैं उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं है । किन्तु हे नारद ... तुम जैसे वरिष्ठ जीवों से ये अपेक्षित नहीं है । कहा जाता है कि वृद्ध और बालक एक सामान होते हैं किन्तु इसके सही अर्थ को जानों मुनिवर । बालक का मन शुद्ध और निष्कपट होता है उसी तरह वृद्ध का भी होना चाहिए ।“

----

 


मंगलवार, 16 मई 2023

जीवन संध्या भोज


 

 

 

“अब क्या बतावें भाई साहब, रोने बैठते हैं तो समझ में नहीं आता कि सुरु किससे करें । कोई एक बात हो तो सलीके और संस्कार के साथ रो लेवें इन्सान । यहाँ तो बरात लगी पड़ी है ससुरी । लोग जिस तरह औंधी खोपड़ी से नाच रहे हैं ना वैसा तो आज तक देखा नहीं हमने । कहने को कह रहे हैं आगे बढ़ो,  दुनिया आगे बढ़ रही है, विकास हो रहा है ! फिर कहते हैं पीछे चलो बाप-दादा पुकार रहे हैं, पीछे सब अच्छा है !! अरे समझ में नहीं आता है कि आगा अच्छा है या पीछा !! जिसे देखो पगला रहा है  ... ना ना हम राजनीति की बात नहीं कर रहे है और न ही करेंगे । हमें क्या करना है, इस बुढ़ापे में तो सर पे जो भी खड़ा होता है यमराज ही दीखता है  । कुर्सी पे कोई सच्चा-साधु बैठे या लुच्चा –लबार हमें क्या । आज जिन्दा हैं तो यहाँ आपके लिए रम्मू काका हैं कल मर कर फिर पैदा हुए तो कौन जाने रहीम चाचा हो जाएँ । लोग तो कहते हैं लाखों योनियाँ हैं, आदमी कुत्ता बिल्ली भी हो सकता है । आदमी ही बनेंगे इसकी कोई गैरंटी है क्या ! इसलिए राजनीति की बातें करके हम काहे अपना और आपका कीमती समय बरबाद करें ! ... अब देखिये,  आप इतनी गौर से बात सुन रहे हैं तो किसलिए ! कोई डर है हमारा ? या कोई कर्जा लिए हो हमसे ? ... अरे भाई इंसानियत लिए हो इसलिए दुःख बाँट रहे हो हमारा । वरना ढूंढ लीजिये यहाँ से वहां तक कोई अपनी इच्छा से किसी की मन की बात सुनता है क्या ? बकवास सुनाने का समय ही नहीं है किसी के पास । घर में बूढ़े अपना पसेरी भर समय लिये बैठे हैं सारा सारा दिन कोई चुटकी भर बाँटने वाला नहीं मिलता । एक जमाना था जब मिलने वाले फूल लिए खड़े रहते थे । ... लेकिन छोड़िये पुरानी बातें ।  ... हाँ तो हम कह रहे थे आत्मा जो है सूखी जाती है । बच्चों को पढ़ाये लिखाये इसलिए थे कि इनकी जिंदगी बन जाएगी । ये इन्सान बन जायेंगे, कुछ हमारी भी सदगति हो जाएगी । अब जब धरम करम का समय आया तो फुग्गे उड़ गए आकाश में । दो लाइन का फादर्स-डे वेक्सिन ठोंक देते हैं, सोचते हैं साल भर बाप को औलादी बुखार नहीं चढ़ेगा । ... बताइए हम क्या करें ! ताली थाली बजा बजा कर बुढ़ापा-गो बुढ़ापा-गो करें  !? सब हो जायेगा इससे ! पिछले महीने बिसेसर बाबू गुजरे । बच्चे विदेश में, मजबूरी बनी रही, कोई नहीं आया । बूढ़े कन्धों ने उठाया, महरी के लडके ने आग दी ... पता नहीं ऊपर के लोक में किसी ने द्वार खोला या नहीं । न पूजा-पाठ, न तेरहवीं न नुक्ता-घाटा । सफल आदमी थे, लेकिन बड़े बेआबरू हो के तेरे कूचे से निकले । कोई इस तरह जाता है क्या !? ये कैसी दुनिया बना ली है हम लोगों ने ! ... देखो भाई, अगली पूरण मासी को हमारी कविता की किताब का जलसा रखा है । क्या कहते हैं लोकार्पण कार्यक्रम और ‘जीवन संध्या भोज’ भी है । भोजन प्रसादी का आयोजन है,  तो आना जरुर । ... सोच रहे होगे कि हमने कब लिखीं कवितायें ... तो ऐसा है कि कोई तो बहाना चाहिए बुलाने का । कहते कि अपना नुक्ता कर रहे हैं तो कौन आता । कभी कुछ पन्ने काले किये थे सो उन्हीं को छपा लिया । जरूर आइयेगा, नमस्कार ।“

----

रविवार, 2 अप्रैल 2023

ये तस्वीर बदलनी चाहिए






“डाक्टर साहब देखिये ना, इनकी आवाज चली गयी है । काफी दिनों से इन्होनें बोलना बिलकुल बंद कर दिया है । अब तो इशारे भी नहीं करते हैं ! “ महिला साथ लाये पेशेंट पति को आगे करते हुए बोली ।

डाक्टर ने पहले नब्ज देखी, आले से धड़कन, टार्च से मुंह के अन्दर गले तक झाँका । आँखें ऊपर-नीचे करवायीं, बाहर से कंठ के आसपास गले को टटोला, बोले – “हूँ ... कब से नहीं बोल रहे हैं ?”

“चार-पांच महीने हो गए हैं । पहले तो बहुत बोला करते थे, इतना कि इनको चुप रहने को बार बार कहना पड़ता था ।“ पत्नी ने बताया ।

“कुछ कड़वा -तीखा खाने में आया क्या ?”

“खाने में तो नहीं आया हाँ कड़वा -तीखा बोलते जरुर थे ।“

“करते क्या हैं ... मतलब काम-वाम ?”

“वाम ही इनका काम है ? वाम ही ओढना बिछाना । मतलब कवि हैं, लिखते पढ़ते और सोचते हैं । “

“यही तो गलत करते हैं । विक्रम बेताल की कहानी सुनी है ना । विक्रम ने मुंह खोला कि बेताल उड़ा । ज्यादा सोचना एक मानसिक रोग है । आम आदमी को कुछ नहीं करना है, बस पिये-खाये और पड़ा रहे । “

“पीते-खाते तो हैं, रातदिन  सोचते भी हैं पर बोलते नहीं हैं ।“

“ देखिये मामला पेंचीदा है । कुछ जांचें-वांचें करवाना पड़ेंगी ।“

“क्या हुआ इनको !? ... कैसी बीमारी है डाक्साब ?”

“यही तो देखना है कि बीमारी है या बेताल खौफ । “

“बेताल खौफ ! इसमें क्या आवाज बंद हो जाती है !?”

“कड़वी-तीखी आवाज बंद हो जाती है । आदमी बोल सकता है पर बोलता नहीं, लिख  सकता है पर लिखेगा नहीं, देख सकता है पर देखेगा नहीं, सह नहीं सकता पर सहेगा, जी नहीं सकता पर जियेगा ।“ डाक्टर ने बताया ।

“हे भगवान, अकेले इन्हीं को होना थी ये बीमारी !!” पत्नी ने पति के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ।

“ये अकेले नहीं हैं । आजकल इसके बहुत पेशेंट आ रहे हैं । बेताल खौफ के चलते सबकी आवाज बंद होती जा रही है ।“

“तो इलाज इनका करना चाहिए या बेताल का ?”

“बेताल का इलाज पांच साल में एक बार ही हो सकता है । फ़िलहाल इन्हें चुप रहने दो ।“

“ऐसा कैसे हो सकता है ! जहाँ जरुरी हो बोलना तो चाहिए ।“

“यही तो मजे वाली बात है । जब लगे कि बोलना जरुरी है तब पेशेंट चुप हो जाता है । “

“लेकिन जिम्मेदार नागरिक तो बोलते रहे हैं !”

“बोलते थे कभी । अब टीवी बोलता है, रेडियो बोलता है, बाबा बोलते हैं, सत्ता बोलती है । जो सहमत हैं वे उछलें-कूदें नाचें-गाएं  और जो असहमत हैं चुप रहें, समझदार बनें । देश को आगे बढ़ने दें ।“

“अब क्या होगा डाक्साब !?”

“आप भी चुप रहो, चिंता मत करो, अब कुछ नहीं होगा । बोलते तो जरुर कुछ न कुछ हो जाता ।“

-----

 

 


 

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

होली मूड ५ अहाते का नाम चौपाल


 





              “अरे होली का तो सोचो हुजूर । पीने काँ जाएँगे शरीफ लोग ! ठिया-ई ख़तम हो जाएँगे तो आपकी सरकार केसे चलेगी मालिक ! ये तो हद-ई हो री हे साहेब । आपको अपनी नेती का खियाल हे वोटर-होन का नी हे !! अहाते नी होंगे तो वोट काँ से आएँगे सरकार !!”  नीट वोटर मरियल मामा ने अपनी शिकायती रंग फैंका तो सरकार गामा सोच में पड़ गए ।  

               हुआ कुछ ख़ास नहीं । शराबखानों को  लेकर भड़कने वालों की कुछ आपत्ति थी और सरकार गामा ने बाले-बाले ले लिया फैसला कि अब जामनगर के अहाते बंद । कहते हैं कि लोकतंत्र है लेकिन न किसी पीने वाले से पूछा न पिलाने वाले से । यह प्राकृतिक न्याय नहीं है ।  बात को समझने की जरुरत है । होली आ रही है, हमारा सबसे बड़ा मनप्रिय त्यौहार । जिसमें छोटा-बड़ा, आमीर-गरीब, रजा-रंक, मरियल मामा-सरकार गामा सब एकरंग हो जाते हैं । नो डिवाइड एंड रूल । सब एक, यानी देश मस्त मजबूत । सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि नेते लोग सुनते नहीं हैं । माना कि बोलना-चीखना-चिल्लाना टीवी मिडिया और नेतों का काम है लेकिन सुनना समझना भी तो जरुरी है । एक कवि कह गए हैं “दिन को होली रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला” । जहाँ रोज होली हो वह तो हमारी संस्कृति और उत्सव का बड़ा केंद्र हुआ ना । इसे बंद करना सीधे सीधे संस्कृति पर हमला क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?! व्यावहारिक रूप से देखें तो अब चार-यार अपनी होली को गुलजार करने कहाँ जायेंगे ?!  गामा सरकार जानती हैं और मानती भी है कि मयखाने राज्य की राजस्व सुविधा हैं । तो क्या ये आत्मघाती फैसला नहीं कहा जायेगा ! शराबी अपनी खून पसीने की कमाई का अधिकांश पैसा आपको देता है, अपने बच्चों के हिस्से का दूध-दवाई सरकार की  सेहत के लिए नजर कर देता है ...  और मौका आने पर वोट भी देता है अलग से । देखा जाये तो गामा सरकार का सगा पीने वालों से बढ़ कर कौन ! चुनाव के पहले कुत्ता छाप घटिया दारू बंटवाई जाती है ! लेकिन लोकतंत्र की खातिर सारे मरियल मामा कुर्सी-बटन दाब देते हैं । इस दरियादिली का ये सिला !!

                         गामा ने समझाया – “देखो मरियल जी, हम समझते हैं आपकी असुविधा । दारू भी उतनी ही बुरी है जितनी राजनीति ।  न तुम छोड़ सकते हो न हम । जितने गाली-जूते तुम्हें पड़ते हैं उतने ही हमें भी । तुम्हारा हमारा वोट और चोट वाला अटूट रिश्ता है, तुम मोटी चमड़ी हम भी सुपर मोटी चमड़ी । मेरे भाई, मेरे हमदम, मेरे दोस्त थोड़ा भगवान से भी डर यार । घर जा के पीने की आदत डाल बाकी कहीं बैठने की जगह नहीं मिलेगी ।“

                  “मतलब ये कि अपने घर को अहाता बना लें क्या !? कल को बीबी-बच्चे पीने लग जाएँगे  तो उसका खर्चा कौन देगा ? महंगाई इत्ती हो-री हे कि होली पे क्या खायेंगे ये-ई समझ में नी-आ-रिया हे ।”

                “मजबूरी को समझो, हमने तुम्हारे खाने का इंतजाम किया है पर पीने का नहीं हो सकेगा । आखिर हमें टेक्स पेयरों से भी वोट लेने पड़ते हैं । माफ़ करो मरियल मामा ।“ गामा बोले ।

              मरियल मामा को ताव आ गया । बोले – “तुम तो कमाल-ई करते हो गामा ! इत्ते सीधे मत बनो, तुमारे पास तो फार्मूला है । अगर अहाते को ले-के किसी को दिक्कत हो-री है, जबरन दनादन कर रिया है तो नाम बदल दो इस्का-बी  । केबिनेट में प्रस्ताव लाओ और अहातों का नाम बदल-के चौपाल कर दो । न तुम जीते, न हम हारे । तुम बी खुश हम बी खुश ।“

-----

 


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

होली मूड - ४ नहीं मिल रही गाइड लाइन


 





            “आदरणीय कहीं कोई गाइड लाइन नहीं दिख रही है ! समझ में नहीं आ रहा है कि किस रंग से खेलें होली ।“ प्रीतम जी ने हरिराम जी से पूछा जो उनसे वरिष्ठ हैं । इसके आलावा वे मानते हैं कि हरिराम जी को इंटरनेट वगैरह का अच्छा ज्ञान है । भले ही पढ़े-लिखे कम हैं लेकिन गजब वाट्स एप चलाते हैं । 

            स को श बोलने वाले हरिराम जी दूनी चिंता के साथ बोले -“रंग को लेकर इतना प्राब्लम नहीं होगा । होली किनशे खेलना हैं और किनशे कतई नहीं इशकी गाइड लाइन मिलना जरूरी है । ऊपर वालों का कुछ इशपष्ट नहीं है । कभी कहते हैं विरोध करो कभी कहते हैं मेलजोल करो । उनके रंग शमझ में नहीं आते हैं ।“

           “आपका मत क्या है इस मामले में ?”

          “मुझे लगता है गरीबों के शाथ खेलना चाहिए इश बार । होली का मजा गरीबों के शाथ खेलने में ही आता है । उनकी छाती भी चौड़ी हो जाएगी जब देखेंगे कि शरकार होली खेल रही है उनके शाथ ।“ हरिराम  जी ने अपनी गहरी समझ का परिचय दिया ।

         “आप राजनीति में बहुत आगे जाओगे हरिराम जी । बस आप दो बातों को ठीक कर लो । एक तो ‘स’ को ‘श’ मत बोला करो । जब आप शरकार कहते हो तो डायबिटीज वालों का मनोबल गिर जाता है । राष्ट्रप्रेम से फिसल कर वे सीधे इंसुलीन में उलझ जाते हैं । और दूसरा ‘माता’ को सही बोला करो । आप मात्ता बोलते हो । ‘मात्ताओं-भैनों’ सुनते ही सब मोबाईल खोलने लगते हैं । और जब ‘भारात मात्ता की जे’ बोलते हो तब भी ...”

             इतना सुनते हरिराम जी आहत हुए । उन्हें लगा कि प्रीतम जी लाठी घुमा रहे हैं । बोले- “हम शमझ रहे हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं । इतना वाट्श-एप तो हम भी पढ़े हैं । होली के बारे में जरा ज्ञान क्या दिया आप हम पर ही कीचड़ उछलने लगे ! कान तक की लाठी है हमारे पाश । और आपके पाश अभी कंधे तक की ही है । पात्रता के हिशाब शे आपको हमारा अनुशरण करना चाहिए ।“

           “आपको गलत फहमी हो गयी हरिराम जी । हम तो शुभचिंतक हैं आपके । हम देश के उतने निकट नहीं हैं जितने कि आपके करीब हैं । अगर आप सत्ता में आ जाते हैं तो हमें ऐसी कौन सी ख़ुशी है जो नहीं मिलेगी । आपके रास्तों की बाधाओं को देखना और हटाना हमारा काम है । इसी भावना से कहा, बाकी आपकी मर्जी है । वरना हम तो रंग के बारे में पूछ रहे थे आपने ही दिशा बदल दी ।“ प्रितामजी ने सफाई दी ।

            “हाँ रंग ! ... लाल शे खेल लो, शब खेलते हैं । शशता भी मिलता है ।“

           “लाल से खेल लिए और माननीय लोगों ने कमरेड समझ के पतलून उतरवा ली तो !?”

             “बात ठीक है ... लाल शे मत खेलना ।“

             “हरा भी रहने देते हैं ... केसरिया ले लें ?”

            “नहीं ... उशशे  तो शिर्फ माननीय खेलेंगे । कलर प्रोटोकोल का मामला है ।“

            “फिर हमारे लिए क्या निर्देश हैं !?”

           “ गोबर ... गोबर से खेलो । पवित्र है, प्रेरक है , शुना है शेहत के लिए अच्छा है । इशमें जन शन्देश भी है और गाईड लाइन में तो पहले शे ही शामिल है ।“ हरिराम  जी बोले ।

           “किसका गोबर ?”

            “तुम्हारे दिमाग में क्या भरा हुआ है ... अरे गऊ का और किसका !”

----


रविवार, 19 फ़रवरी 2023

होली मूड ३ सफ़ेद कपड़ों में आइयेगा जीजाजी




 

        आदरणीय नए नए आदरणीय हुए हैं, ओवन-फ्रेश । नयी नयी शादी के बाद ये फिलिंग आती ही है । अचानक मिले आदरणीयपन को लेकर वे बहुत गंभीर हैं । ससुराल के कुत्ते तक को ‘माय लव’ कहने में देर नहीं करते हैं । इन हालात में साली जी की ओर से होली खेलने का निमंत्रण मिलना निजी स्तर पर पद्मश्री मिलना है । पंख होते तो उड़ जाते फ़ौरन से पेश्तर । लेकिन दिक्कत ये कि होली खेली नहीं आज तक । डर लगता है, काला, नीला, सिल्वर, न जाने क्या क्या पोत देते हैं लोग । सर में ऐसा सूखा रंग डाल देते हैं जो हप्तों तक बालों में घुलता रहता है । इसलिए होली पर जल से, रंग से, यहाँ तक कि टीवी पर ‘भीगे चुनरवाली ...’ देखते हुए अन्दर तक डर वाली झुरझुरी दौड़ जाती है । अभी तक होली वाले दिन कमरे में बंद हो कर अपने को बचाए रखा है । अगर पता होता कि शादी के बाद साला-साली होली खेलेंगे तो शायद पुनर्विचार करते । ऐसा घर देखते जहाँ इकलौती लड़की होती । लेकिन अब क्या किया जा सकता है ! चिड़िया चुग गयी खेत ।

         दोस्तों से बात की तो एक ने मामले की नजाकत को समझा और सुझाया होम्योपैथी वाले डाक्टर से मिल लो । होम्योपेथी में दवा है जो होली का डर दूर कर देती है । हमारे लम्पट फूफाजी वही दवा खा कर आते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक घामड़ होली खेलते हैं । खेलने वालियों  के साथ वो इस कदर कलर-मैच हो जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि आदमी कौन है और कौन औरत । इसके बाद छः महीने होली के किस्सों में गुजरते हैं और अगले छः महीने होली के इंतजार में । तुम देर न करो, फ़ौरन जाओ वहां फूफओं की लाइन लगती है ।

         आदरणीय का डर दवा के बस का नहीं था । जाने का मन बनाते लेकिन हिम्मत कांग्रेस की सरकार की तरह गिर गिर जाती । एक और लंगोटिया हैं, बोले – “यार तू टेंशन मत ले और इस गुप्त ज्ञान पर ध्यान दे । होली पर रंगे यार पहचाने तो जाते नहीं । तेरी मेरी कद काठी एक है । तुझे ऐतराज न हो तो तू बन कर मैं खेल आऊँ ? बोल ?” बोलते क्या आदरणीय । उपाय तो अच्छा था पर हजम नहीं हो रहा था । आखिर मना कर दिया ।

           अभी वे निराश होने के लिए तत्पर थे कि श्रीमान’जी’ मिल गए ।  बोले – “ कोई कठिनाई नहीं है, मातृशक्ति से होली खेलना है तो केवल टीका लगा कर चरणस्पर्श कर लो, बस हो गया ।“

          अब संकट यह है कि साली जी के मामले में मातृशक्ति का दायरा कुछ जम नहीं रहा है । साली जी का निमंत्रण निमंत्रण कम चुनौती अधिक है । मन हो रहा है कि बहिष्कार ही कर दें लेकिन इज्जत का सवाल खड़ा हो जाता है । तभी फोन बजा –“ जीजाजी आ रहे हैं ना ? सफ़ेद कपड़े पहन कर आइयेगा, कलर वलर वाला पहना तो फिर देख लेना हाँ ।“

          “देखिये आप मातृशक्ति हैं और हमारा कर्तव्य है कि आपसे मात्र टीका-होली खेलें । इसमें कपड़ों का कोई रोल नहीं है ।“ आदरणीय बोले ।

           “अरे नहीं जीजाजी, कपड़े तो पहन कर आइये वरना लोग क्या कहेंगे ।“ बिना उई माँ के वे बोलीं ।

            “आप गलत समझ गयीं साली जी । हमारा कहने का मतलब था कि कपड़े चाहे कैसे भी पहनें टीका-होली में केवल टीका लगाया जाता है माथे पर ।“

           “टीका तो आप लगायेंगे ना, हम तो खेलेंगे अपने हिसाब से । पहले रंग डालेंगे फिर रंग में डालेंगे । ... डर तो नहीं रहे हैं ?!” खिलखिलाते हुए उन्होंने वैधानिक चेतावनी दी ।

           “नहीं, डरने की क्या बात है !”

           “पहले भांग पिलायेंगे आपको । अंगूर वाली ।“

           “अरे भांग नहीं पीते  हम ।“

           “तो पकौड़े खाइएगा भांग के ।“

           “आप तो ऐसा कीजिये देवीजी वाट्स एप पर होली का मेसेज भेज दीजिये । काफी होगा, हमें आराम से चल जायेगा ।“

          “लेकिन हमें नहीं चलेगा । आपको आना पड़ेगा या फिर सबके सामने ‘चीं’ बोलते हुए वीडिओ भेजो । हम मान लेंगे कि हमारी बहन चूहे से ब्याही है ।“  फोन कट गया ।

          आदरणीय बैठे सोच रहे हैं कि साली के सामने चीं बोल लें या खेल लें ।

----

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

होली मूड - २ एक चिट्ठी रंग-धड़ंग


 





विद्रोही कवि प्रबल को दरवाजे पर एक चिट्ठी पड़ी मिली । चिट्ठी क्या थी पन्ना था कॉपी का । लिखा था “नौ दस ग्यारा बारा ... बारा को कर देंगे मडर तेरा, पुलिस को मत करना खबर वरना बिगाड़ देंगे खेल सारा” । वरना के बाद चाकू का चित्र बना हुआ था । प्रबलने चिट्ठी को तीन चार बार पढ़ा । बुदबुदाये कैसे मूर्ख हैं ! कम से कम ऊपर नाम तो लिखना था । कैसे पता चलेगा किसका मर्डर करने वाले हैं । वे सोचने लगे चिट्ठी यहाँ डाली है तो और कौन हो सकता है ! लेकिन उनका तो किसी से कोई झगड़ा नहीं है । दो तीन महीने से दूध का बिल नहीं दिया है । लेकिन वो मारेगा नहीं । मालिक मकान का भी बाकी है लेकिन वो आँख दिखने से आगे नहीं बढेगा । मन हुआ कि गंभीरता से लेने की जरुरत नहीं है । कल को कोई चिट्ठी छोड़ जाए कि तुम्हें जनकवि का सम्मान दिया जायेगा तो क्या सच मान लें ! जबकि वे इसके हक़दार भी हैं । उनकी कविता समाज में व्याप्त जितनी भी फूहड़तायें हैं उनके खिलाफ आवाज उठाती है । अंधभक्त हों या धर्म के नाम पर दुकान चला रहे बाबा हों या किस्म किस्म नागा हों, उन्होंने खूब लिखा है । अगर वे मनुष्यता के साथ खड़े हैं तो मार डाले जाने योग्य तो नहीं हो जाते । ईमानदारी और जनजागरण का रास्ता बड़ा जोखिम भरा है वे जानते हैं, लेकिन इतना भी नहीं होना चाहिए । चालाकियां कितनी भी सफाई से की जा रही हों कुछ लोगों को समझ में आ ही जाती हैं । जनभावना को कच्चे माल की तरह उपयोग कर लेना  आज की राजनीति है । चाँद दिखा कर बदन के कपड़े खींच रहा कोई, लेकिन किसको इतनी समझ ! एक कवि ही है जो चाँद को समझता है और दिखाने वालों को भी । अचानक प्रबल को याद आया कि आज पांच तारीख है । चिट्ठी में बारह तारीख लिखी है । हप्ता भर का समय दिया है । क्या पता उनके लिए ही हो चिट्ठी । आजकल हत्यारों की मौज है, टल्ला लग जाए तो भी मार देते हैं । पुलिस जनता की सेवक है, लेकिन वो शायद अपराधियों को ही जनता मानती है । न जाने क्यों प्रबलको चिट्ठी पर विश्वास होने लगा । और यह भी कि पुलिस कुछ नहीं करेगी । सारा तंत्र ‘न्यूनतम जिम्मेदारी अधिकतम अधिकार’ की नीति पर चलता है । कवि कोई वी.आइ.पी. तो है नहीं कि उसे सिक्युरिटी मिलेगी । जैसे गली गली में युवा ह्रदय सम्राट वैसे ही कवि भी । प्रबलको खतरा सामने खड़ा दिखाई देने लगा । वे जानते हैं कि पुलिस, अपराधी और नेताओं का चोली-दामन का साथ है । अलग अलग है लेकिन मिल कर काम करते हैं । मिलीजुली इस शक्ति को ही शासन कहते हैं । चिट्ठी में हप्ता भर दिया है तो जरुरी काम निबटा लेने में ही समझदारी  है । प्रबल  की निराशा बढ़ी । चिट्ठी जेब में रख कर सोचने लगे तो तमाम गलतियाँ दिखने लगीं । ख्याल आया कि जब लेखक बनना था तो परिवारिक जिम्मेदारी क्यों ली ! बच्चे छोटे हैं, मकान की किश्ते बाकी हैं । वह नहीं रहा तो परिवार को शोकसंदेशों के आलावा कुछ नहीं मिलेगा । काश बीमा ही करवा लिया होता । मूर्खता थी कि सोचते रहे अपन लिखने पढ़ने वाले, अपने को किसी से क्या डर । अब मिल गया मौत का फरमान तो नरक नजर आ रहा है ।

बावजूद तमाम नाउम्मीदी के प्रबल थाने पहुंचे और चिट्ठी दिखाई । साहब बोले – अभी तो सात दिन हैं आपके पास । लगता है भला आदमी है वरना फैसला करने में आजकल कोई देर थोड़ी करता है । आप जरुरी काम तो निबटा ही लो । बाकी हम देखते हैं ।

“क्या जरुरी काम निबटाऊँ साहब । देनदारियां हैं, कर्जे चुकाने हैं । ...”

“यही समय है ... और कर्जे ले लो जहाँ से भी मिले । संसार छूटा तो सब छूटा ।“

“तो ... क्या रिपोर्ट नहीं लिखेंगे ?”

“क्यों नहीं लिखेंगे ! लेकिन एक बार सोच लो, मरते आदमी को कोई कुछ नहीं देता है । उल्टा मांगने वाले चढ़ने लगेंगे । हमारा क्या है, बैठो अभी लिख लेते हैं । “

‘प्रबल’ बोले -  “ठहरो सोच लेता हूँ । क्या पता चिट्ठी गलती से मेरे घर फैक दी हो किसी ने ।“

“वो गलती क्यों करेंगे ! उनका ये रातदिन का काम है । जैसे आपका काम कविता लिखना है । सारे अपराधी मंजे हुए होते हैं आजकल ।“

 प्रबल  घर लौट आये । सोचने लगे कौन सहायक होगा । नेता और पुलिस से उम्मीद  नहीं । उन्हें याद आया कि ‘गब्बर के ताप से एकही आदमी बचा सकता है खुद गब्बर’ । आएगा सामने, वही बचाएगा । चिंता में दिन कटने लगे । ग्यारह की पूरी रात सो नहीं सके । सुबह सुबह आँख लगी थी कि आवाज से चौंके । लगा किसीने कुछ फैंका बाहर । देखा एक चिट्ठी थी पत्थर से बंधी हुई । प्रबल को लगा आज तो गए । आसपास कोई दिखा नहीं, डरते हुए चिट्ठी खोली । गुलाल से भरी हुई, और लिखा था “बुरा न मानों होली है” ।

------


बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

होली मूड - १ रामगढ़ में गब्बर-गान


 



कुर्सी सम्हालते ही गब्बर ने साम्भा को साहित्य मंत्री बना दिया ।

साम्भा पहाड़ी पर बैठे बैठे चीलें गिना करता था, नहीं जनता था कि एक दिन उड़ के लग जाएगी । कुरता-जेकेट पहन कर अभी लौटा ही था कि सरदार ने पूछा – अरे ओ साम्भा, साहित्य में कितने पुरस्कार हैं कुल मिला के ?”

“पच्चीस हैं सरदार ।“ साम्भा ने आदत के अनुसार संक्षिप्त जवाब दिया । 

“पच्चीस !! पिछली सरकार वाले किसको दे रहे थे इतने पुरस्कार ?!”

“सुना है ठाकुर के आदमियों को दे रहे थे । ... वीरू और जयनुमा लोगों को ।“

“हूँ ... नहीं चलेगा अब । सब बदलेगा ... अरे ओ कालिया, कहाँ मर गया ?”

कालिया दौड़ता हुआ आया, -“ हुकुम सरदार ... मैंने आपकी नमक वाली चाय भी पी है सरदार ।“

“इसी वक्त रामगढ़ जा और चौक से चिल्ला कर सबको बता कि अब जो गब्बर-गान करेगा उसी को पुरस्कार मिलेगा । रामगढ़ में जब भी चौपाल लगेगी और लोग कविता कहानी पढेंगे, किताबों के विमोचन होंगे तो अध्यक्षता साहित्य मंत्री साम्भाजी करेंगे । तीज त्यौहार मनाएंगे, नाचेंगे, गायेंगे तो भी अध्यक्षता साम्भाजी ही करेंगे । और ये भी साफ बता देना कि जिसे साम्भाजी कह देंगे वही साहित्य माना जाएगा और जिसकी पीठ थपथपा देंगे वही साहित्यकार होगा । ... कुछ और कहना है साम्भा ?” गब्बर ने पूछा ।

“सरदार वो जय-वीरू खूब लिख रहे हैं इनदिनों । लोग छुपछुपा कर उनकी गोष्ठियों में जाते हैं । पिछली होली पर कविसम्मेलन में इन लोगों ने खूब तालियाँ बटोरी थी । सुना है इस बार भी ऐसा ही कुछ होने वाला है ।“

“होली कब है , कब है होली ?” गब्बर ने खैनी थूकते हुए पूछा ।

“अगली पूर्णिमा को है सरदार ।“

“हम खुद जायेंगे इस बार । कालिया ... रामगढ़ वालों को बता देना कि इस बार होली पर गब्बर-काका खुद आयेंगे कविसम्मेलन सुनने ।“

कालिया अपने दो साथियों के साथ रामगढ़ की चौपाल पर है, चिल्ला कर बोल रहा है – “गाँव वालों, खूब लिखो । सरदार को पसंद आया तो पुरस्कार मिलेंगे । जो जितना गान करेगा उतना बड़ा सम्मान मिलेगा । कीर्तन करो, भजन करो खूब मिलेगा ।“

तभी एक आदमी हाथ में कुछ लिए सामने आता है । “ये क्या है हरिया ?” कालिया ने पूछा ।

“पाण्डुलिपि लाया हूँ मालिक ।“

“इतनी छोटी पाण्डुलिपि !! और वो ढेर सारी कवितायें लिखी पड़ी है घर में ! वो क्या ठाकुर के लिए हैं ?”

“सारी ले आया मालिक, अब न घर में हैं न दिमाग में ।“

“दिमाग में कुछ नहीं है !! सरदार सुनेंगे तो खोपडिया उड़ा देंगे दन्न से । हर दिमाग में गब्बर-काका होना चाहिए । वरना दिमाग किस काम का, लिखना पढना किस काम का । चल भाग यहाँ से ।“

वापसी के लिए कलिया अपने घोड़े पर चढ़ा ही था कि जय और वीरू सामने आ गए । जय बोला - “कालिया अपने सरदार को बता देना कि हमारी कलम में अभी बहुत स्याही है । हम जो भी लिखेंगे धांय-धांय ठांय-ठांय लिखेंगे ।“ सुन कर कालिया लौट गया ।

गब्बर ने सुना तो तिलमिला गया । “अरे ओ साम्भा ... रामगढ़ में घर घर में लेखक तैयार करो फटाफट । बच्चा हो कच्चा हो, आदमी हो औरत हो, बुरा हो अच्छा हो, बस गब्बर साधक हो । इतने लेखक पैदा कर दो कि जय-वीरू की जान को इनसे ही खतरा हो जाये । .... और बसंती ? बसंती क्या कर रही है ?”

“अरे तुमको पता नहीं सरदार !! वो अभी भी नाच रही है ।“ साम्भा ने हरिया की पाण्डुलिपि देखते हुए बताया ।

-----


सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

मुर्दा भी हँसता दिखे


 



          सुपर साम्रट द्वारा युवा हृदय सम्राटों की ऑनलाइन मीटिंग ली जा रही थी । बोले – सारे सम्राट घर घर पहुंचें, एक एक व्यक्ति से संपर्क करें और लोगों को खुश रहने के स्पष्ट निर्देश दें । साफ साफ बता दें कि जो खुश नहीं होगा देशद्रोही माना जाएगा । हमारे यहाँ खुश होने की सुदीर्ध परंपरा है । लोग किसी के गिरने, उछलने-कूदने, उल्टा-सीधा होने पर मजे में खुश हो लेते हैं । वो पीढ़ी अभी भी जिन्दा है जो चवन्नी पड़ी मिल जाने पर तीन दिनों तक खुश हो लिया करती थी । इनसे प्रेरणा लेने की जरुरत है । समाज विकास की राह पर है, लेकिन कुछ सूमड़े मुंह उतार कर घूम रहे हैं । जिन्हें खुश होने में कठिनाई है उन्हें हास्य योग करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए । उन्हें कहें कि सुबह देर से उठें, दस ग्यारह बजे तक लम्बी तान के सोएं और सुख का अनुभव करें । नींद खुले तो सबसे पहले सीधे बैठ कर हंसें, हंसते जाएँ । एक व्यक्ति को हँसता देख कर दूसरे भी हंसने लगते हैं । इस तरह पूरा प्रदेश ख़ुशी के चार्ट में सबसे उप्पर आ जायेगा । न्यायपालिका सहमत हुई तो हंसने का कनून बना कर लागू कर दिया जायेगा ।

           महंगाई को लेकर विपक्ष वाले बहुत नाखुश हैं । ये छूत के बीमार दूसरों को भी नाखुश  करते हैं ।  सरकार जल्द ही महंगाई शब्द को प्रतिबंधित करने पर विचार करेगी । मिडिया महंगाई के बारे में मुंह नहीं खोलेगा, उसे संस्कारित किया जा चुका है । पुराना समय देखिये, लाल झंडे वाले महंगाई से ही जिन्दा थे, लेकिन अब गायब हैं । इसका मतलब महंगाई भी गायब है और यह ख़ुशी की सबसे बड़ी बात है । कुछ लेखकनुमा लोग महंगाई को रोते रहते हैं उन्हें संस्कारित करने की जरुरत है । महंगाई कहने की अपेक्षा ‘जीवन स्तर ऊंचा हुआ’ कहना अधिक साहित्यिक है । साहित्य वह होता है जिसमें जनता और उसके सेवकों का हित प्राथमिकता के साथ जुड़ा हो । कुछ मनहूस अफवाह फैला रहे हैं कि रुपये की कीमत गिरी है । उनकी आँखें खोली जाएंगी और दिखाया जायेगा कि कीमत वही है केवल रंग बदला है । रंग बिरंगी मुद्रा धारक को ख़ुशी प्रदान करती है । उसे लगता है कि जैसे उसकी मुट्ठी में इन्द्रधनुष है । रेडियो पर गाना बजता था  ‘तेरे लिए सात रंग के सपने चुने’ तो बेमतलब लगता था । अब मतलब निकल आया है, सात रंग के नोट सपने को साकार कर रहे हैं । सुनने-सुनाने वालों को कितनी ख़ुशी होती है इसे प्राइम न्यूज में दिखाने की जरुरत है ।

           लम्बे समय से चिल्लपों मची है कि लोगों में नफ़रत बढ़ गयी है । समाज को विभाजित किया जा रहा है । लेकिन ख़ुशी की बात है कि इस तरह शिकायतें निराधार साबित हुई हैं । जाँच एजेंसियों की रिपोर्ट से साफ हो गया है कि सब झूठ है । कुछ उदासीन फुरसती लोगों ने जबरन ‘जोड़ो यात्रा’ निकाल डाली । लेकिन आप देखिये उसमे शामिल हर आदमी खुश था । चप्पे चप्पे में अमन, शांति और खुशहाली कूट कूट कर भरी हुई है । इसलिए ध्यान रखें कि चाहे कोई नंगा-भूखा हो, बीमार हो, लुटा-पिटा हो, दीन-दरिद्र हो पर खुश दिखे । हमारा लक्ष्य वह ब्रेकिंग न्यूज है जिसमें मुर्दा भी हँसता हुआ दिखाई दे रहा हो ।

-----


मंगलवार, 31 जनवरी 2023

करो प्रदर्शन म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार






 

                तय था कि हाथी जिसके गले में माला डाल देगा वही रतनद्वीप का अगला शिक्षा मंत्री होगा । हाथी ने सड़क किनारे बैठी हुई कुतिया के गले में माला डाल दी । हाथी को पता था कि परसाई ने शिक्षा को सड़क किनारे पड़ी कुतिया बताया था जिसे हर कोई लतिया कर चला जाता है । कुतिया रतनद्वीप की शिक्षा मंत्री हो गयी । रतनद्वीप सरकार यों भी दुम पर ज्यादा गौर करती है योग्यता पर कम । लेकिन लात मारने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ना था । उनकी टांगे फड़क रही हैं । जो शिक्षा के बारे में नहीं जानते हैं और नहीं जानते हैं कि वे नहीं जानते हैं, उन्होंने शिक्षा मंत्री के गले में सबसे पहले माला पहनाई और उसे अपने प्रभाव में लिया । दूसरे दिन अख़बार में खबर लगी कि ‘वे’ व्यवस्था का प्रतीक तो पहले से ही थीं अब जिम्मेदारी भी मिल गयी है ।

               विभाग में सबसे पहले भाषा को ले कर उठापटक शुरू हुई । मंत्रालयों में उठापटक को चिंतन कहने की आदर्श परंपरा है । रतनद्वीप में अफसरों की भाषा और आम नागरिक की भाषा अलग अलग है । लोग भाषा के बल पर कट मरते हुए आगे निकल जाते हैं । अंग्रेजी फर्राने वाला वकील देसी जज को हलुवा समझते हुए खा जाता है । बहस के दौरान जज मुद्दों से कम भाषा से अधिक जूझता है । शिक्षा व्यवस्था पर सबसे पहले यही सवाल आया कि भाषा का ये हथियार कैसे जब्त किया जाये । क्योंकि मंत्रालय में भी बड़ी दिक्कत होती है । अफसर भाषा के बल पर अपनी सरकार चलाते हैं । मंत्री बेचारा मात्र सरकारी लेटरपेड बन कर रह जाता है । तो सुझाव आया कि सरकार हिंदी में चले । हालाँकि सवाल ये उछले कि क्या नेताओं को सही हिंदी आती है । जवाब गया कि अफसरों को हिंदी में समझाने लायक तो आती है । सरकार के लिए इतना ही काफी था । अब सारे जरुरी काम हिंदी में होंगे । अंग्रेजी के अख़बार भी हिंदी में छपेंगे । शिक्षा मंत्री ने फरमान जारी किया कि स्कूल कालेजों में पढ़ाई हिंदी में होगी । जो ज्ञान-विज्ञान अंग्रेजी में है उसे फ़िलहाल देशभक्त दीमकों के लिए अलमारियों के हवाले करें ।

                   लोकतान्त्रिक व्यवस्था में युद्ध म्यान से लड़े जाते हैं तलवार से नहीं । कबीर होते तो उन्हें कहना पड़ता ‘प्रदर्शन करो म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार’ । जनता शत्रु नहीं है, यहाँ तलवार का क्या काम । अशिक्षा और गरीबी दो अनमोल रतन हैं रतनद्वीप के । अशिक्षा से गरीबी लिंक है, गरीबी से वोट और वोट से सत्ता । जुमलों में बोल भले ही दें कि हटायेंगे लेकिन जिस डाली पर बैठते हैं उसे कौन हटाता है भला ! अशिक्षा तो डर का घर भी है । जो डर गया वो सरकार का हो गया । कुछ थे जो कभी गरीबों के हक़ की बात किया करते थे । पता नहीं किस नागाभूमि  में जा बसे हैं । वो भी थे जो बाबासाहब  की बातों पर गौर किया करते थे । उनके शिष्य अब बाबाजीओं को झूमते सुन रहे हैं । अन्धविश्वासी और भक्त यूँ ही नहीं हो जाते हैं लोग । चमत्कारों के बिना यह संभव नहीं है । और सत्ता के समर्थन से बड़ा कोई चमत्कार क्या हो सकता है ? ज्ञान-विज्ञान और बाबाओं के बीच सरकार म्यान ले कर खड़ी है । घोषणाओं-भाषणों की म्यान, उद्घाटनों-शिलान्यासों की म्यान, नारों-विज्ञापनों की म्यान । इन हवाओं में म्यानों से पूरा युद्ध लड़ा जाएगा । आप क्या कहेंगे ! क्या कह सकते हैं ! आपको कहना पड़ेगा – ‘विजयी भव’ ।            

-------

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

नेचरल-काल है, कभी भी आ सकता है


 




              अभी तक ये बकवास खबर मिडिया में चल रही है कि एक सभ्य हवाई-यात्री ने चलते विमान में एक इन्सान पर पेशाब कर दिया ! सोचने वाली बात है कि कोई अपनी इच्छा से, जानबूझ के तो करता नहीं । हो गयी तो हो गयी, नेचरल काल है जी कभी भी आ सकता है । इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ! शराब पी कर किसी को होश रह जाये तो काहे की शराब ! एं !? शराब अमीरों का शौक है । चार पैग के बाद तो जमीन पर खड़ा आदमी उड़ने लगता है । जो आदमी आलरेडी उड़ रहा हो उसका तो कहना ही क्या ! डबल उड़ान यानी डबल इंजन । बोले तो पवार शहंशाई, मन आएगा वहां करेगा । पोल्टिक्स और उड़न में कोई खास अंतर नहीं है । नीचे देखो तो सब छोटे लगते हैं, चींटियों के समान । क्या आदमी क्या औरत । समुद्र भी घर का टब नजर आता है । कानून का डर जमीन पर होता है । जो जमीन पर है ही नहीं उसके लिए कौन सा नियम-कानून और कैसी नैतिकता । अभी सुना होगा कि रुपया कमजोर नहीं हुआ, डॉलर मजबूत हुआ । मान लिया था ना सबने ? इसी तरह किसी कुत्ते ने खम्बे पर नहीं मूता, खम्बा ही धार के बीच में आ गया, मान लो । ऐसे में समझदार लेब्राडोर क्या करे बेचारा । समझ रहे हैं ना आप ? कोई सीरियस मैटर नहीं है । बड़े बड़े लोगों के जीवन में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं ।

                        भले आदमियों का भी पक्ष देखना चाहिए मिडिया को । एक तो बेचारा महंगा टिकिट ले कर यात्रा कर रहा था । कुछ पैसा वसूल हो जाये इसलिए पीना पड़ी । मूल रूप से तो वह देश का गौरव बढ़ाने की कोशिश में था कि ये घटना हो गयी । देखिये साहब नागरिक अधिकारों का यह मतलब तो नहीं कि शरीफ आदमी की विवशता के बीच कोई आ जाये और हफ़्तों तक सुर्ख़ियों में बना रहे ! देश इस समय आत्मनिर्भरता के प्रति गंभीर है । जो जहाँ है वहीँ से आत्मनिर्भर हो लेने का अधिकारी है । बस या ट्रेन में हो या फिर प्लेन में ही क्यों न हो उसकी निष्ठा में कोई कमी नहीं आना चाहिए । आपदा में अवसर का मन्त्र है हमारे पास तो फिर सोचना क्या ! बड़े लोगों की बगलगीरी कुछ सावधानियों की मांग करती है । अगले को चाहिए था कि रेनकोट पहन कर बैठे । तरल पदार्थ किसी के भी ऊपर गिरेगा तो कपड़े गीले होंगे ही । हाँ शिकायत यह हो सकती है कि गीले कपड़ों में सफर कैसे करे कोई ! तब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि यात्री को सूखे कपड़े तुरंत मुहैया करवाए । कोर्ट को भी इसका संज्ञान लेना चाहिए और निर्देश देना चाहिए कि हर टिकिट पर वैधानिक चेतावनी लिखवाये कि ‘पड़ौसी के किये पर विमान और शराब कंपनी जिम्मेदारी नहीं होगी’ ।

                            सब जानते हैं ग्राहक भगवान होता है । हवा में उड़ने वाले यानी वायु भ्रमण करने वाले तो होते ही हैं, आज से नहीं अनंतकाल से । रावण साहब को देखिये, सीताहरण के लिए विमान ले कर आये थे । तो जोर जबरदस्ती, अनैतिकता, मनमर्जी कोई नयी बात नहीं है । हाँ, इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि विमान में दारू परोसने से पहले प्रभारी अधिकारी यह सुनिश्चित कर ले कि ग्राहक देव ने डायपर पहना है या नहीं । नहीं पहना हो तो पहले पहना दे । इसके साथ यह भी ध्यान रखे कि ब्लेक डॉग नहीं दे कोई कुत्ता छाप दे ताकि वह भला आदमी पी कर बेहोश पड़ा रहे । जो भी सम्बंधित हो आगे से ध्यान रखना आप लोग । तो गलती आपकी है, चलो सॉरी बोलो फटाफट ।

------


शनिवार, 7 जनवरी 2023

इंजिनियर भुट्टे वाला






 


               जो मीठा बोलता है वही मिट्ठू होता है । कहते हैं आदमी नहीं चलता है उसके बोल चलते हैं । मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है । लेकिन अपने लोकतंत्र में ऐसा नहीं है । नेता मीठा भले ही नहीं बोले झूठ बोलने में माहिर होना चाहिए । यह बात अलग है कि झूठ अक्सर मीठा होता है । लेकिन अति सब जगह वर्जित है । झूठ के मामले में भी । शुरुवाती झूठ रंक को राजा बना सकता है लेकिन लगातार झूठ राजा को रंक बना देता है । यह सच है इसलिए यहाँ लिखा जा रहा है किसी होर्डिंग पर नहीं । होर्डिंग पर प्रायः झूठ ही जंचता है । जैसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा झूठ है ‘युवा हृदय-सम्राट’ । अगला न युवा होता है न सम्राट । मिडिया पूछे तो कहता है मैं सेवक हूँ ! असल में वो सेवक भी नहीं होता है । ये झूठ लोकतंत्र की देन है । इसमें असल खेल चमचे कर जाते हैं । उन्हें मालूम है कि भियाजी को ऊपर उठाने के लिए कितने फुग्गे लगते हैं ।

              एक सम्राट छाप कटआउट के नीचे भुट्टे वाला खड़ा है । उसके गले में कार्ड लटका है, परिचय-पत्र की तरह । उस पर लिखा है इंजिनियर भुट्टे वाला । उसके भुट्टों में कुछ जरासे छिले हुए भी हैं । अन्दर से पीले सफ़ेद दाने चमक रहे हैं ।  लग रहा है जैसे भुट्टे दांत दिखाते हंस रहे हैं । बोला – “ले लीजिये सर, बहुत मीठा है । मुंह में घुल जाएगी इसकी मिठास ।“

           “भुट्टा कहाँ इतना मीठा होता है ! सच भी बोला करो जरा ।“

           “झूठ बोल सकते तो क्या भुट्टा बेचते सर  ! कटआउट न हो गए होते । ये देखिये सच, ढो रहे हैं ।“ उसने गले में लटका कार्ड दिखा दिया ।

          “इंजीनियर होकर भुट्टा क्यों बेच रहे हो !?”

           “मजा आ रहा है इसलिए बेच रहे हैं भुट्टा । दुनिया ग्लोबल बाजार है । सब बेचने में लगे हैं । मौका है, आप भी कुछ बेच लो ।“  

           “बाजार में सब बेचने ही निकलते हैं क्या ? मेरे पास बेचने को कुछ भी नहीं है ।“

          “कुछ नहीं है तो ये कटआउट बेच दो । पंछी बीट कर रहे हैं उसके ऊपर ।“

           “ये मेरा नहीं है ... मतलब मैं इसका मालिक नहीं हूँ । न इसे मैंने बनाया है, फिर इसे कैसे बेच सकता हूँ !!”

           “जब तक कोई आपत्ति नहीं लेता आप तो बेच के निकल लो फटाफट झोला दबाके ।“

           “राम नाम जपना, पराया माल अपना ।  ये अपना काम नहीं है इंजीनियर साहब । आखिर ऊपर जा कर भगवान को मुंह दिखाना है ।“

          “ऊपर अब कोई नहीं है । भगवान नीचे आ गए हैं ।“

           “छोड़ो इंजीनियर साहब, आप तो भुट्टा देदो ।“

            “ले जाइये, अमेरिकन है ।“

            “देसी नहीं है ! वो बालों वाला । देसी ... अच्छा होता है ।“

            “जब से नेता दाढ़ी वाले हुए लोग भुट्टा क्लीन शेव्ड पसंद करने लगे हैं । ... किस के काम बढ़िया आता है, ये मीठा भी है । “

            “हम लोग पुराने ज़माने के हैं भाई । हर चीज देसी पसंद करते रहे हैं । आप नए लोग, नया जमाना । हर बात में अमेरिका से नीचे कुछ देखते सोचते नहीं हो ।“

            “तब तो जरुर ले जाइये । आखिर वक्त में ही सही, कुछ तो अमेरिका हो जाएगा जीवन में ।“ कहते हुए उसने दो भुट्टे पकड़ा दिए । बोला –“ अकेले खाइयेगा ? आंटी जी को नहीं दीजियेगा ? आपके लिए एक के साथ एक फ्री । ”

-----


गुरुवार, 5 जनवरी 2023

बिल्लोरानी ... कहो तो अभी जान ले लूँ !


 



               जंग और मोहब्बत में सब जायज है बिल्लोरानी । जानती हो ना ? देखो, तुम न जानो तो यह तुम्हारा प्राब्लम है, हम तो जानते हैं ... और मानते भी हैं । इतिहास उठा कर देख लो, हमारी जंगों और मोहब्बत की दस्तानों से भरा पड़ा है । पर तुम इतिहास मत देखना, बल्कि मैं तो कहूँगा कुछ भी मत देखना । मोहब्बत अंधी होती है, मतलब मोहब्बत में अंधापन बहुत जरुरी है । देखभाल कर की जाये तो मोहब्बत नहीं सौदा होता है । और साहेबा ... प्यार में सौदा नहीं ।

                मोहब्बत में जान देने वाले अमर हो जाते हैं । तुम्हें अमर प्रेम करना है और देर सबेर अमर होना है । अपनी अम्मा-बापू से पूछ लेना वो बतायेंगे कि आत्मा अमर होती है । पंडित लोग बताते हैं कि उसे किसी शस्त्र से काटा नहीं जा सकता है, न अग्नि उसे जला सकती है, न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है । आत्मा केवल शरीर बदलती है, और शरीर जो है नाशवान है । कोई न भी करे तो भी वह नष्ट होता ही है । लेकिन बिल्लो जान, तुम चिंता नहीं करना । मैं तुम्हारी मदद करूँगा । तुम सच्चा प्रेम करती हो, बार बार जनम लोगी । मिडिया तुम्हें हमेशा याद रखेगा और अपनी टीआरपी बढ़ाएगा । मर के भी किसी का पेट भर सको यह छोटी बात नहीं है ।

               ऐसा वैसा सोचते मत बैठो, आगे भी कुछ सोचना मत । सोचने से खतरों का आभास होता है । डर जाता है सोचने वाला । सुना है ना, ‘आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू , जो भी है बस यही एक पल है’ । और यह एक पल तुम्हारा अपना है बिल्लो डियर । इस पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है । जिंदगी तुम्हारी है । इस पर माँ-बाप का कोई अधिकार नहीं है । अठारह साल से उपर की हो सो कानून भी तुम्हें रोक नहीं सकता है । मैं नहीं हूँ लेकिन तुम तो पढ़ी लिखी हो । तुम्हारे पास डिग्रियां हैं । कमाती हो, अपने पैरों पर खड़ी हो । और क्या चाहिए एक औरत को आज़ाद-औरत होने के लिए !!

             मोहब्बत के मामले में तुम नयी हो । लेकिन मैं हूँ ना, मुझे काफी तजुर्बा है । यह अच्छी बात है । इससे तुम्हारा भरोसा और आत्विश्वास बढ़ना चाहिए । छोटी सी नौकरी में भी एक्सपीरियंस को महत्त्व दिया जाता है । फिर ये तो तुम्हारी जिंदगी का सवाल है । मुझे एक्सपीरियंस है और हम दोनों एक होने जा रहे हैं । दूसरे जब तक ये सीखते हैं कि औरत से प्रेम कैसे करें तब तक हम एक से कर चुकते हैं और दूसरी पर नजर भी रखने लगते  हैं ।  समझदार लोग ज़माने के साथ चलते हैं और तुम्हें तो पता है कि जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है ।

             और तुम्हें मालूम है बिल्लो रानी, बोलने बतलाने से टोक लग जाती है । बनता काम बिगड़ जाता है । इसलिए किसी को कुछ भी बोलना बतलाना मत । चुप रहना और चले आना । हालाँकि चुप रहना कठिन होता है औरत के लिए । लेकिन मेरे साथ रहोगी तो अपने आप सीख जाओगी । कोई दिक्कत होगी तो मैं सिखा दूंगा । तुम बस मोहब्बत करती चलाना । जब तक मोहब्बत चलेगी तभी तक जिंदगी चलेगी । बिना मोहब्बत के जिंदगी का क्या मायना । ठीक है ना बिल्लो ? मैं कुछ गलत तो नहीं बोल रहा हूँ । बड़ी बड़ी बातें हैं, कहने सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं । किताबें तो पढ़ नहीं सका, पिच्चरें देख देख कर सीखी हैं । नालेज कहीं से भी मिले लेना चाहिए ।

               तो क्या तय किया बिल्लो बिंदास ? देखो ना मत कहना वरना ..... मेरी जान निकल जाएगी । तुम्हें पाप लग जायेगा । तुम जानती हो ना कि औरत एक ही बार प्यार करती है ? तो अब तुम किसी और से प्यार कर सकती हो ऐसा सोचना भी मत । तुम्हारी रजामंदी मांग रहा हूँ इससे ज्यादा शराफत का सबूत क्या  हो सकता है । अच्छा ऐसा करते है कि काउंट करते हैं, तुम रजामंदी देना ओके । एक ... दो... तीन ... पर ध्यान रखना बिल्लो, मुझे पैंतीस के आगे गिनती नहीं आती है ।

------