गरमी के
मौसम में जब तपन बढ़ी हुई थी और आसपास हरा बहुत कम देखने को मिल रहा था तब मुंडेर
के इस पीपल को देखना लोगों को अच्छा लगने लगा । जैसे किसी धराधीश की पगड़ी पर लगी
कलंगी हो । सबने हरेपन पर ध्यान दिया और जड़ों के कारनामे देखना भूल गए । लोग सोचते
कि पीपल की छांह फैलेगी तो घर में शीतलता उतर आएगी । पीपल के मार्फत सुकून और आनंद
जैसे सपनों में सीरियल की तरह आने लगे । इस बीच धर्म के जानकार सक्रिय हुए, उन्होने बताया कि पीपल में देवताओं का वास होता है । मुंडेर का यह वृक्ष
देवाश्रय है और घर के लिए बड़ा ही शुभ है । पीपल के नीचे दीपक जलाने की परंपरा है ।
घर के लोगों में भक्ति का भाव जागृत हो गया । जिन्हें मुंडेर और घर बचना था वे
पीपल पूजक हो गए । घर की हमेशा लाल साड़ी पहनने वाली छोटी बहू शिक्षित है और
वास्तविकता को जानती समझती है । उसने कई बार कहा कि घर की सुरक्षा के लिए इसे उखाड़
फ़ैकना चाहिए । इसके लिए उसने आसपास खूब चर्चा की, माहौल
बनाने की कोशिश की लेकिन कहीं से कोई समर्थन नहीं मिला । उल्टे उसकी हर कोशिश
भक्तों को ढीठ बनती गई । उत्साहीजनों ने तरह
तरह से पीपल को सींचने की युक्ति बना ली । वातवरण और माहौल अनुकूल हो गया तो मकान
पर पीपल की पकड़ और मजबूत हो गई । उसकी जड़ें तेजी से दरारों में धँसते हुए जमीन की
ओर बढ़ने लगीं । पीपल के कारण घर दूर से ही पहचाना जाने लगा । उसे नया नाम भी मिल
गया ‘पीपल वाला घर’ । अब घर खास है । जमीन
के साथ भक्तों में भी उसकी जड़ें गहरी उतर गईं, वे छोटी बहू
को आँख दिखाने लगे । वह जान रही थी कि
पीपल के कारण बरसों से खड़ी दीवारें कमजोर और खोखली होती जा रही हैं लेकिन उसने
मुंह बंद रखने में ही अपनी भलाई समझी । उसे सुनने समझने वाला कोई नहीं था । गालिब के
बोल हवाओं में थे – “उग रहा है दर-ओ-दीवार
से सब्जा गालिब; हम बियाबाँ
में हैं और घर में बहार आई है “ ।
और एक दिन
वही हुआ जिसका डर था । जड़ों ने दीवारें फाड़ दीं । यह बारिश का मौसम था । पीपल को
जैसे पंख लग गए । जड़ें ऐसे फैलीं कि उन्होने पूरे घर को जकड़ लिया । पीपल में देव
बसते हैं सो को उखाड़ने की हिम्मत किसी ने नहीं की । हर तरफ ‘दिया जलाओ, ताली बजाओ’ की
आवाजें आने लगीं । जल्द ही पीपल दीवारों को निगल कर आत्मनिर्भर हो गया । आखिर घर
के लोगों को पलायन कर दूसरी जगह शरण लेना पड़ी ।
आज घर में
कोई नहीं है । यो कहना चाहिए कि घर ही नहीं है । जगह जगह से फटी पड़ी दीवारें हैं ।
लोग जानने समझने के बावजूद सुबह शाम दीपक जला रहे हैं । भक्तों में आस्था की दीवारें मजबूत हैं । कहते
हैं देवता आबाद हैं । पीपल के निमित्त एक व्यवस्था कानून की तरह स्वीकृत हो चुकी
है । इस बीच छोटी बहू को मायके वाले लिवा ले गए हैं । उसकी लाल साड़ी से बने झंडे
पीपल की शाखाओं पर लटके हवा के रुख बता रहे हैं ।
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