मंगलवार, 7 सितंबर 2021
शांतिवन में प्लास्टिक
सोमवार, 6 सितंबर 2021
कहो जी तुम क्या क्या खरीदोगे !
बाबूजी तुम क्या क्या खरीदोगे !? यहाँ तो हर चीज बिकती है . ये दुनिया है बाज़ार बाबू, नगद उधार मिलेगा, अपना हो या कि ना हो, ... पर मिलेगा . घर के सामने की आधी सड़क ले लो, पीछे गली हो तो पूरी ले लो . छोटी बड़ी सब मिलेगी . एयरपोर्ट ले लो, हवाई जहाज बिकाऊ हैं , चाहो तो आधा आसमान लेलो, इन्वेस्टमेंट अच्छा है . रेल लेलो, मेल लेलो, पटरियां और प्लेटफार्म लेलो. गाड़ी मिल जाएगी सुपरफास्ट, साथ में ड्रायवर ध्रतराष्ट्र लेलो . स्कूल की इमारतें सरकारी, खाली पड़े मैदान चुन लो, एक दो नहीं दस बीस लेलो . अस्पताल मिल जायेंगे घटे दरों पर, दवा की दुकान लेलो . स्कूटर, सीमेंट, पम्पस की फेक्ट्रियां मिलेंगी चालू हालत में . शिपिंग, स्पात, इलेक्ट्रोनिक्स के चलते संस्थान लेलो . बैंक, बीमा, टेलीकाम, ऊर्जा सब मिलेगा . सोचो मत, ऐसा मौका फिर कब मिलेगा . दुनिया फानी है, कुर्सी आनी जानी है .
चाहो तो बर्फीले पहाड़ खरीदो, नगदी हो तो नदियाँ तालाब तुम्हारे . खेल के स्टेडियम मिलेंगे, छोटे बड़े खिलाड़ी लेलो . मुरब्बा बनाओ, आचार डालो; विद्वान्, बुद्धिजीवी, चतुर सायाने लेलो. राजनीति नहीं है जी खेला है, लोकतंत्र का मेला है . रेडियो टीवी लेलो, खबरों से कर लो मनमानी. हवा लेलो, सांसें लेलो या ले लो सागर का पानी . सस्ता महंगा मत देखो, घर जाने का भाव देखो . महल कचहरी, सील सिक्के, सेना लेलो सरदार लेलो . तोंद सहित पुलिस मिलेगी, बिना इशारे नहीं हिलेगी . वर्दी वाला हेड लेलो, सावन भादौ जेठ लेलो . नया पुराना गाँधी लोगे ? या बादल बरसात आँधी लोगे ? सेल है सब मिलेगा, औने पौने में भी चलेगा, कोई माल मुफ्त नहीं मिलेगा . बापू की धोती, चप्पल और चश्मा है ... दाम लगाओ . लाठी बकरी नहीं मिलेगी, चाहो तो ‘हे राम’ लेलो . राम की चिड़िया है जी और खेत भी राम का, खा-लो चिड़िया भर पेट, ... चिड़िया मिलेगी, चहक मिलेगी . सूखी गीली तंदूरी खनक मिलेगी . हजम करने को बाबा की पुड़िया है . डरो मत जनता गूंगी बहरी बुढ़िया है . घोड़ा, हाथी, ऊंट लेलो, वजीर बिक चुका है, प्यादे धोले काले लेलो . शकुनी वाले पासे लेलो, भरी सभा में तन कर खेलो . खरीदो कि बाज़ार खुल गए, नगद लेलो, क़िस्त करवा लो, वजन धरो उधार भी मिलेगा . नहीं कुछ है अगर, अपने हो मगर तो उपहार मिलेगा . मंदी का माहौल है पता है, बस राम नाम जपना है पराया माल अपना है .
आप पूछेंगे कि किस हैसियत से बेच रहे हैं आप ! तो जान लो कि चरवाहा जितनी देर बकरियां चराता है जंगली जानवरों से रक्षा की जिम्मेदारी उसकी होती है . इस वक्त वो मालिक होता है बकरियों का . परन्तु चरवाहे से बकरियों की रक्षा कौन करेगा इसके बारे में कानून मौन है . किसकी हिम्मत सवाल करे, माई का लाल कौन है ! नगदीकरण या मोनेटाईजेशन एक सुन्दर शब्द है . इसमें संपत्ति का स्वामित्व बेचने वाले के पास रहता है ... यानी बिकता कुछ नहीं है बस सेवा का नगदीकरण हो जाता है . जैसे काल गर्ल का कुछ नहीं जाता, वह बस सुख का नगदीकरण या मोनेटाईजेशन कर लेती है . अपराध नहीं है मोनेटाईजेशन, अपनी सोच को बड़ा करो . असल में ये संसार बाज़ार है, लेन देन ही जिन्दा रहने का प्रमाण होता है यहाँ . और यह भी तो देखो कि बेचना हर किसी को कहाँ आता है . मीठा बोल कर बेचने वालों की मिर्ची भी बिक जाती है और जो मौन रहते हैं उनका गुड भी नहीं बिकता है , कुर्सी अलग चली जाती है . बेचना एक कला है, लोग धरती पर बैठे चाँद पर छोटे बड़े प्लाट तक बेच रहे हैं . हम आगे बढ़ेंगे तरक्की करेंगे, पाऊच में पेक कर सूरज की रौशनी भी बेचेंगे .
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बुधवार, 1 सितंबर 2021
भावना आहत करें, सत्ता में आयें
भारत एक राजनीति प्रधान देश है और यहाँ राजनीति भावना
प्रधान है . भावना दन्न से आहत होती है और गुलशन में नए गुल खिल जाते हैं . जैसे मधुमक्खी के छत्ते में
पत्थर मारो तो वे उड़ कर माहौल में छा जाती हैं उसी तरह जनभावना को आहत कर दो तो एक
खास किस्म का बदला हुआ मजबूत माहौल बन जाता है . जानकार
इसे जनभावना से खिलवाड़ करना भी कहते रहते हैं . लेकिन यह कोई मामूली काम नहीं है . जन समूह की भावना के साथ खेल लेना राजनितिक
कौशल का काम है . कुछ लोग इसे बुद्धिमानी का काम भी कहते हैं . भावना जब जनता की
हो तो खिलवाड़ करने के लिए दूरदृष्टि और बड़े अनुभव का होना लाभदायक होता है .
बहुत दिनों तक भावना आहत नहीं हो तो यह काम खुद पार्टी को करना पड़ता है .
लोग अब जागरूक और समझदार भी हो चले हैं, भावना के मामले में वे शाक-प्रूफ होते जा
रहे हैं . एक तरह से ये अच्छा भी है . अगर गैस-पेट्रोल, दाल-तेल की महंगाई से उनकी
भावना आहत होने लग जाए तो लोग चुनाव के वक्त पर नेता के सामने सोंटा और वोटा के समय
नोटा इस्तेमाल करने लगेंगे . फार्मूला यह है कि चुनाव आते ही भावना आहत कर दें या
फिर भावना आहत हो चुकी हो तो तुरंत चुनाव करवा लें . लीडर का काम है कि जनता की भावना का
वो हिस्सा आहत करवाए जो पार्टी के काम का हो . धर्म इसमें बड़ा काम आता है .
भावनाएं पोल्ट्री फॉर्म की मुर्गियों की तरह हैं जिन्हें मार देने के लिए ही पाला जाता है
. सरकारें आती हैं जाती हैं, नेता आते हैं जाते हैं लेकिन लोकतंत्र के लिए जनता की
आहत होने वाली भावनाएं बनी रहनी चाहिए .
एक लोकतान्त्रिक देस में दो पार्टियाँ हैं, एक
टप्पू पार्टी और एक गप्पू पार्टी . गप्पू पार्टी को लोगों की भावना से खेलने में
मास्टरी है सो ग्रासरूट तक खेलती है . टप्पू पार्टी अपनी पुश्तैनी शेरवानी और लाल
गुलाब में ही टप्पे खा रही है . जनता से उसे वोट के आलावा कोई खास लेना देना नहीं
था जितना कि गप्पू पार्टी को था . टप्पू ठहरे छली घर्मनिर्पेक्ष और लोगों की भावना जो है धार्मिक मसलों पर ‘फट्ट से’ आहत होती है. ये खेल उनके बस का नहीं रहा . जिनकी भावना आहत नहीं होती यानी नास्तिक और
बुद्धिजीवी टाईप लोगों की, उन पर गप्पू समर्थक वाट्स एप के जरिये इतना थूकते हैं
कि वे अपने झंडे डंडे के साथ कहाँ गायब हो गए हैं पता नहीं चलता . मतलब मैदान साफ
हो जाता है . लोकतंत्र में आहत भावना सत्ता के लिए रेड कारपेट होती है . इस बात से
किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कारपेट पर चलने वालों के पैर कीचड़ में कितने सने
हुए हैं .
इधर आधी जनसँख्या यानी महिलाओं की भावनाएं बहुकोणीय होती हैं . जाहिर
हैं कि आहत होने के लिए उनके पास अलग अलग कोण की सुविधा होती हैं . जैसे एक कोण
पति,सास या अन्य रिश्तेदारों से आहत होने लिए होता है, दूसरा किसी की साड़ी, जेवर
वगैरह देख कर आहत होने के लिए . इसी तरह और भी तमाम कोण हैं, आहत होने का कोई मौका
वे नहीं छोड़ती हैं . बजट में टेक्स के इजाफे की पहली खबर से उनकी भावना आहत होना
शुरू कर देती है . वित्तमंत्री इस बात को जानता है . इसलिए बजट में वह चालाकी से टिकी बिंदी को टेक्स छूट के साथ गैस के पांच रुपये नब्बे पैसे कम कर देता है और देश भर की महिलाओं के सर पर बधाई के साथ
अहसान का टोकरा भी चढ़ा देता है . साथ में यह बयान कि सरकार ने महिलाओं की भावना का
ध्यान रखा है . भावुक देवियाँ इतने में खुश हो कर खोटे सिक्कों को पर्स में डाल कर
दिल के करीब रख लेती हैं . जनभावना ऐसा सिक्का है जिसके दोनों तरफ ‘हेड’ है, उछालने
वाला चाहिए . जो सही सही आहत कर ले सत्ता उसकी .
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रविवार, 29 अगस्त 2021
सब चंगा है जी !
पचहत्तर वर्ष की आज़ादी ने भारत के लोगों को बोलना सिखा दिया था . जब तक लाल झंडे वाले सक्रिय थे लोग खूब चीख चिल्ला भी लेते थे . किसी ज़माने में महंगाई बढ़ते ही सरकार की नींद हराम हो जाया करती थी . लोग सडकों पर उतर आते थे और अख़बार भी दूसरे दिन हाय हाय करते दिखाई पड़ते थे . यह सब स्कवाभाविक था, कहा जाता था लोगों को खाना कपड़ा नहीं मिलेगा तो चिल्लायेंगे ही . कामरेड उनकी पहली आवाज़ थे, लेकिन अब वक्त बदल गया है . कामरेड कचरे के ढेर में सूई की तरह खो गए हैं . अब सबके पास शांति और खुशहाली की पासबुक है . खाना कपड़ा सभी के पास है . लोग खुश हैं, कमाई खूब है, जो लोग साठ रुपये लीटर पेट्रोल नहीं भरवा पाते थे वे एक सौ दस का डलवा रहे हैं और 'चूं' भी नहीं कर रहे हैं ! सोचते हैं दफ्तर से घर और घर से दफ्तर ही तो जाना है इसमे 'चूं' क्या करना . एक किस्म की तसल्ली है दिल में . देश छोड़ कर तो जाना नहीं है . बन्दूक की गोली से मरने की अपेक्षा दवा, इंजेक्शन या आक्सीजन की कमी से मर जाना काफी हद तक गरिमापूर्ण है . उसके बाद अगर पता यह चले कि ये मौत मौत नहीं मुक्ति है तो दिल में सुकून और शीतलता ऐसी भर जाती है मानों शरीर डीप फ्रीजर हो . जो भी गुस्सा, असंतोष, आक्रोश अन्दर पैदा होता है वो तुरंत आइस क्यूब हो जाता है . शरीर से खून जलने या खौलने का सिस्टम तो जैसे ख़त्म ही हो गया है . लगता है जनता के जीन्स ही बदल गए हैं ! और कितना विकास चाहिए जनता को एक वोट के बदले !?
तमाम बाबाजी लोग तनाव दूर करने के राष्ट्रीय कार्यक्रम में लगे पड़े हैं लेकिन उन्हें कोई तनावग्रस्त मिल ही नहीं रहा है . सरकार आटा और सरकारी सेठ डाटा भर भर के दे रहे हैं . युवा बेरोजगार भले हों पर हाथ किसी का खाली नहीं है . सबको मुफ्त मिल जाये खाने को तो क्यों जाये कमाने को ! मेहनत से डरने वाली कौम सपनों के बल पर ठाठ से जिन्दा रह सकती है . उस पर मैसेजबाजी से दंगों का डर अगर दिमाग में भर दिया जाये तो इतिहास में यह राजनितिक कौशल के रूप में दर्ज हो सकता है . बड़ा बदलाव है समाज में . लोग देखना चाहते हैं लेकिन नहीं देख रहे हैं . लोग सोचना चाहते हैं लेकिन नहीं सोच रहे हैं . लोग बोलना चाहते हैं लेकिन नहीं बोल रहे हैं . शासन करने के लिए इससे बेहतर जनता और कहाँ मिलेगी ! चाशनी नहीं हैं इसलिए विरोधी दल आपस में जुड़ नहीं पा रहा है . जिन पर लोगों सम्हालने की जिम्मेदारी हैं वे खुद लड़खड़ा रहे हैं . एक दिन ऐसा आएगा जब सरकार और टीवी-रेडियो के आलावा कोई कुछ नहीं बोलेगा . देश मूक फिल्मों की तरह दिखाई देगा . खाने और पाखाने के आलावा किसी के पास कोई काम नहीं होगा . सुना है स्वर्ग में भी यही होता है . और मजे की बात है कि ये स्वर्ग लोगों को बिना मरे मिलेगा . तुस्सी जीउंदे रहो जी, मौज करो मौज .
कुछ सिरफिरे कहते
हैं कि तालिबानी हिंसा के खिलाफ तो बोल दो, अपना विरोध तो दर्ज करो, लेकिन बुद्धिजीवी चुप ! कौन बोले भाई
!? यहाँ लोग अपने जख्म चुपचाप चाट रहे हैं वो दूसरों के लिए हाय हाय कैसे करेंगे !
जो कोई बोल भी रहे हैं तो गूंगों की साईन लेंग्वेज में, जिसे वे खुद समझ रहे हैं
या फिर दूसरा गूंगा . खुल कर कोई नहीं बोल रहा . सफाई देने वाले कह रहे हैं कि मुसलमानों
को बोलना चाहिए क्योंकि जो जुल्म का शिकार हो रहे हैं वो भी मुसलमान हैं ! दुनिया
भर की मुस्लिम औरतों को बोलना चाहिए, क्योंकि तालिबान सबसे ज्यादा अत्याचार अफगानी
औरतों पर ही कर रहे हैं . तो यहाँ की औरतें बोल सकती हैं . मौका आने पर जो भीड़ पर प्यार से पत्थर
चला सकती हैं, सरकार या पुलिस से छका सकती हैं तो इस समय उनकी चुप्पी क्यों आखिर !? ये चुप्पी तालिबानों के पक्ष में जा रही है. ..... जा रही है तो जाने दो . हमकौम दुश्मन थोड़ी होते हैं !
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बुधवार, 25 अगस्त 2021
आदमी हैं या वायरस कोई
इस वक्त सारी दुनिया अफगानिस्तान में चल रही
लहरें गिन रही है . हम भी दुनिया से बाहर नहीं हैं और गिन रहे हैं . पहली लहर में वे
कोरोना की तरह चुपके से नहीं, चीखते चिल्लाते आये और मुल्क में घुस गए . एक एक कर राज्यों को चपेट में ले लिया . देखते ही देखते लोग घरों में कैद हो गए जैसे कि दुनिया भर में लाकडाउन के
चलते लोग घरों में बंद थे . किस लेब में तैयार होते हैं वायरस और किस तरह एक
स्वस्थ मुल्क को संक्रमित कर देते हैं इस पर चर्चा चल रही है . वायरस से जिन्हें
लड़ना था वे अपनी जान बचा कर भाग गए . अब किसीको सूझ नहीं रहा है कि इस वायरस को
कैसे निष्क्रिय किया जाये . मौंतें लगातार हो रही हैं . कौन कहाँ मर रहा है पता
नहीं . परिजनों को लाश भी देखने को नहीं मिल रही है . मुल्क से भागने वालों को रास्ते
नहीं मिल रहे हैं, जैसे महानगरों से हजारों लोग पैदल भागे थे अपने गाँव की तरफ और
उन्हें बस, ट्रेन या गधा-घोड़ा कुछ भी नहीं मिला था . वक्त तारीख बदल कर दोहरा रहा
है अपने को . कल तक जो लोग भरोसे में थे कि सरकार लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से वेक्सिन
लिए दौड़ पड़ेगा और दुनिया वाले भी हैं ही . लेकिन एक सपना था, टूट गया . अब मैदान
में जहाँ जहाँ भी देखो कन्धों पर बन्दूक लिए वायरस ही है . आम नागरिक मर रहे हैं
और किसी को पता भी नहीं चल रहा है . अनपढ़ जाहिल वायरस मारते ज्यादा हैं और गिनते
कम हैं . कम गिनने से मुल्क के दस्तावेजों पर दाग नहीं लगते हैं . कुछ देश बीमारी
और वायरस के हिमायती बन कर उसके बचाव में कमर कसे खड़े हैं . वायरस से बचने के लिए
वे वायरस से दोस्ती करना पसंद कर रहे हैं . उन्हें नहीं मालूम आस्तीन के सांप सबसे
पहले किसका शिकार करते हैं .
दूसरी लहर में वायरस बदले हुए यानी नए वेरिएंट के
साथ आया है . अब उसके कई मुंह हैं, और हर कुछ समय बाद वह अपने इरादे, अपने वादे,
अपनी मुद्रा, यानी सब कुछ बदल लेता है . इस वेरिएंट ने प्रेस
कांफ्रेंस करके अपने को मुल्क का हिमायती और उदार दिल बताने की कोशिश की है . उसने
टीवी पर खुले चेहरे वाली महिला से बातचीत करके दुनिया को बताने की कोशिश की कि
औरतों से उन्हें कोई दुश्मनी नहीं है, वे
उन्हें कुछ पाबंदियों के साथ जीने देंगे . वायरस को शराफत के हिजाब में देख कर कुछ
देर के लिए दुनिया को लगा कि दूसरी लहर उतनी खतरनाक नहीं है . लेकिन अगले ही दिन
टीवी पर देखा कि एक मरियल सी औरत को हट्ठा कट्ठा आदमी कोड़ों से पीट रहा है .
समाचार वाचक ने बताया की औरत आधे कोड़े खाने के बाद ही बेहोश हो गई और थोड़ी देर बाद
मर गई . बचे हुए आधे कोड़ों के लिए अब उसे दूसरी औरत जरुरी है वरना न्याय नहीं हो
पायेगा . इधर टीवी देखने वाली दुनिया भर की औरतें ‘इश इश’ कर रही हैं . वे कोड़ों
की मार को महसूस कर रहीं हैं और जंगल राज के खौफ को भी . भगवान को शुक्रिया पर
शुक्रिया भेजा जा रहा है कि हमारे देश में यह सब नहीं है . भले ही दाल, तेल, आटा
महंगा हो गया हो, नौकरी चली गयी हो या धंधा बर्बाद हो गया हो पर हम सुखी हैं . अगर
यहाँ भी कोड़े ले कर संसकृति रक्षक ब्लाउज की बैक नापने लगें और कोड़े फटकारने लगें
तो जीना मुश्किल हो जायेगा . माना कि अफगानिस्तान दूर है, लेकिन खरबूजों का भरोसा
नहीं , खरबूजों को देख कर कब रंग बदलने लगें .
कोविड को तो एक न एक दिन काबू में कर लिया जायेगा
लेकिन इन वायरस का क्या जो रोज खून से कुल्ला करते हैं !! दुनिया में हैं किसी के
पास इनकी वेक्सिन ?!
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शनिवार, 21 अगस्त 2021
चिड़ियों से खतरा
पूरे मुल्क में मशीनगनें एक एक लड़ाके को लटकाए यहाँ से वहां भटक रही हैं . मशीनगनें जानती हैं कि उसके कन्धों पर एक ऐसा शख्स सवार है जो चिड़ियों से डरता है . दरअसल उन्हें पता है चिड़ियों के हौसले और उड़ान . दुनिया भर में वे जमीन से आसमान तक नाप रही हैं . उनसे आँख मिलाते खौफ होता है और उससे ज्यादा शरम आती है . हाथ में अगर मशीनगन न हो तो सर उनके कदमों में रखना पड़ सकता है . इसलिए जरुरी है कि चिड़ियाएँ परदे में रहें या घरों में कैद, पिंजरों में बंद रखी जाएँ या बेड़ियों में जकड़ी जाएँ . चिड़ियों की न चोंच होनी चाहिए न ही पंख . चिड़ियों के लिए मुल्क पोल्ट्री फॉर्म से ज्यादा कुछ नहीं है . अंडे दें, चूजे निकालें यही उनका फर्ज है . अगर वे शिक्षित हुईं तो पंख फैला सकती हैं, उड़ सकती हैं, अपने अधिकारों को पहचान सकती हैं, उसके लिए लड़ भी सकती हैं . शिक्षा और समझ के मैदान में लड़ाके उनका मुकाबला नहीं कर सकते हैं .
लड़ाकों की अपनी तरह की कोशिश ये रहती है कि किसी तरह बराबरी बनी रहे . जाहिलों
के लिए खातूनों का भी जाहिल होना जरुरी है . इसी को प्रापर मैच कहा जाता है . उन्हें
अपनी पसंद के मर्द से प्रेम नहीं करने दिया जायेगा . वे निजाम द्वरा तय किये आदमी
से ही मोहब्बत करेंगी . किसी औरत को सार्वजानिक रूप से कोड़े खाने का शौक हो तो वे किसी
और मर्द से ताल्लुख रखेंगी और अपनी ख्वाहिश पूरी करेंगी . समाज में बदचलनी नहीं
फैले इसलिए उन्हें संगसार भी किया जा सकता है ताकि वे एक नेक काम में मिसाल बन
सकें . अगर दुनिया भर में औरत को इन्सान समझा जाता है तो इसके लिए लड़ाके जिम्मेदार
नहीं हैं . दूसरों को चाहिए कि हमसे सीखें और अपनी गलतियों को सुधारें . औरतों का
स्कूल जाना सबसे पहले बंद किया जायेगा . एक मलाला सर दर्द बनी अगर पूरा मुल्क मलालाओं
से भर गया तो !! यह सोच कर ही रूह कांप जाती है . दुनिया में जहाँ जहाँ भी औरतों
को बराबरी का दर्जा देने की बेवकूफी की गयी है वहां मर्दों का हाल देखिये क्या है !!
दाढ़ी तक नहीं रख पाते हैं ! तो क्या इज्जत है उनकी ! वो तो अच्छा है कि पुरखों ने
औरतों को गुलाम बनाने की शानदार रवायत हमें बख्शी है . दीन ओ मजहब के साथ और
सपोर्ट से बिरादरान के इरादे मजबूत रहते हैं . अगर मालिक ने ही औरतों को बराबरी का
हक़ दिया होता तो उनके भी दाढ़ी होती . जिन्हें पैदा ही गैर बराबरी के साथ किया है
तो उसे बनाये रखना कौन सा गुनाह है ! अब वे कहीं नौकरी नहीं करेंगी, घर से बहार
निकलते वक्त किसी मर्द के साथ होंगीं, अकेले नहीं घूमेंगी फिरेंगी . लोग पूछते हैं
कि लड़ाकों के रहते औरतों को किसका डर ?! तो जान लो कि लड़ाकों में भी भूखे प्यासे
होते हैं . इनसे बचने का एक ही तरीका है कानून को मानों .
लड़ाकों को जंगल में रहना पसंद है . किसी भी तरह की सभ्यता उनकी दुश्मन है .
मालिक ने पूरी धरती को जंगल बनाया था . लोगों ने साइंस के जरिये तरक्की की, जो कि
गलत है . पढ़े लिखे, समझदार और शांतिप्रिय लोग ही नहीं उनकी मूर्तियाँ भी लड़ाकों को
बर्दाश्त नहीं हैं . मूर्तियाँ तोड़ी जाएँगी, लोग मारे जायेंगे और जंगल का रुतबा
फिर कायम किया जायेगा . जंग, जंगल और जमीन ही लड़ाकों का सपना है . वे पूछना चाहते
हैं कि दुनिया भर में लोग एक दूसरे से इंसानी रिश्ता रखते हैं तो मशीनगन और गोला
बारूद किसलिए बनाया है !! इनका क्या उपयोग
हैं ? जो इस वक्त शांति और अमन की रट
लगाये हैं वो बताएं कि हमें हथियार किसने दिए ! तुमने अपना बिजनेस किया, हम
अपना कर रहे हैं . जब तक जंगल में एक एक चिड़िया को नकाब नहीं पहना देते हमारा काम
जरी रहेगा . और हाँ, एक अपील है दोस्त मुल्कों से, लड़ाकों के लिए खूब सारे हथियार
और आर्थिक मदद तुरंत मुहय्या करवाएं, दवाएं और वेक्सिन वगैरह भी .
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बुधवार, 18 अगस्त 2021
सोते रहिये, कोई खतरा नहीं है !
खतरा जागने वाले को महसूस होता है . जो सोता रहता है वह भले ही मारा जाये पर उसके लिए न खतरा न डर किसीका . कहते हैं जो डर गया वो मर गया . जागने वाला डर के साथ मरता है, सोने वाला मजे में बिना डर के मर जाता है . मरते दोनों हैं पर फायदे में सोने वाला हुआ . कबीर ने कहा है कि “दुखिया दास कबीर, जागे और रोवे ; सुखिया सब संसार, खावे और सोवे”. अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है उससे हमें जरा भी चिंतित होने की जरुरत नहीं है . हमें क्या ! मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में . हमारे देश में कोई तालिबान थोड़ी है, न ही कोई तालिबानी हरकत . यहाँ सब प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं . एक दूसरे के धर्मों का आदर जी जान से करते हैं . न कोई किसी को धमकाता है डराता है . मौके बेमौके कुछ हो जाये तो एक दूसरे के सम्मान में जरा सा पत्थर वत्थर भले ही फैंक लें, पांच पचास घायल भी हो जाएँ लेकिन उसके बाद तुरंत स्थिति सामान्य होने में वक्त नहीं लगता है . सहिष्णुता और समझदारी से लबालब है देश की जनता . दुनिया हमें गाँधीवादी यूं ही नहीं कहती है . देश भर में एमजी रोड क्यों बनाये हैं बताइए ! शांति मार्च निकालने के लिए . हजारों की संख्या में चौराहे चौराहे पर गाँधी जी लाठी ले कर खड़े हैं . असली चौकीदार गाँधी जी हैं . चोर चौकीदार से डरते हैं इसलिए समय समय पर उनके गले में माला डाल कर उनकी गुडबुक में बने रहने की कोशिश करते रहते हैं .
यह ठीक है कि
हम विश्व शांति के समर्थक रहे हैं . आज भी हैं, लेकिन देखिये अमेरिका को ! फटे में
में पांव घुसाने का नतीजा क्या मिला ! माया मिली न राम, मुफ्त में हो गए बदनाम . कोई
कबीलायी मानसिकता का है तो है, हमारे यहाँ तो कोई नहीं है . वो हजार साल पीछे ले
जाना चाहते हैं मुल्क को, लेकिन हमारे यहाँ तो सब प्रगतिशील हैं . तालिबान जहाँ
हैं वहां अपने लोगों को मार रहे हैं तो समझिये कि उनका घरेलू मामला है . वो आपस में
भाई भाई हैं, उनकी वे जानें . राम की चिड़िया राम का खेत; खा ले चिड़िया भर भर पेट .
वहां की औरतें रो रो कर बुरखा पहन रही हैं . वे जानती हैं कि जिन्हें देख लेना है वो
बावजूद बुरखे के देख लेंगे . 15 से 45 वर्ष की औरतों को आगे के सफ़र के लिए सूचि
में दर्ज कर लिया गया है . यह बहुत बुरी बात है, लेकिन हमें क्या ! हमारे यहाँ ऐसा
कुछ नहीं है . यहाँ महिलाएं पसंद का कुछ तो भी पहनने के लिए स्वतंत्र हैं, कहीं भी
बेफिक्र हो कर अकेले घूमफिर सकती हैं कोई दिक्कत नहीं है . लुच्चे लफंगे छेड़छाड़ तक
नहीं करते हैं . लड़की चाहे गरीब ही क्यों न हो, उसकी मज़बूरी का कोई फायदा नहीं
उठता है . रहा सवाल बलात्कारों का तो वो एक अलग बात है . एक सौ पैंतीस करोड़ की
जनसँख्या में प्रतिदिन मात्र एक सौ बलात्कार होते हैं ! आप जरा सोचिये कितने कम हैं
. इससे न देश की प्रतिष्ठा को धक्का लगता है और न ही व्यवस्था को लेकर चिंता करने
की जरुरत है . कल का हमें नहीं पता लेकिन आज लड़कियों को कोई घर से जबरदस्ती उठा कर
नहीं ले जाता है . और क्या चाहिए अच्छी नींद के लिए ! जब तक जागने की जरुरत नहीं
हो, सोते रहिये . पानी नाक तक नहीं आ जाए तब तक कोई खतरा नहीं .
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शनिवार, 14 अगस्त 2021
एक अनुभव है आजादी
देखिये एक बात समझ लीजिये, आजादी व्यवहार में लाने की नहीं अनुभव करने की चीज है . ये डेवलपमेन्ट का एक नया कांसेप्ट है . इसलिए कुछ और अनुभव करने की न तो आपको जरुरत है और न ही इजाजत . आप आजाद हैं सिर्फ इस बात को अनुभव कीजिये . अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि मुँह बंद रखिये, बोलिए मत . बोले कि अनुभव ख़त्म . विक्रम-बेताल का पता है ना ? राजा ने मुँह खोला और अनुभव का बेताल उड़ा . जो बोलेगा वो अनुभव नहीं करेगा और जो अनुभव नहीं करेगा उसकी आजादी ख़त्म . मन एकदम शांत होना चाहिए . कोई कितना भी महंगाई को ले कर उकसाए, पेट्रोल के भाव बतलाये, कोरोना वाले मौत के आंकड़े गिनवाये आप विचलित नहीं होंगे, शांति से बैठेंगे . जिस समय आजादी का आनंद लेने की प्रक्रिया चल रही हो उस समय किसी भी प्रकार का विचलन देशद्रोह माना जायेगा . सरकार चौकीदार है, जनता के लिए अनुभव की कठिन तपस्या में अगर कोई बाधक बनेगा तो उसे उठवा कर खाड़ी में फैंक दिया जायेगा . कुछ गुमराह नौजवान ‘आजादी-आजादी’ का नारा लगा रहे थे . सुना होगा आपने, हमारे टीवी वाले सहयोगियों ने इसका खूब प्रचार किया था . उन लोगों को गलतफहमी के आलावा कुछ नहीं मिला . उनके पास आजादी हैं पर वे अनुभव नहीं करते हैं . ‘सरकार जनता की सेवक है’ यह सुनने में कितना अच्छा लगता है . अगर महसूस करेंगे तो और अच्छा लगेगा . आपको राजा वाली फीलिंग आ जाएगी . सरकार जिसकी सेवक हो उसे तो समझो स्वर्ग मिल गया, आप बैठिये और इसको अनुभव कीजिये .
लोग रोजगार को लेकर बकवास करते रहते हैं और जनता को कुछ भी अच्छा अनुभव नहीं करने देते हैं . अरे भाई, आप वोट देते हो और सरकार बनवाते हो . मालिक हो आप देश के, आपको न खाने की चिंता होनी चाहिए न ही दावा-दारू की . सबको मुफ्त राशन मिलेगा, दावा-दारू मिलेगी, घर में टीवी है ही, रेडियो भी होगा . मजे में खाइए और न्यूज चेनल देखिये, रेडियो में मन का गाना सुनिए . सोचिये जरा, अनुभव कीजिये, कैसा लग रहा है आपको !? मजा आ रहा है ना ? अनुभव कीजिये इस मजे को . दोष देने से, कूढने से, कोसने से सरकार का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है . फिर काहे के लिए मगजमारी ! हास्य क्लब देखे होंगे, इसकी सदस्यता ले लो फटाफट . वे सारे लोग बिना किसी बात के खूब हँसते है ! कई बार तो ठहाके लगा लगा कर आकाश गूंजा देते हैं ! तो क्या ये समझदार लोग पागल हैं ? ये अन्दर से चाहे कितने भी परेशान और दुखी हों हँस हँस कर अपनी सोच बदल लेते हैं . आप भी हँसा करो, समाचार पढ़ो तो हँसो, समाचार देखो तो हँसो, पेट्रोल भरवाओ तो हँसो, दाल पतली हो तो हँसो, बिना डाक्टर-दावा या आक्सीजन के मर जाओ तो हँसो . फिल़ासफी की मदद लो, सोचो क्या ले कर आये थे और क्या ले कर जाओगे ! ये दुनिया एक सराय है, आपको हमको सबको एक न एक दिन जाना पड़ेगा . कोई अमर नहीं है . फिर जबरदस्ती की हाय तौबा क्यों ! सोच कर देखो कि आमिर को कितनी महँगी मौत मरना पड़ता है ! लेकिन गरीब आदमी मजे में और सस्ते में मर लेता है . कितनी अच्छी बात है ये ! अगर सरकार गरीबों की शुभचिंतक नहीं होती और अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रही होती तो लाल झंडे वाले क्या मजे में बैठे कहीं तीन पत्ती खेल पाते ! हाँ, कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है कि अपराध बढ़ गए हैं . दरअसल चोरी करने वाले हमारे भाई लूट-बिजनेस में आ गए हैं . लेकिन किसीको इन छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान होने की जरुरत नहीं है . आपको घर में सुरक्षित रहने की आजादी है ही . अपने सुना होगा कि संतोषी सदा सुखी . जनता को हमेशा संतुष्ट रहना होगा . इसके लिए कड़े कानून बनाये जायेंगे . जनता का सुख संतोष सरकार की प्राथमिकता है . तो अपने को सख्ती से संतुष्ट अनुभव कीजिये, नमस्कार .
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शनिवार, 31 जुलाई 2021
मटकी, माखन और दिल्ली
मथनी की तरह घूम घूम कर वे दिल्ली को मथ रही थीं . विश्वास ये कि माखन निकलेगा . दिल्ली को मथने से माखन निकलता है ये मिडिया से भी पता चलता है . जिसने ठीक से मथा नवनीत उसे ही मिला . कृष्ण ग्वालबालों की टोली के साथ होते थे और कंकरियां मार के मटकी फोड़ दिया करते थे . छींकों में ऊपर बंधी मटकी भी ग्वालों की सहायता से उतार लेते थे . मतलब ये कि कृष्ण ने शिक्षा दी है कि मिल कर प्रयास किये जाएँ तो मटकी फोड़ी जा सकती है . कृष्ण भी उनकी तरह काले थे सो वे एक स्याह आत्मविश्वास से भरी हुई खुद कृष्णा हो रही थीं .
“कृष्णा जी विपक्ष की एकता का विचार अच्छा है लेकिन माखन कैसे बंटेगा इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है ! “ पुरातन दल के नवांकुरित दलपति ने अपनी बात रखी .
“ये बताइए कि सारा माखन आपको दे दें तो आप हजम कर लोगे दलपति जी ?” उन्होंने फायरब्रांड सवाल दागा .
“दो मिनिट रुको, मम्मी से पूछ कर बताता हूँ .”
“ऐसी कौन सी मम्मी है जो दुनिया का सारा माखन अपने बच्चू को नहीं देना चाहेगी !? वो तो हाँ ही कहेंगी .”
“फिर दीदी से पूछ लेता हूँ ...”
“अभी रक्षाबंधन आने वाला है . बहन भी सारा माखन भाई को ही देगी .”
“फिर किससे पूछूं ! और किसी पर मुझे भरोसा नहीं है .”
“मैं हूँ ना, मुझसे पूछो . देखो अपन पिरामिड बनायेंगे और सब मिल कर मटकी फोड़ेंगे तो थोड़ा थोड़ा माखन सबको मिल जाएगा .”
“पिरामिड में सबसे ऊपर किसको रखोगे ? गोविंदा किसको बनाओगे ?”
“मैं दिल्ली मथ रही हूँ तो साफ है गोविंदा मैं बनूँगी .”
“लेकिन हमारा दल राष्ट्रिय है और सबसे बड़ा है तो गोविंदा हमारा होगा और सबसे ज्यादा माखन भी हमें देना होगा .”
“सच्चाई को देखिये, आपका दल बूढ़ा हाथी है, खाता ज्यादा है और हिलता कम है . ऐसे में खेला कैसे होगा ?”
“कृष्णा जी ... मईंड योर लेंग्वेज प्लीज, हम जानते हैं अपने हाथी को, वह बूढ़ा नहीं है .”
“आप ठीक से जानते हैं ?... अच्छा बताइए कि हाथी की सूंड किधर होती है और पूंछ किधर ?”
“सिंपल है, हाथी जिधर से खाता है उधर सूंड और जिधर से निकालता है उधर पूंछ होती है .”
“ये तो हमारे बंगाल में केजी के बच्चों को भी पता होता है . पोलिटिक्स में हाथी अलग होता है .”
“तो आप ही बताएं कृष्णा जी ... मतलब दीदी ...आप बताएं .”
“जिधर से वादे किये जाते हैं, घोषणाएँ की जाती हैं उधर सूंड होती है और जिधर से वादों घोषणाओं की हवा निकल जाती है उधर पूंछ होती हैं .”
इस बीच मम्मी आ जाती हैं, उन्हें भी सामूहिक प्रयास के बारे में बताया जाता है .
“माखन का इशू पहले साल्व करना पड़ेगा. यू नो सिक्सटी परसेंट माखन हमारा गुड्डू के लिए जरुरी है .”
“देखिये मैडम, हमारा गोल मटकी फोड़ना है, एक बार मटकी फूट जाये माखन का इशू बाद में हल हो जायेगा . “
“चलिए फिफ्टी वन परसेंट हमको दीजिये, बाकी का बाकी को . दूसरे क्या बोल रहे हैं ?”
“जितनी भी पार्टियों से मिली हूँ सारे फिफ्टी वन परसेंट मांगते हैं !”
“आपकी अपनी क्या राय है .“
“मुझे भी फिफ्टी वन परसेंट होना ... आखिर दिल्ली तो मैं ही मथ रही हूँ .
“तो दिल्ली आपका बस की नहीं है मैडम ... नमस्कार .”
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सोमवार, 26 जुलाई 2021
प्रजातंत्र की भ्रमित प्रजा

देखिये लाइफ जो है दो तरह की होती है . एक होती है भगवान की दी हुई
भूख,प्यास, निद्रा, मैथुन वाली बेसिक लाइफ और दूसरी होती है सभ्य समाज की प्रेक्टिकल
लाइफ . यह बात गंवार से गंवार आदमी जानता
है कि प्रेक्टिकल लाइफ से ही व्यक्ति अच्छा और सफल नागरिक बनता है . शिक्षित आदमी
अड़ियल किस्म का होता है इसलिए बेसिक लाइफ जीता है . पढ़े हैं सो बार बार संविधान की
तरफ दौड़ते हैं . उसमें लिखा है कि देश सेक्युलर है तो सेक्युलर की रट लगाये रहेंगे
. चाहे आधा दर्जन आदमी भी सेक्युलर नहीं मिलें पूरे देश में . अरे भई जनता धर्मों
में बंटी है, धर्मों को ले कर अड़ जाती है, चुनाव, वोट, मंत्रिमंडल सब जाति-धर्म के
हिसाब से होता है . इस पर प्रेक्टिकल नजरिया ये है कि हम सेक्युलर नहीं हैं लेकिन प्रजातंत्र
में किताबों में लिखा हुआ अच्छा लगता है इसलिए हैं भी . तो भईया पढ़ो लिखो, कोई हरज
नहीं हैं, बस आँखें बंद और कान खुले रखो, सवाल मत करो, जेब कटे या गरदन अपना फरज
समझो . जियो तो भक्ति, मरो तो मुक्ति .
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बुधवार, 14 जुलाई 2021
कठिन डगर दलित के घर की
आज
सुबह से साहब का मूड ख़राब है . सोच रहे हैं कि नेतागिरी साला दो कौड़ी का काम है .
कहने को लीडर हैं, मालिक हैं अपने एरिया के, लेकिन क्या हैं ये आत्मा ही जानती है जब
ऐरे गैरों के हाथ जोड़ते वोट मांगते फिरना पड़ता है . जिनको कभी फूटी आँख देखने का
मन नहीं करता है उन्हीं बुड्ढे ठुड्डों के पैर छूना पड़ जाते हैं . थू है साला ऐसी
जिंदगी पे ! इसी काम के लिए लीडर बने हैं क्या ! पिछले हप्ते हाईकमान का आदेश था
कि दलित के यहाँ खाना खा कर आईये ! आज पार्टी ने कार्यक्रम भी बना दिया ! बाप दादों
ने जिनकी छाया तक अपनी गाय-भैंसों पर नहीं पड़ने दी अब उनके घर जा कर खाना खाएं हम !!
कहते हैं मैसेज अच्छा जाएगा, वोट मिलेंगे . आत्मा जो है धिक्कार रही है उसका क्या ?
क्या करेंगे ऐसे वोटों का ! लोकतंत्र है, राजनीति है तो इसका मतलब ये नहीं कि
जात-कुजात भी देखना छोड़ दें ! आज पूरी रात ठीक से सो नहीं सके हैं साहब . बार बार
बाथरूम जाना पड़ा हल्के होने के लिए . दिमाग पहले से ख़राब था और ख़राब हो गया . तीन
चार बार निर्णय लिया कि नहीं खायेंगे दलित के घर लेकिन पता नहीं कैसे कैसे गांधीछाप
विचार आते रहे . पार्टी अनुशासन हो तब भी सब हाईकमान की मर्जी से नहीं होना चाहिए .
लोकतंत्र में हमारी इच्छा, स्वतंत्रता भी कोई मायने रखती है या नहीं ! उन्होंने तो
कह दिया कि जरा सा नाटक करना है, मिडिया वाले फोटो ले लें, खबर बना लें उसके बाद
नहा-धो लो, या सेनेटायीज कर लो अपने को, बस हो गया . दलित को सर पे तो बैठना नहीं
है, न ही रोज रोज गलबहियां करना है . कहते हैं पार्टी की छबि का सवाल है, आखिर वोट
बैंक हैं दलित . हमारा लोकतंत्र है क्या, बाय द वोट बैंक, फॉर द वोट बैंक, ऑफ़ द वोट
बैंक ही न .
नहा-धो
कर दालान में आ गए हैं लेकिन साहब का मन बेचैन है . अगर खा लिए तो खुद उनकी छबि का
क्या होगा ! बिरादरी के लोग कहेंगे कि वोटों के लिए इतना गिर गए ! बिरादरी तो जनम
मरण से ले कर पीढ़ियों तक होती है . राजनीतिक पार्टियों का क्या है, आती जाती रहती
हैं . पिछले चुनाव में दलित मोहल्ले की एक नयी बहु को गले लगा कर सम्मानित कर दिया
था तो दूसरों की क्या कहें खुद उनकी पत्नी यह बोलते महीनों नाराज रही कि जिन बाँहों
में दलित दब ली उसमें हम अपना बदन अपवित्र नहीं करेंगे . ताने ऊपर से देती रही कि वोटों
के लिए कुछ भी कर लोगे क्या !! आखिर प्रयाग जा कर संगम में स्नान किया और दो किलो
सोने के जेवर बनवा कर चढ़ाये तब कहीं जा कर बोलीं कि –‘ दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ .
नौकर
ने चाय नाश्ता ला कर रख दिया . रोज वे नाश्ते का इंतजार करते हैं लेकिन आज याद ही
नहीं आई . नौकर से पूछा – “दोपहर होने में कितनी देर है ?”
“बस होने
ही वाली है हुजूर, चार पांच घंटे में .”
रात
हवा हो गई तो चार पांच घंटे निकलने में कितनी देर लगेगी . उन्होंने डाक्टर को फोन
लगाया –“ डाक्साब जी मिचला रहा है सुबह से
. रात को ठीक से नींद नहीं हुई, बीपी भी बढ़ा बढ़ा सा महसूस हो रहा है . आप आ जाइये
जरा .”
सामने
पड़े अख़बारों पर उनकी नजर पड़ी . अपनी खबर देख कर वे हमेशा खुश होते थे, आज लग रहा
है किसी ने कील ठोक दी पैरों में . चाह कर भी भागना मुश्किल है . डाक्टर से पहले पार्टी
कार्यकर्त्ता आने लगे . गाड़ियाँ, झंडे, लाऊडस्पीकर और हट्ठे कट्ठे पट्ठों का हुजूम
. क्षण भर के लिए उनके अन्दर उत्साह और उमंग का रूटीन करंट दौड़ गया . लेकिन दलित
का घर याद आते ही फट्ट से फ्यूज उड़ गए . मन में यह कामना जोर मारने लगी कि भगवन
बचा लो इस चीरहरण से, चमत्कार कर दो प्रभु और लंच पर किसी और को बैठा दो .
अभिनेताओं के बॉडी डबल होते हैं तो नेताओं के क्यों नहीं होते . कैमरों से वहाँ जब
सच छुपाया जा सकता है तो यहाँ क्या तकलीफ है ! कुछ देर अनमने से खड़े रहने के बाद
वे यंत्रवत तैयार होने लगे .
डाक्टर
ने बीपी चेक किया, धड़कन सुनी, आँखों में झाँका और गले में भी . लाल रंग का एक
इंजेक्शन भरा और आचमन करवा दिया . वे बोले - “क्या इस इंजेक्शन से थोड़ी देर के लिए
मैं कम्युनिस्ट हो पाऊंगा ?” डाक्टर ने मना किया और बताया कि –“इससे आप अन्दर से
मजबूत हो जायेंगे एकदम कट्टर टाईप”. उल्टी ना हो इसलिए दो गोली जेब में रखवा दी, कहा
कि गोली पावरफुल हैं, गोबर भी खाना पड़ जाए तो बाहर नहीं आएगा . पास खड़े पीए को पता
चला तो उसने कहा कि –“ बिलकुल चिंता न करें सर, नगर निगम से दलित मोहल्ले की
स्पेशल साफ सफाई करवा दी है . गरीब की झोपड़ी डेटोल से धुलवा दी है . जब आप
पहुंचेंगे तब आसपास सुगन्धित अगरबत्तियां जल रही होंगी . उन लोगों को कल ही साबुन
और पानी के टेंकर पहुंचा दिए थे, अच्छे से नहाने धोने की हिदायत दे दी गयी है . इस
काम को हमारे कार्यकर्त्ता अपनी निगरानी में रखे हुए हैं . सामने पड़ने वाले दलितों
पर परफ्यूम पावडर भी कार्यकर्त्ता खुद लगवा देंगे . खाना और दोना पत्तल आपकी
पसंदीदा होटल से आ रहा है . आपको बस आंखे बंद करके कुछ निवाले खा लेने हैं . दोपहर
का समय होगा सो आप काला चश्मा लगा रखेंगे . इससे आपको झोपड़ी के अन्दर का ज्यादा
कुछ दिखाई नहीं देगा सिवा दोना पत्तल और भोजन के . मिडिया के सामने आपको दो बच्चों
के सर पर हाथ रखना है और एक छोटे बच्चे को गोद में ले कर चूमना है” .
“नहीं
... ये नहीं हो सकता है . किसी कीमत पर बच्चे को गोद में नहीं लूँगा, चूमूँगा नहीं
.कार्यक्रम सिर्फ खाना खाने का है .” वे बिफर गए .
“हाईकमान
ने गोद लेने और चूमने को लाल स्याही से अंडरलाइन करके भेजा है सर, लिखा हुआ है .
दूसरी पार्टी वाले न सिर्फ बच्चों को नहला रहे हैं बल्कि पॉटी करवा कर पिछवाडा भी
धो रहे हैं . उनका वीडियो वायरल है सर . ... फिर जैसा आप चाहें ...” पीए ने जोर
दिया .
“बच्चा
बासता हुआ न हो ... “
“नहीं
होगा सर ... डीओ लगाव रहे हैं और गलों पर
नीविया भी . आपको लगेगा किसी काले अंग्रेज के बच्चे को चूम रहे हैं .”
उन्होंने
मौन से अपनी सहमति दी और उस सजे हुए वाहन में बैठ गए जो इस मौके के लिए तैयार किया
गया है . नारे लग रहे हैं, झंडे लहरा रहे हैं, गले में माला है, जुलूस आगे बढ़ रहा
है . लोगों में जोश इतना कि जैसे बैंक लूटने जा रहे हों . उन्हें पुलकना चाहिए लेकिन दिल डूबता सा लग रहा
है . पीए से पानी की बोतल ले कर उन्होंने जेब में रखी दोनों गोलियां मुँह में डाल लीं
और आँखों को काले चश्मे से ढँक लिया .
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बुधवार, 30 जून 2021
नये अंधों का हाथी
अंधे वे भी होते हैं जिनकी आंखे होती
हैं . जैसे खोपड़ी होने का यह मतलब नहीं कि आदमी में दिमाग भी होगा ही . कहते हैं
अनुभव से आदमी सीखता है . अंधे स्पर्श से अनुभव करते हैं . इस समय आपको अंधों का हाथी
याद आ रहा होगा . लेकिन अब हाथी देखने को नहीं मिलते हैं . बहुत पहले जंगल में हुआ
करते थे फिर सर्कस में सूंड उठाने लगे अब सुना है राजनीति में आ गए हैं . राजनीति
में सारे हाथी नहीं होते हैं, घोड़े, गधे, लोमड़, सियार ही नहीं मेंढक भी होते हैं.
राजनीति अगर ठीक से खेली जाए तो मेंढक ही आगे चल कर हाथी हो जाता है . ऐसे में दो
तरह की समझ वाले लोग हमें मिलते हैं . एक वे जो हाथी होने के बावजूद हाथी को मेंढक
ही मानते हैं . दूसरे वे जो राजनीति में टर्रा रहे मेंढकों को हाथी मान कर उस पर
अड़े रहते हैं . वे सम्भावना से भरे होते हैं और संगठित हो कर मेंढकीयत का अभ्यास
करते रहते हैं . आज विशेष दिन है जिसमें अंधों को अपने हाथी यानी लीडर को जानना है
. सबको बताना है कि आप अपने लीडर को कैसे और कितना जानते हैं .
पहला अँधा हाथी को दीवार की तरह
महसूस कर बोला – मेरा लीडर बड़े बड़े पोस्टर में होता है . कहीं वो दो उंगली दिखाता
है कहीं एक . मन का मार्केट एक का दो, एक का दो होने लगता है . पेट्रोल पम्प हो या
किराने की दुकान पोस्टर देखते ही दिल में टर्र-टर्र का संगीत गूंजने लगत है और
महंगाई का पता ही नहीं चलता है. आकाशवाणी होती है कि महंगाई एक तरह का वहम है . लीडर
का स्मरण करो तो वहम के सारे भूत भाग जाते हैं . मन उमंग की हुमक में फुदकता रहता
है तो समझ जाता हूँ कि यही मेरा लीडर है .
दूसरा अँधा हाथी के पाँव से टिका फोन
में घुसा था . हिलाया जगाया तो बोला – मेरा लीडर इंटरनेट मिडिया में चलने वाला खनकता
सिक्का है . इधर से आलू-मेसेज डालो तो उधर से समर्थन का सोना निकलता है . वाट्सएप
की हर पोस्ट उसके इरादों, कारनामों का बूस्टर डोज है . अगर दस मिनिट अपने लीडर की
नई पोस्ट नहीं देखूं तो बीमार पड़ने लगता हूँ . जब कोई पोस्ट कहती है ‘जागो जागो, देखो अंधों देखो’ तो मुझे
ऐसा लगता है जैसे सब दिख रहा है . कैसे लोग तरक्की कर रहे हैं दनादन . कैसे आक्सिजन
और दवा के बिना भी बहादुरी से जिन्दा बच रहे हैं. नौकरियां जाने के बाद भी कैसे सीना
चौड़ा किये आत्मनिर्भर बने खड़े हैं . यही मेरा लीडर हाथी का पैर है नहीं हिलेगा .
तीसरा अँधा सूंड पकड़े टीवी देख रहा
था . बोला - हर चैनल पर चौबीस घंटे जो खबरों में रहे वही मेरा लीडर है . उसका दृढ़
विश्वास है कि टीवी झूठ नहीं दिखाता है . मेरा लीडर तो देश में एक ही है बाकी सब दाढ़ी
के बाल हैं जो जरुरत के हिसाब से काटे-छांटे या ट्रिम किये जा सकते हैं . नागरिकों
को मनोरंजन का अधिकार है और सपने देखने का भी . मेरा लीडर जब बोलता है तो ये दोनों
काम हो जाते हैं . इसलिए मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई .
‘दुनिया चले अगाड़ी तो मैं चलूँ
पिछाड़ी’, चौथा अँधा हाथी के कान पर धिन ता-ता ता करने में मस्त है . उसे चार सौ
साल पीछे जाना है . अभी शुरुवात है . उसका लीडर कार की हेड लाईट जला कर रास्ता आगे
का दिखाता है और गाड़ी रिवर्स में चलता है . इस काम में उसे लीडर का विराट रूप
दिखाई देता है जैसा अर्जुन को दिखा था . अगर स्वर्ग पीछे है तो आगे बढ़ने का मतलब
पीछे जाना है . जिसने यह रहस्य जान लिया है वही मेरा लीडर है .
हाथी की पूंछ पकड़ उसे चाबुक समझ रहा पांचवा
अँधा डरने वाला और जरा भावुक किस्म का है . मानता है कि मेरा लीडर कभी झूठ नहीं
बोलता है . अगर बोलना ही पड़े तो सच की तरह बोलता है . जिसका झूठ भी सच लगे वही
सच्चा लीडर होता है . जब वह कहता है कि सब अच्छा है तो सबको मान लेना चाहिए कि सब
अच्छा है . जो शंका करके शगुन बिगाड़ेगा वह देशद्रोही माना जाएगा . लोग कहते हैं कि
लीडर निपूता ही अच्छा होता है . पांचवा बिना किसी सवाल के मान लेता है . वह बैल को
बाप भी मान लेता है और बन्दर को मामा . चाबुक से उसे डर लगता है .
शिक्षा – लोकतंत्र में अंधों का
बहुमत हो तो हाथी अपनी पहचान बदल बदल कर लम्बे समय तक राज कर सकता है .
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शनिवार, 26 जून 2021
भरोसे की भैंस
भगोड़ा
आदमी सही मायने में भरोसेमंद आदमी होता है . बैंक से लेकर बाज़ार तक सब उस पर भरोसा
करते हैं . इसलिए हम भगोड़ा को भगोड़ाजी कहेंगे . उम्मीद है आपको कोई आपत्ति नहीं
होगी, और होगी तो होगी आप सभ्यता और संस्कृति से बड़े थोड़ी हो . भरोसा भगोड़ाजी के
लिए च्यवनप्राश होता है . भरोसा जितना दमदार होता है भगोड़ाजी उतना मेराथन भागते
हैं . भगोड़ाजी के पीछे बैंक भागती है,
बाज़ार भागता है, पुलिस और अगर मिडिया कवर कर रहा हो तो नेता भी भागते हैं . अंत
में शरमा शरमी सरकार भी भागती है . सब भागते हैं लेकिन भगोड़े जी किसी को नहीं मिलते
हैं . वह सिर्फ मिडिया को मिलते हैं और ‘राष्ट्रहित सबसे ऊपर है’ कह कर फिर भाग जाते
हैं . वह खुद को बैंक, बाज़ार और यहाँ तक कि देश का चौकीदार कहते हैं . उनके हाथ
में मास्टर-चाबी होती है, वह हर तरह का ताला खोलना जानते हैं . वह
चिराग का जिन्न हैं लेकिन चिराग अपनी बगल
में दबाये रहते हैं . मौकों पर हुकुम मेरे आका कहते हुए हाजिर होते हैं और कुछ हजार करोड़ समेट कर
भाग जाते हैं . वह उड़ने वाला डायनोसार हैं, लोग बताते हैं देखते देखते उड़ जाते हैं
. उन्हें गायब होने का जादू आता है . कई बार पुलिस की आँखों के सामने से गायब हुए
हैं . वह सब कुछ कर सकते हैं . सरकार बना सकते हैं और सरकार की योजनायें भी .
योजनाओं में वे इस तरह होते हैं कि उनके गायब होते ही योजनायें भी गायब हो जाती
हैं .
पिछली
बार उन्होंने कहा था कि वे देश की मिट्टी में जिये हैं और इसी में मरेंगे . यह भी
कि माँ से बड़ी मातृभूमि होती है तो उनकी बातों का बड़ा असर हुआ था . भरोसे की जड़ें
और गहरी हो गयी थीं . बैंकों ने खुद डम्परों से भर भर कर रुपया उनके गोदामों में
भर दिया था . आप कह सकते हैं कि इसमें भगोड़ेजी की कोई गलती नहीं है . सरकार ने भी
कह रखा है कि बैंकें विवेक को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निर्णय लें . लेकिन विवेक
ने काफी समय हुआ वीआरएस ले लिया था . भगोड़ेजी को यह बात पता चली तो उन्होंने विवेक
को अपने यहाँ नौकरी पर रख लिया . अब विवेक भगोड़ेजी का नौकर है और पेंशन बैंक से
लेता है .
भगोड़ाजी
अभी कहाँ हैं पता नहीं . घोटाले के हजारों करोड़ रुपये कहाँ हैं ये भी किसी को
मालूम नहीं . इधर की सरकार उधर की सरकार से पूछती है कि हमारा भगोड़ा क्या तुम्हारे
पास है ? जवाब मिलता है कि हमारे पास हमारा नागरिक है तुम्हारा भगोड़ा नहीं . उनसे
कहा जाता है कि घोटाले की रकम ही दे दीजिये . वे कहते हैं भूल जाओ रकम को, उसीसे
तो नागरिकता और सुरक्षा ली है उसने . जैसे ही यह खबर फैलती है बाज़ार ‘हाय तेरा नास
जाए’ टाईप आक्रोश व्यक्त करता है, कुछ छाती कूटते हैं कुछ रोते हैं और कुछ बाबा
बंगालियों से काला जादू और छू-छा करवाते हैं . पता चलता है कि भगोड़ा जी उनसे बड़े
जादूगर हैं और छू-छा के मामले में बाबाओं के बाप हैं . इधर बैंकों को ज्यादा चिंता
नहीं है . क्योंकि बैंक में जनता का पैसा जमा होता है . लोकतंत्र में एक दिन को
छोड़ कर जनता को कोई कुछ समझता नहीं है . जनता गाँव की गरीब जवान विधवा है . उस पर
सैकड़ों पाबंदियां और हजारों निगाहें हैं . इसके साथ वो भाभी भी सबकी है, जिसका मन
जब भी हो होली खेल लेता है . बैंक में पैसा जमा करने के बाद थकी हारी जनता भी सो
जाती है . भगोड़ा जी कर्मयोगी हैं, जागते रहते हैं . यही नहीं वे लोरी भी खूब गाते
हैं . जो नहीं सोए हैं वो भी सो जाते हैं . अख़बारों में हेड लाइन छपती रहती है,
सरकारें आती जाती रहती हैं, और सुना हैं भगोड़ा जी भी आते जाते रहते हैं .
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बुधवार, 9 जून 2021
वेक्सिन का सीज़न है ... भर लो
लोग सुख-दुःख बांटे न बांटे, ज्ञान को गति तो मिलती ही है . वे बोले –“ वो क्या है भाई साब, अपने तो बाप-दादे के ज़माने से येई चला आ रहा है . यों समझ लो कि परंपरा है खानदानी . सामान सीजन में अच्छा और सस्ता मिलता है तो सब भर लेते हैं अपन . गेंहूँ के सीज़न में साल भर का गेंहूँ, चावल, दाल, तेल, शकर, मिर्च-मसाले सब . बाद का कोई टेंशन नहीं . ... सोना जब बीस-बावीस के भाव का था तब अपन ने भर लिया था . आज देखो ... जिन्ने नहीं भरा वो पछता रहे हैं . “
“पुराने लोग
बहुत सोच समझ कर चलते थे .” हमने सहमति जताई .
“अभी
वेक्सिन का सीज़न चल रहा था तो वेक्सिन भर लिए . स्टाक तो कर नहीं सकते थे इसलिए लगवाना
पड़े .”
“दोनों डोज लगवा
लिये आपने ? ... ये अच्छा किया .”
“दो नहीं
चार डोज लगाव लिए हें अब्बी तक . घर में भी सबको तीन तीन डोज हो गए हैं .”
उन्होंने छाती चौड़ी करते बताया.
“तीन तीन
चार चार !! ये तो संभव ही नहीं है !? कैसे लगवा लिए !?! ... और क्यों लगाव लिए ?”
“जिनके
इरादे पक्के होते हैं ना भाई साब उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं अपने देश में . रहा
सवाल कि क्यों लगवाए, तो हमारे यहाँ
परंपरा है भरने की .“
“अरे नियम-कायदा,
सरकार किसी का तो ख्याल किया होता !!”
“सरकार तो
खुद ही कहती है कि लोग परम्पराओं का सम्मान करें .”
“वो दूसरी
परम्पराओं के बारे में कहती है ... लेकिन वेक्सिन !! ... आप महान हैं .”
“हमने तो
रेमडीसिविर भी भर लिए थे . और टोसी भी .” वे महानता पर मोहर लगते हुए बोले .
“रेमडीसिविर
कितने भरे थे !?”
“घर में
तेरह मेंबर हैं . सौ इंजेक्शन थे अपने पास .”
“अगर तेरह
को ही कोविड हो जाता तो भी आपके लिए अस्सी काफी थे . फिर सौ क्यों !?”
“हमारे दादा कहते थे कि हमेशा जरुरत से थोडा
ज्यादा ही भरना चाहिए . बरकत रहती है घर में . गेंहूँ मैं पंद्रह क्विन्टल भरता
हूँ, जरुरत से दो तीन ज्यादा . इसलिए रेमडीसिविर भी थोड़े ज्यादा ही रखे. आदमी को
पूरी सावधानी रखना चाहिए . “
“सावधानी रखना
ही तो अच्छी बात है . मास्क और सेनेटाईजर का उपयोग करें तो डरने की कोई बात नहीं
है .”
“तो आप क्या
समझ रहे हो हमने इस पर ध्यान नहीं दिया !? भाई साब दस हज़ार मास्क की पेटी ले ली थी
हमने और सेनेटाईजर के तीन ड्रम भरे पड़े हैं अभी भी . अपन तो बेफिक्र हैं अब तीसरी
लहर आए या चौथी ... कोई टेंशन नहीं .”
“भगवान न
करे आपको कुछ हो, लेकिन अगर कुछ हो ही गया तो ...”
“तो आक्सीजन
के सिलेंडर भी भरे हैं, तीन बेड भी हैं हाईटेक वाले. और क्या चाहिए ?”
“अब तो बस
थोड़े डाक्टर और नर्स भर लेते तो कोई कसर बाकी नहीं रहती.”
“अरे ये तो
सोचा ही नहीं मैंने !! अभी देखता हूँ कहीं से मिल जाएँ . सुना है कुछ डाक्टर
नर्सों को सस्पेंड किया है सरकार ने “.
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सोमवार, 7 जून 2021
सरकारी तोप से भी बड़ी होती है कोपभवन की तोप
कोपभवन घर के उस स्थान को कहा जाता है जहाँ कोप को खाद-पानी दे कर पुष्पित पल्लवित किया जा सकता है . हमारी कुछ किताबों में, किस्सों वगैरह से यह गलतफहमी जड़ें जमा चुकी है कि कोपभवन केवल स्त्रियों की जरुरत का स्थान है . कुछ जानकार और अनुभवी कोपभवन को स्त्रियों का हथियार तक कह देते हैं . वे यह शायद नहीं जानते कि स्त्रियों को प्रायः हथियार की जरुरत नहीं होती है . उनकी जुबान छूरी से तेज होती है और कभी कभी तलवार से भी अच्छा काम करती है . दरअसल कोपभवन स्त्रियों का अहिंसक असहयोग आन्दोलन है . जिसके जरिये गाँधी जी ने जालिमों को कई बार झुकाया है तो एक पालतू बन्दे को सूर्य नमस्कार के लिए आढ़ा-टेढ़ा करना कौन सा बड़ा काम है . हिम्मत-ए-जानना, मदद-ए-जमाना . कोशिश करने वालों की कानून भी मदद करता है . लोग गबन-घोटाले, यहाँ तक कि हत्या करके भी बाइज्जत बरी हो जाते हैं . कोपभवन कल्चर की एक खास बात यह है कि मामला कितना ही बिगड़ा क्यों न हो एक दो दिन में सुलट जाता है . क्योंकि स्त्रियाँ कुदरती तौर पर समझदार होती हैं . वे कोप उतना ही करती हैं जितने में उनकी सुन्दरता को आंच नहीं आए . इसलिए सुविचारित कोपभवन में आइना नहीं होता है . कोपभवन वास्तु-विशेषज्ञ के अनुसार फलदायी कोपभवन के लिए आग्नेय कोण यानि पूर्व-दक्षिण कोने पर गद्दा लगा बिस्तर होना चाहिए जिसमें साधिका अपने केश खोल कर और यथासंभव फैला कर औंधी पड़ी रह सके . पूर्व दिशा में कोई खिड़की हो तो उसके पट बंद हों और गहरे रंग के परदों से पटे हों, ताकि सूर्य देवता की परछाई भी न पड़े . अच्छा है कि इन दिनों घरों में रौशनदान नहीं होते हैं इससे कोप के दृढ़ निश्चय भाव को लम्बे समय तक स्थिर बनाए रखने में सहायता मिलती है . दृढ़ निश्चय कोप को तोप में बदल देता है . अकबर इलाहाबादी ने कहा है “खींचों न कमानों को, न तलवार निकालो ; जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो. “ यहाँ जिस तोप का जिक्र है उसे छोटी तोप समझें पाठक, यानी तोप की छोटी बहन ‘साली तोप’ . जो अख़बार में अपना फोटो देख कर पट सकती है . कोपभवन की तोप सरकारी तोप से भी बड़ी होती है . एक बार सरकारी तोप फुस्स हो सकती है लेकिन कोपभवन की तोप के गोलों में डबल बारूद भरी होती है .
कई बार केस बिगड़ जाते हैं और मामला
फेमिली कोर्ट तक पहुँच जाता है . इस तरह के मौकों पर मोहल्ले के एक नीलेपीले नाम
के वकील साब मददगार बन कर हाजिर होते हैं . हालाँकि महीने में दो तीन बार खुद
उन्हें कोपभवन की जरुरत पड़ती है . नीचे श्रीमती नीलेपीले का अपना निजी कोपभवन है लेकिन
लेडीज कोपभवन में जाना एडवोकेट नीलेपीले की शान के खिलाफ है . एक दो बार किसी होटल
के कमरे में कोपशांति कर आए लेकिन ज़माने का मुंह खुलने लगा . सो घर की दूसरी मंजिल
पर छत खाली पड़ी थी, सोच अपना भी एक निजी कोपभवन हो तो कोप का मस्त मजा आ जाए . सो
उन्होंने एक बढ़िया सा कमरा तैयार करवाया . सब अंदर ही बनवाया यानी अटैच्ड टॉयलेट,
किचन, क्रोकरी, गैस टंकी, मसाले, बियर-विस्की, टीवी, फ्रिज, म्यूजिक सिस्टम वगैरह
वगैरह . एक लेंड लाइन फोन भी, क्योंकि कोप काल में प्रोटोकोल के हिसाब से मोबाईल
फोन स्विच ऑफ रखना जरुरी है . कोप पीड़ित के लिए कोई चेक-इन चेक-आउट टाइम तो होता
नहीं . एक बार गए तो गए . तीसरी मंजिल का कोपभवन हवादार होता है जिससे फेफड़े
भांगड़ा करने लगते हैं और छाती जो है छप्पन-सत्तावन इंच के बीच ठुमकने लगती है .
कोपभावनों को स्टार देने की न तो परंपरा है न इजाजत, पर नीलेपीले साहब ने अपने इस निर्माण
को ‘पांच सितारा नवजीवन कक्ष’ नाम दिया है .
पैसा बहुत लग गया है निर्माण में लेकिन
किसी पार्टी के भक्त होने के कारण उनके लिए महंगाई स्वीकारना ऐसा है जैसे अपने हाथों,
अपने जूते से अपना सर पीटना . कोप के मजे लेने निकले थे अब दुखने लगा . पैसा बड़ी कुत्ती
चीज होता है, ज्यादा खर्च हो जाए तो आदमी कटाने दौड़ता है . लेकिन संसार में ऐसी
कोई समस्या नहीं जिसका कोई हल नहीं . एडवोकेट नीलेपीले ने एक परचा छपवा कर आसपास
के मोहल्लों तक में बंटवा दिए हैं कि ‘लक्जरी कोपभवन उपलब्ध है ‘ . साथ में एक शेर
भी छपवाया है की ‘जब तोप मुकाबिल हो तो एक पर्सनल कोपभवन में आइए’ . सी द डिफ़रेंस .
मरदाना कोपभवन तीसरी मंजिल पर होता है .
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*जवाहर चौधरी
BH26, सुखलिया (भारतमाता मंदिर के पास )
इंदौर- 452 010
शनिवार, 5 जून 2021
जिन्हें चिंता है हिंदी की
जिन लोगों को चिंता-डायन खाये जा रही है कि हिंदी और हिंदी साहित्य का आगे
क्या होगा, उन्हें जान कर शायद अच्छा लगे कि हिंदी में अब लेखकगण गरम कढ़ाही में
बूंदी की तरह ‘छन’ रहे हैं . एक घान खपता नहीं है कि दूसरा लाल-पिला हो कर झारे
में झूलने लग जाता है . जिधर देखो उधर ज्ञान के लड्डुओं की लुड़कन है, इतनी कि
साहित्य प्रेमियों को खिड़की खोलने से पहले इंसूलीन याद आ जाए . था कोई जमाना जब
लेखक गूलर के पेड़ पर फूला करते थे . अब अभिमन्यु कविता का व्याकरण जान-समझ कर पैदा
हो रहे हैं . पुराने समय की बात और थी साठ साल आदमी हिन्दी-सेवा का संकल्प लेने
में खर्च कर देता था . सेवानिवृत के बाद वे इसलिए लिखने लग पड़ते थे कि उन्हें एक तो
कलम घिसने की आदत रही होती है, दूसरे
दफ्तर से पार की गई स्टेशनरी का कुछ तो भी कर लेना उनकी जिम्मेदारी थी वरना
अपराधबोध होता . साठ वर्ष का तपा-पगा आदमी दो चार साल में पांच-दस बोतल स्याही
बर्बाद करके मुक्तिधाम गामी हो जाता है तो हिंदी प्रेमियों का चिंता होना
स्वाभाविक है . लेकिन अब ऐसा नहीं है, बच्चा मानो शेर कहता हुआ पैदा होता है . अपने
राजकुमार होते तो कहते – ‘आपके पैर बहुत सुन्दर हैं, इन्हें जमीन पर मत रखियेगा वरना
दस बीस लड्डू पिचक जाएँगे .
चलिए एक बाबा-लड्डू की बात बताते हैं . वे सुबह पौने चार बजे उठ जाते हैं और
फारिग हो कर बाकायदा लम्बी वाक पर निकल जाते हैं . उनकी साहित्य साधना में ‘सुबह
का’ मार्निंग वाक बड़ा सीरियस मैटर है . इसलिए कि सुबह के अँधेरे में देसी कुत्ते
और देसी गुंडे कब लपक लें पता नहीं . लेकिन बाबा अपनी पर्सनल सेहत के लिए नहीं लेखन
की सेहत के लिए कुछ भी करेगा, मतलब करता है . मान लीजिये उन्हें सड़क के किनारे उच्चशिक्षा
वाली प्रसिद्द कुतिया सोई पड़ी मिली तो उसे दन्न से पत्थर मार देंगे . पहले लात
मारा करते थे लेकिन अब अपनी सरकार है, विकास फटाफट हो रहा है तो अब वे हर कहीं स्वदेशी
पत्थर को प्राथमिकता देते हैं . बहरहाल, पत्थर लगते ही कुतिया ‘कविता...आ-कविता...आ’
चिल्लाती दुम दबा कर भाग जाती है . बस बाबा का मैटर तैयार सट्ट से, आज की साहित्य
साधना बिंदास नक्की . घर पहुँचते ही कुतिया की आह से उनका गान निकल पड़ेगा जैसे बड़े
बड़े वादों के पेट से सॉरी निकल पड़ता है . एक बार उनको मरी गाय दिखाई दे गई . बाबा को
झटका लगा, मरी गाय को देखता सोचता खड़ा रहा . आधा घंटे में उनके साहित्यिक बाड़े में
मरी गाय विचार बन कर जिन्दा हो गई . अब बाबा दिन भर इसको दुहते रहेंगे और शाम तक
पनीर तैयार कर लेंगे . किसी की हो न हो गाय आज बाबा की माता है . बाबा आल सीजन कुछ
भी करेगा, गोबर उठाना पड़े तो उठाएगा . जय माता
दी .
लड्डू गोल होता है, धरती गोल होती है, अमीरी गोल होती है, कानून गोल होता
है, रूपया गोल होता है, लड्डू के चक्कर में बड़े बड़े गोल होते हैं . .... तो ... सो जा राजकुमारी सो जा ... चांदी का
बंगला ... सोने का जंगला ... सो जा राजकुमारी सो जा . ...
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मंगलवार, 1 जून 2021
हरिया को डर लगता है !
“ अबे तू कायको किच किच करता है रोज
रोज सूबे सूबे !! गरीब हे तो गरीब के माफिक रेना चईए ना तेरे को ! रोज भेजा खाता
हे एकी बात के लिए कि नेतेलोग ईमानदार होना चईए ! कायको होना चईए रे ईमानदार ?! तेरे को मुनीम रखना है क्या अपनी
फेक्टरी में ? “ पेलवान हरिया पे सटक लिए ।
“आपी लोग केते हो पेलवान जी कि देस के
लिए अच्छा सोचो तो मेने सोचा कि इस्से अच्छी बात ओर क्या हो सकती हे कि नेतेलोग ईमानदार हों ।“
“ तेरे को क्या लगता हे कि नेतेलोग
ईमानदार नि हें !?”
“ मेरे को क्या मालूम ! वो इसको चोर
बोलता हे ये उसको ! अब तो लोग डाकू तक बोल रे हें ! “
“ तू मगज़मारी मत कर । तेरे को क्या
मतलब ऊंची पोलटिक्स से ? तू वोट दे देना, बस । ... समजा कि नि समजा ? “
“ पेलवान कल को अगर इन्ने देस लूटा तो
पुलिस हमको पकड़ के अंदर कर देगी कि तुमने गलत आदमी को वोट दिया । ... फिर !?“
“ अबे ! ऐसा कहीं होता है !!”
“ होता हे ना
.... एक बार मेरा छोरा छोटी सी चोरी कर के भाग गया तो पुलिस ने हमको अंदर कर दिया
। बोले छोरा खराब निकला तो ज़िम्मेदारी तुमारी भी हे !! ...डर लगता हे पेलवान ।“
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