‘‘ लेकिन कुर्सी तो मिलती है ना माॅम। मुझे कुर्सी से मतलब।’’ बिट्टू ने हाथ में उठा रखी बेबी चेयर को एक तरफ पटकते हुए कहा।
‘‘ वो समय गया बिट्टू जब बिना कुछ किए लोग पीएम बन जाया करते थे। वक्त की नजाकत को समझ, अब तुम बड़े हो रहे हो। तुमको बाकायदा राजनीति सीखना पड़ेगी।’’
‘‘ किससे सीखूं !! पार्टी का जो भी सामने आता है सीधे पैर छूने लगता है, यहां तक कि बूढ़े भी। तुम ही क्यों नहीं कुछ सिखा देतीं माॅम ?’’ बिट्टू पिछले कुछ समय से अनमना चल रहा था।
‘‘ मैंने तुम्हें मुस्कराना सिखाया था बिट्टू ........’’
‘‘ तो मैं मुस्कराता तो हूं ना ? अपन हारे थे तब भी मुस्कराया था, मीडिया ने अच्छे से कवर भी तो किया था।’’
‘‘ अरे बिट्टू ..... बिट्टू..... सही समय पर मुस्कराना राजनीति है, गलत समय पर मुस्कराने से गलत मैसेज जाता है। तुम्हें इस फर्क को समझना चाहिए।’’
‘‘ माॅम तुमने ही तो कहा था कि जनता और कैमरे के सामने मुस्कराया करो !! ’’
‘‘ लेकिन दुःखियों, पीड़ितों, समस्याग्रस्त लोगों की बात मुस्कराते हुए सुनना अच्छी बात नहीं हैं। ’’
बिट्टू नाराज हो गया। यों भी सारा दिन अकेले रहते बोर होता है। उस पर माॅम के लेसन का हेडेक। अरे भाई थाउजन्ड रुपीस का नोट हर समय थाउजन्ड रुपीस ही होता है। मुस्कराना हर समय मुस्कराने के अलावा और क्या हो सकता है। एक टाइम ये मीनिंग दूसरे टाइम पर वो ! ये पाॅलिटिकल नाॅनसेंस है।
मांईकमान ने एक बार और समझाने की कोशिश की, - ‘‘ देखो बिट्टू , एक बार तुम सही समय पर मुस्कराना और आंसू बहाना सीख गए तो समझ लो कि राजनीति का बहुत कुछ सीख गए। हिन्दुस्तान की रिआया बड़ी भावुक होती है। ’’
‘‘ कौन सिखाएगा मुझे ? ’’ बिट्टू कुछ देर सोच कर बोला।
‘‘ अपनी गरज के लिए हमें विरोधियों से भी सीखना चाहिए। टीवी पर रामायण में बताया था ना, लक्ष्मण ने रावण से सीखा था। ’’
‘‘ तो क्या नरेंद्र अंकल से सीखूं ?’’
‘‘ उनसे रहने दे। वो राजनीति नहीं तुझे फैशन-डिजाइन का कोर्स करने में लगा देंगे। ........ लेकिन एक संभावना है। तुम उधर के भीष्म पितामह से राजनीति सीख सकते हो। अभी वे तीरों से बिंधे पड़े हैं, पर होश में हैं। ’’
बिट्टू दनदनाते हुए भीष्म पितामह के बंगले पर पहुंचे। चारों तरफ करीब करीब संन्नाटा था। अंदर वीडिओ पर कोई फिल्म चलने की आवाज आ रही थी। हीरो चीख रहा था, गब्बरसिंग, तेरे एक एक आदमी को चुन चुन के मारूंगा। मां का दूध पिया हो तो सामने आओ बुजदिलों। बिट्टू थोड़ी देर रुका, सोचा इस वक्त जाना ठीक होगा या नहीं। लौटने का मन बनाया ही था कि एक कर्मचारी ने बताया कि आप मिल लीजिए, ये फिल्म तो यहां रातदिन चलती रहती है। कह कर वह अंदर पितामह को खबर करने गया। पितामह खुद ही बाहर आ गए और उन्होंने बिट्टू को प्यार से गले लगा लिया।
‘‘ अंकल माॅम ने ये पापड़ भेजे हैं आपके लिए।’’
‘‘ पापड़ !! कहां के हैं ?!’’
‘‘ राघौगढ़ के हैं। स्पेशल हैं।’’
‘‘ थैंक्स ..... देखो तुम्हारी मेरी पीड़ा एक ही है बिट्टू। तुम तो मेरे पास सीखने भी आ गए, पर मैं किसके पास जाउं !!’’
’’ मैं तो आपसे बहुत छोटा हूं अंकल । ’’
‘‘ राजनीति में छोटा-बड़ा कुछ नहीं होता है, जो भी होता है पीएम इन वेटिंग होता है। जो कि तुम भी रहे हो। ’’
‘‘ जो हुआ उसे दुनिया वाले क्या जाने अंकल, आप तो मुझे कुछ सिखाइये। ’’
‘‘ मैं क्या सिखाउं ! आपकी मांईकमान ने मुझे सिखाने योग्य समझा यही बहुत बड़ी बात है वरना हमारी पार्टी वाले तो ...... खैर। ’’
‘‘ मुझे कुछ टिप्स दीजिए ना ।’’
‘‘ शोले पिक्चर देखा करो। उसमें वो दाढ़ी वाला है ना .... गब्बर, लास्ट में उसी ठाकुर से हारता है जिसके हाथ उसने काट दिए थे। एक उम्मीद और हौसला मिलेगा। अभी तो तुम्हें लंबा सफर तय करना है। हो सकता है किसी तांगेवाली पर ही रीझ जाओ। तुम्हारे लिए यह भी बुरा नहीं है। ..... आओ अपन साथ में देखते हैं, नाम शोले है पर काम मरहम का करती है।’’
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